साधुसंतों और पंडेपुजारियों की बात भगवान क्यों नहीं सुन रहा, इस का जवाब शायद ही भगवान के ये दलाल दे पाएं, मगर इन का विरोधप्रदर्शन करना यह साबित करता?है कि भगवान का वजूद कोरी गप है.

भक्तों को दिनरात भगवान की महिमाएं गागा कर बताने वाले साधुसंत पिछले 1 साल से भारतीय जनता पार्टी की सरकार के सामने कभी गिड़गिड़ाते हैं तो कभी धौंस देने लगते हैं कि हमारी मांगें पूरी करो नहीं तो हम सरकार गिरा देंगे, श्राप दे देंगे या फिर राज्यव्यापी आंदोलन छेड़ेंगे.

इन में से कुछ नहीं कर पाते तो मुख्यमंत्री निवास का घेराव करने की धमकी देने लगते हैं. इन संतों को यह ज्ञान प्राप्त हो गया है कि जो उन्हें चाहिए वह मंदिर में बैठी पत्थर की मूर्ति नहीं दे सकती, चाहें तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जरूर दे सकते हैं.

क्या हैं मांगें

सुबहशाम आरती, प्रवचन, यज्ञहवन कर भक्तों से पैसा झटक अपना पेट पालने वाले इन मुफ्तखोर साधुसंतों की मांगें बेहद साफ हैं कि मठमंदिरों की जमीनजायदाद हमें दे दो, खेतीकिसानी के लिए भी जमीन दो, मठमंदिरों में सरकारी दखलंदाजी बंद करो और चूंकि भक्त को भगवान तक हम पहुंचाते हैं इसलिए उस की पेंशन भी दो.

ज्यादातर साधुसंत कितनी शाही जिंदगी जीते हैं यह इन्हें नजदीक से देखने वाले बेहतर जानते हैं. शुद्ध घी में डुबो कर निकाली गई तर रोटी और पकवान ये खाते हैं. इन के साथ सूमो छाप अधनंगे चेलों की पूरी फौज चलती है तो डर लगता है कि मांगने पर नहीं दिया गया तो छीन लेने की कूवत इन में है. लिहाजा, चुपचाप दे दो.

फिर भी ये साधु बड़े ‘सीधे’ होते हैं. भक्तों को बेवजह तंग नहीं करते, धर्म क्या होता है इस की नुमाइश भर करते हैं. कुंभ के मेले में इन की शानोशौकत की नुमाइश व दुकान देखने लायक होती है. भाला, कटार, तलवार से ले कर आधुनिक रिवाल्वर तक ये रखते हैं.

भगवान के इन बंदों को डर किस का है यह तो इन का भगवान ही कहीं हो तो जाने लेकिन उजागर यह होता है कि कथनी और करनी के मामले में ये नेताओं के भी पितामह हैं.

अब शायद प्रदेश के साधुसंतों को चलनेफिरने में भी तकलीफ होने लगी है, लिहाजा, ये चाहते हैं कि सबकुछ इन का हो, खासतौर से मठमंदिर की जमीनें और जायदाद, जिस की कीमत अरबोंखरबों में होती है. लोगों को माया के मोह से दूर रहने का पाठ पढ़ाने वाले साधुसंत खुद किस हद तक माया के फेर में पड़े हैं यह इन की मंशा और मांगों से साफ जाहिर होता है.

कहां है भगवान

भगवान सर्वव्यापी है,  पालनहार है, दाता है और जो मांगो वह देता है जैसे प्रचलित वाक्यों को बांच और बेच कर जी रहे इन साधुसंतों की मांगों की फेहरिस्त देख हैरत कम चिंता ज्यादा होती है कि यदि सच में भगवान होता तो अपने इन विक्रेताओं की तो जरूर सुनता.

धर्मग्रंथों के मुताबिक सबकुछ भगवान का है बाकी जो हो रहा है वह उस की लीला है. राज्य सरकार इस लीला पर यकीन न करते हुए इन की मांगों पर गौर नहीं कर रही तो जाने क्यों साधुसंत सब से बड़ी अदालत यानी भगवान के दरबार में गुहार नहीं लगा रहे.

दरअसल, इन्हें बेहतर मालूम है कि भगवान एक ऐसी कल्पना है जिस से मंदिर में बैठ कर तबीयत से पैसा कमाया जा सकता है. लोगों का भरोसा बना रहे इसलिए धार्मिक प्रपंच चलते रहने चाहिए.

