अक्सर बच्चों में हकलाने की समस्या आती है. माता-पिता भी बच्चों की इन गतिविधियों को उनके विकास की उम्र मानकर अनदेखा कर देते हैं. वैसे हकलाना एक मानसिक विकार है. हकलाने वाले बस वह आम बच्चों की तरह धारा प्रवाह और स्पष्ट नहीं बोल पाते. वे बोलते समय शब्दों को तोड़-मोड़कर पेश करते हैं.
हालांकि हकलाने वाले बच्चे दिमागी तौर पर काफी तेज होते हैं. ऐसे बच्चे स्वभाव से अन्तर्मुखी व भावुक होते हैं, इसलिए दूसरों के सामने बोलने से घबराते या शरमाते हैं. कई बार तो उनके मन में यह बात बैठ जाती है कि दूसरे व्यक्ति के सामने रूक-रूक कर बोलने पर उनकी हंसी उड़यी जाएगी. ऐसी स्थिति में वे और ज्यादा हकलाते हैं.
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ऐसे करें हकलाहट को दूर
हकलाहट से परेशान लोगों और बच्चों के लिए परिवार का साथ बेहद जरूरी होता है. आप उनका हौसला और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाएं, ताकि वे खुद पर भरोसा रखें. घबराकर हार न मानें. ऐसे लोगों का मजाक न बनाएं, उन्हें समझाएं कि यह कोई बीमारी नहीं बल्कि सिर्फ आदत है, जो थोड़े समय की स्पीच थेरेपी से दूर हो सकती है.
यदि कोई हकलाने या अटक-अटक कर बोलने वाला सदस्य घर में हो तो उसमें सही बोलने की ललक पैदा करें. उसे यह समझाएं कि उनका स्वर यंत्र भी उतना ही समर्थ है, जितना कि दूसरे लोगों का. इस पर भरोसा जागा तो ही वह सही बोलने का प्रयास करेगा.
अगर बचपन में आपका बच्चा इस समस्या से परेशान है, तो डौक्टर की सलाह से स्पीच थेरेपी लेना शुरू करवा दें. शुरुआत में यह थेरेपी ज्यादा दिनों की नहीं होती. तीन-चार महीने में ही हकलाहट की यह आदत खत्म हो जाती है पर यही इलाज अगर बड़े होने पर किया जाए, तो एक-दो साल लंबा चलता है.
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