छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव नतीजों ने एक बात आईने की तरह साफ कर दी है कि 15 साल बाद फिर आदिवासियों ने कांग्रेस पर पहले सा भरोसा जताया है जहां 90 में से रिकार्ड 68 सीटें कांग्रेस के खाते में गईं.

यही बात मध्यप्रदेश से भी साबित हुई है कि यहां भी आदिवासी समुदाय ने कांग्रेस को इफरात से वोट दिया है नहीं तो साल 2003, 2008 और फिर 2013 के विधानसभा चुनावों में आदिवासी इलाकों से कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था जिसके चलते उसे सत्ता गंवाना पड़ी थी. आजादी के बाद से ही आदिवासी कांग्रेस को वोट देते रहे थे उसका यह परम्परागत वोट जब उससे बिदका तो एक वक्त में लगने लगा था कि अब आदिवासी समुदाय भी भगवा रंग में रंग चुका है और खुद को हिन्दू मानने लगा है.

लेकिन हालिया 2018 के नतीजों ने भाजपा और आरएसएस की यह गलत या खुशफहमी दूर कर दी है और इकलौता संदेश यह दिया है कि कांग्रेस की तरफ उसके वापस लौटने की वजह यह नहीं है कि वह कोई उनकी बहुत बड़ी हिमायती या हमदर्द पार्टी है बल्कि वजह यह है कि हिंदूवादी उसकी सामाजिक ज़िंदगी में हद से ज्यादा दखल देने लगे थे.

धर्मांतरण के मसले पर ईसाई मिशनरियों को कोसते रहने वाले भगवा खेमे ने आदिवासियों को न केवल हिन्दू देवी देवताओं की तस्वीरें बांटना शुरू कर दिया था बल्कि आदिवासी इलाकों में इफरात से पूजा पाठ भी शुरू कर दिये थे जिसका हर मुमकिन विरोध आदिवासी तरह तरह से यह दलील देते करते रहे थे कि वे हिन्दू नहीं हैं और यह जबरिया हिन्दुत्व उन पर थोपना बंद किया जाये.

हिंदूवादियों ने इस पर गौर नहीं किया नतीजतन विधानसभा चुनाव में आदिवासियों का गुस्सा और एतराज ईवीएम के जरिये फूटा तो भाजपा सकते में आ गई कि यह क्या हो गया अब उसकी नई चिंता 2019 के लोकसभा चुनाव हैं जिनमें 29 में से 10 लोकसभा सीटों पर आदिवासी निर्णायक भूमिका निभाते हैं ये सभी सीटें 2013 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खाते में गईं थीं .

जयस ने करवाए वोट ट्रांसफर

विधानसभा चुनाव के पहले तक निमाड इलाके में जय आदिवासी शक्ति युवा संगठन यानि जयस की खूब चर्चा रही थी. इसके मुखिया डाक्टर हीरालाल अलावा ने कोई 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान करते ही कांग्रेस और भाजपा दोनों की नींद उड़ा दी थी. हीरालाल अलावा एम्स जैसे नामी इंस्टिट्यूट की नौकरी छोड़कर सियासी मैदान में कूदे थे. उन्होंने बड़े पैमाने पर आदिवासी युवाओं को जयस से जोड़ने में कामयाबी हासिल कर ली थी. खासतौर से निमाड इलाके में तो साफ हो गया था कि जयस यहां दोनों पार्टियों का खेल बिगाड़ेगी और तीसरी ताकत बनकर उभरेगी.

चुनाव के ठीक पहले तक किसी से गठबंधन या समझौते से इंकार कर रहे अलावा ने जब जयस का विलय बिना किसी शर्त के कांग्रेस में कर लिया तो हर किसी को हैरानी हुई थी कि अब शायद ही आदिवासी उन्हें पूछें. वजह हीरालाल अलावा भाजपा के साथ साथ कांग्रेस को भी बराबरी से कोसते रहते थे कि उसने आजादी के बाद से ही आदिवासियों के लिए खास कुछ नहीं किया फिर एकाएक ही कांग्रेस से उनके हाथ मिला लेने की वजह किसी की भी समझ से परे थी. लोगों और राजनैतिक जानकारों ने यह मान लिया था कि जयस की भ्रूण हत्या हो गई और कुछ कर दिखाने से पहले ही उसका वजूद खत्म हो गया जिसका फायदा भाजपा को मिलेगा.

