जंगल-जंगल बात चली है, पता चला है,
चड्डी पहनकर फूल खिला है, फूल खिला है.

गुलजार ने अच्छा लिखा है, इसमें कोई शक नहीं. लेकिन यह गाना अगर शेर खान गाता तो तब शायद यह गाना इतना ‘क्यूट’ नहीं लगता! क्यों, है न! खैर, नौवें दशक में दूरदर्शन के मार्फत यह गाना जंगल बुक का ‘ऐन्थम’ बन गया. बच्चे तो बच्चे, बड़ों की जुबान पर यह चढ़ गया था. एक अजीब-सी गुदगुदाहट के साथ सब गुनगुनाया करते थे.

लेकिन जौन फैवरियू ने जंगल बुक का पूरा माहौल जिस तरह गढ़ा है, कम से कम उसे इस गाने की तरह ‘क्यूट’ तो नहीं कहा जा सकता. इस पूरे प्रकरण में रोंगटे खड़ी कर देनेवाला माहौल है. एक छोटी-सी जान मोगली को बार-बार मौत से बार-बार दो-दो हाथ करते हुए देखना – अपने आपमें सिहरन पैदा करता है. मोगली का जानी दुश्मन है काले-पीले धारीदार और भारी-भरकम डीलडौल वाला रॉयल बंगाल टाइगर शेर खान. बार-बार मोगली का सामना शेर खान से होता है. लेकिन जंगल में रह कर मोगली बखूबी जान चुका है कि जीने के लिए लड़ाई और संघर्ष को टाला नहीं जा सकता. यह उसके जीवन का हिस्सा बन चुका है.

वैसे जंगल के लगभग तमाम जीवों के साथ मोगली की एक अच्छी ‘ट्यूनिंग’ हो चुकी है. जीने के लिए संघर्ष का सबक उसे मिला है ब्लैक पैंथर बघिरा, भेडि़या के पूरे झुंड से. इनके बीच रह कर धीरे-धीरे मौत को गच्चा देना सीख जाता है मोगली. इसीलिए एक समय के बाद वह जंगल के माहौल में रच-बस गया.रूडयार्ड किपलिंग द्वारा मध्यप्रदेश के सिवनी के जंगल रचे गए इसी पूरे प्रकरण को पीढ़ी दर पीढ़ी हम ‘दि जंगल बुक’ एडवेंचर के रूप जानते हैं. डिजनी के सेकेंड जंगल बुक को रोमांचक और एक्शन से भरपूर सैलूलाइट पर्दे पर एक बार फिर से उतारा गया है. नौवें दशक में हम भारतीयों के बीच मोगली के जंगल एडवेंचर को लोकप्रिय बनाया था जापानी एनीमेशन ने. वहीं इसे इस तरह की कहा जा सकता है कि जापानी एनीमेशन से भारत का परिचय मोगली ने ही कराया था.

कहानी की शुरूआत जंगल में प्रचंड गर्मी के प्रकोप में पानी की किल्लत होती है. जंगल के तमाम जीव को पानी के लिए एक करार करना पड़ता है. पानी की ऐसी कमी जंगल में हो जाती है कि बाघ-गाय दोनों एक ही घाट में पानी पीने को मजबूर हो जाते हैं. इस करार के तहत पानी पीने के लिए आए अन्य किसी जीव का शिकार वर्जित हो गया. यह करार शेर खान भी मानने को मजबूर है.लेकिन मोगली के शरीर का ‘मानव गंध’ उसे उकसा देता है. मानव गंध उसे बर्दाश्त नहीं है. क्यों  मोगली जैसे एक वयस्क मानव ने एक बार उसे बुरी तरह घायल कर दिया था. जंगल के जीव जंगल में जगह-जगह गड्ढ़े में जमे पानी को पीने आए सभी पशुओं के सामने इसीलिए शेर खान मोगली को धमकाता है कि अपने ऊपर हुए इंसानी हमले का एक दिन बदला वह मोगली से जरूर लेगा. जाहिर है शेर खान के बदला लेने की इस धमकी में फिल्मकार ने ‘टेरर कोशेंट’ का माहौल बखूबी गढ़ा है. यह फिल्म मेकिंग की खासियत है.

इसीके साथ हरेक सिक्वेंस में कहानी की स्वाभाविक गति के साथ जंगल के माहौल से कम से कम एक बार यह जता दिया जाता है कि जंगल का एक अपना कानून होता है और जो इस कानून को नहीं मानता है, उसके अस्तित्व को लेकर संकट का गहराना तय है. वहीं यह भी दिखाया गया है कि जंगल में केवल उसका अपना कानून नहीं होता है, जंगल के पास एक दिल भी है. दिल का अपना कायदा है जो मैत्री, स्नेह बंधुत्व और ममता से बंधा हुआ है. दिल पर कानून का राज नहीं चलता. जंगल के जीवों के अस्तित्व के इन दो पहलुओं में एक तरफ मोगली है तो दूसरी तरफ शेर खान. और इन दोनों को लेकर जंगल के जीवों का अंतर्द्वंद्व बराबर चलता रहता है.

