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बस्ती-लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित बस्ती जिले के थाना कोतवाली क्षेत्र के बड़ेवन फ्लाईओवर पर भारी वाहनों का आनाजाना जारी था. इसी फ्लाईओवर से पश्चिम में अमहट पुल के पास सैकड़ों तमाशबीन एकत्र थे. सड़क के दूसरी ओर एक 21-22 साल के युवक की लाश पड़ी हुई थी, जिसे देख कर लग रहा था कि शायद किसी वाहन से टकराने से दुर्घटना हुई है.

मौके पर जुटी भीड़ मृतक की शिनाख्त करने की कोशिश कर रही थी. लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान पा रहा था. भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी थी.

पुलिस कंट्रोलरूम से वायरलेस के जरिए घटना की सूचना प्रसारित कर दी गई. वह इलाका थाना कोतवाली में पड़ता था. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर जा पहुंचे थे.

पुलिस ने घटनास्थल पर जुटी भीड़ से शव की शिनाख्त कराई, लेकिन कोई भी मृतक को नहीं पहचान सका. पुलिस ने लाश का गौर से मुआयना किया. लाश की दशा देख कर थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह को ऐसा नहीं लगा कि उस युवक की मौत मार्ग दुर्घटना में हुई है.

क्योंकि मृतक के शरीर पर कहीं भी खरोंच के निशान तक नहीं थे, जबकि दुर्घटना में लाश की स्थिति भयावह हो जाती है. यही बात संदेह पैदा कर रही थी. मृतक के सिर के पीछे चोट लगी थी, जिसे देख कर ऐसा लग रहा था कि मृतक की हत्या कहीं और कर के हत्यारों ने लाश यहां फेंकी हो.

लाश की जामातलाशी लेने पर उस की पैंट की जेब से आधार कार्ड बरामद हुआ. आधार कार्ड मृतक का ही था, उस पर उस का नाम विवेक चौहान पुत्र शिव गोविंद चौहान निवासी बरगदवां, चिल्लुपार, गोरखपुर लिखा था.

शव की शिनाख्त हो जाने से पुलिस ने थोड़ी राहत की सांस ली. लेकिन पुलिस ने यह बात पक्की कर ली थी कि युवक की हत्या कहीं और कर के हत्यारों ने पुलिस को गुमराह करने के लिए लाश यहां फेंक दी थी.

पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. उस के बाद थाना लौट कर विजयेंद्र सिंह ने कागजी काररवाई कराई. तब तक आधा दिन बीत गया था. यह घटना 10 मार्च, 2018 की सुबह की थी.

थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह को काम से जैसे ही थोड़ी फुरसत मिली, वैसे ही एक फरियादी आ गया. फरियादी का नाम विजयपाल चौहान था. विजयपाल के साथ 2 अन्य लोग भी आए थे. वे इसी थाने के मूड़ाघाट गांव के रहने वाले थे. बातचीत में पता चला कि विजयपाल की बेटी किरन, बीती रात से रहस्यमय तरीके से गायब थी.

10 मार्च की सुबह जब किरन घर में कहीं दिखाई नहीं दी तो सब परेशान हो गए. पूरा घर छान मारा गया. पड़ोसियों के घर जा कर पता लगाया गया, लेकिन किरन का कहीं पता नहीं चला.

जवान बेटी के इस तरह अचानक रहस्यमय ढंग से गायब हो जाने से पूरा परिवार परेशान था. विजयपाल चौहान बडे़ बेटे गोलू उर्फ शंभू और छोटे भाई जनार्दन के साथ बेटी की गुमशुदगी की फरियाद ले कर कोतवाली थाना पहुंचा.

विजयपाल चौहान की बात सुन कर थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह चौंके. उन्होंने विजयपाल चौहान से गुमशुदगी की तहरीर ले कर उसे घर भेज दिया. पुलिस ने किरन की गुमशुदगी दर्ज कर के आगे की काररवाई शुरू कर दी.

