अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का भय गहराता जा रहा है. बैल्जियम की राजधानी बू्रसैल्स में कई स्थानों पर एकसाथ हमले कर के 31 लोगों की जान ले कर इसलामिक स्टेट संगठन के आतंकवादियों ने एक बार फिर संदेश दे दिया है कि उन के आत्मघाती दस्तों को रोकना दुनिया की बड़ी ताकतों के वश में नहीं है और दुनिया के देशों की सरकारों को हर समय डर कर रहना होगा कि न जाने कब, कहां, कैसे हमला हो जाए.
प्रकृति की अप्रत्याशित मार के भय के चलते धर्म की उत्पत्ति की गई थी. सयाने लोगों ने आम व्यक्तियों को मूर्ख बना डाला था कि प्राकृतिक कहर, किसी अदृश्य हस्ती की नाराजगी के कारण होते हैं और उस का मुकाबला करना है तो इस या उस धर्म की शरण में जाओ. बाद में ये धर्म आपस में ही लड़ने लगे क्योंकि हर धर्म जनता को बहकाने का एकाधिकार चाहता था. मानव ने, सभ्य होने के बाद, अपनी बुद्धि से प्रकृति पर काफी विजय पाई है. आज भी प्रकृति की अचानक टेढ़ी हुई निगाहें उसे नुकसान पहुंचाती हैं, पर उतना नहीं. भूकंप और सुनामी के अलावा बहुत सी आपदाओं पर विजय पा ली गई है. यह विजय धर्मों को स्वीकार नहीं है. पश्चिमी देशों के धर्म व नेताओं ने तो इस स्थिति को स्वीकार कर लिया है पर इसलाम व हिंदू इस बदलाव को सहन नहीं कर पा रहे. कट्टर मुसलिम और कट्टर हिंदू अपना धंधा बनाए रखने के लिए कुछ न कुछ प्रपंच रचते रहते हैं.
इसलाम पर पिछले दशकों में बड़ा हमला नहीं हुआ. इसराईल बना लेकिन वह उस इलाके के लोगों का सैकड़ों सालों का आपसी मामला था, वह भी जमीन का, धर्म का नहीं. तेल के फलफूल रहे इलाके में धर्म के हाथों से लोग निकल न जाएं, क्योंकि वे पश्चिम की तकनीकी प्रगति खरीद सकते थे, धर्म के सौदागरों ने उन्हें धर्म के नाम पर बहकाना शुरू किया और अधपढ़ी जनता ने उसे अंतिम सत्य मान कर अपनाना शुरू कर दिया. इसलाम के साथ यह परेशानी खड़ी हो गई कि मुसलिम देशों में बेकारी बहुत है. वहां तेल का पैसा तो है पर हरेक के लिए काम नहीं. तेल का पैसा सरकार, शासकों, तेल कंपनियों के मालिकों और नौकरशाही के हाथों से निकल कर आम व्यक्ति के हाथ में कैसे पहुंचे, इस का कोई फार्मूला नहीं. वहां के युवा, खासतौर पर गरीब घर के युवा जो कई भाईबहनों के बीच पले, कट्टरपंथी समाज में घुटे और जिन्हें मां का प्यार नहीं मिला, कुंठित हो गए. और वे ही धर्म के सौदागरों की सौगात बन गए.
धर्म ने इसलाम के नाम पर उन्हें बरगला लिया. बिना वजह दुनिया को इसलाम का दुश्मन कह डाला. अमेरिका, यूरोप, एशिया इसलामी जनता को परेशान नहीं कर रहे थे. बस, धर्म के दुकानदारों ने हौआ पैदा कर दिया. आज ईसाई गोरे देशों पर पश्चिमी एशिया के गुस्सैल युवा इसलाम के सहारे अपनी कुंठा निकाल रहे हैं. उन्हें न अपनी जान की चिंता है न दूसरों की जान की. जीवन उन के लिए खेल है क्योंकि जिंदगी उन्हें कुछ नहीं दे रही. उन्हें निर्दोषों की जिंदगी लेने में कोई हिचक नहीं हो रही. अमेरिका में खासतौर पर और यूरोप में यदाकदा ऐसे युवा हैं जो निहत्थे निर्दोर्षों को बिना धर्म के नाम पर भी मार रहे हैं.
30 मार्च को मिस्र में हुए विमान अपहरण की कहानी भी ऐसी ही है जिस में अपनी रूठी पत्नी को पाने के लिए एक आदमी ने हवाई जहाज का अपहरण कर सब की जान को घंटों तक कच्चे धागे से लटकाए रखा. ब्रूसैल्स का आतंकवादी हमला बिना मतलब का था. न जमीन जीतनी है, न कोई मांग मनवानी है. बस, अपना गुस्सा आम जनता पर उतारना है. इस बीमारी का कोई हल नहीं दिख रहा. जब तक धर्म जिंदा है, यह फलेगीफूलेगी क्योंकि धर्म निठल्लों, घर सेभागे लोगों की पनाहगाह है.