‘भूतनाथ रिटर्न्स’ 2008 में आई फिल्म ‘भूतनाथ’ का सीक्वल है. फिल्म की कहानी वहां से आगे बढ़ती है जहां पिछले भाग में खत्म हुई थी. फिल्म का यह सीक्वल पिछले भाग से कमजोर है. पिछले भाग में भूतनाथ ने दर्शकों को खूब हंसाया था लेकिन इस में उस ने दर्शकों को अपेक्षाकृत ज्यादा नहीं हंसाया है. इस के उलट उस ने इस बार भ्रष्टाचार को खत्म करने की कोशिश की है.

चुनावी माहौल में आई इस फिल्म में भूतनाथ ने चुनावों के बारे में भी लंबीचौड़ी बातें कही हैं. वह नेताओं की तरह बातें भी करता है. चुनाव लड़ने के लिए क्या कानून है, यह भी बताता है. चुनावों में वोटर की कितनी उम्र होनी चाहिए और लोगों को वोट अवश्य देने चाहिए जैसी बातें फिल्म में डाली गई हैं.

पिछले भाग में भूतनाथ (अमिताभ बच्चन) के मरने पर उस की आत्मा न भटके, इस के लिए पूजापाठ किया जाता है. इस के बाद भूतनाथ भूतवर्ल्ड में आ जाता है.

कहानी इसी भूतवर्ल्ड से शुरू होती है. उसे भूतवर्ल्ड में देख कर वहां बहुत से भूत उस का मजाक उड़ाते हैं. यह भूतवर्ल्ड एक सरकारी बड़े दफ्तर की तरह है जहां भूत बनी आत्माएं दोबारा पृथ्वी पर जन्म लेने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रही हैं. वह भूतवर्ल्ड के इंचार्ज से रिक्वैस्ट करता है कि उसे एक बार फिर धरती पर भेजा जाए जबकि इंचार्ज का कहना है कि पिछली बार वह धरती पर लोगों को डरा नहीं पाया था, इसलिए अब उसे धरती पर भेजना मुश्किल है. लेकिन बहुत मिन्नतों के बाद वह मान जाता है और भूतनाथ को धरती पर भेज देता है, इस ताकीद के साथ कि वह 3 बच्चों को डराए और फिर सम्मान के साथ भूतवर्ल्ड में वापसी करे.

भूतनाथ धरती पर आता है. उसे मुंबई के धारावी इलाके के एक पार्क में अखरोट (पार्थ मालेराव) नाम का एक बच्चा मिलता है. भूतनाथ उसे डराने की कोशिश करता है परंतु वह नहीं डरता. भूतनाथ को अखरोट देख सकता है. धीरेधीरे दोनों में दोस्ती हो जाती है. अब अखरोट और भूतनाथ भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मुहिम छेड़ते हैं. भाऊ साहब (बोमन ईरानी) एक भ्रष्ट नेता है जो चुनाव लड़ रहा है. अखरोट भूतनाथ को समझाबुझा कर भाऊ साहब के खिलाफ चुनाव में खड़ा होने को कहता है. भाऊ साहब अखरोट पर जानलेवा हमला कराता है.

एक भूत भला चुनाव कैसे लड़ सकता है, इस का तोड़ भी फिल्म में है. आखिरकार, भूतनाथ ?चुनाव लड़ता है और जीत जाता है. इधर, अस्पताल में अखरोट ठीक हो जाता है. अपना मिशन पूरा कर भूतनाथ भूतवर्ल्ड लौट जाता है.

फिल्म की यह कहानी अमिताभ और पार्थ मालेराव के इर्दगिर्द बुनी गई है. फिल्म में कोई हीरोइन नहीं है इसलिए ग्लैमर का अभाव है. गति भी धीमी है.

फिल्म में अमिताभ बच्चन कहीं से भी भूत नहीं लगा है. कहने को तो वह इस फिल्म का नायक है परंतु असली नायक तो पार्थ मालेराव है. उस का अभिनय काबिलेतारीफ है. फिल्म का एक गाना ‘पार्टी तो बनती है’ पहले से ही पौपुलर हो चुका है. यह गाना काफी अच्छा बन पड़ा है. छायांकन अच्छा है.

इस फिल्म को सिर्फ टाइमपास करने के लिए देखें. भूत, आत्मा वगैरह कुछ नहीं होते, न ही भूतवर्ल्ड जैसी कोई जगह है. यह सिर्फ निर्देशक की कोरी कल्पना है.

 

 

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