निशा बेहद बोल्ड खयालात वाली लड़की है. दफ्तर में भी लोग उसे काफी प्रभावित रहते हैं. पुरुषों की नजरें बरबस ही उस पर चली जाती हैं. दरअसल कुछ उस के ड्रैसिंग सैंस का कमाल है और कुछ बोल्ड फिजिक का. पुरुष सहकर्मी कभी मजाक में, तो कभी बातोंबातों में उस के फिगर की तारीफ करने से नहीं चूकते. निशा भी किसी की बात को दिल से नहीं लगाती बल्कि लोगों के कमेंट्स को सहजता से एक कान से सुन कर दूसरे से निकल देती है. निशा जैसी लड़कियां लगभग हर दफ्तर में होती हैं, जो अपनी सुंदर काया और सैक्सी फिगर की वजह से आकर्षण का केंद्र रहती हैं. इन के अतिरिक्त कुछ महिलाएं ऐसी भी होती हैं, जिन को कम समय में ही सफलता हासिल हो जाती हैं. उन की सफलता पर लोग जलते हैं और गलत टिप्पणियां भी करते हैं,लेकिन समझदार महिलाओं पर इन सब का कोई असर नहीं पड़ता बल्कि उन में और भी ज्यादा आगे बढ़ने के लिए आत्मविश्वास आ जाता है.
मगर हाल ही में देश की तीसरी सबसे बड़ी सौफ्टवेयर कंपनी विप्रो की यूके बेस्ड बीपीओ से निष्कासित इंप्लौय श्रेया उकिल, निशा जैसी समझदारी नहीं दिखा पाईं. अपने साथी पुरुष कर्मचारियों की उत्तेजक टिप्पणियों को सहजता अनसुना करने की जगह उन्होंने इस विषय को गंभीरता से लिया और कुछ सीनियर सहकर्मियों पर सैक्शुअल कमैंट्स करने और कंपनी पर लिंगभेद का आरोप लगा उन्हें कानूनी कठघरे तक खींच ले गईं. हालांकि श्रेया का दावा है कि कंपनी पर किए गए केस को वो जीत चुकी हैं लेकिन दूसरी ओर कंपनी श्रेया के आरोपों को गलत साबित कर रही है. श्रेया ने एक न्यूज वैबसाइट को दिए अपने स्टेटमैंट में कहा, “ मैंने कंपनी को अपने जीवन के 10 वर्ष दिए. मैं कंपनी को अपना घर समझने लगी थी. बहुत सारा अच्छा काम किया और पुरस्कार जीते, लेकिना साथी पुरुष कर्मचारियों को मेरी सफलता पच नहीं रही थी. कुछ मुझे मैनुपुलेटिव बिच कह कर बुलाते थे, तो कुछ से भद्दे इशारों में कहते थे कि मैं सफलता पाने के लिए क्षमताओं के अलावा कुछ और भी इस्तेमाल कर रही हूं. बाद में पता चला मेरी सैलरी भी पुरुष सहकर्मियों की अपेक्षा काफी काम है.”
श्रेया के इस कमेन्ट पर फैमिनिस्ट महकमे की महिलाएं भले ही उसे रोल मॉडल समझ रही हो लेकिन मनोचिकित्सक एवं सोशल एक्टिविस्ट अनुजा कपूर का इस मसले पर कुछ और ही नजरिया है. वो कहती हैं, “ हैरेस्मैंट जैसे शब्द का प्रयोग करने वाली महिलाएं फैमिनिस्ट होती हैं. समाज भले ही फैमिनिस्ट का अर्थ कुछ भी निकलता हो लेकिन मेरी नजर में फैमिनिस्ट का अर्थ खुद की बनाई बेडि़यां है. एक संस्थान में 10 वर्ष तक काम करना और उस के बाद उस पर लिंग भेद का आरोप लगाना पूरी तरह से दर्शाता है कि ऐसी महिला खुद को कमजोर समझती हैं और खुद परिस्थितियों से लड़ने की और उन पर काबू पाने की उन में क्षमता नहीं होती है. अकसर दफ्तर में सहकर्मी दूसरे की सफलता से जलते हैं और जलनवश कुछ गलत कह देते हैं , लेकिन यह हैरेस्मैंट नहीं बल्कि मानव का अपना स्वभाव है.
