शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई हैं. राजनीति में उनको मुलायम का दाहिना हाथ माना जाता है. मुलायम परिवार में आई दूरी के बाद वह समाजवादी पार्टी में अलगथलग पड चुके थे. गंगा यमुना के दोआब में जहां रामायण और महाभारत काल से भाई भाई का सत्ता संघर्ष गवाह रहा है. ऐसे में शिवपाल पर भाजपा सरकार की मेहरबानी नया गुल खिला सकती है.

चुनाव जीतने के लिये केवल अपनी पार्टी पर ही निर्भर नहीं रहा जाता. विरोधी पार्टियों में अनबन का लाभ उठाते हुये वहां भडके असंतोष का लाभ भी लिया जाता है. इसमें दलबदल से लेकर वोट काटने तक के काम होते है. इसे ही राजनीति की भाषा में चुनाव प्रबंध कहा जाता है. एक समय था जब भारतीय जनता पार्टी इसकी आलोचना करती थी. उसका मानना था कि दलबदल और तोड़फोड़ से लोकतंत्र का नुकसान होता है. इससे राजनीतिक विचारधरा में मिलावट आती है. भाजपा ‘पार्टी विद डिफरेंट’ का नारा देती थी.

1995 तक भाजपा को अपनी पार्टी का यह स्लोगन याद रहा. 1997 के बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा ने दलबदल, तोड़फोड़ सहित सरकार बनाने के तमाम रास्तों पर चलना शुरू किया. यह वहीं रास्ते थे जिनको लेकर भाजपा कभी कांग्रेस की आलोचना करती थी.

अब तो भाजपा को न तो कांग्रेसियो से कोई गुरेज रहा न कांग्रेस की परिपाटी से. कांग्रेस की तरह भाजपा ने तोड़फोड़ शुरू की. क्षेत्रिय नेताओं के जनाधर को सीमित करना सीखा और विपरीत विचारधरा के लोगों के साथ भी समझौता शुरू किया. एक तरफ भाजपा ने ‘कांग्रेस मुक्त’ भारत का नारा जनता को दिया पर खुद ‘कांग्रेस युक्त’ हो गई. अब भाजपा को चुनाव के समय दूसरे दलों में तोड़फोड़ करने का चुनावी प्रबंध रास आ रहा है. 2017 के विधनसभा चुनाव के समय समाजवादी पार्टी के मुलायम परिवार में उठे झगड़े को इसी नजर से देखा जा रहा है. उस समय के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इसे गहरी साजिश मानते थे. तब कई लोग यह मानते थे कि अखिलेश यादव अपनी कमी छिपाने के लिये यह कह रहे हैं.

2017 के विधानसभा चुनाव के बाद अखिलेश यादव के निशाने पर रहे वही नेता शिवपाल यादव और अमर सिंह जब भाजपा के करीब हुये और वहां से इन नेताओं पर कृपा बरसने लगी तो अखिलेश यादव की बात में दम नजर आने लगा कि मुलायम परिवार गहरी राजनीतिक साजिश का शिकार हुआ था. भाजपा की योगी सरकार ने सपा नेता अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रा वाले बंगले को लेकर जिस तरह के आरोप उन पर लगाये वह अपने आप में अध्ययन का विषय है.

अखिलेश यादव द्वारा खाली किये गये बंगले को दिखाने के लिये मीडिया को भेजा गया. अखिलेश यादव पर नल की टोटी, टाइल्स, गमले, बाथरूम टब और न जाने कितनी कितनी चीजों के तोड़फोड़ का आरोप लगाया गया. भाजपा की उसी सरकार ने समाजवादी पार्टी से नाराज नेता शिवपाल यादव को लखनऊ का सबसे आलीशान बंगला तब आंवटित किया जब शिवपाल यादव ने समाजवादी सेक्यूलर मोर्चा नाम से अलग पार्टी बना ली.

शिवपाल पर मेहरबानी

शिवपाल यादव के द्वारा समाजवादी सेक्यूलर मोर्चा बनाने के बाद ही योगी सरकार उन पर मेहरबान नहीं है. योगी के मुख्यमंत्रा बनते ही शिवपाल यादव के साथ उनके संबंध मधुर हो गये थे. शिवपाल की सिफारिश पर उनके रिश्तेदार अफसर के काडर में बदलाव भी किया गया था. शिवपाल यादव के पास लखनऊ में ही विक्रमादित्य मार्ग पर अपना निजी आवास है. इसके अलावा रायल होटल में विधायक के रूप में उनको एक आवास अलग से आंवटित है. ऐसे में एक और बड़े आवास को आंवटित करना योगी सरकार की नेक नियती ही कही जायेगी.

