हिंदू धर्म के नाम पर पंडेपुजारियों ने बहुत सी ऐसी व्यवस्थाएं कर रखी हैं जिन से उन की आजीविका बेरोकटोक चलती है. इसी व्यवस्था के तहत सोमवार को ‘शंकरपार्वती’ से जोड़ कर बनाई गई व्रत कथा है.
इस कथा से साफ है कि हमारे भगवान मानवीय पात्रों से भी ज्यादा लालची हैं. इस कमजोरी को इस कथा में पहले पृष्ठ पर ही देखा जा सकता है.
कथा आरंभ में ही स्वीकार करती?है कि मंदिरों में पुजारी किस तरह लोगों से गलत व्यवहार करते हैं : कथा बताती है, अश्वपति प्रदेश में भगवान शंकर का एक बहुत बड़ा सोने का मंदिर था. मंदिर का पुजारी बड़ा धूर्त तथा नशेबाज था.
लीजिए, पंडित उस समय भी धूर्त और नशेबाज होते थे जब कि वह तो सतयुग था. यदि सतयुग में यह सब था तो उसे सतयुग कहा ही क्यों गया?
यह पुजारी मंदिर में मूर्ति के दर्शन के लिए जो लोग आते थे उन को पहले नशीली वस्तु खिला देता और फिर उन के पैसे आदि सब छीन लेता.
मंदिरों में लूट के उदाहरण आज तो बहुत मिलते हैं पर सतयुग में भी ऐसा होता था, यह कथा इस का साफ उदाहरण है. और उस समय हालात बदतर थे.
एक दिन रात को शंकर और पार्वती घूमने निकले तो उन्हें पुजारी के बारे में पता चला. यानी शंकर और पार्वती अंतर्यामी नहीं थे. उन्हें घूमघूम कर ही वस्तुस्थिति का पता चलता था. उन के मंदिर में पुजारी छलकपट कर रहा है, उन्हें मालूम नहीं, ऐसे शंकर को भगवान कह ही कैसे सकते हैं.
क्या कमाल है. स्वयं भगवान शंकर और उन के मंदिर के पुजारी ही सही नहीं हैं.
भगवान जो सर्वज्ञाता?है, को पुजारी के बारे में अपने दिव्य ज्ञान से क्यों नहीं जान लेना चाहिए?था. शंकर ने पुजारी को धूर्त बनने ही क्यों दिया.
यदि भगवान शंकर को कणकण में व्याप्त, त्रिकालदर्शी, सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान कहते हैं तो फिर सोमवार व्रत कथा मात्र कल्पना की भोंड़ी उड़ान सिद्ध होती है, जो सतयुग की नहीं, 100 या 50 वर्ष पुरानी है.
पुजारी भगवान की इच्छा के विपरीत चला पर फिर भी भगवान जान कर भी उसे बता न पाए. उलट उसे श्राप दिया कि वह कोढ़ी हो जाए. क्या शंकर के पास इतनी शक्ति न थी कि वह उस के मन के विकार निकाल देते?
कोढ़ का श्राप देने के पीछे कारण है. हमारे देश में कोढ़ काफी व्याप्त था. 100-150 साल पहले लाखों इस बीमारी से पीडि़त थे. तब इस रोग का कोई इलाज तो था नहीं. हर कोढ़ी श्राप का शिकार है. उसे पापी कहा जाए. उस से सहानुभूति न रखी जाए. उसे घर से बाहर कर मरने दिया जाए. मरने से पहले वह सोमवार के विधिपूर्वक व्रत रखे. विधिपूर्वक पंडितों को खानापीना खिलाए, दान दे. ठीक तो होगा नहीं. जब कंगाल हो जाए तो घर से निकाल दिया जाए.
कोढ़ से मुक्ति : सोमवार व्रत कथा के अनुसार यदि किसी को कुष्ठ रोग हो जाए तो उसे विधिपूर्वक 16 व्रत कर के ‘सोमवार व्रत कथा’ कहनी अथवा कथावाचकों से सुननी चाहिए.
