औस्टियोपोरोसिस शब्द का वास्तविक मतलब है हड्डियों का भुरभुरा या छिद्रयुक्त हो जाना. हड्डियों में जब प्रोटीन और खनिज तत्त्व, खासकर कैल्शियम का अधिक मात्रा में क्षरण हो जाता है तब यह समस्या पैदा होती है. इस के परिणामस्वरूप आप की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और मामूली रूप से गिरने पर भी वे टूट सकती हैं. कुछ गंभीर मामलों में तो महज छींकने या फर्नीचर से टकरा जाने जैसी सरल क्रियाओं के दौरान भी हड्डियों में टूटन की समस्या आ सकती है. विदेशों, विशेषकर ब्रिटेन और अमेरिका जैसे विकसित देशों में औस्टियोपोरोसिस के कारण हड्डियां टूटना या उन में फ्रैक्चर होना एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है. केवल ब्रिटेन में प्रतिवर्ष डेढ़ लाख से ज्यादा नए औस्टियोपोरोसिस या अस्थिछिद्रता के रोगियों की पहचान होती है. क्योंकि निजी अस्पतालों और चिकित्सकों से इलाज ले चुके या इलाज ले रहे सभी रोगियों की सूचनाएं एकत्र नहीं हो पाती हैं.

यह अस्थियों का खतरनाक रोग है जो हड्डियों को कमजोर और खोखला बना देता है और फिर थोड़ी सी चोट या दबाव से अपनेआप हड्डियों में दरारें आ जाती हैं या वे टूट जाती हैं, अर्थात उन में फ्रैक्चर हो जाता है. पहले यह विकसित देशों का रोग था लेकिन अब हमारे देश में भी आम होता जा रहा है. वास्तव में इस रोग में हड्डियों का घनत्व और मात्रा कम हो जाती है तथा हड्डियों की अंदरूनी सूक्ष्म संरचनाओं में परिवर्तन होने से उन के टूटने का खतरा बढ़ जाता है. सरल भाषा में कहें तो इस रोग में हड्डियों की मजबूती कम हो जाने के कारण वे जरा सा दबाव भी सहन नहीं कर पातीं और टूट जाती हैं.

मानव में हड्डियों का अधिकतम विकास 25 वर्ष से 35 वर्ष के मध्य होता है. इस के बाद कई कारणों से हड्डियां कमजोर होने लगती हैं. उन का वजन भी कम होने लगता है. विशेषकर स्त्रियों में एस्ट्रोजन नामक हार्मोन के कम होने से यह प्रक्रिया रजोनिवृत्ति के बाद तेज हो जाती है. इसलिए 45 वर्ष की आयु में स्त्रियों में इस रोग की अकसर शुरुआत हो जाती है. कैल्शियम की कमी भी इस रोग में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यदि रजोनिवृत्ति के बाद पर्याप्त कैल्शियम की खुराक ली जाए तो औस्टियोपोरोसिस होने की संभावना कम हो जाती है.

यह रोग अंत:स्रावी ग्रंथियों की गड़बडि़यों, कैंसर व कुछ दवाओं के कारण भी हो सकता है. इस के अलावा कम वजन के व्यक्तियों, अल्कोहल या नशीली दवाएं लेने वालों में भी यह रोग होने की संभावना होती है. पैतृक कारणों से भी औस्टियोपोरोसिस होता है. आईओएफ यानी इंटरनैशनल औस्टियोपोरोसिस फाउंडेशन के मुताबिक, औस्टियोपोरोसिस रोगी को एक बड़ी व्यक्तिगत व आर्थिक क्षति पहुंचाती है. दुनियाभर में हाल के वर्षों में हड्डियों की कमजोरी के कारण विकलांगता, कैंसर की वजह से होने वाले प्रभाव की तुलना में कहीं ज्यादा देखी गई और क्रौनिक, गैर संचारी रोगों, मसलन गठिया, अस्थमा और उच्च रक्तचाप से संबंधित हृदय रोगों की तुलना में कहीं अधिक नुकसान देखा गया.

औसतन हर 3 सैकंड में एक औस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर की दर से औस्टियोपोरोसिस के चलते दुनियाभर में सालाना तकरीबन 80.9 लाख फ्रैक्चर सामने आते हैं. 50 से अधिक उम्र की हर 3 में से 1 महिला को और 50 से अधिक आयुवर्ग के हर 5 में से 1 पुरुष को औस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर का अनुभव होता है. ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2050 तक औस्टियोपोरोटिक हिप फ्रैक्चर के 50 फीसदी से अधिक मामले केवल एशिया में देखने को मिलेंगे. 11 देशों में किए गए आईओएफ सर्वेक्षण में यह पाया गया कि बीमारी के निदान और उपचार के संदर्भ में महिलाओं में रजोनिवृत्ति के बाद व्यक्तिगत जोखिम के प्रति लापरवाही, औस्टियोपोरोसिस को ले कर अपने डाक्टर से विचारविमर्श की कमी, निदान की कमतरता और पहले फ्रैक्चर से पहले ही उपचार के अभाव ने स्थिति को और गंभीर बनाया है.