शाम को कोतवाली पुलिस को हाइवे से सटे पुराने आरटीओ कार्यालय के पास खेत में एक युवती की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. उस की हत्या ईंट मारमार कर की गई थी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. 2-2 लाशें मिलने से शहर में सनसनीफैल गई थी.

युवती की लाश के पास काफी लोग एकत्र थे. देखने से युवती 19-20 साल की लग रही थी. लाश की स्थिति से ऐसा लगता था जैसे युवती की हत्या कहीं और कर के हत्यारों ने लाश ठिकाने लगाने के लिए यहां ला कर फेंकी हो. फ्लाईओवर के पास सुबह मिली लाश की दशा जैसी ही हालत इस लाश की भी थी.

पुलिस ने लाश का मुआयना किया. मृतका के दोनों पैरों की चप्पलें लाश से थोड़ी दूरी पर इधरउधर पड़ी थीं. हत्यारों ने सिर पर ईंट मारमार कर उसे मौत के घाट उतारा था. ऐसी ही चोट सुबह मिली युवक की लाश के सिर पर मौजूद थी. पुलिस सोच रही थी कि कहीं दोनों लाशों का आपस में कोई संबंध तो नहीं है.

चप्पलें मृतका की ही थीं. पुलिस ने बतौर साक्ष्य चप्पलों को कब्जे में ले लिया. इस के बाद पुलिस और सबूत ढूंढने में जुट गई. इसी बीच भीड़ में से एक युवक ने लाश को पहचान लिया. उस ने बताया कि लाश मूड़ाघाट के रहने वाले विजयपाल चौहान की बेटी किरन की है.

इतना ही नहीं उस युवक ने कोतवाल विजयेंद्र सिंह को एक ऐसी जानकारी दी, जिसे सुनते ही वे उछल पडे़. युवक ने बताया कि सुबह के समय फ्लाईओवर के पास जिस विवेक चौहान की लाश बरामद हुई थी, वह मृतका किरण का प्रेमी था.

यह सुन कर विजयेंद्र सिंह को समझते देर नहीं लगी कि दोनों हत्याओं के पीछे जरूर विजयपाल चौहान का ही हाथ रहा होगा. वह यह भी समझ गए कि यह मामला प्रेमप्रसंग से जुड़ा हुआ है और विजयपाल को पूरे मामले की जानकारी होगी.

विजयेंद्र सिंह ने 2 सिपाहियों को मूड़ाघाट भेज कर लाश की शिनाख्त कराने के लिए विजयपाल को मौके पर बुलवा लिया. विजयपाल के साथ उन का बेटा और छोटा भाई भी साथसाथ आए थे. विजयपाल युवती को देख कर पहचान गए, वह उन की बेटी किरन चौहान थी जो बीती रात रहस्यमय तरीके से गायब थी.

लाश देख कर विजयपाल चौहान, उन का बेटा और छोटा भाई दहाड़ मार कर रोने लगे. पुलिस ने उन्हें किसी तरह शांत कराया. लाश का पंचनामा भर कर पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. विजयेंद्र सिंह अपनी टीम के साथ थाने लौट आए. पुलिस ने किरन की गुमशुदगी को हत्या की धारा (302) में तरमीम कर दिया, जिस में अज्ञात हत्यारों को आरोपी बनाया गया.

मौकाएवारदात पर पुलिस को जो सूचना मिली थी, वह उस ने गोपनीय रखी ताकि घटना के असल कारणों का पता लगा कर मुलजिमों को आसानी से सलाखों के पीछे पहुंचाया जा सके. थानाप्रभारी विजयेंद्र सिंह ने विजयपाल को कानोंकान भनक नहीं लगने दी कि वे घटना की तह तक पहुंच गए हैं.

