तेलंगाना में एकसाथ 2 मामले सामने आए जिन में ऊंची जाति की लड़की के दलित युवकों से शादी पर लड़की के घर वालों का गुस्सा आसमान पर चढ़ गया. एक मामले में दलित युवक को सरेआम पेशेवर हत्यारे से मरवा दिया गया और दूसरे में बेटी का हाथ काट डाला गया. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इन मामलों को ले कर बहुत सरगर्मी मच गई है, पर ऐसा सारे देश में हो रहा है, अभी से नहीं, सैकड़ों सालों से.
जैसेजैसे गिनेचुने दलित पढ़लिख कर अच्छे पदों पर पहुंच रहे हैं उन में और ऊंचों में दिखने में फर्क कम होता जा रहा है, लड़केलड़कियों में आपसी लगाव बढ़ रहा है. यह पंडों और समाज के ठेकेदारों को मंजूर नहीं क्योंकि हिंदू धर्म और समाज की रगों में राम, कृष्ण, शिव का खून बहे या नहीं बहे, जाति का जरूर बह रहा है और वे उस के एक कतरे को भी बिगड़ने नहीं देना चाहते.
रातदिन जो धर्म का ढोल पीटा जाता है, उस के पीछे छिपी बात यही होती है कि हिंदू धर्म में हो तो जाति को याद रखो. भगवाई साजिश के दौरान दलितों को पूजा करने का हक तो दे दिया गया है पर उन के अपने देवीदेवता को. उन के लिए खोदखाद कर ऊंचे देवीदेवताओं के दासों, मैल, कटे अंग, सेवकों की कहानियां गढ़ ली गई हैं और कौन किस देवता की पूजा करता है, उस से पता चल जाता है कि किस जाति का है. जैसे वाल्मीकि सफाई करने वालों को पकड़ा दिए गए कि इन्हें केवल वे ही पूजें. ऊंची जातियों के लोग वाल्मीकि मंदिरों के आगे फटकते भी नहीं हैं. यही काल भैरव का हाल है.
हैदराबाद की अमृता और प्रणय की शादी आर्य समाज मंदिर में हुई जहां अब सब से बड़ा काम ऊंचीनीची जातियों की शादियों का ही रह गया है. आर्य समाज का वेदों का डंका बजवाने का काम संघ ने अपने सिर पर ले लिया और 100 साल पहले बने मंदिर अब मैरिज सैंटर बन गए हैं. जाति का भेदभाव इस कदर है कि वहां जाते ही पता चल जाता है कि एक ऊंची जाति का है और दूसरा नीची जाति का.
ये मामले उत्तर भारत में बहुत हो रहे हैं. पर मीडिया पर यहां ऊंचों का कब्जा है और मामला दब जाता है. जो मरता है, उस के घर वाले डर कर शिकायत नहीं करते क्योंकि वे तो खुद नहीं चाहते थे कि शादी हो. अगर बच्चों में ऊंचीनीची जाति का फर्क हो तो नीची जाति के परिवार आमतौर पर घबराते हैं क्योंकि सदियों से ऐसे हर मामले में मरते वे ही रहे हैं. 70 साल के संविधान ने अभी कोई फर्क नहीं डाला है क्योंकि समाज तो वैसा का वैसा, चींटी की रफ्तार से चल रहा है.