रेटिंगः तीन

निर्माताः केतन पटेल व कमलेश सिंह कुशवाहा

निर्देशकः अशोक नंदा

संगीतकारः जोय अंजन, विक्रांत पारिजात, ऋषि सिंह

कलाकरः अनुपम खेर, ईशा गुप्ता, कुमुद मिश्रा, राजेश शर्मा, मुरली शर्मा, जरीना वहाब, अनुस्मृति सरकार, दीपशिखा नागपाल, अनंत महादेवन, जाकिर हुसैन, परीक्षत सहानी, अक्रम अली खान, मनोज मिश्रा, डा. मोनिका रावण,  हेमा शर्मा व अन्य.

अवधिः दो घंटे पांच मिनट

हर आम इंसान को उम्मीद रहती है कि उन्हे अदालत से सही न्याय मिलेगा? पर क्या ऐसा होता है? दूसरी बात हर इंसान न्याय चाहता है, न्याय पाने वाले के लिए यह मायने नहीं रखता कि न्याय दिलाने वाले ने किस रास्ते को अख्तियार किया है? इन्ही दो महत्वपूर्ण मुद्दों को फिल्मकार अशोक नंदा ने अपनी फिल्म ‘‘वन डे जस्टिस डिलिवर’’ में उठाते हुए देश के कानून व न्याय प्रणाली पर करारा तमाचा जड़ा है.

कहानीः

फिल्म की कहानी रांची शहर में हाई कोर्ट के जज जस्टिस ओमप्रकाश त्यागी (अनुपम खेर) के अवकाश ग्रहण करने वाले दिन से शुरू होती है. वह अपने भाषण में कहते हैं कि कानून के दायरे में बंधे होने के कारण वह काफी काम नही कर पाए. पर अब वह उन्हें पूरा करना चाहेंगे. कानून के दायरे में बंधे होने के कारण उनसे हुई गलतियों को सुधारने की बात करते हैं. वह कहते हैं कि वह अभी भी लोगों को न्याय दिलाने में सक्षम हैं. जस्टिस त्यागी के दिमाग में यह बात है कि जज की कुर्सी पर बैठे हुए उनके हाथ से चार लोग मुलजिम बरी हो गए. उन्हें कानून की किताबों के अनुसार बरी करना पड़ा था. अब वह उन चारों को सजा दिलाने के लिए अपने हिसाब से काम करते हैं. वास्तव में अदालत में सब कुछ गवाहों पर निर्भर करता है. गवाह कैसे मैन्यूप्युलेट होते हैं,यह सभी को पता है. जस्टिस त्यागी को याद आता है कि जब वह अब्दुल(मोहक कंसारा) की मौत का मुकदमा सुन रहे थे, तो डौक्टर दंपति डा. अजय चोपड़ा (मुरली शर्मा) और डा. रीमा चोपड़ा (दीपशिखा नागपाल), जिनकी हरकतों से वाकिफ होते हुए भी कानून के दायरे में उनके सामने जो सबूत आए, उस आधार पर उन्हें बरी किया था. इस बात से गुस्सा होकर अब्दुल की मां परवीन बीवी (जरीना वहाब) ने जज त्यागी को सरे आम थप्पड़ मारते हुए उन पर बिकने का आरोप लगाया था. तब जज त्यागी को अहसास हुआ था कि उन्होंने कहां गलती की है, पर उस वक्त वह कुछ कर नही सकते थे.

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