अगले दिन पुलिस को विवेक चौहान की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. रिपोर्ट में मौत की वजह हैड इंजरी बताया गया था. हत्यारों ने किसी नुकीली और वजनदार चीज से वार कर के उसे मौत के घाट उतारा था. यही नहीं हत्यारों ने पुलिस को गुमराह करने के लिए विवेक की लाश को फ्लाईओवर के पास फेंक दिया था, ताकि पुलिस इसे दुर्घटना मान ले और हत्यारे साफ बच निकलें.

विवेक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और किरन की हत्या को ले कर सीओ (सदर) पवन कुमार गौतम काफी सक्रिय थे. दोहरे हत्याकांड की निगरानी सीओ गौतम ही कर रहे थे. पुलिस ने हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए किरन के मोबाइल की काल डिटेल्स निकवाई.

काल डिटेल्स से पता चला कि उस ने सब से ज्यादा फोन एक ही नंबर पर किए थे. उसी नंबर पर 9 मार्च, 2018 की रात 10 बजे के करीब भी किरन की बात हुई थी.

वह नंबर विवेक का निकला. जांच में यह भी पता चला कि विवेक विजयपाल के साढ़ू का बेटा था. विवेक और किरन मौसेरे भाईबहन थे. फिर भी उन के बीच सालों से प्रेमसंबंध था.

9 मार्च की रात विवेक चौहान को मूड़ाघाट गांव में देखा गया था. वह अपने मौसा के घर आया था. उस के बाद से वह गायब था. अगले दिन उस की लाश बरामद हुई थी. पुलिस के लिए यह सूचना पर्याप्त थी. इस से पुलिस का यह शक यकीन में तब्दील हो गया कि इस घटना में विजयपाल चौहान और उस के परिवार का ही हाथ है.

विजयेंद्र सिंह ने किरन की हत्या के संबंध में पूछताछ के लिए विजयपाल, उस के बेटे गोलू उर्फ शंभू और छोटे भाई जनार्दन को थाने बुलवा लिया.

सीओ (सदर) पवन कुमार गौतम थाने में पहले से मौजूद थे. थानाप्रभारी ने विजयपाल से सवाल किया, ‘‘क्या बता सकते हो कि कल फ्लाईओवर के पास जो लाश बरामद हुई थी, किस की थी?’’

‘‘साहब, मुझे क्या पता वो किस की लाश थी?’’ विजयपाल चौहान ने गंभीरता से जवाब दिया.

‘‘सच कहते हो तुम, भला तुम्हें कैसे पता होगा कि वह लाश किस की थी. तुम्हें तो उस के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है.’’

‘‘हां साहब, सचमुच मुझे उस लाश के बारे में कोई जानकारी नहीं है और न ही मैं उसे पहचानता हूं.’’ विजयपाल ने उत्तर दिया.

‘‘ठीक है, कोई बात नहीं चलो मैं ही तुम्हारी कुछ मदद कर देता हूं.’’ विजयेंद्र सिंह ने व्यंग्य कसते हुए कहा, ‘‘किसी विवेक चौहान उर्फ रामू को जानते हो?’’ विजयपाल से सवाल कर के उन्होंने उस के चेहरे पर अपनी तीखीं नजरें गड़ा दीं. उन की सवालिया नजरों को देख कर विजयपाल एकदम से सकपका गया.

‘‘साहब, आप तो मुझे ऐसे देख रहे हैं, जैसे मैं ने ही उस की हत्या की है.’’ विजयपाल बोला.

‘‘हम ने कब कहा कि तुम ने उस की हत्या नहीं की है.’’ इस बार सीओ गौतम बोले, ‘‘भलाई इसी में है कि तुम अपना जुर्म कबूल कर लो और सचसच बता दो कि तुम ने विवेक की हत्या क्यों की? वादा करता हूं, मैं सरकार से सिफारिश करूंगा कि तुम्हें कम से कम सजा हो.’’