जहां तक बात कम सैलरी मिलने की है, तो प्रोफैशन में ऐसा चलता रहता है किसी की सैलरी ज्यादा तो किसी की कम . इसे भी उत्पीड़न नहीं कहा जा सकता. यदि आप संतुष्ट नहीं हैं और आप में क्षमता है , तो जौब चेंज कर लें. श्रेया जैसी लड़कियां, जो क्रोध में इतना बड़ा कदम उठा लेती हैं उन्हें आगे ठोकरें ही खानी पड़ती हैं. ऐसी महिलाएं जिन के पास शिकायतों का पिटारा हो और एजुकेटेड होने के बावजूद खुद अपनी समस्याओं को हल करने में वह नाकम हों, उन्हें भला कौन सी कंपनी नौकरी देना चाहेगी. साथ ही यूं छोटीछोटी बातों पर बिदकने पर वह खुद अपनी ग्रोथ में बाधक बन जाती हैं. ऐसी महिलाओं को काबीलियत होने के बावजूद कंपनी बड़े प्रोजैक्ट का हिस्सा नहीं बनाती. इसलिए यह समझना जरूरी है की कोई भी फैसला सूझबूझ से लिया गया हो, तो उस का फायदा मिलता है नहीं तो उस के विपरीत असर को झेलना पड़ता है.”
अमूमन कार्यस्थल पर महिला और पुरुष साथ काम करने के अलावा साथ लंच करते हैं, प्रोजैक्ट पर काम करते हैं और इसी वजह से प्रोफैशनल संबंधों के साथ ही उनके बीच एक पर्सनल रिश्ता भी बन जाता है. इसी रिश्ते के नाते वे एक दूसरे से हंसी मजाक भी करते हैं. एक दूसरे को सोशल नैटवर्किंग साइट पर फौलो भी करते हैं. कई बार किसी की कोई बात पसंद नहीं आने पर आपसी मतभेद की परिस्थितियां भी बन जाती हैं. लेकिन इन्हें बातचीत के द्वारा सुलझा भी लिया जा सकता है. लेकिन कुछ महिलाएं मजाक को भी ‘मैटर औफ प्राइड’ बना लेती हैं यानी अपने आत्मसम्मान पर चीजों को लेलेती हैं.
अनुजा कहती हैं, “छोटीछोटी बातों को आत्मसम्मान पर लेने से नुकसान महिला का ही है. ऐसी महिलाओं की छवि संस्थान में अच्छी नहीं होती है. लोग उन से बात करने में हिचकते हैं और उन के साथ काम भी करना पसंद नहीं करते. ऐसे में उस महिला की ही तरक्की रुक जाती है. बेहतर है कि संस्थान में लोगों की टिप्पणियों और मजाक को दिल पर मत लें. यदि आप का स्वभाव किसी के मजाक को बरदाश्त करने वाला नहीं है तो ऐसी गतिविधियों का हिस्सा कम से कम बने. क्योंकि आप के एक गलत रिऐक्शन पर आप का और सामने वाले बंदे का भविष्य टिका होता है. ऐसा भी हो सकता है कि लोग आप को ही गलत ठहराएं. उस स्थिति में आप ऐसी बातों को प्रूफ करतेकरते थक जाएंगी. इसलिए स्थिति को कंट्रोल करने का प्रयास करें न की आपा खो कर स्थिति को और बिगाड़ें.”
