कास्टिंग काउच आज की दुनिया का एक सियाह सच है. फिर चाहे वह फिल्मी दुनिया, टीवी इंडस्ट्री या मौडलिंग क्षेत्र हो या फिर नौकरी या शिक्षा का क्षेत्र, कास्टिंग काउच होता है, यह सभी जानते हैं. लेकिन कोई इस के बारे में बात नहीं करना चाहता. बहुत कम लोग ऐसे हैं जो इस मामले को सब के सामने उजागर करने की हिम्मत जुटाते हैं. यही नहीं, आजकल हर तरफ एक जाल बिछा है जिस का युवक हों या युवती, दोनों को ही कभी न कभी किसी रूप में सामना करना पड़ता है. हो सकता है युवकों को इस का कम सामना करना पड़े. युवती से तो पहली शर्त होती है कि अकेले में आ कर मिलो. मेरी एक सहेली, सीमा (परिवर्तित नाम) लेखिका है. उस के अनुसार लेखन की दुनिया भी इस से अछूती नहीं. सीमा ने जो भी बताया, बहुत चौंकाने वाला था.
सीमा और उसी के शहर के एक दैनिक अखबार के संपादक के बीच की वार्त्ता से आप रूबरू हों : संपादक : सुप्रभात.
सीमा : नमस्ते सर.
संपादक : आप की मेल मिली.
सीमा : धन्यवाद.
संपादक : क्या करती हो?
सीमा : लेखिका हूं.
संपादक : लेखन से गुजारा हो जाता है और क्या करती हो?
सीमा : नहीं, हाउसवाइफ हूं.
संपादक : अपनी रचना और 2 फोटो भेजो, यहीं इनबौक्स में.
सीमा : मेल से नहीं?
संपादक : तुम्हारी खुली नहीं. मैं ने तो बहुत कोशिश की. इसीलिए इनबौक्स में ही आओ. वैसे तुम बहुत अच्छी हो. संपर्क बनाए रखो. बताओ, अच्छी हो या नहीं?
सीमा : पता नहीं. सीमा को यह वार्त्तालाप अजीब लगा. उस ने कुछ दिनों तक कोई कविता नहीं भेजी. फिर एक दिन उन्हीं संपादक महोदय का मैसेज आया.