हर्बल औषधियों से जुड़ा ज्ञान दुनिया की हर मानवजाति, संस्कृति और सभ्यता का हिस्सा रहा है. कई जड़ीबूटियों को तो सोने से ज्यादा महत्त्वपूर्ण माना गया है. अदरक, सेमल लहसुन, अश्वगंधा, हलदी, लौंग, धनिया, आंवला, अमरूद और ऐसी हजारों जड़ीबूटियों के प्रभावों की प्रामाणिकता आधुनिक विज्ञान साबित कर चुका है.
कई जड़ीबूटियों को आधुनिक औषधि विज्ञान ने बाकायदा दवाओं के तौर पर आधुनिक अमलीजामा पहनाया भी है. सिनकोना नामक पेड़ से प्राप्त होने वाली छाल से क्वीनोन नामक दवा तैयार की गई और इसे मलेरिया के लिए रामबाण माना गया.
दुनिया के तमाम देश शोधों और उन के परिणामों से प्रोत्साहित हो कर कई हर्बल दवाओं के वैज्ञानिक प्रमाण खोजने के प्रयास कर रहे थे. आज डंडेलियान नामक पौधे से कैंसर रोग के इलाज की दवा खोजी जा रही है, तो कहीं किसी देश में सदाबहार और कनेर जैसे पौधों से त्वचा पर होने वाले संक्रमण के इलाज पर अध्ययन हो रहा है.
परंपरागत ज्ञान का वैज्ञानिक प्रमाणन जरूरी है ताकि हम यह हकीकत समझ पाएं कि किस जड़ीबूटी से कौन सा रोग वाकई में ठीक होता है और ऐसा कैसे संभव हो पाता है. लेकिन मैं जड़ीबूटियों में खास रसायनों को अलग कर के औषधियों को कृत्रिम रूप से तैयार करने का पक्षधर नहीं.
पौधों में होते हैं रसायन
औषधीय पौधों में सिर्फ एक नहीं, हजारों रसायन और उन के समूह पाए जाते हैं. और कौन जाने, कौन सा रसायन प्रभावी गुणों वाला होता है. इसलिए मार्कर कंपाउंड (किसी जड़ीबूटी में पाए जाने वाला खास रसायन) शोध पर कई जानकार सवालिया निशान खड़े करते हैं. जड़ीबूटियों में से महत्त्वपूर्ण रसायनों को अलग कर के उन्हें कृत्रिम रूप से तैयार करने की कोशिश असरकारक न होगी. इस बात को साबित करने के लिए एस्पिरिन से बेहतर उदाहरण क्या होगा.
एस्पिरिन टेबलेट्स में मार्कर कंपाउंड के नाम पर सौलिसिलिक एसिड होता है जिसे सब से पहले व्हाइट विल्लो ट्री नामक पेड़ से प्राप्त किया गया. सौलिसिलिक एसिड को कृत्रिम तौर पर तैयार किया गया और एस्पिरिन नामक औषधि बाजार में लाई गई. दर्दनिवारक गुणों के लिए मशहूर इस दवा के सेवन के बाद कई रोगियों को पेट में गड़बड़ी और कइयों को पेट में छालों की समस्याओं से जूझना पड़ा. जबकि व्हाइट विल्लो ट्री की छाल का काढ़ा कई हर्बल जानकार दर्दनिवारण के लिए सदियों से देते आएं हैं और रोगियों को कभी किसी तरह की शिकायत नहीं हुई. क्या नतीजा निकालेंगे आप?
दरअसल, छाल के काढ़े में वे रसायन भी हैं जो छालों की रोकथाम के लिए कारगर माने गए हैं और कई रसायन ऐसे भी हैं जो पेटदर्द और दस्त रोकने आदि के लिए महत्त्वपूर्ण हैं. सब से बड़ा सवाल दवाओं या जड़ीबूटियों की गुणवत्ता को ले कर बनता है. अधिकांश वैद्य, जानकार और कई फार्मा कंपनियां भी दवाओं को तैयार करने वाली जड़ीबूटियों (कच्चे माल) को बाजार से खरीदते हैं. ऐसे में कच्चे माल की गुणवत्ता पर सवाल उठना लाजिमी है.
दूसरी सब से बड़ी चिंता की
बात झोलाछाप और गैरप्रामाणिक जानकारियों का इंटरनैट या सोशल साइट्स व ढोंगी बाबाओं की ओर से संचारित होना है. आधीअधूरी जानकारी पा कर लोग खुद चिकित्सक बन जाते हैं और घर पर ही इलाज कर बैठने की सोच लेते हैं सिर्फ यह मान कर कि हर्बल दवाएं हैं, कोई दुष्प्रभाव या साइडइफैक्ट तो होगा नहीं.
हर्बल दवाओं से नुकसान
कई बार हम जानेअनजाने किसी डाक्टर को अपनी समस्याएं बताए बगैर मैडिकल स्टोर से दवाएं खरीद लाते हैं और मुफ्त में समस्याएं भी घर ले आते हैं. हर्बल लैक्सेटिव्स (विरेचक औषधि) बाजार में ओवर द काउंटर यानी ओटीसी के रूप में कहीं भी मिल जाती हैं. हम में से ज्यादातर लोग ऐसे हैं जिन्हें इन से जुड़े दुष्प्रभावों की जानकारी तक नहीं. ये विरेचक औषधियां न सिर्फ शरीर में इलैक्ट्रोलाइट संतुलन को बिगाड़ सकती हैं बल्कि कई तरह के विटामिंस और वसीय पदार्थों का विघटन भी कर देती हैं.
