होटल या रैस्टोरैंट में खाने की मात्रा कम करें. मेगा साइज की जगह रैगुलर साइज और्डर करें. घर से बाहर अधिक मसालेदार और वसायुक्त खाद्य पदार्थों से परहेज करें.नाश्ते में सीरियल या पैक्ड फूड की जगह पोहा या इडली खाएं.
चौकलेट का सेवन कम करें व दूसरे लोगों को भी चौकलेट उपहार के रूप में न दें. बच्चों को बहलाने के लिए आइस्क्रीम या चौकलेट देने की जगह कुछ सेहतमंद खिलाएं. टिफिन में घर का बना खाना ही भेजें. कोल्ड ड्रिंक्स की जगह ताजा नीबू पानी या नारियल पानी पिएं.
नान के स्थान पर तंदूरी रोटी और्डर करें. बच्चों में बचपन से ही सागसब्जियां खाने की आदत डालें. ‘‘राहुल, क्या लाया है टिफिन में?’’ ‘‘गोभी के परांठे, तू क्या लाया है?’’ ‘‘मेरी मम्मी ने तो दालरोटी दी है.’’
‘‘करण, तेरी मम्मी ने क्या भेजा है?’’ ‘‘मेरे टिफिन में तो मम्मी ने छोलेपूरी रखी हैं.’’
‘‘यम्म…यम्म…’’
‘‘राहुल, देख, मेरी मम्मी ने मुझे बर्गर बना कर दिया है.’’
‘‘इस में पालक तो नहीं दिया छिपा कर?’’
‘‘अरे, बिलकुल नहीं, आलू की टिक्की और रैड मैयोनीज भी हैं.’’
‘‘मुझे मम्मी ने पालक की सब्जी दी है, मुझे नहीं खाना. इसे तो रास्ते में गाय को डालते हुए जाऊंगा.’’
‘‘चल यार, बर्गर ही शेयर कर लेते हैं.’’
बस, कुछ इसी तरह हम ने अपने जीवन में कई पहलुओं से घर के खाने को बाहर कर दिया है. दावतें कोल्ड ड्रिंक्स और पिज्जा के बिना अधूरी हैं. लोगों की जबान पर होटलों के महंगेमहंगे पकवान हैं, घर का सादा खाना कहीं सुर्खियां नहीं बटोरता.
लंच में बर्गर और पास्ता खाना है क्योंकि दोस्तों को अपनी शान दिखानी है. शाम की चाय के साथ पकौड़ों की जगह अब डब्बाबंद कुकीज और फ्राइड आइटम्स ने ले ली है. युवाओं के लिए तो घर के खाने का अर्थ है ‘डिनर’, क्योंकि केवल डिनर ही है जिस में वे मुंह बना कर घर का खाना खा लेते हैं. उन की सुबह तो सीरियल और कौर्नफ्लैक्स तथा लंच व शाम का नाश्ता इंस्टाग्राम पर पोस्ट करने लायक जंकफूड से होती है. घर का खाना सचमुच आउट औफ फैशन हो गया है.
आज के समय में जंकफूड युवाओं की पहली पसंद है, इस के फायदे कम और नुकसान अधिक हैं जिन से वे अपरिचित हैं.
अधिकतर जंकफूड और पैक्डफूड में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है और बहुत कम या न के बराबर फाइबर होते हैं. जब ये कार्बोहाइड्रेट पाचनतंत्र में प्रवेश करते हैं तो इन से ग्लूकोज यानी शुगर निकलती है, जो रक्त में मिल जाती है. अग्नाशय यानी पेनक्रियाज ग्लूकोज से प्रभावित हो कर इंसुलिन रिलीज करता है. इंसुलिन शुगर को शरीर के अन्य हिस्सों तक पहुंचाता है तथा शुगर अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचती है जिस से शरीर का शुगर लैवल सामान्य हो जाता है. लेकिन कार्बोहाइड्रेट की अधिकतम मात्रा ग्रहण करने पर यह क्रिया बिगड़ जाती है और व्यक्ति डायबिटीज से ग्रस्त हो जाता है. जंकफूड में वसा, शुगर और सोडियम की मात्रा अधिक होती है जिस से खाने का स्वाद बढ़ता है, लेकिन सोडियम की अधिक मात्रा शरीर में वाटर रिटैंशन को बढ़ाती है जिस से व्यक्ति फूलाफूला महसूस करने लगता है. कहने का मतलब है कि पूरा शरीर सूज जाता है.
20 वर्षीया स्मिता जंकफूड की बड़ी शौकीन है. दोस्तों के साथ जब भी बाहर निकलती है तो मोमोज खाए बिना नहीं लौटती. शाम को अकसर मम्मी समोसे और कचौड़ी तो ले ही आती हैं.
स्मिता कक्षा 10वीं तक तो पतली थी पर कालेज तक आतेआते उस का वजन काफी बढ़ गया. अब थुलथुले शरीर के साथ न दौड़भाग कर सकती है और न ही खेलकूद पाती है.