‘‘हां, साहब. मैं ने ही रामू की हत्या की है.’’ विजयपाल सीओ (सदर) के पैरों को पकड़ कर गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘‘साहब मुझे माफ कर दीजिए, मुझे बचा लीजिए, मैं ऐसा नहीं करना चाहता था, लेकिन हालात से मजबूर हो कर मुझे यह कदम उठाना पड़ा. रामू ने मेरी इज्जत की बखिया उधेड़ कर रख दी थी. लाख समझाने के बावजूद भी वह मेरी बेटी का पीछा नहीं छोड़ रहा था. उस दिन तो उस ने हद ही कर दी और…’’ भावावेश में आ कर विजयपाल चौहान पूरी कहानी सुनाता चला गया.

विजयपाल चौहान द्वारा अपना जुर्म कबूल कर लेने के बाद उस के बेटे गोलू उर्फ शंभू और भाई जनार्दन ने भी अपनाअपना गुनाह कबूल कर लिया. दोनों ने स्वीकार किया कि विवेक और किरन की हत्या में उन्होंने विजयपाल का साथ दिया था. 36 घंटे के भीतर जिले को दहला देने वाली 2-2 सनसनीखेज हत्याओं का पर्दाफाश हो चुका था.

विवेक किरन हत्याकांड के परदाफाश पर पुलिस कप्तान नरेंद्र कुमार सिंह ने पुलिस टीम को 5 हजार रुपए का इनाम देने की घोषणा की. पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत के सामने पेश कर के उन्हें जेल भेज दिया. आरोपियों से की गई पूछताछ के आधार पर कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

विजयपाल के परिवार में कुल 5 सदस्य थे. पतिपत्नी और 3 बच्चे. 3 बच्चों में 2 बेटे थे गोलू उर्फ शंभू और गुलाब तथा एक बेटी थी किरन, जिस की उम्र 20 वर्ष थी. विजयपाल प्राइवेट नौकरी करता था. तीनों संतानों में किरन दूसरे नंबर की औलाद थी. किरन चंचल और हंसमुख स्वभाव की युवती थी. वह बीए द्वितीय वर्ष में पढ़ रही थी. गांव से कालेज वह साइकिल से जाती थी.

किरन की मौसी परिवार सहित गोरखपुर के बड़हलगंज के चिल्लुपार विधानसभा के बरगदवा में रहती थी. उस का एक ही एकलौता बेटा रामू उर्फ विवेक था. विवेक 21-22 साल का गबरू जवान था. साढ़े 5 फीट लंबा और स्मार्ट.

विवेक की अपनी कोई बहन नहीं थी. रक्षाबंधन के अवसर पर उसे बहन की कमी काफी खलती थी. विवेक की मां से बेटे की मायूसी देखी नहीं जाती थी. इसलिए विवेक की मां सुमन अपनी बड़ी बहन की बेटी किरन को रक्षाबंधन पर अपने यहां बुला लेती थी. किरन विवेक की कलाई पर राखी बांध कर अपने घर लौट आती थी. ऐसा हर साल होता था.

किरन और विवेक करीबकरीब हमउम्र थे. भाईबहन के रिश्ते के नाते दोनों के बीच काफी नजदीकियां थीं, विवेक जब भी किरन को देखता था, ख्ुशी के मारे उस का दिल बागबाग हो उठता था. किरन भी विवेक को देख कर खुश हो जाती थी.

गतवर्ष रक्षाबंधन के मौके पर विवेक ने मौसेरी बहन किरन को तोहफे में एक मोबाइल फोन दिया था. जब भी विवेक का मन किरन से बात करने का होता था, वह फोन कर लेता था और जब देखने की इच्छा होती तो बस्ती जा कर किरन से मिल आता था.

आतेजाते, मिलतेजुलते और बात करतेकराते दोनों के बीच बहनभाई का रिश्ता कब प्यार में बदल गया, न किरन जान सकी और न विवेक. उन्हें तब होश आया जब दोनों एक दूसरे के बिना तड़पने लगे. बिना एकदूसरे को देखे, बिना बात किए दोनों को चैन नहीं मिलता था. जल्दी ही दोनों समझ गए कि उन्हें एक दूसरे से प्यार हो गया है.

