Dark Cinema: आदर्शवादी फिल्मों का दौर बहुत समय पहले खत्म हो गया, जिन में हीरोहीरोइन एकदूसरे की मोहब्बत में जान तक दे देते थे. उस तरह की फिल्म में प्रेम में जकड़ा प्रेमी अपनी प्रेमिका को पाने के लिए सारी दुनिया से टकरा जाता था. वह सरहदें तोड़ कर अपने प्रेम को वापस ले आता था. उन फिल्मों में विलेन हीरो के हाथों पिटता था और कभीकभी अंत में मारा जाता था. उस दौर में ऐसी फिल्में भी आईं जिन में देशप्रेम जबरदस्त तरीके से मौजूद था, जिन में जवान (हीरो) देश की खातिर जान की बाजी लगा देता और तिरंगे में लिपट कर अपने गांव वापस लौटता था. तब गांव वालों की छाती गर्व से चौड़ी हो जाती थी. आदर्शवादी फिल्मी कलमकारों ने परिवार की एकजुटता और प्रेम को भी खूब गढ़ा. फिल्म में हीरो या हीरोइन के मातापिता, बड़ा भाई या बहन उन के लिए आदर्श थे. उन का कहा पत्थर की लकीर होती थी. सच्चाई, प्रेम, आदर्श, कठोर श्रम, दुख के भावों से ओतप्रोत आदर्श फिल्मों का दौर अब शायद ही कभी लौट कर आए.
अब जमाना डार्क फिल्मों का है. ऐसी फिल्में जिन में कुछ भी खालिस नहीं है. कुछ भी आदर्श नहीं है. कुछ भी खरा नहीं है. सचझूठ, अच्छाबुरा, खराखोटा, हीरोविलेन सब गड्डमड्ड है. जिन में गलत काम करने वाला भी हीरो बन जाता है. जिन में जेल में बंद क़ैदी के प्रति सहानुभूति पैदा कराई जा रही है. जिन में कालेधंधे में सिर से नख तक डूबा व्यक्ति फिल्म का हीरो है. जनता के बीच गोली चलाने वाला वीर है. कुल जमा यह कि आज की ‘डार्क फिल्में’ वे हैं जिन की कहानियां सामान्य मनोरंजन, हीरोहीरोइन के प्रेम या हीरोविलेन की सीधी लड़ाई से हट कर, गहरे और असहज विषयों को छूती हैं, जैसे हिंसा, अपराध, मानसिक अंधकार, सामाजिक सड़न, नैतिक द्वंद्व, झूठ और इंसानी कमजोरी आदि.
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