माईलोमा, ट्यूमर, एनोरेक्सिया नर्वोसा

रोग का पता अचानक फ्रैक्चर होने पर चलता है. फ्रैक्चर कलाई की हड्डी, रीढ़ की हड्डियों में होते हैं. ज्यादा वृद्ध व्यक्ति में कमर की हड्डी में फ्रैक्चर होता है. ये फ्रैक्चर थोड़ी सी ऊंचाई से गिरने या फिसलने से हो सकते हैं. रीढ़ की हड्डी का फ्रैक्चर तो वजन उठाने से भी हो सकता है. कई बार फ्रैक्चर एकसाथ कई जगह हो सकते हैं. यदि ऐसे रोगी का एक्सरे किया जाए जिसे फै्रक्चर नहीं है तो एक्सरे सामान्य दिखता है अर्थात इस से रोग का पता नहीं चल पाता है. सो, पहचान के लिए एक विशेष उपकरण, जिसे बोन डैंसिटोमीटर कहते हैं, का उपयोग कर हड्डियों का घनत्व या डैंसिटी का पता करते हैं. इस प्रक्रिया को डैंसिटोमैट्री कहते हैं.

इस के अलावा कुछ बायोकैमिकल जांचें, जैसे रक्त में एल्केलाइन फौस्फेटेज की जांच भी करते हैं. औस्टियोपोरोसिस में इस का स्तर सामान्य से कुछ बढ़ जाता है.

स्त्रियों को रजोनिवृत्ति के बाद (45 वर्ष के आसपास), वे व्यक्ति, जिन के पारिवारिक सदस्यों को यह बीमारी हो और थोड़े से दबाव या झटके के कारण जिन की हड्डियों में फ्रैक्चर हो गया हो, को डैंसिटोमैट्री जांच करवानी चाहिए. औस्टियोपोरोसिस के इलाज में नशा छोड़ने की सलाह के साथ उच्च कैल्शियम युक्त भोजन लेने को रोगियों से कहा जाता है. कैल्शियम की मात्रा 1,500 मिलीग्राम या इस से अधिक प्रतिदिन होनी चाहिए. साथ ही, उचित व्यायाम की सलाह भी दी जाती है. इस से औस्टियोपोरोसिस रोकने में मदद मिलती है. रोग से ग्रसित महिलाओं को एस्ट्रोजन के साथ प्रोजेस्ट्रौन की उचित मात्रा दी जाती है. इसे हार्मोन रिप्लेसमैंट चिकित्सा भी कहते हैं. इस चिकित्सा से महिला रोगियों को फायदा होता है. पुरुषों को एंड्रौजन नामक हार्मोन दिया जाता है. भारत में महिलाओं में जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी के 70 फीसदी मामले देखने को मिले. इस का प्रमुख कारण यह है कि जब कोई महिला रजोनिवृत्ति की दशा में पहुंचती है तो उस के एस्ट्रौजन स्तर में कमी आती है जो हड्डियों के क्षय का कारण बनता है. कुछ महिलाओं में हड्डियों के क्षय की यह प्रक्रिया तेज और गंभीर होती है.

औस्टियोपोरोसिस होने की संभावना को प्रभावित करने वाले 2 प्रमुख कारक :

  1. रजोनिवृत्ति की दशा में पहुंचने पर आप की हड्डियों का घनत्व जितना अधिक होगा, औस्टियोपोरोसिस होने का जोखिम उतना कम होगा. लो पीक बोन मास (हड्डियों के द्रव्यमान में कमी) या हड्डियों के क्षय का जोखिम पैदा करने वाले अन्य कारकों के चलते औस्टियोपोरोसिस होने की संभावना बढ़ जाती है.
  2. रजोनिवृत्ति तक पहुंचने के बाद कितनी तेजी से आप की हड्डियों का क्षय होता है. कुछ महिलाओं में अन्य महिलाओं की तुलना में हड्डियों का क्षय तेजी से होता है. वास्तव में रजोनिवृत्ति के बाद 5-7 वर्षों में एक महिला अपने हड्डियों के घनत्व का तकरीबन 20 फीसदी खो देती है. यदि आप में तेजी से बोन लौस हो रहा है, तो इस का मतलब है कि आप में औस्टियोपोरोसिस होने का जोखिम ज्यादा है.
  3. औस्टियोपोरोसिस की समस्या उम्रदराज लोगों में ज्यादा देखी जाती है, लेकिन कभीकभार यह युवाओं को भी प्रभावित करती है, जिन में 20, 30 या 40 वर्ष की रजस्वला स्त्रियां शुमार होती हैं. हालांकि रजस्वला स्त्रियों में औस्टियोपोरोसिस होने की संभावना कम होती है, लेकिन कुछ स्त्रियों की बोन डैंसिटी (हड्डियों का घनत्व) कम होता है, जिस के चलते आगे चल कर उन में औस्टियोपोरोसिस होने का खतरा बढ़ जाता है.

