अगर आप भीड़ की शक्ल बनाने में सफल हैं तो कानून कुछ भी नहीं कर सकता है. यह मानसिकता अब जनता की भीड़ से निकल कर पुलिस फोर्स में घर कर रही है. भीड़ की शक्ल में एकत्र होकर न्याय और उसकी प्रक्रिया को प्रभावित किया जा सकता है.

जनता में व्याप्त यह चलन अब पुलिस फोर्स में भी फैल रहा है. हत्या के आरोप में जेल भेजे गये अपने साथी सिपाहियों ने जब काली पट्टी बांध कर घटना का विरोध किया तो साफ लगने लगा कि भीड़तंत्र की प्रेरणा पुलिस फोर्स के अंदर भी घर कर गई है. भीड़ के रूप में सिपाहियों का एक वर्ग न केवल काली पट्टी बांध कर विरोध प्रदर्शन कर रहा है बल्कि सोशल मीडिया पर उसका प्रचार भी कर रहे हैं.

सिपाहियों के भीड़तंत्र में बदल जाने का प्रभाव मरने वाले के परिवार पर भी पड़ रहा है. इस घटना के बाद उसे मीडिया के सामने आकर कहना पड़ा कि उनको सिपाहियों से कोई दुश्मनी नहीं है. वह तो केवल न्याय की गुहार लगा रहे हैं. यह परिवार क्या सुरक्षा के लिये उत्तर प्रदेश के पुलिस विभाग पर भरोसा कर सकता है ?

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मल्टीनेशनल कंपनी एप्पल में काम करने वाले विवेक तिवारी की हत्या हो जाती है. घटनाक्रम के अनुसार विवेक तिवारी कंपनी के एक समारोह से रात को वापस लौट रहे थे. उनके साथ कंपनी की महिलाकर्मी सना भी थी. विवेक तिवारी सना को घर छोड़ कर अपने घर जाने वाले थे.

आधी रात का वक्त था. गश्त कर रहे पुलिस के दो सिपाहियों ने विवेक तिवारी की चार पहिया गाड़ी को रोकने की कोशिश की. विवेक ने रात का वक्त और साथ में महिला सहकर्मी होने की वजह से गाड़ी नही रोकने का प्रयास किया. सिपाहियों ने कार को जबरन रोकने की कोशिश की. ऐसे में कार से सिपाही की बाइक पर रगड़ लग गई. सिपाही बाइक से उतरा उसने अपनी रिवाल्वर निकाली और विवेक तिवारी के सिर पर गोली मार दी. गोली मारने के बाद दोनों सिपाही भाग गये.

कुछ देर बाद गोमतीनगर थाने की पुलिस ने विवेक को अस्पताल पहुंचाया जहां डाक्टरों ने उनको मृतक घोषित कर दिया. इन दोनो सिपाहियों की पहचान प्रशांत चौधरी और संदीप कुमार के रूप में हुई. घटना का पता चलने के बाद पुलिस ने अपने दोनों सिपाहियों को निर्दोष साबित करने के लिये हर संभव प्रयास किया.

सामाजिक और राजनीतिक दबाव पड़ने के बाद दोनों सिपाहियों को जेल भेजना पड़ा. सिपाही प्रशांत चौधरी का तर्क था कि उसने आत्मरक्षा में गोली चलाई. प्रशांत के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि गोली सीधे सिर पर क्यों मारी? विवेक तिवारी को भागने से रोकने के लिये उनकी गाड़ी के हर पहिये पर गोली मारी जा सकती थी? उनके पैर पर गोली मारी जा सकती थी? पुलिस विभाग ने जिस तरह से घटना होने के बाद से ही प्रशांत चौधरी को बचाने का काम शुरू किया उससे प्रशांत के हौसले बढ़ गये.

जिस गोमती नगर थाने में वह और उसकी सिपाही पत्नी तैनात थे वहां घटना की मनमानी एफआईआर लिखी गई. बड़े पुलिस अधिकारियों की घोषणा के बाद भी सिपाही को काफी समय तक पकड़ा नहीं गया था. प्रशांत की पत्नी हंगामा करने पुलिस औफिस तक आ गई थी.

हत्या के आरोप में फंसने के बाद भी पुलिस महकमे ने जिस तरह से सिपाही प्रशांत का पक्ष लिया उससे एक मैसेज गया और बाकी सिपाही भी समर्थन में काली पट्टी बांधकर विरोध प्रदर्शन का साहस कर बैठे. उत्तर प्रदेश में यह पहली घटना है. असल में देखा जाये तो इसमें दोष सिपाहियों का नहीं है. यह दोष राजनीतिक और सामाजिक परिवेश का है. जहां संविधान और कानून की जगह भीड़तंत्र का न्याय चलता है. किसी को प्रेम विवाह करने के नाम पर भीड़ मार दे रही है. किसी को गौरक्षा के नाम पर मार दिया जा रहा है. कहीं डायन समझ कर पीटपीट कर मारा जा रहा है.

पुलिस विभाग के सिपाहियों को भी लग रहा कि वह भीड़तंत्र बनाकर न्याय को प्रभावित कर लेंगे. तब तक देश में कानून और संविधान का राज नहीं होगा ‘भीड़तंत्र’ या ‘मौब लिंचिंग’ ऐसे मनमाने फैसले करती रहेगी.

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