विवेक का हाल भी कुछ ऐसा ही था. वह मोबाइल स्क्रीन पर किरन की तसवीर देखदेख कर जीता था. उस की तसवीरों से बात कर के अपना मन बहलाता था.

नजदीकियों के चलते जल्दी ही दोनों ने एकदूसरे के साथ जीनेमरने की कसमें खा लीं और शादी करने के सपने भी बुनने लगे. दोनों यह भी भूल गए कि रिश्तों की वजह से उन के सपने कभी हकीकत का रूप नहीं ले सकते.

वे दोनों पारिवारिक रिश्तों की जिस डोर में बंधे थे, उस डोर को न तो परिवार टूटने दे सकता था और न समाज. विजयपाल तो वैसे ही मानसम्मान के मामले में और भी ज्यादा कट्टर था. वह इस रिश्ते को किसी भी हालत में कबूल नहीं कर सकता था. क्योंकि विवेक विजयपाल के लिए बेटे जैसा था.

दोनों तरफ मोहब्बत की आग बराबर लगी हुई थी. जब से विवेक को किरन से मोहब्बत हुई थी. उस का मूड़ाघाट जानाआना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था. विजयपाल और उस के दोनों बेटों ने भी इस बात को महसूस किया था. ये बात उन की समझ से परे थी कि विवेक इतनी जल्दीजल्दी क्यों आता है. जब भी वह आता था किरन से चिपका रहता था. दोनों आपस में धीरेधीरे बातचीत करते रहते थे.

विजयपाल को अपनी बेटी किरन और साढ़ू के बेटे विवेक के रिश्तों को ले कर कुछ संदेह हो गया था. वह दोनों की बात छिपछिप कर सुनने लगा. जल्दी ही उस का संदेह यकीन में बदल गया. पता चला दोनों के बीच नाजायज संबंध बन गए हैं. हकीकत जान कर विजयपाल और उस के दोनों बेटों का खून खौल उठा.

विजयपाल ने पत्नी को अप्रत्यक्ष तरीके से समझाया कि विवेक से कह दे यहां न आया करे. उस की नीयत में खोट आ गया है. इसी के साथ उस ने ये भी कहा कि वह बेटी पर ध्यान दे. उस के पांव बहक रहे हैं. हाथ से निकल गई या कोई ऊंचनीच कर बैठी तो समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे. इसलिए उसे विवेक के करीब जाने से मना कर दे.

किरन की मां शर्मिली ने समझदारी का परिचय देते हुए यह बात बेटी को सीधे तरीके से न कह कर अप्रत्यक्ष ढंग से समझाई. वह जानती थी कि बेटी सयानी हो चुकी है, सीधेसीधे बात करने से उसे बुरा लग सकता है. वैसे भी किरन जिद्दी किस्म की लड़की थी, जो ठान लेती थी वही करती थी.

किरन मां की बात समझ गई थी कि वह क्या कहना चाहती हैं. लेकिन उस के सिर पर तो विवेक के इश्क का भूत सवार था. उसे विवेक के अलावा किसी और की बात समझ में नहीं आती थी. उस के अलावा कुछ नहीं सूझता था. किरन ने मां से साफसाफ कह दिया कि वह विवेक से प्यार करती है और उसी से शादी भी करेगी. चाहे कुछ हो जाए, वह अपना कदम पीछे नहीं हटाएगी.

किरन किसी भी तरह अपने मांबाप की बात मानने को तैयार नहीं हुई. बात जब हद से आगे निकलने लगी तो शर्मिली ने अपनी बहन सुमन को फोन कर के पूरी बात बता दी. सुमन बेटे की करतूत सुन कर हैरान रह गई, लज्जित भी हुई. सुमन ने विवेक को समझाया कि ऐसा घिनौना काम कर के तो वह उन्हें जिंदा ही मार डालेगा. जो हुआ सो हुआ, अब आगे किरन से कोई बात नहीं होनी चाहिए.

