कुछ समय पहले सोशल साइट पर एक वीडियो वायरल हो रहा था, जिस में एक शादी समारोह में वर पक्ष वाले बंदूक चला कर अपनी खुशियां जाहिर कर रहे थे. तकरीबन 7-8 बंदूकधारी एक के बाद एक हवा में फायर कर रहे थे. लड़के का पिता भी वहां मौजूद था. तभी एक बंदूकधारी की बंदूक गोली भरने के बाद एकदम चल पड़ी. चूंकि बंदूक की नाल आसमान की ओर नहीं थी, इसलिए गोली सीधी दूल्हे के पिता को जा लगी और उस ने वहीं दम तोड़ दिया.
इस घटना से शादी का माहौल गमगीन हो गया, लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठा कि हम अपनी खुशी जाहिर करने के लिए जानलेवा धमाकों पर इतने ज्यादा निर्भर क्यों हैं? किसी तीजत्योहार पर भी हम अकसर देखते हैं कि लोग आतिशबाजी या बमपटाखों से अपने खुश होने का इजहार करते हैं. बंदूक की गोली तो एकाध को अपना शिकार बनाती है, लेकिन अगर कहीं आतिशबाजी के भंडार में चिनगारी लग जाए, तो वह आसपास के इलाके को अपनी चपेट में ले लेती है. शनिवार, 9 अप्रैल, 2016 को केरल की राजधानी तिरुअनंतपुरम से तकरीबन 70 किलोमीटर दूर कोल्लम के एक मंदिर में भी ऐसा ही कुछ हुआ, जो दर्द की दास्तान बन गया.
उस दिन कोल्लम के ऐतिहासिक पुत्तिंगल देवी मंदिर में नए साल के मौके पर उत्सव मनाया जा रहा था. तब मंदिर के अहाते में तकरीबन 10 हजार लोग मौजूद थे. आधी रात को 2 गुटों में आतिशबाजी का मुकाबला शुरू हो गया, वह भी प्रशासन की इजाजत के बगैर. रात के तकरीबन साढ़े 3 बजे पटाखे के गोदाम ‘कंबपुरा’ में आतिशबाजी से आग लग गई. इस के बाद वहां बड़ा जबरदस्त धमाका हुआ और देखते ही देखते आग ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया. वह धमाका इतना तेज था कि तकरीबन एक किलोमीटर तक उस की आवाज सुनी गई. नतीजतन, मंदिर के अहाते में देखते ही देखते लोग लाशों में तबदील हो गए. चारों ओर भगदड़ का माहौल बन गया और बिजली की सप्लाई भी ठप पड़ गई. इस अफरातफरी में 100 से ज्यादा लोग मारे गए और कई घायल भी हुए.
कोल्लम के कलक्टर ए. शाइनामोल ने बताया कि मंदिर मैनेजमैंट द्वारा आतिशबाजी प्रतियोगिता कराने की इजाजत को ठुकरा दिया गया था, इस के बाद भी यह प्रतियोगिता कराई गई. दरअसल, कोल्लम जिले में बने सौ साल पुराने पुत्तिंगल मंदिर के बारे में लोगों का यह मानना है कि इस इलाके में देवी का निवास है, इसलिए नवरात्र के दौरान भक्तों की भीड़ मंदिर में जुटती है. यह मंदिर अपनी आतिशबाजी के लिए मशहूर है. हर नवरात्र को यहां आतिशबाजी प्रतियोगिता होती है, जिसे देखने के लिए हजारों लोग पहुंचते हैं. नए साल के मौके पर यह भीड़ बढ़ जाती है. याद रहे कि 14 अप्रैल को मलयालम नववर्ष शुरू होता है.
मंदिर में बदइंतजामी
इस मंदिर में ही पटाखे रखने का गोदाम बनाया हुआ था. पटाखे मंदिर के स्टोररूम में रखे हुए थे. हैरत की बात तो यह है कि व्यापारी सुरेंद्रन और उस के बेटे उमेश ने लाइसैंस से 10 गुना ज्यादा पटाखे वहां रखे हुए थे. उन के पास 15 किलो पटाखों का लाइसैंस था, जबकि 150 किलो से ज्यादा पटाखे वहां जमा किए गए थे. कोढ़ पर खाज यह कि मंदिर में किसी तरह की आग से बचने का कोई इंतजाम नहीं था. न वहां फायर ब्रिगेड वाले थे और न ही कोई एंबुलैंस थी. धमाका होते ही मची भगदड़ ने रहीसही कसर पूरी कर दी.
इस पूरे मामले में वहां की पुलिस भी शक के दायरे में है. सवाल है कि इतने सारे पटाखे मंदिर के अहाते में कैसे पहुंचे? जब आतिशबाजी की प्रतियोगिता हो रही थी, तब पुलिस वहां मौजूद थी. ऐसी गैरकानूनी आतिशबाजी प्रतियोगिता को रोका क्यों नहीं गया? कुछ लोगों की लापरवाही और मनोरंजन की वजह से इतने सारे लोग मारे गए, इस की जवाबदेही किस की होगी? ऐसा नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ऐसे हादसों के प्रति गंभीर नहीं है, लेकिन राज्य कोई ठोस कदम उठाने को तैयार ही नहीं होते हैं. कई राज्यों में धर्म के नाम पर बड़ेबड़े आयोजन होते हैं, लेकिन वहां लोगों की जान बचाने के पुख्ता इंतजाम नहीं किए जाते हैं.
अक्तूबर, 2013 में मध्य प्रदेश के रतनगढ़ में बने मंदिर में मची भगदड़ में 115 लोग मारे गए थे. वकील विनीत ढंढा ने तब सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. इस में उन्होंने आपदा प्रबंधन के इंतजाम किए जाने की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट ने 19 नवंबर, 2013 को केंद्र समेत सभी राज्यों को नोटिस जारी किया था, लेकिन कहीं से भी कोई संतुष्ट करने वाला जवाब नहीं आया. इन्हीं लापरवाहियों का नतीजा है कि धार्मिक आयोजनों में बेकुसूर, निहत्थे और मासूम लोग मारे जाते हैं. दुख की बात तो यह है कि बड़े से बड़ा हादसा होने के बाद भी कोई सबक नहीं सीखा जाता. पीडि़तों के जख्मों पर मरहम रखने के लिए सरकारी वादे तो कर दिए जाते हैं, लेकिन उन वादों को पूरा होने में कितना समय लगता है, इस पर कोई ध्यान नहीं देता.