पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मूंग की खेती जायद के मौसम में अकेली फसल के रूप में या मिलवां फसल के रूप में की जाती है. खरीफ में भी इस की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है. हालांकि खरीफ में मौसम नम रहने के कारण इस फसल में पीला मौजेक नामक बीमारी का खतरा होता?है, जिस से पैदावार कम हो जाती है. खेत का चयन व तैयारी : दोमट व हलकी दोमट मिट्टी जिस में जल निकास की सही व्यवस्था हो, मूंग की फसल के लिए अच्छी रहती है. खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या हैरो से करें. उस के बाद 2-3 जुताई कल्टीवेटर से कर के पाटा लगा दें. इस तरह खेत बोआई के लिए तैयार हो जाता है.
बोआई का समय : मूंग की बोआई फरवरीमार्च से ले कर अगस्त के तीसरे हफ्ते तक की जा सकती है. खरीफ की मूंग जुलाई के पहले हफ्ते से अगस्त के तीसरे हफ्ते तक बोई जाती?है.
ये भी पढ़ें- मसूर की उन्नत खेती
बीज की मात्रा : 12-15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.
बोआई की विधि : बोआई कूंड में हल के पीछे करनी चाहिए. कूंड से कूंड की दूरी 30-35 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 15-20 सेंटीमीटर रहनी चाहिए.
बीज शोधन व बीजोपचार : बोआई से पहले कवकनाशी से बीजों का शोधन करना व राइजोबियम कल्चर से उन को उपचारित करना बहुत ही जरूरी?है. बीज शोधन के लिए 2.5 ग्राम थीरम या 2.5 ग्राम कार्बेंडाजिम का प्रति किलोग्राम बीज की दर से इस्तेमाल करे. बीज शोधन हमेशा बीजोपचार से पहले करें.
उर्वरक : 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश की प्रति हेक्टेयर की दर से मूंग की फसल को होती है. उर्वरकों की पूरी मात्रा बोआई के समय खेत में डालें.
ये भी पढ़ें- फसल अवशेष प्रबंधन यंत्र मोबाइल श्रेडर
सिंचाई : मूंग की फसल यदि खरीफ
में ली जा रही हो, तो सिंचाई की जरूरत नहीं होती है.
निराईगुड़ाई
पहली निराईगुड़ाई बोआई के 20-25 दिनों बाद और दूसरी उस के 20 दिनों बाद करनी चाहिए. बोआई से पहले रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए फ्लूकोलोरालिन 45 ईसी नामक रसायन की 2 लीटर मात्रा 700 से 800 लीटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.
ये भी पढ़ें- गाजर के बीज की उत्पादन तकनीक
फसल सुरक्षा : मूंग की अच्छी पैदावार लेने के लिए फसल को कीटों व बीमारियों से बचाना बेहद जरूरी है.