दिनरात भगवान की सेवा करने वालों ने सरकार के सामने गिड़गिड़ाते हुए भगवान की पोल खोल  कर रख दी है कि वह कहीं नहीं है. होता तो किसी और के सामने रिरियाने की जरूरत नहीं पड़ती, न किसी मंत्री, मुख्यमंत्री का घर घेरना पड़ता.

भगवान हिफाजत करता है, यह दावा भी कितना खोखला है. इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विंध्य इलाके में सरकार पंडेपुजारियों को लाइसेंसी रिवाल्वर देने की घोषणा कर चुकी है क्योंकि आएदिन वहां मंदिर लुटते रहते हैं यानी सरकार को भी मालूम है कि भगवान नहीं है. आज तक किसी मूर्ति ने लुटेरे की गर्दन नहीं पकड़ी.

चूंकि कमाई का जरिया चला जाता है इसलिए साधुसंत इकट्ठा हो कर हायतौबा मचाने लगते हैं कि देखो, क्या जमाना आ गया है कि भगवान का घर भी चोरलुटेरे नहीं छोड़ रहे. हकीकत यह है कि भगवान को यह नहीं छोड़ रहे. छोड़ दें तो न मंदिर रहेंगे न जायदाद न फसाद तो लूटपाट की नौबत ही नहीं आएगी.

ये चोरलुटेरे हैं तो कानूनन अपराधी ही, मगर इन का ज्ञान साधुसंतों से बड़ा और ज्यादा लगता है. इन्हें मालूम है कि पंडितजी वगैर कुछ किए, सारी दक्षिणा ले जा कर पंडिताइन को दे आएंगे तो हम क्यों रहम करें. जो भी है भगवान का है. अब चाहे उसे सेवक उठाए या हम लें, फर्क क्या पड़ता है सिवा इस के कि पकड़े गए तो फौजदारी का मुकदमा चलेगा और हमें सजा हो जाएगी. इन की नजर में सजा भी भगवान की मरजी है.

कौन है असली भगवान

धर्म के नाम पर मठ व मंदिरों की अरबों की जमीनों पर कब्जा जमाए बैठे साधुसंत कानूनन इसे अपने नाम चाहते हैं. भगवान होता तो शायद दे देता मगर सरकार जाने क्यों हिचकिचा रही है, जो न श्राप से डर रही न सत्ता छिन जाने का खौफ खा रही है.

भगवान के होते आंदोलन और भूख हड़ताल जैसा बेकार का काम कर रहे साधुसंत मुख्यमंत्री के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाएं तो लगता है असली भगवान तो यही हैं जिन्हें जनता ने वोट दे कर चुना है, किसी भगवान ने मनोनीत नहीं किया.

इन साधुसंतों की दादागीरी शिवराज सिंह 1 साल से बरदाश्त कर रहे हैं और इन की धार्मिक व राजनीतिक अहमियत समझते, उन्हें टरका भी रहे हैं. मगर आंदोलन खत्म नहीं हो रहा. वजह, तमाम हिंदूवादी संगठन इन साधुसंतों के साथ हैं और विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिताने को इन्होंने वोट जुटाए.

अपने किए की जरूरत से ज्यादा कीमत ये मांग रहे हैं और सरकार इन की मांगें पूरा कर आम आदमी की नाराजगी मोल नहीं लेना चाह रही. लोकसभा चुनावों की शिकस्त भाजपा गले नहीं उतार पा रही है और इसी साल स्थानीय निकायों के चुनाव भी हैं. ऐसे में वोटर अगर बिदक गया तो सिंहासन हिलना तय है. इस धर्मसंकट से शिवराज सरकार कैसे निबटेगी यह देखना वाकई दिलचस्पी वाली बात होगी.

अहम बात इन साधुसंतों द्वारा यह जता देना है कि भगवान कहीं नहीं है. फिर धर्म के नाम पर ढोंग, पाखंड और लूटपाट क्यों. जो नहीं है उस के नाम पर पैसा कमाना, बादशाहत चलाना वाकई किसी चमत्कार से कम नहीं.

जो चीजें भगवान नहीं दे पाया अगर सरकार दे देगी तो जाहिर है, भगवान से बड़ी साबित हो जाएगी और लोगों का भरोसा भगवान से उठे यह भाजपा सरकार नहीं चाहती. रही बात साधुसंतों की तो वे अपनी पर उतारू हो आए हैं और कानून अपने हाथ में लेने का संकेत देने लगे हैं. ऐसे में समाज पर भार और परजीवी साधुसंतों को दानदक्षिणा दे कर पालने वाले लोग खुद का, समाज और देश का नुकसान कर रहे हैं.

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