अमिताभ बच्चन सिलवर स्क्रीन के ऐसे पहले अभिनेता हैं, जिन्हें उन के प्रशंसकों ने महानायक का खिताब दिया है. उन से मिलने के लिए हमेशा हजारों लोग लालायित रहते हैं. बिग बी के नाम से मशहूर बच्चन सोनी टीवी पर एक लोकप्रिय शो पेश करते हैं, जिस का नाम है ‘कौन बनेगा करोड़पति’. इस क्विज शो का इस समय 10वां सीजन चल रहा है.

इस सीजन की खास बात यह है कि इस में हर शुक्रवार को स्पैशल एपीसोड टेलीकास्ट किया जाता है, जिस में देश के कर्मवीर को हौट सीट पर बैठने का मौका मिलता है. कर्मवीर यानी ऐसी शख्सियत जिस ने अपनी मेहनत और हिम्मत के बल पर अपनी पहचान बना कर सफलता का नया मुकाम हासिल किया हो.

5 अक्तूबर, 2018 को जब कर्मवीर एपीसोड शुरू हुआ तो केबीसी और बिग बी के लाखोंकरोड़ों चहेते यह देख कर अचंभित हो गए कि जिस अमिताभ की एक झलक पाने, उन्हें छूने या उन से मिलने के लिए लोग पागलपन की हद से गुजर जाते हैं, वही अमिताभ बच्चन उस दिन अपने सामने कर्मवीर की हौट सीट पर बैठे शख्स को नतमस्तक हो कर प्रणाम कर रहे थे. दरअसल, शो में उस दिन एक असाधारण शख्स केबीसी की हौट सीट पर विराजमान थे.

प्रवीण तेवतिया नाम के इस असाधारण शख्स ने 10 साल पहले 26 नवंबर, 2008 को मुंबई के ताज होटल पर हुए आतंकी हमले में अपनी जान पर खेल कर डेढ़ सौ से अधिक लोगों की जान बचाई थी.

भारतीय नौसेना की मरीन कमांडो की मार्कोस यूनिट के जिस पहले कमांडो दस्ते ने एनएसजी कमांडो के आने से पहले ताज होटल पर मोर्चा संभाला था, प्रवीण उसी यूनिट का हिस्सा थे. मार्कोस दस्ते के इस कमांडो को आतंकवादियों की तरफ से दागी गई 4 गोलियां लगी थीं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और इस जांबाज शूरवीर ने आतंकियों के हौसलों को तोड़ दिया.

प्रवीण तेवतिया ने केबीसी की हौट सीट पर बैठने के बाद साढ़े 5 लाख रुपए की रकम जीती, लेकिन उन्होंने 26/11 हमले के रेस्क्यू औपरेशन की जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर लोगों के सामने उस काले दिन की घटना के दृश्य एक बार फिर से ताजा हो उठे. शूरवीर प्रवीण तेवतिया के साथ 26 नवंबर, 2008 को जो हादसा हुआ, उस भयावह रात की कहानी इंसान को झकझोर देने वाली है.

उस रात लगभग 8 बजे के आसपास 10 पाकिस्तानी आतंकवादियों ने समुद्र के रास्ते देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में प्रवेश किया. उस दिन भी मुंबई हमेशा की तरह से व्यस्त थी. दिन से ज्यादा रात में व्यस्त रहने वाली मुंबई में औफिस खत्म होने के बाद लोगों की भीड़ सड़कों पर थी. तभी इन 10 आतंकियों ने मुंबई को दहलाने के लिए एक खूनी साजिश को अंजाम दिया था.

रात 9 बज कर 20 मिनट पर आतंकियों ने दक्षिणी मुंबई के कई इलाकों में लोगों को अपना निशाना बनाना शुरू कर दिया. सब से पहला हमला उन्होंने 9 बज कर 30 मिनट पर भीड़भाड़ वाले छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर किया. इस के बाद लियोपोल्ड कैफे, नरीमन हाउस, ताज पैलेस होटल, ओबराय ट्राइडेंट होटल, कामा अस्पताल, मेट्रो सिनेमा, टाइम्स औफ इंडिया बिल्डिंग और सेंट जेवियर कालेज के पीछे वाली लेन को आतंकवादियों ने अपना निशाना बनाया.

मुंबई पुलिस के जांबाज सिपाही, आतंकवाद विरोधी दल, नैशनल सिक्योरिटी गार्ड, नेवी के मार्कोस कमांडोज और मुंबई फायर ब्रिगेड ने मिल कर 3 दिन तक इन आतंकियों का सामना अदम्य साहस और शौर्य के साथ किया.