पर हुआ उल्टा जब नतीजे आए तो आदिवासी इलाकों खासतौर से निमाड में कांग्रेस का परचम लहरा रहा था खुद हीरालाल अलावा ने धार जिले की मनावर सीट से भाजपा की दिग्गज नेत्री और पूर्व मंत्री रंजना बघेल को लगभग 39 हजार वोटों से हराकर सभी को हैरान कर दिया क्योंकि धार की 8 सीटों में से 6 कांग्रेस को मिलीं और महज 2 पर ही भाजपा जीत दर्ज कर पाई. यानि जयस का वोट अपनी जगह से हिला नहीं था और आदिवासियों ने जयस के कांग्रेस में विलय के फैसले पर कोई एतराज न जताकर उसे समर्थन ही दिया था. कैसे जयस का वोट कांग्रेस को ट्रांसफर हुआ इस और ऐसे दूसरे मुद्दों पर जब इस प्रतिनिधि ने हीरालाल अलावा से बात की तो उन्होने बताया कि अगर जयस अलग से लड़ती तो विलाशक कम से कम 4.6 सीटें ले जाती और 8.10 पर दूसरे नंबर पर आती.

एक सधे राजनेता की तरह समीकरणों का खुलासा करते अलावा बताते हैं कि लेकिन इससे जयस के गठन का मकसद पूरा नहीं हो रहा था क्योंकि फिर कांग्रेस निमाड में उतनी सीटें नहीं ले जा पाती जितनी कि वह ले गई. हमारा मकसद हिंदूवादियों को खदेड़ना था जिसमें हम कामयाब भी रहे हैं. भाजपा ने मुझे घेरने और मनाने में कोई कसर या लालच नहीं छोड़ा था वह चाहती थी कि जयस अलग से लड़े इसके पीछे उसकी मंशा वोटों के बटबारे और बाद में तोडफोड की थी.

बिलाशक फैसले के लिए यह मुश्किल वक्त था अलावा कहते हैं एक तरफ आदिवासियों की उम्मीदें थीं और दूसरी तरफ उनके हितों से जुड़े मुद्दे थे जिनकी चर्चा जब मैंने राहुल गांधी से की तो वे मेरी भावनाओं से सहमत हुये. यह कोई सौदेबाजी नहीं थी बल्कि अब तक की गई मेहनत का सही जगह निवेश कर ज्यादा से ज्यादा रिटर्न लेने का तरीका था.  भाजपा ने जयस को और मुझे बदनाम करने और हमारे कार्यकर्ताओं को तोड़ने भी तरह तरह की साजिशें रचीं थीं जिन्हें आदिवासियों ने समझदारी दिखाते नाकाम कर दिया तो मुझे अपने फैसले पर खुशी ही हुई क्योंकि दांव पर आदिवासियों की गैरत और वजूद था. इस मामले पर मीडिया ने भी मुझे नजरंदाज किया था और अभी भी कर रहा है तो लगता है कि सब कुछ ठीकठाक और निष्पक्ष नहीं है. राष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ सरस सलिल ने हमारी बात की और उठाई थी.

अब कांग्रेस हीरालाल अलावा को मंत्री बनाती है या नहीं यह देखना दिलचस्पी की बात होगी आदिवासी समुदाय से डाक्टर होने के नाते उनकी स्वभाविक दावेदारी स्वास्थ विभाग पर बनती है लेकिन आंकड़ों में देखें तो उनका यह दावा सच के बेहद नजदीक दिखता है कि कांग्रेस के सत्ता में होने की एक बड़ी वजह जयस और आदिवासी वोट हैं . धार से लगे खरगोन जिले की भी 8 में से 6 सीटें कांग्रेस को मिली हैं जबकि निमाड और मालवा को जोड़ते उज्जैन की 8 में से 5 सीटें वह ले गई है. भाजपा के गढ़ बनते जा रहे खंडवा में भाजपा 8 में से 3 सीटें ही जीत पाई.

निमाड से बाहर की आदिवासी सीटों पर भी कांग्रेस को उम्मीद से ज्यादा फायदा मिला है. महकौशल के आदिवासी बाहुल्य जिले मंडला में उसे 8 में से 6 सीटें मिली हैं और विदर्भ से लगे बैतूल में भी 8 में से 5 सीटें ले गई है. कमलनाथ की लोकसभा छिंदवाड़ा में तो भाजपा खाता भी नहीं खोल पाई.

अब कांग्रेस कैसे आदिवासियों का समर्थन बरकरार रखेगी यह मुख्यमंत्री कमलनाथ पर निर्भर है नहीं तो शिवराज सिंह चौहान ने तो आदिवासियों का वैसा ही मज़ाक बनाकर रख दिया था जैसा कभी कांग्रेस बनाती थी मसलन मोर पंख लगाकर उनके साथ नाचना गाना और हाथ में तीर कमान या भाला पकड़कर फोटो खिंचवाना. आदिवासी संस्कृति के स्वाभिमान को समझकर और उनकी सामाजिक ज़िंदगी में दखल देकर ही उनके वोट लिए जा सकते हैं यह बात अगर कांग्रेस समझ पाई और उस पर अमल कर पाई तो तय है लोकसभा चुनाव में भी उसकी बढ़त बनी रहेगी.

 

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