देश भर में जहां भी बालिका आश्रय गृह हैं वो यौन शोषण से मुक्त नहीं हैं. ये आश्रय स्थल सरकारी हो या गैर सरकारी, आए दिन किसी न किसी बालिका आश्रय स्थल में लड़कियों के साथ यौन शोषण की खबरें आती रहती हैं. ऐसा दशकों से होता आ रहा है मगर हालात सुधर नहीं रहें.

अब सुप्रीम कोर्ट ने आश्रय गृहों में लड़कियों के यौन शोषण की घटनाओं पर अंकुश के लिए मौजूदा व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए उसे अपर्याप्त करार दिया और सरकार को आदेश दिया है कि वह संरक्षण के लिए नीति तैयार करने के बारे में अवगत कराए.

न्यायाधीश मदन लोकुर, अब्दुल नजीर और दीपक गुप्ता की पीठ ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव को 8 अक्तूबर को उपस्थित हो कर ऐसे पीड़ितों की काउंसलिंग और उन के पुनर्वास बच्चों की देखभाल करने वाली संस्थाओं की मौजूदा स्थिति और बाल संरक्षण नीति तैयार करने से जुड़े मुद्दों को समझने में न्यायालय की मदद करने को कहा है.

पीठ ने कहा कि मौजूदा व्यवस्था पर्याप्त नहीं है यदि यह पर्याप्त होती तो मुजफ्फरपुर में जो कुछ भी हुआ वह नहीं होता.

पीठ मुजफ्फरपुर मामले की सुनवाई कर रही है बिहार के मुजफ्फरपुर के बालिका आश्रय गृह में लड़कियों के यौन शोषण का मामला सुरर्खियों में है इस में आश्रय का संचालकए सरकार के मंत्री और कई अधिकारियों की लिप्तता सामने आई है.

आश्रय से कुछ लड़कियां गायब भी हैं. जांच में आश्रय स्थल में हुई खुदाई में मानव अस्थियां मिली हैं. आरोप है कि आश्रय का संचालक लड़कियों को यौन शोषण के लिए बाहर भेजता था तथा कई लोग आश्रय गृह में भी लगातार आते थे.

पीठ ने सुनवाई के दौरान बाल संरक्षण नीति के बारे में सरकार से जानकारी मांगी थी पर इस संबंध में कुछ भी नहीं बताया गया मंत्रालय की ओर से कहा गया कि बच्चों के साथ अपराध की रोकथाम के लिए शीर्ष अदालत के सुझाव के अनुरूप बाल संरक्षण नीति तैयार करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सभी राज्यों के साथ परामर्श चल रहा है.

केंद्र ने कहा कि ऐसे मामलों में की जाने वाली कार्रवाई के अनेक बिंदु राज्यों को भेजे गए हैं और मंत्रालय शीघ्र ही इस मुद्दे पर एक बैठक आयोजित करेगी.

पीठ ने कहा कि कुछ राज्यों ने इस तरह की घटनाओं को होना स्वीकार किया है और अगर ऐसा हुआ है तो इसे दुरुस्त करने के लिए कदम उठाने होंगे.

सरकारी और गैर सरकारी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे बालिका आश्रय गृहों में यौन शोषण कोई नई बात नहीं है. पिछले साल गुड़गांव में एक एनजीओ द्वारा चलाए जा रहे आश्रय गृह में लड़कियों के साथ यौन शोषण का मामला सामने आया था.

आंध्रप्रदेश के एक आश्रय गृह में रहने वाले 26 बच्चों के यौन शोषण की घटना पर शोर मचा था. इस तरह की अनगिनत घटनाओं के बावजूद सरकारों के कान पर जूं तक नहीं रेंगती. सरकारें ऐसी वारदातें रोकने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बना पातीं, जो काम सरकारों को करना चाहिए उस के लिए अदालतों को उन्हें बारबार कहना पड़ता है.

बालिका आश्रय गृहों में यौन शोषण की घटनाओं को रोक पाना मुश्किल है. सरकार अदालत के आदेश पर कैसी भी नीति तैयार कर लें पर नीतियों को लागू करने वाले लोग तो वही होंगे जो व्यवस्था में बैठे हैं. यौन शोषण के लिए कितने ही कड़े कानून बना दिए जाएं, कितनी ही ठोस नीतियां तैयार कर दी जाएं, यौन शोषण रोक पाना असंभव है क्योंकि जब तक लड़कियों के प्रति हमारे समाज की रूढ़िवादी सोच नहीं बदलेगी अपराध रुक नहीं सकते.

लड़कियों को समाज सिर्फ उपभोग की वस्तु समझता हैं, आश्रय गृहों में आने वाली लड़कियां उस तबके से आती हैं जिनकी नियति ही औरों की सेवा करनी है. उन्हें आवाज उठाने को हक भी नहीं है, फिर भी उम्मीद की जानी चाहिए शायद सुप्रीम कोर्ट के डंडे से कोई जादू हो जाए.

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