हो सकता है मेरी इस बात से आप सहमत न हों लेकिन जरा सोच कर देखें, सेल्फिश का मतलब सिर्फ धोखा देना ही नहीं होता. आज तक आप ने उन सेल्फिश लोगों को देखा होगा जो अपने फायदे के लिए दूसरों को बेवकूफ बनाते हैं, धोखा देते हैं.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि अगर एक सही तरीके से स्वार्थी या सेल्फिश बना जाए तो इस से हम अपनी जिंदगी में बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं, वह भी बिना किसी को धोखा दिए, किसी का नुकसान किए बिना.

सेल्फिशनैस हमारे अंदर किस हद तक होनी चाहिए? कहीं आप हमेशा अच्छा बनने की कोशिश में तो नहीं लगी रहतीं?

अगर ऐसा है तो यह कोशिश आज ही छोड़ दीजिए. इस से आप को हासिल तो कुछ नहीं होगा, आप की परेशानियां जरूर बढ़ेंगी, क्योंकि आप के आसपास के लोग आप का फायदा उठाएंगे, आप का इस्तेमाल करेंगे.

इतनी अच्छी भी मत बनिए

रीना एक अच्छी बहू, पत्नी व मां थी. सब उस की प्रशंसा करते नहीं थकते थे. विवाह से पहले वह मायके व स्कूल में सब की चहेती थी. शांत स्वभाव की रीना को चाहने वालों की कमी नहीं थी. लेकिन ‘ना’ न कह पाने की वजह से अकसर परेशान हो जाती थी. धीरेधीरे रीना को भीतर ही भीतर अजीब सा खालीपन लगने लगा था. उसे डिप्रैशन ने घेर लिया.

ना कहना सीखें

एक दिन रीना की सहेली उस से मिलने आई. वह प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक थी. रीना की बातों से वह समझ गई परेशानी कहां है. सारी बातें सुनने के बाद वह बोली, ‘‘रीना, तू प्रतिभासंपन्न व कुशल गृहिणी है और हमेशा दूसरों की खुशी का ध्यान रखती है. क्या तूने कभी अपने लिए भी जी कर देखा है? तुझे न कहना नहीं आता है. बस, यही तेरी समस्या है. इस घेरे से बाहर निकल, न कहना भी सीख. थोड़ा अपनी इच्छानुरूप भी जी कर देख.’’

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उसे अपनी सहेली की बातें सही लगीं. इतने सालों से वह दूसरों की खुशियों तले अपनी इच्छाएंआकांक्षाएं सभी तो खत्म कर रही थी. उस ने अपने लिए जीने का फैसला कर लिया और धीरेधीरे ‘न’ कहना भी सीख लिया. सब लोग रीना में आए इस आकस्मिक परिवर्तन को देख कर हैरान थे. आज वह समझ चुकी थी कि हां कहना बुरा नहीं, लेकिन अपने सपनों के दांव पर तो नहीं. जीवन में आगे बढ़ने के लिए अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए न कहने की कला का आना भी जरूरी है.

अपने वजूद को पहचानें

कुछ लोगों में आदत होती है कि वे नकारात्मक छवि से घबराते हैं और सब के सामने सकारात्मक छवि बनाए रखना चाहते हैं, चाहे वे इस चाहत के चक्कर में अंदर ही अंदर खुद कितने ही परेशान हो जाएं.

आखिर ‘न’ कहने में इतनी हिचकिचाहट क्यों? आप कोई रोबोट नहीं जो हर काम अपने सिर ले लें. हर काम कर पाना किसी के लिए भी संभव नहीं. हां कहने के बाद काम को आधेअधूरे मन से करना या न कर पाना अधिक हानिकारक है.

जब किसी काम को नहीं कर पाएंगे तब ज्यादा छवि खराब होगी. मेरा मानना है कि एक बार बुरा बनना बारबार बुरा बनने से ज्यादा अच्छा है. मनोचिकित्सक के अनुसार, ‘‘ना कहना एक कला है. ‘हां’ कह कर लोगों की भीड़ में न शामिल हों. अगर न कहोगे तो एक अलग पहचान मिलेगी.’’ सो, प्रत्येक व्यक्ति को आवश्यकता पड़ने पर न कहने की कला भी आनी चाहिए.

खुद से बातें करें

इतना तनाव, इतनी उलझन क्यों है? स्वभाव चिड़चिड़ा क्यों है? क्या कारण है कि कभीकभी किसी से बात करने का मन नहीं करता? फुरसत में बैठ कर खुद से सवाल करें. जवाब ढूंढ़ने की कोशिश करें.

खुद का नुकसान न करें

हर बार आप ही क्यों? हैल्प करें पर दूसरे को अपना फायदा न उठाने दें. अकसर अच्छे बनने के चक्कर में, किसी को बुरा न लगे, हम बहुत सारी ऐसी चीजों के लिए भी हां बोल देते हैं जिन से हमारा खुद का नुकसान होता है. यह नुकसान किसी भी रूप में हो सकता है, जैसे टाइम, पैसे, खुशहाली या परिवार. इतनी बड़ी कीमत? विचार करें, जब जिंदगी अपनी है तो मरजी भी हमेशा अपनी ही होनी चाहिए.

नजरिया अपना हो

आंखों से चश्मा हटाएं. दुनिया को अपनी नजर से देखने की आदत डालें. किसी दूसरे की राय को अपनी राय न बनाएं. जरूरी नहीं जो दूसरे के लिए गलत है वह आप के लिए भी गलत हो. फैसला अपने अनुभव के आधार पर करना सही है. आप का अनुभव सामने वाले के अनुभव से अलग हो सकता है.

खुद को चाह कर तो देखो

हैल्दी और पौष्टिक खाएं, ऐक्सरसाइज करें, और हर वह चीज करें जिस से आप के मन और शरीर को अच्छा महसूस हो. अपनी जरूरतों को नजरअंदाज न करें.

यह आप को खुद के प्रति प्यार की कमी को दर्शाता है. अपना और अपने शरीर का ध्यान रखने का अर्थ सेल्फिश होना कतई नहीं. रोज के 24 घंटे में से कुछ अपने लिए समय जरूर निकालें.

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