फ्रस्टेटेड तो मैं भी बहुत था. विरुष्का, दीपवीर और निक-प्रियंका का शादी तमाशा और वेडिंग एल्बम न चाहते हुए इतनी बार देखना पड़ा मानो माया कैलेंडर के मुताबिक ये ब्राह्मांड की आखिरी शादियां थीं. इस चक्कर में ‘शादी का पैपराजी तमाशा’ नाम से एकाध आलोचनात्मक रिपोर्टिंग कर भड़ास भी निकाल डाली लेकिन लेकिन शायद मुझसे ज्यादा फ्रस्टेशन का शिकार इंटरनैशनल मैग्जीन ‘द कट’ की रिपोर्टर मारिया स्मिथ रही होंगी. इसलिए उसने अमेरिकी सिंगर निक जोनस और बौलीवुड ऐक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा की शादी को फर्जी बताते हुए प्रियंका को ग्लोबल स्कैम आर्टिस्ट और निक को उनकी BITCH बता डाला. उनके मुताबिक निक जोनस अपनी इच्छा के विरुद्ध इस चालबाजी से भरे संबंध में हैं. वह तो सिर्फ कैजुअल अफेयर चाहते थे, लेकिन इसके बदले हौलीवुड में हाल में कदम रखने वाली एक नयी कलाकार ने उन्हें आजीवन कारावास दे दिया.

मारिया लिखती हैं कि प्रियंका ने निक को एक अवसर की तरह भुनाया. कुल मिलाकर पूरे लेख में निक को बेचारा और प्रियंका को शातिर औरत बताया गया है.

नस्लभेद और गोरों का हेट कल्चर

जाहिर है यह लेख नस्ली और महिला से घृणा करनेवाली सोच से भरा हुआ है. जबकि इसे लिखने वाली एक महिला है. सो एक औरत की सबसे बड़ी दुश्मन औरत वाली इक्वेशन यहां सोल्व होती दिखती है. दूसरी बात उस सोच की जो मारिया ने अपने लेख में जाहिर की है. दरअसल अमेरिकी आज भी भारतीय पुरुषों को हाथ में बीन लिए सपेरा या नंगा साधु समझते हैं जो अमेरिका में ग्रीन कार्ड पाने के लिए कोई भी ट्रिक अपनाता है. और महिलाओं को Witch यानी जादूटोना करने वाली चुड़ैल. जिसने अपने जादू से निक को भरमाया, भारत लाई और उसे जबरन घोड़ी पर बिठाकर अपना पति (मारिया के मुताबिक Her forever Bitch) बना लिया. इस पूरे तमाशे में प्रियंका ने निक के खानदान को भी सम्मोहित करके जोधपुर में नाच गाने के लिए मजबूर कर दिया.

थोडा-थोड़ा समझ आता है कि अंग्रेजों ने हमारा नाम इंडियन क्यों रखा होगा. उन्हें हम उनके अपने रेड इंडियन कबीलाई आदिवासी (नेटिव अमेरिकन ट्राइब्स) से ज्यादा कुछ नहीं लगे होंगे. फर्क इतना है कि नेटिव अमेरिकन फेदर लगाते थे जबकि इंडियन वुमेन माथे पर बिंदी.

अब मुल्क आजाद हो गया लेकिन इंडियन (इसका अंगरेजी मतलब गंवार/पिछड़ा/ जादूटोना/पूजापाठ करने वाले ही समझें) का लेबल आज भी हमारे माथे पर चस्पा है. मारिया ने भी अपने लेख में प्रियंका के मंगलसूत्र का जिक्र किया है.

अफ्रीकी नहीं तो इंडियन ही सही

प्रियंका काली हैं और निक गोरे. उम्र में भी दोनों के बीच बड़ा फासला है. मारिया को लगता है की गोरे होने के नाते निक को एक अश्वेत इंडियन महिला ने प्यार के जादू में फंसाया और उनके जरिये हौलीवुड में मौके तलाशेंगी. वैसे ऐसा ही व्यवहार पहले भी कई अफ्रीकी-अमेरिकी अभिनेत्रियों के साथ भी देखा जा चुका है लेकिन अब विल स्मिथ से लेकर बियोंस तक और सैमुअल जैक्शन, मार्गन फ्री मैन से लेकर एकोन तक सब इतने नामी और कमाऊ सितारे हो चुके हैं कि हौलीवुड का इन अश्वेत हस्तियों के खिलाफ कोई बस नहीं चलता. और अब जब इंडियन कलाकार धीरे-धीरे वहां की राजनीतिक, आर्थिक और ग्लैमर जगत में जगह बना रहे हैं तो कुछ लोगों को यह हजम नहीं हो रहा.

बड़का माल फंसाई है लौंडि..

