मेहनत करने वालों की हार नहीं होती तथा ईमानदार कोशिश कभी बेकार नही जाती. इस संदेश को दो बच्चों के माध्यम से फिल्म ‘‘धनक’’ में जिस खूबसूरती से फिल्मकार नागेश कुकनूर ने पेश किया है, उसके लिए वह बधाई के पात्र हैं. फिल्म में इस बात को भी पुरजोर तरीके से रेखांकित किया गया है कि इस संसार में सभी बुरे नहीं हैं. इसी के साथ बौलीवुड के दो बडे़ स्टार कलाकारों सलमान खान और शाहरुख खान के प्रशंसको के बीच जिस तरह आपसी रंजिश होती है, उसे भी दो छोटे भाई बहनों की आपसी नोकझोंक से बहुत रोचक तरीके से नागेश कुकनूर ने अपनी फिल्म ‘‘धनक’’ में पेश किया है.

यह एक अलग बात है कि यह कलाकार अपने प्रशंसकों की परवाह नहीं करते. इस बात को शाहरुख खान अपनी फिल्म ‘‘फैन’’ के माध्यम से कुछ समय पहले ही कह चुके हैं. इस फिल्म में आठ वर्षीय छोटू, जो कि अंधा है, वह सलमान खान का फैन है. जबकि उसकी तेरह वर्षीय बहन परी शाहरुख खान की फैन है.

कहानी के केंद्र में राजस्थान के उक गांव में रह रही तेरह वर्षीय परी (हेतल गाड़ा) और उसका आठ वर्षीय छोटा भाई छोटू (कृष छाबरिया) है, जो कि अंधा है. यह दोनो अपने माता पिता की मौत के बाद से अपने चाचा (विपिन शर्मा) और चाची (गुलफाम खान) के साथ रहते हैं. चाची इनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती. चाची इन बच्चों को सिर्फ बाजरे की सूखी रोटी खाने के लिए देती है, जिसके चलते धीरे धीरे छोटू की आंखें चली गयी. पर परी ने प्रण किया है कि वह अपने भाई छोटू के नौंवें जन्म दिन पर उसकी आंखे लौटाकर रहेगी.

परी, शाहरुख खान की प्रशंसक और छोटू सलमान खान का प्रशंसक है. दोनों के बीच सलमान व शाहरुख को लेकर नोकझोक होती रहती है. छोटू निडर व ईमानदार है. छोटू को झूठ बोलना पंसद नहीं. परी हमेशा अपने भाई की रक्षा करती रहती है. एक दिन परी की नजर शाहरुख खान के उस पोस्टर पर पड़ती है, जिसमें शाहरुख खान लोगों से नेत्रदान करने की अपील कर रहे हैं. इस पोस्टर को परी अपने साथ घर ले आती है और अब उसे लगता है कि शाहरुख खान उसके भाई की आंखे वापस दिलाने में मदद करेगा. इसलिए परी हर दूसरे दिन शाहरुख खान के नाम एक पत्र लिखकर भेजना शुरू करती है.

शुरूआती दो पत्र पोस्टमास्टर अपनी तरफ से डाक टिकट लगाकर भेज देते है. पर बाकी की चिट्ठियां वह अपने पास जमा करके रखता रहता है और एक दिन परी के चाचा को दे देता है. तभी परी को पता चलता है कि शाहरुख खान जैसलमेर में एक फिल्म की शूटिंग कर रहा है. वह जैसलमेर जाकर शाहरुख खान से मिलना चाहती है. पर उसके चाचा तैयार नहीं होते. क्योंकि जैसलमेर उनके गांव से तीन सौ किलोमीटर दूर है. फिर चाचा कोई काम नहीं करते, दिन भर हुक्का गुड़गुड़ाते रहते हैं. चाची पैसे देने से रही. पर परी ने जैसलमेर जाकर शाहरुख खान से मिलने की ठान ली. वह रात में अपने भाई छोटू को लेकर घर से जैसलमेर के लिए निकल पड़ती है.

