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मनोज ने घर वालों की बातों को दरकिनार करते हुए खुद मुसलिम धर्म अपना कर गुलशबा से निकाह कर लिया. उस ने अपना नाम बदल कर कैफ रख लिया था.

गुलशबा से शादी कर के मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ खुश था. गुलशबा को भी अचानक में ही सही, पर एक ऐसा पति मिल गया था जो उस का हर तरह से पूरा ध्यान रख रहा था. मनोज रातदिन मेहनत कर के पत्नी को अपनी क्षमता के अनुसार सुखसुविधाएं दे रहा था.

पति के प्यार में गुलशबा भी अपनी बीती जिंदगी के पलों को भुला कर अपनी गृहस्थी में रम गई थी. दोनों के जीवन के 8 साल कैसे निकल गए, पता ही नहीं चला. इस बीच गुलशबा 2 बच्चों की मां बन गई. कुल मिला कर उस की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी.

समय अपनी गति से चल रहा था. मनोज के कहने पर गुलशबा ने अपने मायके वालों से भी बातचीत करनी शुरू कर दी थी, जिस से उस के उन से भी संबंध सामान्य हो गए थे. बेटी खुश थी, उस का जीवन सुखी था, इस से ज्यादा एक मातापिता को और क्या चाहिए. मायके वालों का उस के पास आनाजाना शुरू हो गया.

8 सालों तक एक ही जगह पर रह कर जब गुलशबा का मन भर गया तो वह कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली गई. गुलशबा चाहती थी कि उस का पति मुंबई में ही अपना धंधा शुरू कर के वहीं रहे तो वह मायके वालों के करीब आ जाएगी.

यही सोच कर उस ने एक दिन कैफ को समझाते हुए कहा, ‘‘जो काम तुम आगरा में करते हो, वही काम मुंबई में भी कर सकते हो. और फिर तुम सामान तो मुंबई से ही लाते हो. सामान लाने में खर्च भी होता है. मुंबई में काम करने से यह खर्चा भी बचेगा.’’

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