मूत्र संबंधित विकारों के भी दुष्प्रभावों की भी बात करनी जरूरी है जिन की वजह से विटामिन बी-1, बी-6, विटामिन सी, सीओक्यू 10 और शरीर के इलैक्ट्रोलाइट्स कम होने लगते हैं. शरीर में कैफीन की मात्रा ज्यादा होने से विटामिन ए, विटामिन बी कौंप्लैक्स, लौह तत्त्वों और पोटैशियम जैसे पोषण तत्त्वों में कमी आने लगती है.
अकसर हर्बल दवाओं को दुष्प्रभावहीन बताया जाता है और इसी कारण लोग बगैर सोचेसमझे इन दवाओं को अपना लेते हैं. वे इस बात को भूल जाते हैं कि इन की असंतुलित मात्रा या किसी प्रशिक्षित चिकित्सक की सलाह लिए बगैर इन का उपयोग गलत असर भी डाल सकता है.
वैज्ञानिक एल्विन लेविस के शोध के अनुसार, एलोवेरा के जैल की अधिक मात्रा, जिसे अकसर लोग बगैर जानकारी के तमाम रोगोपचार के लिए इस्तेमाल करते हैं, शरीर के लिए नुकसानदायक भी हो सकती है. इस के चलते पेटदर्द, पेचिस जैसी आम समस्याओं के अलावा हृदय से संबंधित कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. पेड़पौधों में जो रसायन पाए जाते हैं, उन का कई बार सीधा सेवन घातक साबित होता है.
फ्लेवेनौइड नामक रसायन की अधिकता होने से मानव शरीर में कई दुष्परिणाम देखे जा सकते हैं. अमेरिकन जर्नल औफ मैडिसिंस में वैज्ञानिक अर्नस्ट के रिव्यू लेख की मानी जाए तो फ्लेवेनौइड एनीमिया जैसी समस्याओं के अलावा आप की किडनी को भी क्षतिग्रस्त कर सकते हैं.
जरूरी है चिकित्सकीय सलाह
हर्बल दवाएं किसी प्रैस्क्रिप्शन के बिना आसानी से बाजार में मिल जाती हैं लेकिन मेरी समझ से आप को हर्बल दवाओं के सेवन के वक्त चिकित्सकीय सलाह (मैडिकल गाइडैंस) लेना जरूरी है, क्योंकि अकसर हर्बल दवाओं की उपयोगिता के बारे में सभी लोग बात करते हैं लेकिन किन्हीं दूसरी दवाओं के साथ होने वाले रिऐक्शन के बारे में ज्यादा लोगों को समझ नहीं है. यही बात उन डाइटीशियंस को भी समझनी चाहिए जो चिकित्सा विज्ञान की समझ के बगैर खानपान में खासे परिवर्तन जरूर करा देते हैं लेकिन किसी खास तत्त्व की अधिकता या कमी के दुष्परिणामों की फिक्र नहीं करते.
शरीर में किसी पोषक तत्त्व की कमी है तो पोषक तत्त्व की पूर्ति के लिए औषधियों की तरफ दौड़ लगाने के बजाय तत्वों की कमी होने के कारणों को खोजा जाए और इन कारणों का प्राकृतिक रूप से निवारण किया
जाए. यदि अनियंत्रित खाद्यशैली, भागदौड़ और तनावग्रस्त जीवन में हम अपने शरीर को ढाल लेते हैं तो शरीर बीमारियों की चपेट में आता है.
हर्बल ज्ञान को सब से बड़ा नुकसान पहुंचाया है इस के अंधाधुंध बाजारीकरण और झोलाछाप जानकारियों ने. कई जानकार जड़ीबूटियों के बारे में इतनी सारी बातें बोल जाते हैं कि ऐसा लगने लगता है कि मानो कुछ जड़ीबूटियां अमृत तो हैं. तथाकथित जानकार इस तरह की वनस्पतियों को हिमालय से ले कर सुदूर पूर्वी राज्यों के पहाड़ी इलाकों से लाने और फिर दवा बनाने का दावा करते हैं. दरअसल, हर वनस्पति की एक खासीयत होती है. हरेक वनस्पति असरदार है. इस बात को सही जानकार भी अच्छी तरह जानते हैं.
औषधियों का बाजार करोड़ों रुपयों का है किंतु प्राकृतिक रूप से शरीर स्वस्थ रखना लगभग मुफ्त है और इस मुफ्त इलाज के लिए किसी चिकित्सक की जरूरत भी नहीं, सिर्फ अपना जीवनयापन, खाद्यशैली, और रोजमर्रा की जिंदगी को सटीक कर लिया जाए तो शरीर खुद ही अपनी रक्षा कर सकता है. रोगों का उपचार बिलकुल संभव है, किंतु यह तभी होगा जब रोगों के कारणों को हम समझ पाएं और फिर कारणों के निवारणों पर अमल किया जाए.