रेटिंग: ढाई  स्टार

अवधिः 2 घंटे 5 मिनट

निर्माताः नरेंद्र हीरावत और विकास मनी

निर्देशकः अश्विनी चौधरी

पटकथा: विकास मनी और अश्विनी चौधरी

कलाकारःपवन मल्होत्रा, आफताब शिवदसानी, श्रेयष तलपड़े, सोनाली सेहगल, इशिता दत्ता, विजय राज व अन्य.

कैमरामैन: संतोष थुंडियाली

शिक्षा व्यवस्था को दीमक की तरह चाट रहे पेपर लीक कराने व नकल कराने वाले गिरोह और इनकी कार्यशैली को लेकर अब तक कई फिल्में बन चुकी हैं. कुछ माह पहले इमरान हाशमी की फिल्म ‘‘व्हाय चीट इंडिया’’ भी इसी विषय पर बनी थी. अब उसी घिसे पिटे विषय पर अश्वनी चैधरी फिल्म ‘‘सेटर्स’’ लेकर आए हैं, जिसमें उन्होंने दिखाया है कि इस गिरोह की मदद अपराधियों को सजा देने वाले जज से लेकर पुलिस विभाग के उच्चाधिकारी भी अपने बेट या बेटी को व्यावसायिक परीक्षा में पास कराने के लिए लेते रहते हैं. ऐसे में वह इस गिरोह पर अंकुश कैसे लगाएंगे. फिल्म में विस्तार से इस गिरोह की कार्यप्रणाली का चित्रण किया गया है. इस फिल्म की एक ही खासियत है कि इस फिल्म में मोबाइल व ब्लू टूथ की हाई टेक/नई तकनीक का उपयोग यह गिरोह किस तरह करता है, उसका भी चित्रण है.

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कहानीः

फिल्म की कहानी के केंद्र में वाराणसी में रह रहे दबंग व बाहुबली भइयाजी (पवन मल्होत्रा) और उनके लिए काम करने वाले अपूर्वा चैधरी(श्रेयष तलपड़े) के इर्द गिर्द घूमती है. यह दोनों अपने गुर्गों (जीशान कादरी,विजय राज,मनु रिषि,नीरज सूद) के साथ मिलकर व्यावसायिक परीक्षाओं के पेपर व उनके जवाब परीक्षर्थियों को उंचे दाम पर मुहैया कराकर शिक्षा तंत्र में दीमक लगाने का काम कर रहे हैं. पर यह कहानी मुंबई, वाराणसी, लखनउ, दिल्ली व जयपुर तक जाती है. कहानी शुरू होती है मुंबई से जहां रेलवे भर्ती की परीक्षा के प्रश्नपत्र और उनके जवाब मुहैया कराने के लिए प्रति परीक्षार्थी दस लाख रूपए के हिसाब से पचास लोगों में बेचते हैं. एक लड़की अपूर्वा उर्फ अप्पू से यह कहकर प्रश्नपत्र व उनके जवाब लेने से इंकार कर देती है कि वह अपने पिता का घर गिरवी नही रखेगी और उसने जो पढ़ा है, उसी आधार पर वह परीक्षा देगी. इससे प्रभावित होकर अप्पू उस लड़की को मुफ्त में ही प्रशनपत्र व उनके जवाब दे देता है. परीक्षा खत्म होते ही सारा पैसा इकट्ठा कर वह अपने साथियों के साथ वाराणसी पहुंचकर धन व हिसाब भईयाजी को सौप देता है. उधर वाराणसी के डीआई जी दिल्ली के दबाव में एटीएस के एस पी आदित्य (आफताब शिवदासानी) को जिम्मेदारी देते हैं कि प्रश्नपत्र लीक कराने वाले यानी कि सेटर्स के गिरोह का भंडाफोड़कर उन्हे जेल के अंदर भेजे. आदित्य घर जाकर अपनी पत्नी से बात करता है, तो पता चलता है कि आदित्य, उनकी  पत्नी ऐश्वर्या व अपूर्वा चैधरी कभी गहरे दोस्त हुआ करते थे. आदित्य व अपूर्वा ने एक साथ पुलिस विभाग की नौकरी पाने के लिए परीक्षा दी थी, आदित्य सफल हुए थे और अपूर्वा असफल. इतना ही नही आदित्य को पता है कि अपूर्वा पेपर सेटर्स है. अब आदित्य अपनी टीम गठित करता है. वह अपनी टीम में ईशा (सोनाली सहगल), जमील अंसारी (जमील खान)व दिव्यांकर (अनिल मोंगे) को जोड़ता है. इधर आदित्य अपनी टीम के साथ मिलकर शिक्षा जगत के इस घपले को उजागर करने के साथ ही सबूतों के साथ भईया जी व अपूर्वा को गिरफ्तार करने की योजना बनाकर काम शुरू करते हैं. उधर बैंकिग की परीक्षा होनी है. इस बार फिर अपूर्वा ने 49 लोगों से पैसे लिए हैं. बैंक में प्रोबीशनरी आफिसर की परीक्षा भईयाजी की बेटी प्रेरणा (ईशा दत्ता) भी दे रही है. पर वह अपूर्वा से कहकर स्वयं परीक्षा देकर अपनी पढ़ाई के आधार पर पास होना चाहती है. अपूर्वा उसकी यह हसरत पूरी कर देता है. जिसके बाद प्रेरणा, अपूर्वा से प्यार करने लगती है. मगर आदित्य के चंगुल में अपूर्वा के तीन साथी पकड़े जाते हैं. पुलिस तीनों की जमकर पिटाई करती है, मगर तीनों सच नहीं कबूलते. उधर अपूर्वा के बार बार कहने के बावजूद भईया जी, मंत्री जी की मदद से इन तीनों को छुड़ाने से इंकार करते हुए भइयाजी एक राजनीतिक पार्टी के मुखिया अतुल दुबे(अतुल तिवारी) से मिलकर उस पार्टी का नेता बनकर दिल्ली जाने की तैयारी कर लेते है.पर अपूर्वा जज से मिलकर अपने तीनों साथियों को जमानत पर रिहा कराने में सफल हो जाता है. यहीं से भइयाजी और अपूर्वा के रास्ते अलग हो जाते हैं. अब इंजीनियरिंग की परीक्षा होनी है, जिसके पेपर जयपुर में छप रहे हैं. भइयाजी ने अपने आदमी को पेपर हासिल करने के लिए लगा रखा है, जबकि अपूर्वा खुद लगा हुआ है, जीत अपूर्वा की होती है. उसके बाद मेडिकल की परीक्षा होनी है. इस बार हर परीक्षार्थी से अपूर्वा पचास लाख रूपए लेता है. आदित्य की टीम और अपूर्वा के बीच चूहे बिल्ली का खेल जारी रहता है. भइयाजी खुद आगे बढ़कर अपूर्वा के संबंध में आदित्य को जानकारी देते हैं, फिर भी आदित्य को असफलता हासिल होती है. एक दिन भइयाजी की बेटी प्रेरणा, अपूर्वा के पास आकर कह देती हैं कि वह उसी से शादी करेगी. अंततः मेडिकल की परीक्षा खत्म होते ही अपूर्वा, प्रेरणा व निजाम (विजय राज) के साथ नेपाल चला जाता है. आदित्य कुछ नही कर पाते.

