‘‘औस्कर’’ के लिए भारतीय प्रतिनिधि फिल्म के रूप में भेजी जाने वाली रीमा दास की फिल्म ‘विलेज रौक स्टार्स’ न सिर्फ पहली असमी भाषा की फिल्म है,बल्कि पहली पूर्वोत्तर भारत के किसी फिल्मकार की फिल्म है,जो कि पूर्णतः पूर्वोत्तर भारत में ही फिल्मायी गयी है. रीमा दास इस फिल्म की निर्माता होने के साथ साथ निर्देशक, लेखक, कैमरामैन व एडिटर भी है. फिल्म में अभिनय करने वाले बच्चे व बड़े सभी असम के चायगांव के हैं, जिन्होंने पहली बार अभिनय किया है. रीमा दास की इस फिल्म को इसी वर्ष ‘सर्वश्रेष्ठ फिल्म’, ‘सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार’ और सर्वश्रेष्ठ लोकेशन साउंड’’ सहित तीन राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. (ज्ञातव्य है कि 1988 में जहान बरूआ की फिल्म के बाद ‘स्वर्ण कमल’ पाने वाली यह दूसरी असमी फिल्म है.) इससे पहले यह फिल्म 80 अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सवों में धूम मचाने के साथ ही 44 अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी बटोर चुकी थी. इतना ही नहीं यह फिल्म भारतीय सिनेमा घरों में 28 सितंबर 2018 को पहुंची है.

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37 वर्षीय फिल्मकार रीमा दास के हौसले को सलाम किया जाना चाहिए, जिन्होंने असम में गौहाटी से 50 किलोमीटर दूर स्थित चायगांव से निकलकर 2003 में मुंबई पहुंची.

15 वर्ष के संघर्ष के बाद अपने बुलंद हौसले, अपनी मेहनत व लगन के बल पर उन्होने अंतरराष्ट्रीय सिनेमा जगत को अपनी प्रतिभा का अहसास कराते हुए अपनी दूसरी फिल्म ‘विलेज रौक स्टार्स’ के लिए लगभग पचास पुरस्कार हासिल कर लिए. इतना ही नहीं ‘‘भारतीय फिल्म फेडरेशन’’ को भी अहसास कराया कि 91वें औस्कर में ‘‘विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म’’ खंड में भारतीय प्रतिनिधि फिल्म के तौर पर उनकी फिल्म ‘‘विलेज रौक स्टार्स’’ को ही भेजा जाना चाहिए. जबकि इस प्रतिस्पर्धा में बौलीवुड की कई बड़े बजट की चर्चित फिल्में भी थीं.

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