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सुधाकरजी और उन की पत्नी मीरा एकाकी व नीरसता भरा जीवन व्यतीत कर रहे थे. इकलौती बेटी मुग्धा की वे शादी कर चुके  थे. परंतु जिद्दी बेटी ने जरा सी बात पर नाराज हो कर पिता से रिश्ता तोड़ लिया था. इस कारण पतिपत्नी के बीच भी तनाव रहता था. इसी गम ने उन्हें असमय बूढ़ा कर दिया था. आज सुबह लगभग 4 बजे सपने में बेटी को रोता देख कर उन की आंख खुल गई थी.

उन को भ्रम था कि सुबह का सपना सच होता है. इसलिए अनिष्ट की आशंका से उन की नींद उड़ गई थी. वे पत्नी से बेटी को फोन करने के लिए भी नहीं कह सकते थे क्योंकि यह उन के अहं के आड़े आता. बेटी के जिद्दी और अडि़यल स्वभाव के कारण वे डरे हुए रहते थे कि एक दिन अवश्य ही वह तलाक का निर्णय कर के लुटीपिटी  यहां आ कर खड़ी हो जाएगी.

‘‘मीरा, मेरा सिर भारी हो रहा है, एक कप चाय बना दो.’’

‘‘अभी तो सुबह के 6 ही बजे हैं.’’

‘‘तुम्हारी लाड़ली को सपने में रोते हुए देखा है, तभी से मन खराब है.’’

‘‘आप ने उस के लिए कभी कुछ अच्छा सोचा है जो आज सोचेंगे, हमेशा नकारात्मक बातें ही सोचते हैं. इसी वजह से ऐसा सपना दिखा होगा.’’

‘‘तुम्हारी नजरों में तो हमेशा से मैं गलत ही रहता हूं.’’

‘‘आप की वजह से ही, न तो वह अब यहां आती है और न ही आप से बात करती है. तब भी आप उस के लिए बुरा सपना ही देख रहे हैं.’’

‘‘तुम ने मेरे मन की पीड़ा को कभी नहीं समझा.’’

उदास मन से वे उठे और सुबह की सैर को बाहर चले गए. तभी मीरा का मोबाइल बज उठा था. उधर से बेटी की चहकती हुई आवाज सुन कर वे बोलीं, ‘‘इस एनिवर्सरी पर आशीष ने कुछ खास गिफ्ट दिया है क्या? बड़ी खुश लग रही हो.’’

‘‘नहीं मां, वे तो मुझे हमेशा गिफ्ट देते रहते हैं. इस बार का गिफ्ट तो उन्हें मेरी तरफ से है,’’ वह शरमाते हुए बोली थी, ‘‘मां, हम दोनों इस बार एनिवर्सरी पर सैकंड हनीमून के लिए मौरीशस जा रहे हैं.’’

तभी नैटवर्क चला गया था, इसलिए फोन डिसकनैक्ट हो गया था. मीरा के दिल को ठंडक मिली थी. उन के मन को खुशी हुई थी कि देर से ही सही परंतु अब बेटी ने पति को पूरी तरह स्वीकार कर लिया है. पति से बेटी के हनीमून पर जाने की बात वे बताना चाह रहीं थीं लेकिन वे अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त हो गईं.

रात के लगभग साढ़े 10 बजे थे. सुधाकर उनींदे से हो गए थे. तभी उन का मोबाइल घनघना कर बज उठा था. दामाद आशीष का नंबर देख वे चौंक उठे थे. लेकिन मोबाइल पर आशीष का मित्र अंकुर की आवाज सुनाई दी, ‘‘अंकल, आशीष का सीरियस ऐक्सिडैंट हो गया है. उस की हालत गंभीर है. उसे अस्पताल में भरत करा दिया है. आप तुरंत आ जाइए.’’ उन के हाथ से मोबाइल छूट गया था. सुधाकर के सफेद पड़े हुए चेहरे को देखते ही मीरा को समझ में आ गया था कि जरूर कुछ अप्रिय घटा है.

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘आशीष की गाड़ी का ऐक्सिडैंट हो गया है. हम लोगों को तुरंत मुंबई के लिए निकलना है.’’

‘‘आशीष ठीक तो हैं?’’

‘‘पता नहीं. तुम्हारी बेटी के लिए तो यह खुशी का क्षण होगा. जब से शादी हुई है उस ने उन्हें एक दिन भी चैन से नहीं रहने दिया. सुबह जब वे औफिस के लिए निकले होंगे तो तुम्हारी बेटी ने अवश्य उन से झगड़ा किया होगा. वे तनाव में गाड़ी चला रहे होंगे. बस, हो गया होगा ऐक्सिडैंट.