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निर्देशनः

‘‘लाडो’’ और ‘‘धूप’’ जैसी कम बजट की बेहतरीन फिल्मों के निर्देशित कर चुके अश्विनी चौधरी ‘सेटर्स’ में उत्कृष्ट कलाकारों की मौजूदगी के बावजूद बुरी तरह से मात खा गए हैं. पटकथा के स्तर पर भी वह मात खा गए. अश्विनी  चौधरी ने शिक्षा जगत में हो रहे घोटालों पर बात करने की बजाय अपना सारा ध्यान अपराधी के पीछे भागती पुलिस यानी कि चूहे बिल्ली के खेल के माध्यम से फिल्म को रोमांचकारी बनाए रखने पर ही दिया. हमारे देश में शिक्षा जगत व शिक्षा तंत्र के लिए नासूर बन चुके व्यापम सहित कई घोटाले हुए हैं. मगर फिल्मकार इस तरह के घोटालो व सेटर्स के चलते युवा पीढ़ी शिक्षा तंत्र को  किस तरह का नुकसान हो रहा है, इस नुकसान के क्या परिणाम हो रहे हैं, उस पर कोइ बात नहीं करती. यह फिल्म महज एक चोर को पकड़ने के लिए भागती पुलिस की रोमांचक गाथा बनकर रह जाती है. पूरी फिल्म देखने के बाद इस बात का अहसास होता है कि फिल्मकार का यह दावा खोखला है कि उन्होंने इस विषय पर गहन शेधकार्य किया है. यह कहानी महज पुलिस विभाग के जांच अधिकारी की डायरी का पन्ना मात्र है. लेखक व निर्देशक ने रिसर्च और लेखन में थोड़ी सी मेहनत की होती,तो यह एक बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. लेखक ने कुछ चरित्र बहुत बेतरीन तरीके से लिखे हैं.

कैमरामैन बधाई के पात्र

फिल्म के कैमरामैन संतोष थुंडियाली बधाई के पात्र हैं. वह अपने कैमरे की मदद से मुंबई, दिल्ली,जयपुर व वाराणसी की गलियों, वाराणसी में गंगा नदी के घाटों के साथ ही यहां के रहन सहन आदि की बारीकियों सुंदरता के साथ परदे पर उकेरने में सफल रहे हैं.

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अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो भइयाजी के किरदार में पवन मल्होत्रा के अभिनय की तारीफ की जाएगी. कुछ वर्षों से कौमिक फिल्मों के पर्याय बन चुके श्रेयष तलपड़े ने अपूर्वा के अलग अंदाज व मिजाज के किरदार को बाखूबी निभाया हैं. उन्होंने भाषा पर काम कर किरदार को जीवंत बनाया है. श्रेयष ने जिस सहजता के साथ अपूर्वा के किरदार को निभाया है, उससे उनके अंदर की अभिनय क्षमता का अहसास होता है. और सवाल उठता है कि अब तक उन्हें इस तरह के किरदार फिल्मकार देने से क्यों डरते रहे हैं? आफताब शिवदासानी भी लंबे समय बाद कुछ बेहतर परफार्म करते आए. इशिता दत्ता व सोनाली सहगल के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं. अन्य कलाकार अपने अपने किरदारों में ठीक ठाक रहे.

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