विवेक और किरन जान चुके थे कि उन के प्यार के बारे में दोनों के घर वालों को पता लग चुका है. दोनों परिवार इस रिश्ते को किसी भी तरह स्वीकार नहीं करेंगे, इस बात को ले कर विवेक काफी परेशान रहने लगा था.

9 मार्च, 2018 की बात है. विवेक घर में बिना किसी को बताए किरन से मिलने बस्ती मूड़ाघाट पहुंच गया. विवेक को देख कर किरन की जान में जान आ गई. लेकिन उस के आने से न तो उस की मौसी शर्मिली खुश थी, न मौसा विजयपाल और न ही उन के दोनों बेटे. वे उसे दरवाजे से भगा भी नहीं सकते थे. लेकिन वे उसे ले कर सतर्क जरूर हो गए. उन की नजर किरन पर जमी थी. यह बात किरन और विवेक जान चुके थे, इसलिए वे खुद भी सतर्क हो गए  थे. दोनों किसी भी तरह की गलती नहीं करना चाहते थे.

बात 9 मार्च की रात 10 बजे की है. किरन को विवेक उर्फ रामू ने फोन कर के घर के पिछवाड़े खेत में बुलाया था. घर के सभी लोग खाना खा कर अपनेअपने कमरे में सोने चले गए थे. घर में चारों ओर सन्नाटा फैला था. बरामदे में कोई दिखाई नहीं दिया तो उसे विश्वास हो गया कि सब लोग सो गए है.

विवेक को घर से गए काफी समय हो गया था. वह किरन के आने का इंतजार कर रहा था. किरन भी विवेक के पास जाने के लिए व्याकुल थी. दबे पांव वह घर से खेत की ओर निकल गई. उस का छोटा भाई गुलाब अभी सोया नहीं  था. जैसे ही किरन घर से निकली, छोटे भाई गुलाब ने उसे बाहर जाते देख लिया और यह बात पिता विजयपाल को बता दी.

बेटे के मुंह से हकीकत सुन कर विजयपाल का खून खौल उठा. उस ने बड़े बेटे गोलू और छोटे भाई जनार्दन को उठाया. विजयपाल ने हाथ में टौर्च ले ली और तीनों किरन की तलाश में निकल पड़े. वे लोग यह देखना चाहते थे कि इतनी रात गए किरन अकेले कहां जा रही है.

किरन को ढूंढतेढूढंते वे मूड़ाघाट बाईपास स्थित पट्टीदार के खेत पर जा पहुंचे. उस समय रात के 12 बजे होंगे. किरन और विवेक दोनों आपत्तिजनक स्थिति में मिले. ये देखते ही तीनों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

गुस्साए विजयपाल ने विवेक को पकड़ लिया और उन लोगों ने बगल में रखी ईंट से विवेक के सिर पर ताबड़तोड़ वार कर के उसे मौत की नींद सुला दिया.

इसी दौरान किरन अपने प्रेमी विवेक की जान बचाने के लिए उन से उलझ गई. इस से उन का क्रोध और बढ़ गया. बाद में उन्होंने किरन के सिर पर ईंट से वार करकर के उसे भी मार डाला.

दोनों को मौत के घाट उतारने के बाद जब वे लोग होश में आए तो अंजाम से डर गए. सोचविचार कर तीनों ने मिल कर विवेक की हत्या को हादसा बनाने के लिए उसी रात फ्लाईओवर के पास उस की लाश खेत में फेंक कर लौट आए. उन्होंने किरन की लाश खींच कर सरसों के खेत में डाल दी थी.

इन लोगों ने कानून की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की, लेकिन उन की चालाकी धरी रह गई. आखिरकार पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड का राजफाश कर ही दिया. कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपी जेल में बंद थे. पुलिस ने तीनों के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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