राममंदिर के साथ भाजपा का करीबी रिश्ता रहा है. भारतीय जनता पार्टी बनने के बाद राममंदिर आंदोलन के सहारे ही 2 लोकसभा सदस्यों वाली यह पार्टी सत्ता की हकदार बन सकी. 2014 के पहले तक भाजपा ने हर बार प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में यह बात कही कि जिस दिन जनता केंद्र में भाजपा को बहुमत दे देगी, राममंदिर बन जाएगा.

2014 में देश में नरेंद्र मोदी की अगुआई में भाजपा की सरकार पूरे बहुमत के साथ बनी. राममंदिर समर्थक जनता को यह उम्मीद बंधी कि अब राममंदिर बन कर रहेगा. भाजपा के अपने कार्यकर्ता भी यह मान रहे थे कि राममंदिर निर्माण का इस से बेहतर समय शायद आगे न मिल सके. अयोध्या में सभासद से ले कर देश के राष्ट्रपति तक और प्रधानमंत्री से ले कर मुख्यमंत्री तक हर महत्त्वपूर्ण पद पर भाजपा के ही पदाधिकारी हैं.

इस के बाद भी सालदरसाल गुजर गए. 5 साल बीत गए. 2019 के आमचुनाव की तैयारी शुरू हो गई. अब भाजपा को राममंदिर की याद आई. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक प्रार्थनापत्र दे कर मांग कर ली कि अयोध्या में गैरविवादित जमीन का अधिग्रहण वापस कर दिया जाए, जिस में सरकार राममंदिर बनाने की शुरुआत कर सके.

यह वह मांग है जिस का भाजपा अब तक विरोध करती रही है. राममंदिर के आसपास की जमीन का अधिग्रहण कोर्ट ने राममंदिर बनाने के उद्देश्य से नहीं किया है. राममंदिर के आसपास सुरक्षा कारणों के तहत इस जमीन का अधिग्रहण किया गया था. ऐसे में इस बात की उम्मीद बेहद कम है कि कोर्ट गैरविवादित जगह का अधिग्रहण वापस कर दे.

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