मोगली को पाल-पोस कर बड़ा किया है जंगल में भेडि़या सरदार अकेला और भेडि़या मां के साथ उनका पूरा झुंड. बघिरा उसका अच्छा दोस्त व साथी बन जाता है. सीजीआई सौफ्टवेयर के माध्यम से जंगल के तमाम जीवों की अलग-अलग तरह की अनुभूतियों को बखूबी उभारा गया है. इसका श्रेय केवल सीजीआई एनीमेशन सौफ्टवेयर को नहीं जाता है, बल्कि इस तरह की बूखियों को उभारने में सफलता का बड़ी भागीदारी ‘लाइफ औफ पाई’ की तकनीकी टीम की भी है. इस बार के जंगल बुक को लेकर बहुत चर्चा है, इसे में ‘डार्क टोन’ का नाम दिया गया है और कहते हैं कि इसीके आधार पर फिल्म को यू/ए का सर्टिफिकेट दिया गया है. इस बारे में इतना जरूर कहा जा सकता है कि जंगल बुक के अच्छे-बुरे पक्ष को ब्लैक एंड ह्वाइट में पेश करने की गुरेज जौन फैवरियू को नहीं रही है. कहीं-कहीं ऐसा जरूर लगता है कि नौवें दशक में जिन बच्चों ने जंगल बुक देखा था, आज वे व्यस्क हो चुके हैं और इन्हीं वयस्कों को ध्यान में रख कर फैवरियू ने इसे बनाया है. इसीके साथ यह भी देखना जरूरी है कि आज के बच्चे नौवें दशक के बच्चों से जैसे नहीं है. इंटनेट की दुनिया से दूर नहीं है. और इंटरनेट सब कुछ  खोल कर रख देता है.

जाहिर है तब और अब के फर्क को देखा जाए तो इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि पिछले दो दशक में दुनिया बहुत बदल गयी है. मौत आज रोजमर्रा का सच है. क्रमिक विकास के दौर में इंसान और जंगल, खाद्य और खानेवाले के बीच के संबंध का ब्लू प्रिंट डीएनए का हिस्सा बन गया है. इसी के साथ सेक्स भी पहले की तरह दुराव-छिपाव की चीज नहीं रह गयी है. ऐसे में अगर इस ‘डार्क टोन’ को परे कर दिया जाए तो कहानी का दम एकदम से निकल जाएगा.

फिल्म में कहानी शुरू से ही अपनी पूरी रवानी के साथ चलती है. और इससे ताल मिला कर विजुअल भी अपने पूरे शबाब के साथ चलता है. बघिरा और अपने अन्य साथियों के साथ जंगल और जीवन के संघर्ष का पाठ मोगली पढ़ता है. बघिरा और भेडिया सरदार के प्रशिक्षण में मोगली को जो तूफानी गति हासिल हुई है, साउंड और मोशन ने पर्दे पर बड़े अद्भुत तरीके से उतारा गया है. और उस पर थ्री-डी का एफेक्ट, जो वास्तविकता से कहीं ज्यादा विशाल है. इतना विशाल कि दर्शक खुद भी उस माहौल का हिस्सा बन जाता है. इसीके साथ कहानी की रवानी के साथ स्क्रिप्ट में ठहराव नजर आता है. वहीं फिल्म से निर्देशक व फिल्मकार का नियंत्रण जरा भी ढीला नहीं पड़ा है. उस पर मोगली की भूमिका में नील शेट्टी का मासूम एक्टिंग दिल को छू जाता है. ग्राफिक्स की डिटेलिंग भी गजब की है.

कुल मिला कर लौस एंजिल्स का स्टुडियो हरेक मिली मीटर में मध्यप्रदेश के सिवन के जंगल में तब्दील हो जाता है. जंगली भैंस की पीठ पर सवार होकर शेर खान को गच्चा देने के दौरान मोगली पहाड़ी दर्रे व उबाड़-खाबड़ पगडंडी से किस तरह निपटता है- ग्राफिक्स में बहुत अच्छी तरह परोसा गया है. यह सब बड़ा जीवंत लगता है. इसे अगर और भी अधिक स्पष्टता से कहा जाए तो ‘लाइव एक्शन’ शब्द को अक्षरश: सैलूलाइड में बड़ी बारीकी के साथ उभारा गया है.

गोरिल्ला किंग लूई वाले प्रसंग में दर्शकों के हंसी और मस्ती क अच्छी खुराक है. सत्ता को लूई आग से जोड़ कर देखता है. वह आग का इस्तेमाल मगली से सीख लेना चाहता है. इस गुर को अपना कर वह अजेय हो जाना चाहता है. इसके अलावा फिल्म में और भी कुछ रोचक प्रसंग हैं. मसलन; ‘का’ (सांप) से मोगली की पहली मुलाकात, मंदिर के खंडहर में बंदरों और बबुनों का नाच वगैरह. वैसे ‘का’ से मोगली की दोस्ती अंत तक होते-होते रह ही गयी. भेडिया भाइयों का बड़ा होना और मोगली के जीवन में राधा का रोमांस इससे अंदाजा लग जाता है निर्माता इसका सिक्वेल जरूर बनाना चाहते है. और अगर एक वाक्य में फिल्म की समीक्षा करनी हो तो कहा जा सकता है कि बच्चों की कहानी होने के बावजूद वयस्कों को भी यह फिल्म अच्छा लगेगा.

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