इस यात्रा के दौरान सबसे पहले भाई बहन की पानी की प्यास बुझाने का काम एक ट्रक ड्रायवर करता है. फिर एक ट्रैक्टर पर जा रही बारात उन्हे कुछ दूर ले जाती है. फिर एक पंडित उन्हे अपने हिसाब से फांसने का काम करता है, पर रास्तें में एक बंजारन उन्हे बचा लेती है. एक अमरीकन नागरिक, एक पागल ट्रक ड्रायवर व मेकेनिक सहित कई लोग मिलते हैं. अंततः छोटू को उसकी आंखे मिल जाती है. परी को लगता है कि शाहरुख खान ने आकर डाक्टर से बात करके आपरेशन करवा दिया.

कुछ वर्ष पहले नागेश कुकूनर के पास एक छोटी सी कूरियर कंपनी का विज्ञापन फिल्म बनाने का आफर आया था. जिसमें गांव की कूरियर कंपनी एक अंधा लड़के व उसकी बहन की मदद करती हैं. पर यह विज्ञापन फिल्म नही बनी. मगर विज्ञापन फिल्म की इस मूल कल्पना नागेश कुकूनर के दिमाग में बसी रही ओर एक दिन उसी मूल कल्पना/विचार पर नागेश कुकनूर बच्चों के लिए फिल्म ‘धनक’ का लेखन व निर्देशन कर डाला, जो कि अब लोगों के सामने है.

नागेष कुकनूर ने दिल को छू लेने वाली यह भावनात्मक कथा जिस अंदाज में सिनेमायी परदे पर उतारी है, उसे देखते हुए दर्शक अपनी सीट से नहीं उठता. एक घंटे 56 मिनट की अवधि वाली इस फिल्म को लोग बिना इंटरवल के एक साथ देखते हुए भी बोर नहीं होते हैं. यह फिल्म भावनात्मक स्तर पर भी लोगों को बांधकर रखती है. फिल्म में गांव से जैसलमेर तक की परी व उसके अंधे छोटे भाई छोटू की यात्रा काफी रोचक, मर्मस्पर्शी, रूला देने वाली महज बहुत ही ज्यादा स्वाभाविक है. फिल्म में एक भी बनावटी या कपोल कल्पित नजर आने वाला सीन नही है. फिल्म में शाहरुख खान व सलमान खान को लेकर बहन भाई के बीच जो बहस होती है, उससे इनके प्रशंसक और खुद यह दोनो स्टार कलाकार गौरवान्वित महसूस करेंगे. छोटू अंधा है, मगर एक भी मेलोड्रामैटिक सीन नहीं है.

कृष छाबरिया और हेतल गाड़ा ने जबरदस्त परफार्मेंस दी है. खुद को स्टार मानने वाले कई दिग्गज कलाकारों को कुछ तो इन बच्चों से सीखना चाहिए. हर फिल्मकार को ‘‘धनक’’ देखकर नागेश कुकनूर से सीखना चाहिए कि मानवीय भावनाओं व संवेदनाओं से ओतप्रोत फिल्म किस तरह बनायी जाती है. इतना ही नहीं निर्देशक ने राजस्थान के गांवों के जीवन को भी यथार्थरूप में परदे पर उकेरा है. राजस्थानी फोक संगीत व राजस्थानी संस्कृति का बेहतरीन उपयोग किया गया है.

फिल्म देखकर बाहर निकलते समय दर्शक सोचने पर मजबूर होगा कि ‘‘जिंदगी आसान नहीं है, तो क्या हुआ. ईमानदार कोशिश व मेहनत से जिंदगी आसान बन सकती है.’’

मनीष मुंद्रा और नागेश कुकनूर निर्देशित व लिखित फिल्म ‘‘धनक’’ के कलाकार हैं-‘‘हेतल गाड़ा, कृष छाबरिया, विपिन शर्मा, गौहर खान, विभा छिब्बर, विजय मौर्य व अन्य. संगीतकार तपस रेलिष्या, कैमरामैन  चिरंतन दास.

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