कथा कहती है, ‘16 सोमवार का व्रत रखने से तेरा यह कोढ़ ठीक हो जाएगा. पुजारी ने शांति के साथ, पवित्र विचारों के साथ 16 सोमवार का विधिपूर्वक व्रत रखा. इस व्रत के प्रभाव से पुजारी का कोढ़ दूर हो गया.’
सोमवार के विधिपूर्वक 16 व्रत कर के श्रद्धा व विश्वास के साथ सोमवार व्रत कथा कहने/सुनने के परिणामस्वरूप कोढ़ से मुक्ति संभव होती तो सभी कोढ़ी इस व्रतकथा के प्रभाव से कोढ़मुक्त हो गए होते.
भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद भी कुष्ठ चिकित्सा के लिए जड़ीबूटियों का विवरण प्रस्तुत करने के स्थान पर 16 सोमवार व्रत कर के ‘सोमवार व्रत कथा’ सुनने पर ही बल देती. हां, या हो सकता है कि आयुर्वेद के लेखकों को ‘सोमवार व्रत कथा’ में कहे गए पर विश्वास नहीं था या फिर उन्हें अपनी दुकानदारी की चिंता ज्यादा थी.
शारीरिक कष्टों से निवृत्ति : विधिपूर्वक व्रत कथा कर के ‘सोमवार व्रत कथा’ सुनने से शारीरिक कष्टों को दूर करने और सुख, शांति व धन में वृद्धि करने की बात भी कही जाती है.
निश्चित कर्मफल : हम हिंदू पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं और कहा जाता है कि मनुष्य को पूर्वजन्म में किए गए कर्मों के अनुसार अगले जन्म में फल मिलता है. फिर यदि 16 सोमवार व्रत कर के इस कथा को कहने अथवा सुनने से, इस कथा के अनुसार फल प्राप्त हो सकता है तो फिर हिंदू धर्म की पूर्वजन्म पर आधारित निश्चित कर्मफल की मान्यता भी निराधार हो जाती है.
इस का मतलब तो यह है कि कर्मफल को जब चाहो विधिपूर्वक व्रत व कथा कर के बदला जा सकता है. तब फिर पहले से ही निश्चित कर्मफल कैसा?
संतान प्राप्ति का सुगम साधन : इस व्रत कथा को संतान प्राप्ति की दिशा में अति महत्त्वपूर्ण माना जाता है. अंधविश्वासी नवविवाहिताएं सुंदर व स्वस्थ संतान की प्राप्ति के उद्देश्य से इस व्रत कथा को अपनाती हैं.
कथा अपना प्रचार करती हुई कहती है, ‘‘राजकुमारी ने भी 16 सोमवारों के व्रत रखा और ढाई मन चूरमे का प्रसाद गरीबों में बांटा. इन 16 व्रतों का प्रभाव यह है कि भगवान ने एक अतिरूपवान, अति बलवान, भाग्यवान, अच्छे गुणों से युक्त पुत्र प्रदान किया.’’
धर्म की आड़ में व्यभिचार : 16 सोमवार व्रत करने और ‘सोमवार व्रत कथा’ को विधिपूर्वक कथावाचकों से सुन लेने अथवा इस व्रत कथा को स्वयं पढ़ लेने मात्र से कैसे किसी दुखी का दुख दूर हो सकता है? हां, अगर कथावाचक अकेले में पाठ पढ़ें तो बहुत कुछ हो सकता है. तब बांझ स्त्री कैसे पुत्र प्राप्त कर सकती है? धर्म की आड़ में व्यभिचार अवश्य पनपता?है.
बच्चे को जन्म के साथ ही आध्यात्मिक संस्कारों की पुट दे दी जाती है और उस का प्रभाव आजीवन बना रहता है. यह प्रभाव परंपराओं, रूढि़यों का सहारा पा कर पुष्ट हो जाता है और जितना ही यह पुष्ट होता है उतना ही अधिक हम इस प्रकार की कथाकहानियों से चिपकते चले जाते हैं. यही कारण है कि इस वैज्ञानिक युग में भी हम बच्चों की प्राप्ति के लिए काल्पनिक कथा/ कहानियों का दामन पकड़ कर बैठे हुए हैं.
