दीपकों की
देह से फूटी
फिर सुनहरी
रश्मियों की गंध.
रात ने सोलह किए शृंगार
बह रही है रोशनी की धार
तोड़ कर तम के
सभी तटबंध.
फुलझड़ी सी जगमगाती रात,
साथ दीयों की चले बरात.
कुछ अनारों ने
किए अनुबंध.
दपदपाता सा तुम्हारा रूप
रात में आए उतर ज्यों धूप
और दे
आलोक की सौगंध.
– रत्नदीप खरे
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