महिलाओं को मांसपेशियों की ताकत को बनाए रखने, हड्डी के क्षय को रोकने या औस्टियोपोरोसिस का प्रबंधन करने के लिए कुछ कदम उठाने की जरूरत है:

  1. अच्छी जानकारी रखें : यदि आप में बीमारी होने की गुंजाइश ज्यादा है तो बेहतर होगा कि आप औस्टियोपोरोसिस के बारे में जरूरी बातों की जानकारी रखें, इस के बारे में सीखें, इसे जानें.
  2. हड्डियों की सेहत की जांच : रजोनिवृत्ति की दशा में पहुंचने पर महिलाएं अपने डाक्टर के पास जा कर अपनी हड्डियों की सेहत से संबंधित परामर्श लें. पता लगाएं कि उन में फ्रैक्चर का जोखिम तो नहीं है. जिन महिलाओं में बोन लौस की समस्या का निदान हुआ हो उन्हें अपने डाक्टर के परामर्श पर उचित उपचार कराना चाहिए.
  3. नियमित व्यायाम : हड्डियों को मजबूत बनाने और औस्टियोपोरोसिस को रोकने के लिए सप्ताह में 3-4 बार तकरीबन 30 मिनट तक रेजिसटैंस टे्रनिंग (प्रतिरोध प्रशिक्षण) और वजन उठाने वाले व्यायाम आदि करने का नियम बनाना चाहिए.
  4. आहार : महिलाओं को कैल्शियम और प्रोटीन से भरपूर भोजन के साथसाथ प्रचुर मात्रा में फल और सब्जियों का सेवन करना चाहिए. सोयाबीन, स्प्राउट्स दालें, दूध, पनीर व दही आदि का सेवन लाभकारी होता है.
  5. विटामिन डी : विटामिन डी हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है. सूरज से पर्याप्त विटामिन डी प्राप्त करें.
  6. बुरी आदतों का त्याग : धूम्रपान और शराब का सेवन बिलकुल बंद कर दें. वजन सामान्य से कम न होने दें क्योंकि कम वजन वाली महिलाओं में सामान्य वजन वाली महिलाओं की तुलना में औस्टियोपोरोसिस होने की संभावना ज्यादा रहती है.
  7. सर्जिकल रिप्लेसमैंट : पिछले कुछ दशकों में नी रिप्लेसमैंट (घुटना प्रत्यारोपण) के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है. मौजूदा दौर में उपलब्ध सामग्री बेहतर प्रदर्शन में सक्षम बनाने और प्रत्यारोपण को लंबे समय तक टिकाऊ बनाए रखने में कारगर है. तकनीकी रूप से उन्नत सामग्री, जिसे ‘औक्सीडाइज्ड जिरकोनियम’ कहा जाता है, अपनी मजबूत और खरोंच प्रतिरोधक क्षमता के कारण घुटनों के प्रत्यारोपण के लिए बेहतर मिश्रण साबित हो रही है. मौजूदा भारतीय परिदृश्य में, खासकर महिलाओं के लिए सक्रिय जीवनशैली हेतु, इस कृत्रिम अंग की सिफारिश की जाती है.

आमतौर पर सामान्य चिकित्सक मरीजों को घुटने का प्रत्यारोपण कराने से पहले यथासंभव इंतजार करने की सलाह देते हैं. इस के पीछे उन का ऐसा सोचना होता है कि यह जीवन में एक बार की जाने वाली सर्जरी है जो लगभग 20 वर्ष तक असरदार रहती है. हालांकि सर्जरी में देरी मरीज के जीवन की गुणवत्ता को सीमित करती है, क्योंकि सर्जरी से पहले वे जैसा आचरण करते हैं, सर्जरी के बाद का प्रदर्शन उस पर निर्भर करता है. कुल मिला कर उपरोक्त सरल उपायों का पालन कर के, स्वस्थ जोड़ों और हड्डियों की मजबूती बरकरार रखते हुए, एक लंबे समय तक खुशहाल जीवन को सुनिश्चित किया जा सकता है.

डा. प्रेमचंद्र स्वर्णकार और डा. रमणिक महाजन.
(डा. रमणिक महाजन नई दिल्ली स्थित साकेत सिटी अस्पताल में जौइंट रिप्लेसमैंट यूनिट के डायरैक्टर हैं.)

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