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वजन 90 किलो है तो चाल भी उस की धीमी है. उसे इस मोटापे के कारण अकसर मनपसंद कपड़े नहीं मिलते, कभी आउट औफ साइज हो जाते हैं तो कभीकभी उस के साइज के होते हुए भी उसे पसंद नहीं आते. अकसर पेट फूला रहता है और पेट में दर्द भी होता है. उसे पीरियड्स भी दोढाई महीने के अंतराल में आते हैं. चेहरा हमेशा दानों से भरा रहता है और पीठ पर काले धब्बे भी पड़ गए हैं. पर मजाल है कि वह जंकफूड खाना छोड़ दे.
24 वर्षीय निखिल हर सुबह औफिस के लिए निकलने से पहले इंसुलिन का इंजैक्शन लगा कर जाता है. उसे टाइप 1 की डायबिटीज है. आज से 4 वर्षों पहले जिस तरह की मनमौजी जिंदगी वह जी रहा था, आज उस के बिलकुल विपरीत मोड़ पर उस की जिंदगी चल रही है.
सुबह से शाम तक 3-4 बार तो बाहर का कुछ न कुछ तो वह खा ही लेता था. सुबह ब्रेकफास्ट नहीं किया तो औफिस में समोसे या सैंडविच खा लिए, लंच में खाना अच्छा नहीं लगा तो पिज्जा या चाऊमीन खा ली, शाम की चाय के साथ थोड़े चिप्स और पकौड़ों में हर्ज ही क्या. और औफिस से निकल कर एक बर्गर तो बनता है. लेकिन वर्तमान अतीत से बहुत अलग है.
दिन में 8-10 बार ब्लडशुगर चैक करना उस की आदत बन चुकी है. प्रतिदिन उसे इंसुलिन के 3 इंजैक्शन लेने पड़ते हैं, एक सुबह नाश्ते से पहले, एक दोपहर लंच से पहले और एक डिनर से पहले. घर से काम पर जाने, जिम जाने या कहीं घूमने जाने से पहले उसे अपनी दवाइयों की पूरी किट साथ रखनी होती है, जिस में इंसुलिन के इंजैक्शन या पैन, ग्लूकोमीटर, टैस्ट स्ट्रिप्स, लांसिक डिवाइस, टैबलेट्स, ग्लूकोज जेल और हार्ड कैंडी शामिल हैं. इन सभी चीजों को ले जाने के लिए उसे एक अलग बैग कैरी करना पड़ता है, खेलनेकूदने या डांस से पहले अपने शुगर लैवल को ध्यान में रखना होता है.
यदि वह फास्टफूड के सेवन को नियंत्रित रखता तो आज उसे अपने शुगर लैवल को नियंत्रण में रखने की आवश्यकता न होती.
अन्य प्रभाव अतिरिक्त कैलोरी ग्रहण करने से शरीर का भार बढ़ता है जिस से ओबेसिटी हो सकती है. ओबेसिटी श्वसन तंत्र को प्रभावित करती है जिस से सांस लेने में परेशानी व अस्थमा की बीमारी हो सकती है, जो व्यक्ति फास्टफूड व प्रोसैस्ड पेस्ट्री का अधिक सेवन करते हैं, सामान्य व्यक्तियों के मुकाबले उन्हें डिप्रैशन होने की संभावना 51फीसदी अधिक होती है.
आजकल की युवतियों व किशोरियों को इस बात का ज्ञान नहीं है कि जंकफूड आगे चल कर उन की फर्टिलिटी पर प्रभाव डालता है. जंकफूड में पाए जाने वाले थैलेट महिलाओं को बांझपन जैसी समस्याओं से ग्रसित कर सकते हैं.
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युवा, जो फास्टफूड का हफ्ते में 3 या उस से अधिक बार सेवन करते हैं, उन्हें एक्जिमा होने की संभावना अधिक होती है.
कार्बोहाइड्रेट और शुगर से युक्त खाद्य पदार्थ व्यक्ति के मुंह में अम्लीय तत्त्वों को बढ़ाते हैं. यह अम्ल (एसिड) दांतों की ऊपरी परत को तोड़ देता है जिस से बैक्टीरिया दांतों को खोखला कर देते हैं व दांतों में कैविटी हो जाती है. ओबेसिटी बोन डैंसिटी को भी कम करती है जिस से व्यक्ति के बारबार गिरने व हड्डी के टूटने का खतरा बढ़ जाता है.
‘‘यार राहुल, आज तो कोई लैक्चर ही नहीं है.
चलो कहीं बाहर चलें, बहुत भूख भी लगी है.’’
‘‘हां चल, पिज्जा खाने चलें.’’
‘‘यह सही है, पास्ता भी ले लेंगे.’’
‘‘हां बढि़या, चलो चलें.’’