बुर्के और हाई हील सैंडल में क्या समानता है? यही कि दोनों चीजें महिलाएं बतौर फैशन टूल कभी धर्म के नाम पर तो कभी स्टायल के नाम पर इस्तेमाल करती हैं. आधुनिक और पाश्चात्य देशों में बुरका बेहद पिछड़ा माना जाता है और हाई हील्स की सैंडल में चढ़कर आई महिलायें कार्पोरेट कम्पनियां संभालती हैं. हालाकि ये दोनों ही चीजें अपने अपने तरीके से औरतों की आजादी का पहरा लगा रही हैं.

इस्लामिक देशों में जहाँ कट्टर और रूढ़िवादी समाज के पुरुष औरतों को परदे में ढकने के लिए धर्म की रेशम से बुर्का बुनते हैं. भले ही औरतों का उसमें दम घुट जाए लेकिन धर्म का रेशम कुतरने की हिम्मत अक्सर औरतें नहीं उठा पाती हैं. वहीँ वेस्टर्न कंट्री में हाई हील के पहनने को ड्रेस कोड का जामा पहनाकर महिलाओं को पाबंदियों की दीवार में चुनवाया जा रहा है. कई महिलाएं यह सोचकर खुश होती हैं कि इस्लामिक देशों में ही महिलाओं को लेकर इस तरह की पाबंदियां हैं और बाकी देशों में खासतौर से यूरोपियन देशों में औरतें बड़ी स्वछन्द और मनमुताबिक लाइफ जी रही हैं. दरअसल यह एक गलतफहमी है. सच तो यह है कि महिलाएं दुनिया में हर जगह पुरुष समाज की दकियानूसी सोच, धार्मिक बंधनों और लिंगभेद का शिकार हो रही हैं.

इसलिए इस्लामिक देशों को तो भूल जाइए. जरा लन्दन का हाल सुनिए.

पिछले दिनों लन्दन से ऐसी खबर आयी जो आमतौर पर ईराक या सीरिया से आने वाली ख़बरों सरीखें होती हैं जहाँ लड़कियों को स्कूल जाने से रोका जाता है और उनको तरह-तरह के ड्रेस कोड समझाए जाते हैं. जो उनकी बात मान लेती हैं वह महिलाएं बाजारों में आजा सकती हैं और जो नहीं मानती उन्हें घर की वापसी का रास्ता दिखा दिया जाता है.

लन्दन की एक फार्म में बतौर रिसेप्शनिस्ट काम कर रही निकोला थॉर्प को उनके ऑफिस वालों ने सिर्फ इसलिए घर का रास्ता दिखा दिया कि उन्होंने हाई हील्स की सैंडल नहीं पहनी थीं. पीडब्ल्यूसी नाम की इस फाइनैंस कंपनी में काम करने वाली निकोला का काम दिनभर स्टैड पोजीशन वाला था सो उसने फ्लैट सैंडल पहन लिए. लेकिन पीडब्ल्यूसी ने फ़रमाया कि यहाँ तो हाई हील ही पहननी होंगी और हील की ऊंचाई भी 2 से 4 इंच होनी चाहिए. यानी जो हम कहेंगे वहीँ पहनना होगा.

आमतौर पर बुरका की खिलाफत करने वाले ये देश जब अपनी बारी आती है तो महिलाओं को क्या पहनना है और क्या नहीं, इसका पाठ उन्ही मौलानाओं के फतवे सरीखा पढ़ने लगते हैं. चूंकि निकोला आजाद ख्याल महिला थी सो उसने भी दफ्तर के हुक्मरानों से पूछ डाला कि आप मुझे एक वजह बताइए, जो साबित करे कि फ्लैट चप्पल में मैं अपना काम वैसा नहीं कर पाऊंगी, जैसा आप उम्मीद करते हैं? जाहिर है इसका उनके पास कोई जवाब नहीं था. इसके बाद जब निकोला ने पूछा कि अगर यही काम पुरुष को करना होता तो उसे भी क्या हाई हील पहननी पड़ती? इसके जवाब में तिलमिलाए मैनेजमेंट ने उन्हें बाहर का रास्ता दुइखाकर अपनी तानाशाही निरंकुश मानिसकता का परिचय दे डाला..

खैर, निकोला ने हिम्मत नहीं हारी और सोशल मीडिया में यह मसला उठा दिया. जाहिर हैं उन्हें जमकर समर्थन मिला और चर्चा भी. यहाँ से मिले अनुभव से मालूम पड़ा कि ऐसा भेदभाव झेलने वाली वह अकेली महिला नहीं हैं. कहीं पर स्कर्ट को थोडा ऊंचा करने का ड्रेस कोड है तो कहीं कुछ और. ज्यादातर दफ्तरों में महिला कर्मचारियों के साथ लिंगभेद किया जाता है.

निकोला ने तो इस यूरोपियन फतवे के खिलाफ ब्रिटेन की सरकार को एक याचिका भेजी है कि अगर कहीं भी हाई हील पहनना जरूरी है तो उसे फौरन हटाया जाए. गौरतलब है कि ब्रिटिश कानून के तहत नौकरी देने वाला उन कर्मचारियों को दफा कर सकता है जो ड्रेस कोड का पालन नहीं करते हैं. हालांकि सब जानते हैं कि इन ड्रेसकोड की आड़ में महिलों को उपभोग का सामना बनाकर पेश करना होता है. उन्हें ऐसे कपडे पहनाये जाते हैं ताकि वे सेक्सी लगें.

कितनी अजीब बात है कि जिस देश से यह लिंग भेद की खबर आयी है वहीँ के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन देश में स्कूलों, अदालतों और सीमा चौकियों पर बुर्का जैसे चेहरे को ढंकने वाले पर्दे पर प्रतिबंध का समर्थन करते हैं और भूल जाते हैं जिन इस्लामिक कट्टर रिवाजों के खिलाफ वह बोल रहे हैं, वैसे ही कट्टर नियम उनके देश के कार्पोरेटनुमा दफ्तरों में महिलाओं पर थोपे जा रहे हैं. निकोला प्रकरण इस बात की तस्दीक कर रहा है.

अब अगर किसी महिला को हिजाब पहनने के लिए मजबूर करो या हाई हील्स पहनने के लिए, दोनों ही मामलों में उनकी स्वछन्दता का हनन होता है. क्या पहनकर कोई कम्फर्टेबल होगा, इसका फैसला न तो कोई मुल्ला मौलवी कर सकता है और न ही लंदन का कोई ड्रेस कोड बताने वाला आला अफसर. जिस तरह बुरका उनको घुटन देता है उस तरह हाई हील्स भी किसी को घुटन भरी चोट दे सकती है. 

निकोला ने जिस तरह से ड्रेस कोड के नाम मनमर्जी करने वालों के खिलाफ मुहीम चलाई है उससे देश दुनिया की हर महिला को सबक लेना होगा और ऐसे समाज और जातिधर्म व ड्रेस कोड के ठेकेदारों बुलंद आवाज़ में पूछना होगा ही ओये तू है कौन? हमें बताने वाला की हम क्या पहनें और क्या नहीं.

एक्स्ट्रा शॉट- शोध के मुताबिक़ हाई हील पहनने से टांगों के निचले हिस्से की मांसपेशियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. रक्त संचार भी बाधित होता है. बर्मिंगम की अलाबामा यूनिवर्सिटी के अनुमान से सिर्फ अमेरिका में 2002 से 2012 के बीच एक लाख 23 हजार 355 महिलाएं हाई हील्स की वजह से चोट खा बैठी थीं.

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