कुछ टिप्स जो आप को बचा सकते हैं हैरेस्मेंट की स्थिति में पहुंचने सेः
1. दफ्तर में छोटी बातों का राई का पहाड़ बनाने से बचें. अर्थात बात यदि छोटी है तो उसे उसी अंदाज में हल करने का प्रयास करें. उदाहरण के तौर पर यदि कोई पुरुष सहकर्मी आप के कपड़ों या शरीर के किसी अंग पर टिप्पणी करे, तो उसे सहजता से समझा दें कि आप को इस तरह की बातें नहीं पसंद हैं. इस बात पर तमाशा न बनाएं. आप के साथ क्या हुआ है इसे दफ्तर के अन्य लोगों को तब तक न पता चलने दें जब तक जरूरी न हों. हर दफ्तर में ऐसे लोग भी होते हैं, जो बात को तोड़ मरोड़ कर इस कदर दूसरों को बताते हैं कि उस का अर्थ ही बदल जाता है. यह आपके लिए बड़ी परेशानी का सबब बन सकता है.
2. बातों का ढिंढोरा न पीटें. बातों को अपने तक सीमित रखना सीखें. खासतौर पर किसी ने आप को क्या टिप्पणी दी या छेछाड़ करने की कोशिश की इसे किसी को दूसरे को बताने से आप खुद को उसकी गौसिप का हिस्सा बना रही हैं. अमूमन महिलाएं इस तरह की बातों को अपनी साथी महिला सहकर्मी को इस उद्देश्य से बता देती हैं कि वह उन की वक्त आने पर सहायता करेगी. जबकि सत्य यह है कि कोई किसी के मामले में पड़ना नहीं चाहता है. बल्कि ऐसा जरूर हो सकता है कि आप की बताई बात को वह महिला नमक मिर्च लगा कर दूसरों को बता दे और स्थिति संभलने की जगह बिगड़ जाए.
3. यदि आप शांत स्वभाव की हैं और दफ्तर में प्रोफैशनल एटीट्यूड ही रखना चाहती हैं, तो अपनी सहकर्मियों से कम से कम नजदीकियां रखें. इस के लिए सब से पहले सोशल नैटवर्किंग वैबसाइट से दफ्तर के लोगों को न जोड़ें. अधिकतर मामलों में देखा गया है कि सहकर्मी सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर पोस्ट की गई तसवीरों और स्टेटस पर कुछ ऐसे कमैंट्स लिख देते हैं, जो महिलाओं को पसंद नहीं आते और झगड़े की जड़ बन जाते हैं. इस लिए जितना हो सके सहकर्मियों से पर्सनल होने से बचें.
4. दफ्तर में ग्रुपबाजी से बचें. इस से भी छवि पर असर पड़ता है. ऐसी महिलाएं जो किसी ग्रुप का हिस्सा होती हैं और ज्यादा बोल्ड होने का दावा करती हैं, पुरुष उन की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं. ऐसे में कई बार पुरुष सहकर्मी ऐसा कुछ बोल देते हैं, जो सुनने में अटपटा लगता है. यदि उसी वक्त उन्हें ऐसी टिप्पणियां करने से मना कर दिया जाए, तो ऐसा अगली बार करने में वह कतराएंगे. लेकिन ऐसा कई बार होने पर भी आप चुप हैं, तो उन्हें लगेगा कि आप को भी उन की टिप्पणियों से परहेज नहीं है.
5. हर छोटी बात की बौस से शिकायत न करें. जिस बंदे की आप शिकायत करेंगी उस में बदले की भावना का आना स्वाभाविक है. हो सकता है कि वो प्रोफैशनल या पर्सनल लैवल पर आप को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करे. किसी भी बंदे से दिक्कत होने पर आप उस से खुल कर बात करें. यदि वो बंदा बात करने के लायक नहीं है, तो उस से दूरियां बनाना शुरु कर दें.
6. किसी की सफलता, सैलरी और पद से अपनी तुलना मत करें. आप की क्षमता के अनुसार ही संस्थान में आप की तरक्की निर्भर करती है. यदि आप संस्थान द्वारा दिए इंक्रीमैंट से संतुष्ट नहीं हैं, तो इस स्थिति में बिना किसी से तुलना किए एचआर के सामने अपना पक्ष रखें. यदि ऐसा करने पर आप को कोई लाभ मिलता है और आप उस से संतुष्ट हैं, तो ठीक है नहीं तो जॉब चेंज करने का विकल्प आप के पास खुला है.