‘‘तुम से मैं ने कितनी बार कहा था कि अपनी बेटी को समझाओ कि पति की इज्जत करे. गोरेकाले में कुछ नहीं रखा है. लेकिन तुम भी अपनी लाड़ली का पक्ष ले कर मुझे ही समझाती रहीं कि धैर्य रखो, आशीषजी की अच्छाइयों के समक्ष वह शीघ्र ही समर्पण कर देगी.’’

‘‘मुग्धा कैसी होगी?’’

‘‘उस का नाम मेरे सामने मत लो. आज तो वह बहुत खुश होगी कि आशीष घायल क्यों हुए, मर जाते तो उसे उस काले आदमी से सदा के लिए छुटकारा मिल जाता.’’

‘‘ऐसा मत सोचिए. पहले मुग्धा को फोन कर के पूरा हाल तो पता कर लीजिए.’’

‘‘क्या मुझे उस ने फोन किया है?’’

उन्होंने अपने मित्र संजय से अस्पताल पहुंचने के लिए कहा और अपने पहुंचने की सूचना दी. मीरा आखिर मां थीं, उन की ममता व्याकुल हो उठी थी. उन के कान में उस के चहकते हुए शब्द ‘सैकंड हनीमून’ गूंज रहे थे. उन्होंने बेटी को फोन लगा कर आशीष के ऐक्सिडैंट के बारे में पूछा. वह रोतेरोते बुझे स्वर में बोली थी, ‘‘उन की हालत गंभीर है. उन्हें इंसैटिव केयर यूनिट में रखा गया है. खून बहुत बह गया है. इसलिए उन के ब्लड ग्रुप के खून की तलाश हो रही है.’’ गुमसुम, असहाय मीरा अतीत में खो गई थी. उन की शादी के कई वर्षों बाद बड़ी कोशिशों के बाद उन्होंने इस बेटी का मुंह देखा था. सुंदर इतनी की छूते ही मैली हो जाए. लाड़प्यार के कारण बचपन से ही वह जिद्दी हो गई थी. लेकिन चूंकि पढ़ने में बहुत तेज थी, इसलिए सुधाकर ने उसे पूरी आजादी दे रखी थी.

मुग्धा के मन में अपनी सुंदरता और गोरे रंग को ले कर बड़ा घमंड था. बचपन से ही वह काले रंग के लोगों का मजाक बनाती और उन्हें अपने से हीन समझती. उस के मन में अपने लिए श्रेष्ठता का अभिमान था. जिस की वजह से उन्होंने उसे कई बार डांट भी लगाई थी और सजा भी दी थी. समय को तो पंख लगे होते हैं. वह बीटैक पूरा कर के आ गई थी. वे मन ही मन उस की शादी के सपने बुन रही थीं. परंतु बेटी मुग्धा एमबीए करना चाह रही थी. इस के लिए सुधाकर तो तैयार भी हो गए थे. परंतु मीरा उस से पहले उस की शादी करने के पक्ष में थीं. उस की इच्छा को देखते हुए एमबीए कर लेने के बाद ही शादी पर विचार करने का अंतिम निर्णय ले लिया गया था.

परंतु वे कुछ दिन से देख रही थीं कि उस की चंचल और शोख बेटी चुपचुप रहती थी. उस के चेहरे पर चिंता और परेशानी के भाव दिख रहे थे. वह फोन पर किसी से देर तक बातें किया करती थी. एक दिन उन्होंने उस से प्यार से पूछने की कोशिश की थी, ‘क्या बात है, बेटी? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है. कोई समस्या हो तो बताओ?’ ‘नो मौम, कोई समस्या नहीं है. औल इज वैल.’

मुग्धा के चेहरे से स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था कि वह सफेद झूठ बोल रही है. मीरा के मन में शक का कीड़ा बैठ गया था क्योंकि मुग्धा अपने फोन को एक क्षण के लिए भी अपने से अलग नहीं करती थी और उन के छूते ही वह चिल्ला पड़ती थी. एक रात जब वह गहरी नींद में सो रही थी तो चुपके से उन्होंने उस के फोन को उठा कर देखा तो उसी फोन ने उन के सामने सारी हकीकत बयां कर दी.एहसान माई लाइफ, उस के साथ सैल्फी, फोटोग्राफ, ढेरों मैसेज देख वे घबरा उठी थीं. अंतरंग क्षणों की भी तसवीरें मोबाइल में कैद थीं. प्यार में दीवानी बेटी धर्मपरिवर्तन कर के उस के साथ शीघ्र ही निकाह करने वाली थी.

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