भारतीय किसानों द्वारा अपने खेतों में बोई गई फसलों से ज्यादा उत्पादन हासिल करने के लिए अंधाधुंध रासायनिक खादों व उर्वरकों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिस की वजह से मिट्टी में जीवाश्म की मात्रा में दिनोंदिन कमी होती जा रही है और मिट्टी ऊसर होने की कगार पर पहुंचती जा रही है. ऐसी हालत से बचने व फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को ऐसे उर्वरकों का इस्तेमाल करना होगा, जिन से मिट्टी में मौजूद लाभदायक जीवाणुओं को कोई हानि न पहुंचे.
खेत में जीवाश्म की मात्रा को बढ़ाने और उर्वरा शक्ति के विकास में जैविक व हरी खादों का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होता है. हरी खाद के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाली ढैंचे की फसल न केवल खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाती है, बल्कि फसल उत्पादन को बढ़ा कर लागत में भी कमी लाती है. ढैंचा एक ऐसी फसल है, जिसे खेत में बोआई के 55-60 दिनों बाद हल से पलट
कर मिट्टी में दबा दिया जाता है. ढैंचे की बोआई उसी खेत में की जाती है, जिस में हरी खाद
का इस्तेमाल करना हो. इस के नाजुक पौधों को बोआई के 55-60 दिनों बाद जुताई कर के
खेत में मिला कर पानी भर दिया जाता है. ढैंचे की फसल थोड़ी नमी पाने के बाद ही सड़ना शुरू हो जाती है.
ढैंचे की हरी खाद से मिट्टी को भरपूर मात्रा में नाइट्रोजन मिलता है, जिस से खेत में पोषक तत्त्वों का संरक्षण होता है और मिट्टी में नाइट्रोजन के स्थिरीकरण के साथ ही क्षारीय व लवणीय मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है. ढैंचे से अन्य हरी खादों के मुकाबले नाइट्रोजन की ज्यादा मात्रा मिलती है.
ढैंचे की उन्नत किस्में : ढैंचे में खनिज पदार्थों की मौजूदगी, नाइट्रोजन की अच्छी मात्रा व बोई गई फसलों पर अच्छे असर को देखते हुए इस की कुछ किस्में अनुकूल मानी गई हैं, जिन में सस्बेनीया, एजिप्टिका, यस रोसट्रेटा व एस एक्वेलेटा खास हैं.
हरी खाद के लिए अनुकूल मिट्टी : वैसे तो हरी खाद के लिए ढैंचे की बोआई किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन जलमग्न, क्षारीय, लवणीय व सामान्य मिट्टियों में ढैंचे की फसल
लगाने से अच्छी गुणवत्ता वाली हरी खाद मिलती है.
बोआई का समय व बीज की मात्रा : ढैंचे की बोआई से पहले खेत की 1 बार जुताई कर लेनी चाहिए. इस के बाद प्रति हेक्टेयर 35-50 किलोग्राम बीज का इस्तेमाल करना चाहिए. ढैंचे की बोआई अप्रैल के अंतिम हफ्ते से ले कर जून के अंतिम हफ्ते तक की जाती है. बोआई के 10 से 15 दिनों के बाद हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए. जब फसल 20 दिनों की हो जाए, तो 25 किलोग्राम यूरिया का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. इस से फसल में नाइट्रोजन की मात्रा बनने में मदद मिलती है.
फसल की पलटाई : जब ढैंचे की फसल की लंबाई 2 से ढाई फुट की हो जाए तो इसे हल द्वारा खेत में पलट देना चाहिए. इस के बाद ढैंचे की फसल सड़नी शरू हो जाती है, जिस से मिट्टी की उर्वरा कूवत बढ़ने के साथ ही सूक्ष्म पोषक तत्त्वों व सूक्ष्म जीवाणुओं की तादाद भी बढ़ती है. इस से मिट्टी की संरचना में सुधार होता है और बोई गई फसल की जड़ों का फैलाव बेहतर होता है. हरी खाद मिट्टी की जलधारण कूवत को बढ़ा कर नमी को लंबे समय तक बनाए रखने में मददगार होती है. हरी खाद को दबाने के बाद बोई गई धान की फसल में कुछ प्रजातियों के खरपतवार न के बराबर होते हैं. इस प्रकार खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रयोग किए जाने वाले खरपतवारनाशी के कुप्रभाव से मिट्टी को बचाने में मदद मिलती है.
इस प्रकार बेहद कम लागत और मेहनत से हम अपनी मिट्टी की उर्वरा ताकत को बढ़ाने के लिए ढैंचे की फसल को हरी खाद के रूप में इस्तेमाल कर के रासायनिक उर्वरकों पर होने वाले खर्च में कमी ला सकते हैं और मिट्टी को रासायनिक उर्वरकों के प्रभाव से बचा सकते हैं.