‘‘मलाला यूसुफजई को मिले नोबेल पुरस्कार से उत्साहित पाकिस्तानी महिलाओं में अपने अधिकारों को ले कर चेतना आई है. अब वे रूढिवादी रीतिरिवाजों से पल्ला झाड़ कर खुली हवा में सांस लेने को बेताब हैं, भले ही इस का जो अंजाम हो. पाकिस्तान में अब फिजा बदल रही है और इस के लिए पढ़ीलिखी महिलाएं बड़ी तादाद में आगे आ रही हैं,’’ यह कहना है औस्कर पुरस्कार प्राप्त पाकिस्तानी महिला फिल्मकार शरमीन ओबेद चिनौय का. पाकिस्तान में प्रेमविवाह गुनाह है. इसलाम के नाम पर वर्षों से चली आ रही इस प्रथा के खिलाफ परिवार की रजामंदी के बिना विवाह को पाप समझा जाता है. ऐसी स्थिति में लड़की का पिता, भाई और चाचा ही उस के खून के प्यासे बन जाते हैं. पाकिस्तान में इस झूठी आनबानशान अर्थात ओनर किलिंग के नाम पर हर साल 1 हजार से भी ज्यादा युवतियों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया जाता है.

सामाजिक पहलू को दिखाती फिल्म

दूसरी बार औस्कर पुरस्कार लेने आईं शरमीन जैसे ही सभागार में पहुंचीं, उन का तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत हुआ. अमेरिका का शायद ही ऐसा कोई मीडिया रहा होगा, जिसे पुरस्कार से पहले और बाद में इस तेजतर्रार महिला शरमीन की तलाश न रही हो. मंच से जैसे ही शरमीन ओबेद चिनौय और उन की लघु फिल्म ‘ए गर्ल इन द रिवर’ का नाम पुकारा गया, सभागार में दुनिया भर से आए सिने अभिनेताओं और निर्माताओं को ऐसे लगा कि इस फिल्म को तो अवार्ड मिलना ही चाहिए था. वह क्यों? इस का जवाब दूसरी बार औस्कर अवार्ड लेने वाली पाकिस्तानी फिल्मकार ने इन शब्दों में दिया, ‘‘मुझे इस अवार्ड से ज्यादा खुशी तब होगी जब मेरे देश पाकिस्तान में ओनर किलिंग के नाम पर आए दिन होने वाली हत्याएं बंद होंगी, पारस्परिक प्रेमविवाह करने वाले युवकयुवतियों को बिना रोकटोक विवाह करने की आजादी होगी, उन्हें परिवार की झूठी आनबान के लिए मौत के घाट नहीं उतारा जाएगा. ऐसा तभी होगा जब पाकिस्तान में ओनर किलिंग के लिए कानून में कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान किया जाए.’’

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