नियोग : प्राचीन काल में (नियोग प्रथा के अंतर्गत) संतान प्राप्ति के लिए परपुरुषों के पास गर्भाधान हेतु संभोग के लिए जाती हुई स्त्रियां चौपाल में लाए गए सांडभैंसे के पास गर्भाधान के लिए लाई जा रही गायभैंसों की याद दिलाती?हैं और ‘सोमवार व्रत कथा’ पुत्र प्राप्ति की दिशा में नियोग का अर्वाचीन रूप प्रस्तुत करती है.
अंधविश्वास की दलदल में : अंध-विश्वास के गहरे दलदल में फंसाने वाली इस व्रत कथा को ब्राह्मणों ने जनसाधारण से धन बटोरने के उद्देश्य से लिखा और इस का प्रचार व प्रसार किया.
यह कथा लिखी गई, यह एक गलती थी. सदियों तक इसे दोहराया जाना दूसरी गलती थी और तीसरी गलती?है आज भी इस से चिपके रहना.
विश्व प्रौद्योगिकी व विज्ञान आदि में निरंतर प्रगति पथ पर बढ़ता जा रहा है. दूसरे देशों के लोग चांद पर पताका फहराने के बाद अन्य ग्रहों की ओर उन्मुख हो रहे हैं. परंतु हम कंप्यूटर का बटन दबाने से पहले मंदिर की घंटी जोरजोर से बजा रहे हैं.
हम ने कंप्यूटर को अपना कर प्रगति की दिशा में कदम तो बढ़ा लिया परंतु उस पर अधिकतर जन्मपत्रियां और कुंडलियां ही बना रहे हैं.
कंप्यूटर खरीद कर घर लाने से पहले अथवा बेटा/बेटी द्वारा बी.सी.ए., एम.सी.ए. आदि में प्रवेश पाने के लिए प्रवेशपत्र भरने से पहले घर में ‘सोमवार व्रत कथा’ पूरे विधिविधान से कर रहे हैं अथवा कथावाचकों से करवा रहे हैं.
‘सोमवार व्रत कथा’ बताती है, ‘‘ब्राह्मण पुजारी का आदेश पा कर अपने घर लौट गया और वहां जा कर विधिपूर्वक सोमवार के 16 व्रत पूरे किए.’’ (सोमवार व्रत कथा, पृ. 16)
कथा बताती है, तत्पश्चात ‘‘वह (ब्राह्मण) एक दिन किसी काम से नगर को गया तो वहां रूपवती, गुणवती तथा साक्षात लक्ष्मीस्वरूप राजकुमारी का स्वयंवर रचा हुआ था. राजा ने घोषणा कर रखी थी कि मेरी हथिनी जिस?व्यक्ति के गले में माला डाल देगी उसी के साथ मैं राजकुमारी का विवाह कर के आधा राजपाट उसे दे दूंगा.’’
(सोमवार व्रत कथा, पृ. 16)
‘‘ब्राह्मण भी तमाशा देखने के विचार से राजमहल में जा पहुंचा. ‘सोमवार व्रत कथा’ के अनुसार राजा की हथिनी ने उस व्यक्ति को पहचान लिया जिस ने 16 सोमवार व्रत कर के पवित्र विचारों के साथ सोमवार व्रत कथा सुनी थी. बस फिर क्या था?’’
(सोमवार व्रत कथा, पृ. 17)
‘‘राजा की हथिनी ने सूंड में माला ले कर उस ब्राह्मण के गले में डाल दी और उस को प्रणाम किया. राजा ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार राजकुमारी का विवाह उस ब्राह्मण के साथ कर दिया और आधा राजपाट उस को दे दिया.’’
