बौलीवुड की हालत आंकलनों से ज्यादा खराब चल रही है. 7 माह बीत गए, एक भी फिल्म अपनी लागत तक नहीं वसूल पाई. कुछ फिल्में तो अपनी लागत का दो प्रतिशत भी बौक्सऔफिस पर इकट्ठा नहीं कर पाई लेकिन कलाकारों के अहम चरम सीमा पर हैं. तो वहीं फिल्मों की असफलता के चलते यह कलाकार फ्रस्ट्रेशन के शिकार हो रहे हैं. अब तो हालात ऐसे हो गए हैं कि प्रैस कौन्फ्रैंस में बुलाए गए किराए के अपने ‘नकली फैंस’ के सामने कलाकार पत्रकार को हड़काने से बाज नहीं आ रहा.
ऐसे हालात में अगस्त के पहले सप्ताह यानी कि दो अगस्त को जब अजय देवगन और तब्बू की फिल्म ‘औरों में कहां दम था’ तथा एक लघु फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके निर्देशक सुधांशु सरिया व अभिनेत्री जान्हवीं कपूर की फिल्म ‘उलझ’ प्रदर्शित हुई तो उम्मीदें थीं कि यह दोनों फिल्में बौलीवुड को कम से कम उंट के मुंह जीरा वाली सफलता का स्वाद चखा देंगी. लेकिन हुआ उल्टा. फिल्म की शूटिंग के दौरान चाय पीने पर जो धनराशि खर्च हुई होगी, वह राशि भी यह दोेनों फिल्में बौक्स औफिस पर इकट्ठा नहीं कर पाईं.
अजय देवगन,तब्बू, शांतनु माहेश्वरी और साई मांजरेकर अभिनीत तथा ‘बेबी’ सहित तमाम सफलतम फिल्मों के निर्देशक नीरज पांडे द्वारा लिखित व निर्देशित फिल्म ‘औरों में कहां दम था’ प्रेम कहानी नहीं टौर्चर कहानी ही महसूस हुई. लोगों ने एक टिकट पर एक फ्री का औफर भी स्वीकार नहीं किया. इस फिल्म की रिलीज दो बार टाली गई. हर बार रिलीज टालने की वजह यह बताई गई थी कि फिल्म का प्रचार सही नहीं हो पाया लेकिन अंत तक अजय देवगन, तब्बू, शांतनु माहेश्वर या साई मांजरेकर ने पत्रकारों से बात नहीं की. अब इस के लिए यह कलाकार स्वयं दोषी हैं अथवा इन की पीआर टीम व मार्केटिंग टीम दोषी हैं, यह तो यह कलाकार ही बेहतर जानते होंगे.
हां, फिल्म के रिलीज से पहले दोतीन नामचीन गोदी मीडिया वाले टीवी चैनलों पर अजय देवगन और तब्बू गए थे, पर वहां पर भी ये फिल्म के संबंध में चर्चा करने की बजाय अपनी दोस्ती की ही चर्चा करते रहे. अजय देवगन व तब्बू को मान लेना चाहिए कि दर्शक को आप का चेहरा नहीं देखना है. दर्शक को इस बात में रुचि नहीं है कि आप लोग कितने वर्षों से दोस्त हैं. दर्शक मनोरंजन व अच्छा कंटैंट चाहता है. यही वजह है कि निर्माताओं के अनुसार पूरे 8 दिन के अंदर 100 करोड़ रूपए की लागत में बनी फिल्म ‘ओरों में कहां दम था’ महज 10 करोड़ ही कमा सकी. जिस में से निर्माता की जेब में बामुश्किल 4 करोड़ जाएंगे. मगर जानकारी के मुताबिक ,उस के अनुसार इस फिल्म ने बौक्सऔफिस पर 8 दिन में 5 करोड़ रुपए भी नहीं कमाए. फिल्म की इस दुर्गति की वजह खराब प्रचार, खराब कहानी, खराब निर्देशन, कलाकारों का बेमन अभिनय ही रहा. केवल साई मांजरेकर ने बेहतरीन अभिनय किया है.
कथानक के स्तर पर नीरज पांडे ने जो गलतियां की हैं,कम से कम उन के जैसे अनुभवी निर्देशक उसे तो उम्मीद नहीं थी.
अगस्त माह के पहले सप्ताह यानी कि दो अगस्त को प्रदर्शित फिल्म ‘उलझ’ के असफल होने पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ. यदि निर्देशक सुधांशु सरिया को ले कर यह कहा जाए कि ‘बंदर के हाथ में उस्तरा’ दे दिया गया तो गलत नहीं होगा. सुधांशु सरिया इस से पहले चारपांच लघु फिल्में बना कर राष्ट्रीय पुरस्कार जरूर जीत चुके थे, पर फिल्म ‘उलझ’ देख कर समझ में आ गया कि उन के अंदर निर्देशकीय प्रतिभा का घोर अभाव है. फिल्म के प्रदर्शन से पहले वह हवा में उड़ रहे थे.
जब पत्रकारों ने उन से फिल्म के संबंध में बातचीत करने के लिए संपर्क किया तो वह एक ही जवाब देते रहे कि मेरी फिल्म की मार्केटिंग टीम और पीआरओ से संपर्क कीजिए. शायद इसीलिए दर्शकों ने कह दिया कि पीआर टीम क्या तय करेगी, हम ही तय कर देते हैं. जी हां, लंदन में सब्सिडी ले कर लगभग 40 करोड़ में फिल्माई गई जान्हवी कपूर की फिल्म ‘उलझ’ सात दिन में सात करोड़ रुपए ही इकट्ठा कर सकी, इस में से निर्माता को मिलेंगे तीन करोड़ रुपए. वैसे सूत्रों का दावा है कि इस फिल्म ने 4 करोड़ से भी कम कमाए हैं. फिल्म ‘उलझ’ की नायिका जान्हवी कपूर ने तो अपने कैरियर की पहली फिल्म ‘धड़क’ से ही साबित कर दिया था कि उन के अंदर अभिनय प्रतिभा नहीं है, मगर वह तो ‘नेपो किड’ यानी कि निर्माता बोनी कपूर व अभिनेत्री श्रीदेवी की बेटी हैं, इसलिए उन्हें काम मिलता रहेगा.