आतंकियों ने शुरू कर दिया था खूनखराबा

मुंबई की जमीन पर कदम रखते ही ये 10 आतंकवादी 2-2 के ग्रुप में 5 हिस्सों में बंट गए थे. आतंकवादी अपने खौफनाक कारनामों से देशीविदेशी मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचना चाहते थे. इस के लिए उन्होंने विश्वप्रसिद्ध और मुंबई के बड़े होटल ताज और ओबराय को निशाना बनाया.

विदेशी लोगों से भरे बार लियोपोल्ड कैफे और यहूदियों का निवास नरीमन हाउस भी इन के निशाने पर था. भीड़ को निशाना बनाने के लिए 2 आतंकियों के एक ग्रुप ने सब से पहले सब से व्यस्त रेलवे स्टेशन छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (सीएसटी) पर हमला किया, जिस में करीब 60 लोगों की मौत हुई.

रात लगभग पौने 10 बजे 4 आतंकियों ने लियोपोल्ड कैफे पर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू की. आतंकवादी 10 से 15 मिनट तक फायरिंग करते रहे, इस हमले में 10 लोगों की मौत हुई. इस के बाद आतंकवादियों ने गेटवे औफ इंडिया के सामने बने मुंबई की शान कहे जाने वाले ताज पैलेस होटल और पास में ही स्थित टावर होटल की तरफ रुख किया.

2 और आतंकवादी शोएब और उमर ला-पेट होटल के दरवाजे को बम से उड़ा कर ताज होटल के ग्राउंड फ्लोर में दाखिल हो गए. उन्होंने सब से पहले स्विमिंग पूल के आसपास खड़े 4 विदेशी मेहमानों को अपना निशाना बनाया और फिर अंदर बार और रेस्तरां की ओर बढ़ गए. रात के लगभग एक बजे आतंकवादियों ने होटल के बीच में डोम पर ब्लास्ट किया, जिस से वहां आग लग गई.

रात ढाई बजे तक भारतीय सेना के 2 ट्रक सैनिक वहां पहुंच गए, जिन्होंने मुख्य लौबी की ओर से होटल में प्रवेश कर के उसे अपने कब्जे में ले लिया. लेकिन उस समय तक आतंकी कमरों की तरफ जा चुके थे.

होटल स्टाफ ने बड़ी चतुराई के साथ होटल में मौजूद लोगों को अपने कमरों में ही बंद होने को कह दिया था. लेकिन होटल में लगी आग तब तक काफी भड़क चुकी थी. 10 बज कर 10 मिनट पर 2 अन्य आतंकवादी ओबराय ट्राइडेंट होटल में दाखिल हुए.

दोनों आतंकवादी होटल के मुख्य प्रवेश द्वार पर गोलीबारी करते हुए रिसैप्शन की तरफ बढ़ गए. उन्होंने होटल के रेस्तरां और बार की तरफ भी गोलीबारी की. आतंकवादियों ने होटल के स्पा में काम कर रहे 2 थाई लोगों की भी हत्या कर दी.

आतंकवादियों ने ताज होटल के ज्यादातर लोगों को बंधक बना लिया था. ओबराय ट्राइडेंट होटल में ज्यादातर विदेशी मेहमान आते थे. आतंकवादियों के निशाने पर यही लोग थे, ताकि उन के कारनामे की गूंज विश्व स्तर तक पहुंचे.

रात 12 बजे तक मुंबई पुलिस की स्पैशल टीम ने होटल को चारों ओर से घेर लिया था. पुलिस ने एक तरह से पूरी मुंबई को सील कर दिया. रात भर मुंबई पुलिस व सेना के जवान अलगअलग इलाकों में घुसे आतंकवादियों से लोहा लेते रहे. एक तरह से पूरी रात मुंबई में अफरातफरी का माहौल रहा.

सड़कों पर पुलिस की गाडि़यां और अस्पतालों की एंबुलेंस सायरन बजाती इधर से उधर दौड़ती रहीं. रहरह कर फिजाओं में गोलियों की गूंज और बम के धमाकों की आवाज से लोगों का कलेजा हलक को आ रहा था. भोर का उजाला होने से पहले ही सरकार ने अलगअलग स्तर पर आतंकवादियों की काररवाई का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए कई फैसले ले लिए.