कथा बताती है कि आगे चल कर राजकुमारी ने पति से सोमवार व्रत व कथा के लाभ सुन कर इसे आजमाने का प्रयास किया. परंतु सोमवार व्रत और कथा परीक्षा में पूर्णत: सफल हो गए. इस प्रकार राजकुमारी का विश्वास इस कथा व व्रत में और दृढ़ हो गया. जब कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति किसी वस्तु को अपना लेता?है तो जनसाधारण उसी वस्तु को बिना कोई तर्कवितर्क किए आंख मूंद कर स्वीकार कर लेता है.
राजकुमारी ने भी 16 सोमवारों का व्रत रखा और ढाई मन चूरमे का प्रसाद गरीबों में बांटा. इन 16 व्रतों का प्रभाव यह है कि भगवान ने एक अति रूपवान, अति बलवान, भाग्यवान, अच्छे गुणों से युक्त पुत्र प्रदान किया.
(सोमवार व्रत कथा, पृ. 17)
यदि जनसाधारण के विश्वास को समयसमय पर स्थायित्व प्रदान करने के उद्देश्य से कोई न कोई चामत्कारिक अथवा आश्चर्यजनक कार्य कर के न दिखाया जाए तो उन का विश्वास अल्पकालिक हो कर जल्दी ही डगमगाने लगता है. यही कारण है कि कथा इस लक्ष्य की पूर्तिहित हेतु कई प्रकार की व्यवस्थाएं करती हुई दिखाई देती?है.
कथा बताती?है कि वही राजकुमार जब बड़ा हुआ तो माता ने उसे भी 16 सोमवारों का व्रत रखवाया. राजकुमार ने व्रत के बाद प्रतिज्ञा की, ‘‘प्रभु मेरे राज्य की प्रजा सूखपूर्वक रहे. यही मेरी कामना?है.’’
सोमवार व्रत कथा के अनुसार सोमवार के व्रत रखने व कथा सुनने के फलस्वरूप भगवान प्रसन्न होते हैं और सब इच्छाओं की पूर्ति होती है और इन्हीं व्रतों व कथा के परिणामस्वरूप एक ब्राह्मण कुमार सारे भारतवर्ष का सब से बड़ा राजा बन गया.
कथा के ही शब्दों में :
‘‘विदर्भ देश के राजा ने बेटी के दहेज में अपना सारा राजपाट दे दिया और इस तरह वह ब्राह्मण कुमार सारे भारतवर्ष का सब से बड़ा राजा बन गया. बाकी सब राजा उस के अधीन हो गए.’’
इस का अर्थ यह भी है कि बाकी राजा सोमवार की व्रत कथा नहीं कराते थे. वाह, क्या लोकप्रियता थी इस व्रतकथा कि केवल एक राजा को ही इस के गुणों के बारे में मालूम था.
(सोमवार व्रत कथा, पृ. 18)
मात्र इतिहास : चलो, पल भर के लिए यह स्वीकार भी कर लें कि इस कथा को कहने अथवा कथा वाचकों से सुनने के फलस्वरूप फल की प्राप्ति होती है. परंतु प्रश्न यह उठता है कि यह कथा सोमवार व्रत कथा है कहां? क्या है इस का स्वरूप?
जो कथा हम पढ़ते हैं/कहते हैं/कथावाचकों से सुनते हैं, वह सोमवार व्रत कथा है ही नहीं. वह तो मात्र इतिहास है कि एक धूर्त व नशेबाज पुजारी पार्वती के शाप से कोढ़ी हो गया.
घृणित कार्य : धर्म की आड़ में भगवान के नाम की दुहाई दे कर कही गई इस प्रकार की चमत्कारी और अंधविश्वास फैलाने वाली कथाओं का परंपरागत संस्कारों व अशिक्षा के कारण लोगों के मन पर व्यापक प्रभाव पड़ता है.
वास्तव में, धर्माचार्यों ने जनकल्याण की उपेक्षा कर के अपने स्वार्थों की पूर्ति हित इस विधिविधान को बना कर भारत की जनता की नसों में आलस्य, भाग्यवाद, पलायनवाद, देवतावाद आदि का विष फैलाने का घृणित कार्य किया है.