याद होगा कुछ साल पहले रेड डौट (लाल बिंदी) रेसिस्ट ग्रुप ने भारतीय महिलाओं (हिन्दू) को निशाना बनाया था, इस प्रकरण में भी उसी नस्लभेदी दौर की बू आती है. अगर एक इंडियन लेडी हौलीवुड सीरीज (क्वांटिको) में लीड रोल और कुछ फिल्मों में साइड रोल कर थोड़ा बहुत प्रवासियों के बीच पौपुलर हो जाती है और किसी गोरे से शादी कर लेती है तो अपोर्चुनिस्ट यानी मौकापरस्त हो गयी. ऐसा भी तो कहा जा सकता था कि हौलीवुड गलियारे में उनका पति होने से निक को कोई फायदा हो जाए. लेकिन हम ऐसा कहां सोचते हैं. औरतों को लेकर रूढ़िवादी सोच आसाम से लेकर अमेरिका तक कोई जुदा नहीं है.

जैसे हमारे पड़ोस के लफंगे और आज के सोशल मीडिया के गंवार किसी भी लड़की को ठीकठाक पति मिल जाए तो कहते हैं, ‘साला बड़का मोटा माल फंसा ली है लौंडिया’, या फिर ‘बाप ने मोटा आसामी पकड़ा है गुरु छोकरी के लिए’. ये वाक्य उस लड़की की काबिलियत, शक्लसूरत को पल भर में दरकिनार कर उसे चालाक और मौकापरस्त साबित कर देते हैं. जैसे प्रियंका का फौर्मर मिस वर्ल्ड होना और इंडियन फिल्म ऐक्ट्रेस/प्रोड्यूसर होने को दरकिनार कर दिया गया है. फर्क बस जगह और प्लेटफोर्म का है. वरना एक अमेरिकी और हमारे नुक्कड़ पर बैठे लफंदारों की सोच में खासा फर्क नहीं है.

यह सवाल मारिया से पूछना चाहिए कि जब किम कारदाशियां एक अश्वेत एक्टर के साथ अपना सेक्स टेप बनाकर उसे मिलियन डॉलर्स में बेचकर अपना करियर बना लेती है तो कोई कुछ नहीं कहता लेकिन एक इंडियन एक्ट्रेस अपनी मेहनत से किसी मुकाम तक पहुँच जाती हैं तो यह उसकी चालाकी कैसे हो गयी?

अफेयर चलेगा शादी नहीं ..

खुद मारिया ने लिखा है कि निक का प्रियंका के लिए लस्ट सोशल प्लेटफोर्म में सबने देखा था. शायद इसी लस्ट को प्रियंका की मार्केटिंग टीम ने भांप लिया और लालच का जाल फेंककर निक को प्रियंका के फायदे के लिए यूज किया. वैसे यूज एंड थ्रो वाला लव सबको भाता है लेकिन शादी की जिम्मेदारी लेना रिश्ते की गंभीरता को दर्शाता है.

मारिया के मुताबिक़ निक प्रियंका के साथ कैजुअल रिलेशनशिप चाहते थे लेकिन उन्हें जबरन शादी के जंजाल में फंसा दिया गया. इस बात से उनका आशय यह था कई निक को उनसे शादी करने की क्या जरूरत थी जब अफेयर्स मात्र से काम चल सकता था. इस मामले में उनकी सोच हार्वे विन्स्टीन से कम नहीं है. ये महिलाओं को ऑब्जेक्ट से ज्यादा कुछ और नहीं समझने वाली बात है. अगर निक प्रियंका के साथ कुछ साल के लिए लिव-इन टाइप रिलेशनशिप में रहते तो शायद उन्हें कोई ऐतराज नहीं होता लेकिन शादी हो जाने से एक तरह से प्रियंका को बराबरी का कानूनी और सामाजिक और सम्मानजनक दर्जा मिल गया जो जाहिर है गर्लफ्रेंड रहते नहीं मिल पाता.

तो यह बराबरी वाली बात ही मारिया स्मिथ और उनके जैसी सोच रखने वाले ग्रुप को नहीं भाई. क्योंकि इस लेख को बाकायदा संपादक द्वारा स्वीकृति भी मिली होगी. इसलिए इसमें सिर्फ मारिया नहीं एक बड़े बुद्धिजीवी मीडिया हाउस की मानसिकता रिफ्लेक्ट होती है.

हॉलीवुड कोई मक्का नहीं

बात कद ही करें तो निक कोई इतने कामयाब सितारा भी नहीं हैं और न ही वहां के A ग्रेड सेलेब्रिटी लिस्ट में आते हैं. जबकि प्रिंयका बतौर अभिनेता, प्रोड्यूसर और एन्त्रप्रेन्योर खुद को साबित कर चुके हैं. मिस वर्ल्ड का खिताब उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पहचान देता है तो फिर उनके निक की जरूरत क्यों?  सवाल जरूरत का नहीं सोच का जो मारिया के जरिये तमाम गोरों की अपनी नस्ल को बेहतर मानने के दकियानूसी मानसिकता को उजागर करता है. इस आशय से जुदा एक वाकया अभिनेता विक्टर बनर्जी ने भी बताया था. वे एक इंग्लिश फिल्म (शायद ब्रिटिश) की शूटिंग कर रहे थे और आदतन उन्होंने प्रोडक्शन की क्रू मेम्बर्स के साथ हो रही ज्यादती को लेकर आवाज उठायी तो उनके एक इंडियन एक्टर होने की हैसियत याद दिला दी गयी. जाहिर है वैसा ही प्रियंका के साथ हो रहा है.