पाकिस्तानी आतंकवादियों ने पांचसितारा होटलों से ले कर जिन स्थानों पर लोगों को बंधक बनाया था, उन्हें मुक्त कराने के लिए सरकार ने रात में ही एनएसजी के 200 कमांडोज को मुंबई रवाना करने का फैसला ले लिया था. लेकिन जब तक एनएसजी कमांडो औपरेशन शुरू नहीं करते तब तक हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठा जा सकता था, इसलिए एनएसजी के आने तक नेवी के मार्कोस कमांडोज के एक दस्ते को मोर्चे पर भेजने का फैसला लिया गया.

मार्कोस कमांडोज का दस्ता पहुंचा पहले

27 नवंबर की सुबह 4 बजे भारतीय नौसेना के 16 मरीन कमांडोज, जिन्हें मार्कोस कमांडोज कहा जाता है, ने समुद्र में 8 किलोमीटर दूर बने अपने बेस से एक नाव में सवार हो कर मुंबई की ओर रुख किया. मार्कोस कमांडो की गिनती दुनिया के बेहतरीन कमांडोज में होती है.

ये सभी 16 कमांडोज एके 47 और एमपी 5 सब मशीनगन से लैस थे और उन की पेंट पर 9 एमएम की पिस्टल भी लगी थी. सभी के पास ग्रेनेड थे. बुलेटप्रूफ जैकेट पहने इन मार्कोस कमांडोज ने आतंकियों से निपटने के लिए सब से पहले ताज होटल पर मोर्चा संभाला.

आतंकवादी हमले के बाद आतंकियों से लोहा लेने के लिए मुंबई के टेरर स्पौट पर पहुंचा मार्कोस कमांडो का पहला विशेष दस्ता था, जिस ने आते ही आतंकवादियों पर प्रहार शुरू कर दिया. मार्कोस दस्ते ने 2 भागों में बंट कर मोर्चा संभाला. दस्ते की एक टीम लोगों को रेस्क्यू कराने के काम में जुटी तो दूसरी टीम ने आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब देना शुरू किया.

उस समय तक आतंकवादी होटल ताज व होटल ओबराय ट्राइडेंट पर पूरी तरह अपना कब्जा जमा चुके थे. 8 मार्कोस कमांडोज की जिस टीम ने ताज होटल में मोर्चा संभाल कर औपरेशन शुरू किया, उस की अगुवाई 24 साल के कमांडो प्रवीण तेवतिया कर रहे थे.

प्रवीण तेवतिया की टीम ने आंसू गैस के गोले दागे. उसी दौरान टीम ताबड़तोड़ फायरिंग करते हुए ताज होटल के धुएं से भरे कोरिडोर को पार कर के भीतर प्रवेश कर गई. वहां पर कई लोग मरे पड़े थे. वहीं पर टीम की आतंकवादियों से भिड़ंत हुई. उस समय आतंकवादी चैंबर लाइब्रेरी में घुसे हुए थे. वहीं पर दोनों तरफ से गोलीबारी होने लगी.

मौका मिलते ही तेवतिया की टीम ने सब से पहले पहली मंजिल पर फंसे हुए लोगों को बाहर निकाला और फिर आतंकियों की तलाश में कमरों की तलाशी शुरू कर दी.

कमांडो प्रवीण पर चलाईं गोलियां

अपनी टीम में सब से आगे चल रहे तेवतिया लौबी के बगल में एक अंधेरे कमरे में दाखिल हुए. उन्हें नहीं पता था कि इस कमरे में पहले से ही आतंकवादी छिपे बैठे हैं. जैसे ही प्रवीण कमरे में 6-7 कदम अंदर घुसे, वहां घात लगाए बैठे आतंकियों ने उन के ऊपर फायरिंग कर दी. आतंकवादियों की एक गोली इन के कान को उड़ाती हुई निकल गई, जिस कारण दर्द का एक गुबार उठा और उन के हलक से चीख निकल गई. आतंकवादियों की तरफ से 3-4 राउंड फायर और हुए.

तब तक कमांडोज की पूरी टीम लौबी से दूर जा चुकी थी. प्रवीण उसी कमरे में जमीन पर ही गिरे पड़े रहे, उन के कान से खून लगातार बह रहा था. कमरे में वे अकेले फंसे हुए थे, आतंकियों ने उन्हें घेर रखा था. बचाव के लिए उन्होंने आंसू गैस का गोला फेंका, जिस के कारण वहां कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. प्रवीण दम साधे घायलावस्था में ही जमीन पर पड़े रहे क्योंकि वे जानते थे कि थोड़ी हलचल होती तो आतंकवादी गोली चला देते.

