नारी शोषण व बलात्कार और बलात्कारी से बदला लेने की कहानी को केंद्र में रखकर ‘काबिल’, ‘मौम’, ‘मातृ’, ‘भूमि’ के बाद फिल्मकार देवाशीष मखीजा की फिल्म ‘‘अज्जी’’ पांचवी फिल्म है. कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में शोहरत बटोर चुकी फिल्म ‘अज्जी’ एक अति डार्क और महत्वपूर्ण मुद्दे पर बनी विचारोत्तेजक फिल्म होते हुए भी नीरस फिल्म नही है. वैसे यह फिल्म दिल तोड़ने वाली कहानी के साथ आपेक्षित क्रूरता का निरुपण भी करती है. पूरी फिल्म एक अति वृद्ध महिला द्वारा अपनी पोती के बलात्कारी से बदला लेने की नाटकीय कहानी है.

फिल्म की कहानी झोपड़पट्टियों में रहने वाले एक गरीब नाबालिग लड़की मंदा कदम (बेबी सहरवानी सूर्यवंशी) और उसकी दादी, जिन्हें सभी अज्जी (सुषमा देशपांडे) कहते हैं, के इर्द गिर्द घूमती है. मंदा की अज्जी लोगों के कपड़े सिलकर कुछ पैसे कमाती है. मंदा की मां विभा (स्मिता तांबे) घर में उपमा व इडली आदि बनाकर साइकल पर लेकर बेचती है. पिता मिलिंद (श्रेयस पंडित) एक फैक्टरी में दस घंटे की नौकरी करती है. एक सेक्स वर्कर लीला (सादिया सिद्दिकी) का भी अज्जी के घर आना जाना है, क्योंकि उसे कभी कभी अपने कपड़े सिलवाने होते हैं.

फिल्म की कहानी शुरू होती है रात के अंधेरे में अज्जी द्वारा अपनी पोती मंदा को ढूंढ़ने से. अज्जी की मदद के लिए लीला भी आ जाती है. कुछ समय बाद पानी के पाइप के पास पत्थरों के बीच गंदगी में मंदा कराहते हुए मिलती है. पता चलता है कि उसका बलात्कार हो चुका है. अज्जी किसी तरह लीला की मदद से मंदा को घर पर लेकर आती है. दूसरे दिन पुलिस इंस्पेक्टर (विकास कुमार) को बुलाती है, एफआरआई लिखवाने के लिए. वह पुलिस इंस्पेक्टर घर पर आकर पूछताछ करता है. मंदा से पता चलता है कि एक स्थानीय नेता के बेटे ढवले (अभिषेक बनर्जी) ने उसके साथ यह कुकर्म किया है और वह उसे पहचान सकती है.

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