आश्चर्य की बात यह है कि खुद योगी सरकार के कई मंत्री बड़े बंगले की जरूरत महसूस करते हैं. सरकार के एक मंत्री ने बड़े बंगले की इच्छा जताते हुये सरकार को एक पत्र लिखा था. पत्र पर फैसला करने के पहले ही उसको वायरल कर दिया जाता है. जिससे उस मंत्री की किरकिरी हो जाती है और उनका बड़े बंगले का सपना धरा का धरा रह जाता है. शिवपाल यादव ने बड़े बगंले पर अपने दावे को रखते हुए कहा ‘मैं सीनियर हूं. 5 बार का विधायक हूं. अब मुझे टाइप 6 के बंगले की जरूरत है. आईबी की रिपोर्ट पर कि मुझे थ्रेड है. मैने बड़े बंगले के लिये मांग की थी. तब जाकर मुझे बड़ा बंगला आंवटित हुआ है.’ शिवपाल यादव मानते हैं कि उनको यह बंगला मेरिट के आधर पर दिया गया है.

मायावती का बंगला

जनता को यह समझना जरूरी है कि एक बंगला अखिलेश यादव के पास था जिसके चलते उनपर नल की टोटी चोरी का आरोप लगा एक बंगला उनके चाचा शिवपाल यादव को दिया गया जो राजधनी के सबसे आलीशान बंगले में शामिल था. शिवपाल यादव को आंवटित 6 लाल बहादुर शास्त्री मार्ग के इस बंगले की कहानी और गहरी है. यह बंगला बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने बनवाया था. यह उनको पूर्व मुख्यमंत्री के नाम पर मिला था. मायावती ने सरकारी बंगले को अपने हिसाब से आलीशान ढंग से बनवाया था. यह बंगला भव्य निर्माण और साज सज्जा के लिये मशहूर था. कोर्ट के फैसले पर पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में आंवटित इस बंगले को मायावती को छोड़ना पडा तब से कई लोगों की निगाह इस बगलें पर लगी थीं.

बसपा और सपा की बढती दोस्ती के प्रभाव को खत्म करने के लिये शिवपाल यादव ने जब समाजवादी सेक्यूलर मोर्चा बनाया तो भाजपा ने अपना लाभ देखते हुये शिवपाल यादव को महत्व देना शुरू किया. इसे दिल्ली की राजनीति से जोड़ कर देखा जा रहा है. कारण यह है कि शिवपाल यादव के करीबी नेता अमर सिंह पहले ही भाजपा के करीबी हो चुके है. अखिलेश यादव मुलायम परिवार में विघटन के लिये जिन अंकल को जिम्मेदार मानते थे वह अमर सिंह ही माने जाते है. अमर सिंह और शिवपाल यादव की दोस्ती जगजहिर है. ऐसे में दोनो का एक साथ भाजपा के करीब आना पूरी कहानी बयां कर देता है.

यह माना जाता है कि समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव के बाद सबसे अधिक समथर्क शिवपाल यादव के ही हैं. ऐसे में सपा को कमजोर करने के लिये जरूरी था कि शिवपाल यादव को वहां से दूर किया जाये. अब सपा को सबसे पहले समाजवादी सेक्यूलर मोर्चा से बचना होगा. शिवपाल यादव का यह मोर्चा केवल अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी में ही सेंधमारी करेगा. जिसका लाभ भाजपा को मिलेगा. चुनावी मैदान से पहले विरोधी दल को पटकनी देने का यह दांव भाजपा को कितना रास आयेगा यह समय बतायेगा. भाजपा बाहरी नेताओं को महत्व दे रही है जबकि खुद पार्टी के भीतर नेताओं में अपनी उपेक्षा को लेकर क्षोभ बढ रहा है.

बंगले की इस राजनीति पर उत्तर प्रदेश के राज्य संपत्ति विभाग ने सफाई देते हुए कहा कि शिवपाल यादव को जो टाइप 6 का बंगला दिया गया है वैसा बंगला कई दूसरे नेताओं के पास भी है. ऐसे में शिवपाल यादव को अलग से कोई सुविधा नहीं दी गई है. यह बंगला टाइप 6 के दूसरे बगलों से बेहद अलग साजसज्जा और भव्यता वाला है. इसका महत्व इसलिये भी है क्योकि यह बसपा नेता मायावती के बंगले के पास राजनीतिक रूप से बेहद वीवीआईपी कहे जाने वाले मालऐवन्यू में है. राजनीति में कई फैसले अपने समय को लेकर खास हो जाते हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव के समय पर किया गया यह फैसला बेहद अहम है. अभी कई ऐसे चौंकाने वाले फैसले देखने को मिलेंगे जिससे साफ होगा कि भाजपा अब ‘पार्टी विद डिपफरेंट’ नहीं रही. चुनाव जीतने की ‘चुनावी प्रंबध कला’ को वह अपना चुकी है.

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