प्रवीण खून से लथपथ थे. वे यह जान पा रहे थे कि गोली किस दिशा से आ रही है. लिहाजा उन्होंने एक ग्रेनेड आतंकियों को निशाना बना कर उन्हीं की ओर फेंका, लेकिन इत्तफाक से वो फटा नहीं. प्रवीण तेवतिया समझ गए कि अगर जिंदा रहना है तो कमरे से निकलना होगा, लिहाजा उन्होंने जान की परवाह न करते हुए अपनी राइफल उठाई और उस कमरे से बाहर निकलने की जुगत में लग गए.

गोली आने वाली दिशा से बचते हुए वे खड़े हुए और बाहर की ओर भागे. लेकिन इसी बीच आतंकवादियों की 3 गोलियां इन की बुलेटप्रूफ जैकेट पर जा कर लगीं. इन में से एक उन के सीने में पेवस्त हो गई और शरीर को भेदती हुई बाहर निकल गई. वहीं एक गोली इन की गरदन के पास से गुजरी. तब तक बुरी तरह घायल होने के बावजूद वह कमरे से बाहर आ चुके थे. उस समय होटल के इस कमरे में 4 आतंकवादी मौजूद थे. बाहर निकलते ही साथियों ने उन्हें संभाला. गोली लगने के कारण इन के फेफड़े पूरी तरह से डैमेज हो चुके थे.

कमरे में धुआं और अंधेरा था. उन के साथियों ने आतंकवादियों को बेहोश करने के लिए गैस के गोले कमरे में फेंकने शुरू कर दिए. लगभग एक घंटे बाद मार्कोस लाइब्रेरी में दाखिल हुए, तब तक आतंकवादी खिड़की तोड़ कर किचन के रास्ते नई बिल्डिंग की ओर जा चुके थे.

आतंकवादियों के उस हिस्से से निकलने के बाद मार्कोस कमांडोज ने होटल के उस हिस्से में फंसे हुए लोगों को बाहर निकाला. घायल होने के बावजूद प्रवीण लगातार औपरेशन में जुटे रहे, लेकिन कुछ वक्त बाद जब शरीर से बहुत ज्यादा खून बह गया तो बेहोशी ने उन्हें अपने आगोश में ले लिया.

दिव्यांग हो गए प्रवीण

उस रात हुए हादसे में अपनी जांबाजी से प्रवीण तेवतिया ने सैकड़ों लोगों की जान तो बचा ली मगर उस के बाद उन की अपनी जिंदगी ने बेबसी की चादर ओढ़ ली. 26/11 के आतंकी हमले में जो हुआ, वह तो प्रवीण तेवतिया के साहस और जांबाजी की कहानी थी.

लेकिन इस के बाद जब इलाज होने पर उन्हें यह पता चला कि वह दिव्यांग हो चुके हैं, उन के फेफड़े औपरेशन के कारण कमजोर हो गए हैं और कनपटी पर गोली लगने के कारण उन के सुनने की क्षमता भी कम हो गई है तो फिर उन्होंने जो संघर्ष शुरू किया, वह इस जांबाज कमांडो की जीवटता की एक अलग कहानी है.

इस के बाद प्रवीण तेवतिया ने संघर्ष कर के अपनी जो पहचान बनाई और सफलता हासिल कर जो नया मुकाम बनाया, उसी के कारण अमिताभ बच्चन जैसे महानायक को भी प्रवीण तेवतिया को नमन करना पड़ा.

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के भटीना गांव के रहने वाले प्रवीण तेवतिया (32) ने साल 2007 में भारतीय नौसेना जौइन की थी. किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले प्रवीण तेवतिया के बडे़ भाई भी भारतीय सेना में हैं, इसलिए देशभक्ति और वतन पर जान देने का जज्बा उन्हें एक तरह से परिवार से संस्कार में मिला था.

नौसेना में बतौर कमांडो शामिल होने के बाद प्रवीण को कठिन प्रशिक्षण दिया गया और उन्हें मार्कोस की टुकड़ी में शामिल कर लिया गया. उन्हें नौसेना के समुद्री यानों पर तैनाती मिली. मार्कोस कमांडो की नौकरी के दौरान उन्हें कई बार समुद्री डाकुओं और हथियारबंद समुद्री तस्करों से लोहा लेने का मौका मिला था.