वैसे इस मामले में सारा दोष उनका नहीं हमारा भी है. हम ही हॉलीवुड को फिल्मों का मक्का बनाने पर तुले रहते हैं. वहां किसी भारतीय को चाँद सेकेण्ड का रोल मिल जाए तो उसे सर पर बिठा लेते हैं. ऑस्कर जो कि फिल्फेयर या स्टारडस्ट अवार्डस से ज्यादा कुछ नहीं है, बावजूद उसके आमिर खान सरीखे सितारे भी उसके लालच में फिल्म लगान के नामांकन के दौरान महीनों अमरीकन लौबी को लुभाने के लिए डेरा जमा लेते हैं.

हम जिसे भगवान या स्वामी का दर्जा देते हैं, उसी पल उसे लात मारने या बेइज्जत करने का अधिकार भी दे देते हैं. तो फिर हॉलीवुड को उस दर्जे के तहत बेइज्जती का अधिकार मिलना स्वाभाविक है.

यों तो यह परंपरा हॉलीवुड की है कि कुछ एशियन अभिनेताओं (खासकर चीनी, जैपनीज और इंडियन) की चंद सीन का रोल देकर अपनी फिल्मों की पहुंच वहां की बड़ी आबादी के बीच पहुंचकर मोटा मुनाफा कमाया जाए. इस क्रम में वे सफल भी हुए लेकिन अब चंद सीन्स से शुरू हुआ एशियन कलाकारों के रोल फुल लेंथ होने से इन्हें हजम नहीं हो रहे हैं. चीनी, कोरियाई सिनेमा तो इन्हें अपनी जुबान में मुंह तोड़ जवाब दे रहा है लेकिन हम अब भी हॉलीवुड के पूजक हैं. याद करिए कुछ समय पहले जब अमेरिकन अभिनेता रॉबर्ट डी नीरो इंडिया आये थे तो यहाँ के बड़े से बड़े सितारे और निर्देशक एक तस्वीर के लिए उनके पैरों में लोटने को तैयार थे, लेकिन क्या इंडियन एक्टर्स को इतनी इज्जत आफजाई मिलती है वहां जाकर ? बिलकुल नहीं. कारण वही स्वामी नौकर का सम्बन्ध.

हम भी तो यही करते हैं

बहरहाल जिस तरह हम पाकिस्तानी अभिनताओं या अभिनेत्रियों के भारत में आकर काम करने और नाम कमाने को लेकर ऐतराज करते है और इस आशय का ऐतराज करने वाली क्षेत्रवाद की संकीर्णता से प्रेरित दलों का समर्थन करते हैं, ठीक वैसे ही अमेरिकन भी यह बात ख़ास पसंद नहीं करते कि कोई उनके मुल्क में आये और उनका रोजगार छीने. इस आशय से मिलता जुलता इशारा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी (एच 1 वीजा नीति) दे चुके हैं. उनके लिए जैसे मैक्सिको है वैसे ही हमारे लिए पाकिस्तान. बात बौर्डर के है और दुनिया गोल है. सो हम जो बो रहे होते हैं वैसा कुछ हमारे बाहर जाकर काटते हैं. इसलिए अपना गिरेबान झांकना भी जरूरी है.

आज भारत में इस लेख के हिस्से वायरल कर लोग सोशल मीडिया पर पब्लिकेशन की कड़ी आलोचना की. निक के भैया-भाभी के अलावा बॉलिवुड के कई सिलेब्रिटीज़ ने पब्लिकेशन को लताड़ रहे हैं लेकिन यह एक बड़ी महामारी है जो ग्लोबल हो चुकी है. हर जगह धर्म, नस्ल, रंग और क्षेत्र को लेकर मर्यादा लांघी जा रही हैं बिहारी और यूपी वीले मुंबई में पीटे जाते हैं तो गुजरात से भी खदेड़े जा रहे हैं. हम एक इंटरनेशनल मैगजीन ने प्रियंका को ‘ग्लोबल स्कैम आर्टिस्ट’  कहने से खफा हैं लेकिन उस ने तो माफी मांग कर लेख को वेबसाइट से हटा दिया. लेकिन हम कब महिला विरोधी, नस्ली, अंधविश्वासी और पाखंडी होने के लिए माफी मांगेंगे?

 

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