त्रेतायुग में अयोध्या के राजाराम को सियासी षडयंत्र का शिकार होकर जब वनवास पर जंगल जाना पड़ा तो उनको शबरी के जूठे बेर खाकर समाज में बराबरी का संदेश देना पड़ा. कलयुग में प्रधानमंत्री भी राजा का प्रतीक होता है. प्रधानमंत्री और भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कुंभ में 5 सफाई कर्मचारियों के पैर धो कर त्रेतायुग के संदेश को दोहराने का काम किया. त्रेतायुग से कलयुग तक समाज के वंचित वर्ग को ऐसे प्रतीक सम्मान के ही हकदार हो रहे है. जिस तरह से रामायण में शबरी का महिमामंडन कर वंचित समाज को सम्मान का संदेश देने की कोशिश की गई उस तरह से कलयुग में 5 सफाई कर्मचारियों के पैर धेने पोछने से बराबरी का संदेश देने की कोशिश की जा रही है.
कुंभ में जिन 5 सफाई कर्मचारियों के पैर धो की साफ तौलिये से प्रधानमंत्री ने पोछा वह सभी खुद को ध्न्य समझ रहे हैं. जिस तरह से शबरी ने खुद को धन्य समझ लिया था. इन 5 कर्मचारियों में 3 पुरूष और दो महिलायें थी. इन सभी को खास तरह से बने अत्याधुनिक लाउंज में बैठाया गया. पानी मंगवाकर प्रधानमंत्री ने थाली में इनके बारीबारी से पांव धोए. उसके बाद सफेद तौलिया से पैरों को पोछा और उपहार देकर हालचाल पूछे शबरी की तरह अभिभूत थे. इनमें बांदा के प्यारेलाल, चौबी और संभल के होरी लाल और कोरबा की ज्योति प्रमुख थे. ज्योति ने बताया कि पीएम से इतने सम्मान की उम्मीद नहीं थी. उन्होने सोंचा भी नहीं था कि देश के प्रधानमंत्री उनके पैर धुल कर पोछेंगे.
यह लोग इस सम्मान को पाकर अपनी खुशियां बांटने की तैयारी में हैं. यह इनके जीवन का महत्वपूर्ण क्षण हो सकता है पर बाकी सफाई कर्मचारियों की हालत जस की तस ही है. पांव पखारने की इस कड़ी में शामिल लोगों की खुशी और समान का गुणगान वैसे ही हो रहा जिस तरह से रामायण में शबरी का गुणगान हुआ. इसके बाद भी वंचित समाज त्रेतायुग से लेकर कलयुग तक छुआछूत और भेदभाव का शिकार क्यों हो रहा है इस पर विचार करने की जरूरत है. चुनावी साल में दलित वर्ग में संदेश देने की कोशिश कितनी प्रभावी होगी यह चुनाव के बाद पता चलेगा. कलयुग में शबरी का प्रतिनिधित्व करने वाले इन 5 सफाई कर्मचारियों की कहानी से देश भर के सफाई कर्मचारियों की समस्याओं पर क्या प्रभाव पडेगा? असल सम्मान तभी होगा जब सफाई कर्मचारियों की परेशानियों के लिये सरकार ठोस कदम उठायेगी.
सफाई कर्मचारियों के ‘पांव पखारने’ के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुंभ की सफलता में उनके योगदान के महत्म का गुणगान किया. असल में इस पांव पखारने के जरीये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सफाई और स्वच्छता अभियान, गांव में खुले में शौच का बंद हो जाना और घर घर शौचालय का बन जाना जैसे मुद्दों का प्रचार करना था. चुनावी साल में ऐसे काम नये नहीं हैं. भारतीय जनता पार्टी ही नहीं दूसरे दलों के नेता भी ऐसा करते रहे हैं. दलितों के घर जाना झोपडी में खाना ऐसे काम चुनावी साल में खूब दिखते हैं. भाजपा के भी बडे नेता भी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले दलितों के घर खाना खाने का अभियान पहले चला चुके हैं. ऐसे दिखावे के अभियान से दलित और वंचित समाज को क्या लाभ होता है इसको देखना जरूरी है.
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता अभियान को अपना सबसे प्रमुख काम मान कर बड़ी योजना बनाई. जिसके तहत गांव को खुले में शौच मुक्त करने का काम शुरू हुआ. जिसको सरकारी बोली से ओडीएपफ मुक्त गांव कहा जाने लगा. सरकारी आंकडो में 70 फीसदी गांव ओडीएपफ मुक्त बताये जा रहे हैं. गांवों में घरघर शौचालय बन गये हैं. जिन गरीबों के पास रहने के लिये घर नहीं था उनको शौचालय बनाने के लिये पैसा दिया गया. जैसे शौचालय बने है उनको प्रयोग होना संभव नहीं है. शौचालय के लिये बने गढ्ढे ऐसे नहीं हैं जो सही तरह से काम करें. सरकारी योजना को सफल बनाने के लिये बड़े पैमाने पर आंकडे दिये गये है. जो हकीकत से दूर है.
कुंभ के 5 सफाई कर्मचारियों के पांव धो कर प्रधानमंत्री ने सुर्खियां बटोर ली है. चारों तरफ इस बात का महिमामंडन हो रहा है कि पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने सफाई कर्मचारियों को ऐसा स्नेह दिया है. वह भूल जाते है कि त्रेतायुग में राम भी शबरी के बेर खाकर ऐसा संदेश दे चुके है. इसके बाद भी वंचित समाज को बराबरी का दर्जा नहीं मिला. समाज में छुआछूत अभी भी है. तमाम मंदिरों में दलितों का प्रवेश वंचित है. दलितों को पुजारी बनने का अधिकार नहीं है. उनके साथ गैरबराबरी का व्यवहार होता है. उत्तर प्रदेश में ही तमाम ऐसी घटनायें ‘योगीराज’ में ही घट चुकी हैं जिनसे पता चलता है कि छुआछूत और भेदभाव किस तरह से कायम है. सहारनपुर में दलित सवर्ण हिंसा इसकी बड़ी बानगी है.
सफाई कर्मचारी निश्चित तौर पर सफाई की नींव है. आजादी के बाद के साल क्या हुआ इस मुद्दे से इतर अगर 5 साल के ‘मोदी राज’ की बात करे तो सफाई कर्मचारी बड़ी संख्या में हादसों का शिकार हुये हैं. यह लोग सीवर सफाई के दौरान सीवर के अंदर जाने की वजह से मरे. ज्यादातर सफाई कर्मचारी ठेके पर काम कर रहे थे. मरने के बाद उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं था. सरकार ने सफाई और स्वच्छता अभियान पर भले ही लाखों करोड़ों खर्च कर दिया हो पर सीवर साफ करने वाले सफाई कर्मचारियों के लिये कोई ठोस योजना नहीं बनाई. कुंभ में 5 प्रधानमंत्री कर्मचारियों के पांव धूल कर वाहवाही भले ही मिल गई हो पर सीवर साफ करने में मरने वालों के सवाल अभी भी जबाव की तलाश में हैं.