कई बार उन का समुद्र के रास्ते देश में घुसपैठ की कोशिश करने वाले संदिग्ध आतंकवादियों से भी सामना हुआ. हर बार शूरवीर प्रवीण तेवतिया ने अपनी जांबाजी का सबूत दिया था.

लेकिन नवंबर 2008 में उन्हें पहली बार मुंबई हमले के दौरान जमीन पर आतंकवादियों के खिलाफ हुए औपरेशन करने का मौका मिला था. इसी औपरेशन में प्रवीण तेवतिया ने अपनी जान पर खेल कर ताज होटल में फंसे सैकड़ों लोगों की जान बचाते हुए अपने सीने व कनपटी पर गोलियां खाईं.

करीबन 5 महीने तक अस्पताल में शूरवीर प्रवीण तेवतिया का इलाज चला. उन की 5 सर्जरी हुईं पर उन की हिम्मत नहीं टूटी. डाक्टरों ने हालांकि सारी उम्मीदें छोड़ दी थीं, लेकिन 5 महीने के कड़े संघर्ष के बाद आखिरकार वह ठीक तो हो गए लेकिन कान के पास गोली लगने की वजह से उन की सुनने की क्षमता प्रभावित हुई.

गोली लगने के बाद प्रवीण आंशिक तौर पर बधिर हो गए. सीने में गोली लग जाने के कारण उन के फेफड़े फटने से उन में कमजोरी आ गई थी और डाक्टरों ने उन्हें सलाह दी थी कि वह कोई ऐसा काम न करें, जिस से उन की सांस फूले. वे ऐसा कोई काम नहीं करें, जिस में औक्सीजन की ज्यादा जरूरत पड़े. उन्हें ऐसे क्षेत्रों में भी न जाने की सलाह दी गई थी, जो ज्यादा ऊंचाई पर हैं या जहां औक्सीजन की कमी हो.

नेवी में नहीं मिली एक्टिव ड्यूटी

कुछ महीनों के बाद जब वे पूरी तरह स्वस्थ हो गए तो उन्होंने फिर से नेवी में अपनी ड्यूटी जौइन कर ली लेकिन आंशिक दिव्यांग हो जाने के कारण इस शूरवीर कमांडो को नान एक्टिव ड्यूटी दे दी गई. हालांकि प्रवीण डेस्क जौब नहीं करना चाहते थे. वह खुद को फिट मानते थे. कुछ समय बाद प्रवीण ने नेवी पर्वतीय दल के लिए एप्लीकेशन भेजी, लेकिन मैडिकल ग्राउंड पर उन की अरजी खारिज कर दी गई. इस के बाद तो मानो प्रवीण पर खुद को फिट साबित करने का जुनून सवार हो गया.

उन्होंने किसी से कोई शिकायत नहीं की. प्रवीण बस यह चाहते थे कि हर कोई ये जाने कि वह वही शख्स हैं, जिस ने ताज होटल आतंकी हमले में लोगों को बचाने के लिए बतौर कमांडो काम किया था. वह नहीं चाहते थे कि लोग उन्हें भुला दें. प्रवीण स्वयं को और नेवी को यह साबित करना चाहते थे कि वह न केवल अपने हौसलों से बल्कि शारीरिक रूप से भी ड्यूटी के लिए फिट हैं.

यही सब करने के लिए उन्होंने धावक का प्रशिक्षण शुरू कर दिया. प्रैक्टिस करने के बाद वह मैराथन दौड़ में हिस्सा लेने लगे. ताज होटल के कर्मचारियों की मदद से प्रवीण मैराथन धावक प्रवीण बाटीवाला से मिले.

बनाना चाहते थे नया इतिहास

बाटीवाला ने लंबी दूरी की मैराथन में शामिल होने के लिए उन का हौसला बढ़ाया. जिस के बाद प्रवीण ने सन 2014 में मैराथन की ट्रेनिंग शुरू की. आखिरकार प्रवीण तेवतिया ने सन 2017 में 72 किलोमीटर लंबी खारदुंग ला मैराथन में हिस्सा ले कर मैडल जीत कर सब को चकित कर दिया.

हालांकि इस से पहले सन 2015 में उन्होंने मुंबई हाफ मैराथन में नेवी से अवकाश ले कर दूसरे नाम से हिस्सा लिया ताकि असफल होने पर उन की नेवी की उम्मीद न टूटे. उन्होंने सन 2016 में इंडियन नेवी हाफ मैराथन में भी भाग लिया था.

