धर्म का अलिखित पर वास्तव में सब से मुख्य उद्देश्य औरतों को गुलामी में धकेलना रहा है. कट्टर इसलामी गुट इसे लगातार साबित कर रहे हैं. सीरिया से ले कर नाइजीरिया तक इसलामी जेहादियों का मुख्य लक्ष्य मुफ्त में औरतें पाना बन गया है और इन औरतों को जेहादियों को खुश रखने के लिए इस्तेमाल करा जा रहा है. हर औरत, इन में 12 साल की लड़कियां तक शामिल हैं, हर समय किसी अनजान जेहादी द्वारा बलात्कार के आक्रमण से भयभीत रहती है.

इसलाम में कहीं यह विधान है कि गर्भवती से यौन संबंध न बनाया जाए, इसलिए इन लड़कियों और औरतों को जबरन गर्भनिरोधक दवाइयां दी जा रही हैं और लगातार टैस्ट कराए जा रहे हैं कि वे गर्भवती तो नहीं हैं. गुलामी की हालत में रह रही इन लड़कियों व औरतों के पास बचाव का साधन केवल एक ही होता है और वह है जेहादियों को खुश रखना और इस के लिए वे जेहादियों को दुत्कारने, उन से लड़ने की जगह उन्हें खुश करने के उपाय सीख लेती हैं. धर्म का औरत और सैक्स से क्यों वास्ता हो? पर सच यही है कि हर धर्म में औरतों की बड़ी जगह है. हर धर्म ने आश्रम, कौन्वैंट, भिक्षुणीगृह बना रखे हैं, जिन में धर्म को समर्पित औरतें ही रखी जाती हैं. यह समर्पण किसी तथाकथित ईश्वर के लिए नहीं, धर्म को चलाने वाले पुरुषों के लिए है.

कोई भी धार्मिक तमाशा हो, उस में औरतों का जमघट न हो तो भीड़ ही नहीं आती. हर संत, मौलवी, भिक्षु, पादरी औरतों की खास सुनता है. धर्म ने विवाह संस्था पर कब्जा कर रखा है, जिस का अर्थ है कि स्त्रीपुरुष यौन संबंध बिना धर्म की अनुमति के बना ही नहीं सकते. प्रकृति ने जब यौन संबंधों में बराबरी का स्थान नरमादा को दिया है तो ईश्वर के आदेश के नाम पर धर्म बीच में कहां से आ गया? अगर भारत में वर्णव्यवस्था की गुलाम लड़कियां वेश्याघरों में ठुंसी पड़ी हैं तो और्थोडौक्स क्रिश्चियनिटी को मानने वाले पूर्व सोवियत संघ के देशों की युवतियों को दुनिया भर के वेश्याबाजारों में ला पहुंचाया है, क्योंकि उन का धर्म उन्हें वैसे भी पुरुष का गुलाम बना कर रखता है.

नए कट्टर इसलाम ने बाकी तकनीकों का इस्तेमाल तो खुशी से कर लिया पर औरतों के अधिकारों के मामले तर्क को धर्मद्रोह बना रखा है. भारत में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय को नीचा दिखाने के लिए कट्टरपंथियों को जातिगत भेदभाव की इतनी चिंता नहीं है जितनी वहां मिलने वाले कंडोमों की है. उन्हें स्वीकार्य ही नहीं कि लड़कियां स्वतंत्र जीवन कैसे जी सकती हैं.

आज धर्म और तर्क के बीच द्वंद्व एक बार फिर खड़ा हो गया है. धर्म ने तर्क को ठुकरा कर आधुनिक प्रचारतंत्र का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. इंटरनैट, कंप्यूटर, स्मार्टफोन, सैटेलाइट ड्रोनों का इस्तेमाल पुराने जंग खाए एकतरफा धर्म को फिर से स्थापित करने के लिए किया जा रहा है. पुरुषों की तो बन आई है, क्योंकि वे धर्म के सहारे स्त्रियों पर फिर राज कर सकते हैं. अमीर भी खुश हैं, क्योंकि वे धर्म की आड़ में अपने शोषण को छिपा सकते हैं. यहां तक कि अधेड़ औरतें भी खुश हैं, क्योंकि उन्हें युवा सुंदर औरतों से प्रतियोगिता नहीं करनी पड़ती  इसलामिक स्टेट ने इस सोच का लाभ उठाया है. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का उदय और भारत में कट्टरपंथी सोच की पकड़ इसी की कडि़यां हैं.

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