लेकिन सफलता ने उन के कदम 2017 में तब चूमे जब जयपुर में आयरनमैन हाफ ट्रायथलान में 1.9 किलोमीटर तैराकी, 90 किलोमीटर साइक्लिंग और 21 किलोमीटर दौड़ लगा कर एक नया मुकाम हासिल किया. इस जीत से प्रवीण को एक नई पहचान मिलनी शुरू हुई.

उन का अगला लक्ष्य मैराथन था. चूंकि वह मैराथन के लिए ज्यादा छुट्टियां नहीं ले सकते थे, इसलिए उन्होंने नेवी की नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया. जुलाई, 2017 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और वह तैयारी में जुट गए.

कठिन मेहनत के बाद अक्तूबर 2017 में साउथ अफ्रीका की पोर्ट एलिजाबेथ सिटी में हुई आयरनमैन अफ्रीकन चैंपियनशिप प्रवीण ने घुटना चोटिल होने के बावजूद जीत ली. आयरनमैन ट्रायथलान चैंपियनशिप दुनिया की सब से कठिन और प्रतिष्ठित प्रतियोगिता मानी जाती है. आयरनमैन ट्रायथलान में 180.2 किलोमीटर तक साइकिल चलानी होती है.

भारत से प्रवीण समेत कुल 3 खिलाड़ी इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए पहुंचे. अन्य 2 खिलाड़ी कोच्चि और चेन्नई से थे. उन्होंने अपनी ट्रेनिंग देश के एकमात्र आयरनमैन कोच कोस्टुब राडकर की देखरेख में पुणे में की थी.

इस प्रतियोगिता में प्रवीण 110 किलोमीटर की साइकिलिंग कर चुके थे. तभी अचानक उन की साइकिल का गियर शिफ्टर टूट गया. चूंकि उन के जूते साइकिल के पैडल में फंसे हुए (क्लीज शूट) थे, इसलिए वह सड़क पर गिर गए. उन का घुटना लहूलुहान हो गया. साइकिल की चेन भी पूरी तरह मुड़ चुकी थी.

50 मीटर पीछे आ रही बाइक मेंटनेंस टीम ने गियर सिस्टम को पूरी तरह साइकिल से अलग कर दिया. इस के बाद साइकिल बिना गियर वाली रह गई.

आखिर खुद लिखी सफलता की कहानी

अब प्रवीण के सामने चोटिल घुटने से बिना गियर वाली साइकिल से 70 किलोमीटर दूरी तय करनी थी. पर उन्होंने हार नहीं मानी. तेज हवाओं और बिना गियर वाली साइकिल होने के बावजूद प्रवीण ने 7 घंटे 37 मिनट में 180 किलोमीटर साइकिलिंग पूरी कर ली और वे देश के पहले एकमात्र ऐसे आयरनमैन बने जो आर्म्ड फोर्स से थे.

9 सितंबर, 2017 को प्रवीण ने लद्दाख में 72 किलोमीटर लंबे खारदुंग ला मैराथन में हिस्सा लिया. प्रवीण ने इसे निर्धारित समय में पूरा कर पदक हासिल किया. उन्होंने 18,380 फीट की ऊंचाई पर 12.5 घंटे में मैराथन पूरी कर मैडल जीता.

प्रवीण ने लद्दाख में आयोजित जिस मैराथन को पूरा किया, वह अच्छे से अच्छे शख्स के लिए कर पाना आसान नहीं है. वहां औक्सीजन की मात्रा काफी कम होती है और अगर किसी का फेफड़ा पहले से ही क्षतिग्रस्त हो तो उस के लिए तो यह काम किसी चुनौती से कम नहीं होता.

प्रवीण का ऐसा करना बड़ी उपलब्धि थी लेकिन यह उन की मजबूत इच्छाशक्ति का ही परिणाम था कि उन्होंने इस कठिन मैराथन को निर्धारित समय में पूरा कर कीर्तिमान स्थापित किया. ऐसे बेजोड़ जज्बे को देश के हर नागरिक का सलाम जरूरी है. शूरवीर कमांडो प्रवीण अब एक अंतरराष्ट्रीय रेसर के रूप में अपनी धाक जमा चुके हैं.

अब फरवरी, 2019 में अमेरिका के अल्ट्रामैन खिताब को जीतना उन का लक्ष्य है. प्रवीण तेवतिया को 26/11 हमले के दौरान बहादुरी का परिचय देने के कारण 26 जनवरी, 2011 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी पाटिल ने उन्हें शौर्य चक्र दे कर सम्मानित किया था.

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