हिंदुस्तान की सब से खास फसल गन्ने का दायरा बहुत बड़ा है. मूल रूप से गुड़चीनी से जुड़ी इस फसल के साथ झंझट भी तमाम होते हैं. किसानों और चीनीमिलों के मालिकों के बीच होने वाले बवाल से तो सभी वाकिफ रहते हैं, मगर अपने खेतों में भी गन्ना बोने वाले किसान चैन से नहीं जी पाते. तमाम तरह के कीड़े किसानों का जीना हराम कर देते हैं. यहां उन्हीं कीड़ों के बारे में तफसील से बताया जा रहा है. गन्ना भारत की पुरानी फसलों में से एक है. हमारी कुल  घरेलू पैदावार का लगभग 2 फीसदी भाग चीनी उद्योग का है. भारत की चीनी वाली फसलों में गन्ना खास है. देश की माली हालत को मजबूत करने और करोड़ों किसानों को पैसे से मजबूत करने में गन्ने की खेती और चीनी व गुड़ उद्योगों का खास योगदान है. इस से देश के करोड़ों किसानों व मजदूरों को रोजगार मिल रहा है.

अकेले उत्तर प्रदेश में लगभग 32 लाख किसान गन्ने की पैदावार पर गुजरबसर कर रहे हैं. गन्ने के अगोले यानी ऊपरी पत्ती वाले हरे भाग से पशुओं को हरा चारा मिलता है. वहीं गन्ना चीनी व गुड़ बनाने में काम आता है. देश में गन्ने की खेती लगभग 49 लाख हेक्टेयर जमीन में की जाती है, जिस में से अकेले उत्तर प्रदेश का रकबा तकरीबन 20 लाख हेक्टेयर है. देश में गन्ने की पैदावार लगभग 68 टन प्रति हेक्टेयर है.

खास कीड़े

गन्ना जितनी अहम फसल है, उतनी ही ज्यादा दिक्कतें उस के साथ जुड़ी हुई हैं. गन्ने के दाम व किसानों के भुगतान का मसला हमेशा सुर्खियों में रहता हे. इस से हअ कर गन्ने में लगने वाले तमाम कीड़े भी किसानों का चैन छीन लेते हैं. यहां पेश है गन्ने में लगने वाले तमाम कीड़ों की जानकारी :

दीमक

दीमक गन्ने की फसल के बढ़ने की दो स्थितियों में हमला करती है. दीमक का पहला हमला गन्ने की बोआई के बाद होता है. गन्ने के कटे सिरों व टुकड़ों पर निकली आंखों पर दीमक हमला कर के नुकसान पहुंचाती है. इस की वजह से अंकुरण कम होता है, जड़ों को बहुत नुकसान होता है और पौधों की संख्या में कमी आने से पौधों की पत्तियां पीली पड़ कर सूख जाती हैं. ये कीट जमीन के पास वाले गन्ने के नीचे पोरियों का पिथ खा जाते हैं व पिथ के स्थान पर मिट्टी भर जाने के कारण फसल की पैदावार में भारी कमी आती है. दीमक का दूसरा हमला बरसात के बाद सितंबरअक्तूबर के महीनों में होता है.

रोकथाम

* 1 किलोग्राम बिवेरिया और 1 किलोग्राम मेटारिजयम को करीब 25 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद में अच्छी तरह मिला कर छाया में 10 दिनों के लिए छोड़ दें. दीमक लगे खेत में उस के बाद प्रति एकड़ बोआई से पहले इस को छिड़कें.

* सिंचाई के समय इंजन से निकले हुए तेल की 2-3 लीटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

* दीमक का ज्यादा असर होने पर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी की 3-4 लीटर मात्रा को बालू में मिला कर प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें.

* गन्ने की कांची को बोआई से पहले इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस 0.1 फीसदी से उपचारित कर लेना चाहिए.

सफेद गिडार 

इस कीड़े की सूंड़ी जमीन के अंदर रहती है और गन्ने के जिंदा पौधों की जड़ों को खाती है. सूंड़ी द्वारा जड़ को काट देने से पूरा पौधा पीला पड़ कर सूखने लगता है. ऐसे सूंड़ी लगे पौधे उखाड़ने पर आसानी से मिट्टी के बाहर आ जाते हैं. मादा कीट संभोग के 3-4 दिनों बाद गीली मिट्टी में 10 सेंटीमीटर गहराई में अंडे देना शुरू करती है. 1 मादा करीब 10-20 अंडे देती है. अंडों से 7 से 13 दिनों के बाद छोटी सूंडि़यां निकलती हैं. इस कीट की दूसरी व तीसरी स्थिति की सूंडि़यां पौधों की बड़ी जड़ों को काटती हैं. ये जुलाई से अक्तूबर तक पौधों की जड़ों को खाती हैं.

रोकथाम

* गिडार के असर वाले पौधों पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल या कार्बारिल 50 डब्ल्यूपी की 0.2 फीसदी या क्विनालफास 25 ईसी की 0.05 फीसदी मात्रा का छिड़काव करें.

* मई के आखिर में जैसे ही पहली बरसात हो जाए और कीड़े निकलना शुरू हो जाएं, तो प्रकाश प्रपंच लगा देना चाहिए.

* सुबहसुबह खेत की गहरी जुताई कर के छोड़ दें ताकि पक्षी कीड़ों को खा सकें.

* खेत की जुताई ऐसे यंत्रों से न करें, जिन में जुताई के साथसाथ पाटा लगता हो या पाटा लगाने वाले यंत्र में 4-5 इंच की कीलें लगी होनी चाहिए ताकि कीलें सूंडि़यों को काट सकें.

* जीवाणु बेसिलस पोपिली द्वारा कीटों को खत्म किया जा सकता है. गन्ने की बोआई से पहले ब्युवेरिया ब्रोंगनियार्टी की 1.0 किलोग्राम मात्रा और मेटारायजियम एनासोप्ली की भी 1.0 किलोग्राम मात्रा को करीब 50 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद में अच्छी तरह मिला कर छाया में 10 दिनों के लिए छोड़ दें फिर उसे कीड़े लगे खेत में प्रति एकड़ बोआई से पहले इस्तेमाल करें.

* सूत्रकृमि के पाउडर से बनाए गए घोल को 2.5-5×109 आईजे प्रति हेक्टेयर की दर से गन्ने की सिंचाई के साथ कीड़ों के प्रकोप से पहले खेत में छिड़काव करने से इस कीड़े पर काबू पाया जा सकता है.

* कीटनाशी रसायन क्लोरोपायरीफास 10 ईसी, क्विनालफास 25 ईसी व इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल द्वारा गन्ने के बीजों का उपचार कर के कीड़ों पर काबू पाया जा सकता है.

* गन्ना बोने से पहले दानेदार कीटनाशी रसायन फोरेट 10 जी की 25 किलोग्राम मात्रा से प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन का उपचार कर के कीड़ों पर काबू पाया जा सकता है.

जड़ बेधक

इस कीट की मादा रात में पत्तियों के निचले भाग पर और तनों पर हलके पीले रंग के चपटे अंडे देती है. अंडे झुंड में अलगअलग होते हैं. करीब 4-5 दिनों में अंडे फूटते हैं. सूंड़ी पौधे के जमीन के अंदर वाले हिस्से पर हमला कर के घुसती है. जब पौधे छोटे होते हैं यह उसी समय नुकसान पहुंचाती है. इस से पौधा सूख जाता है. अगर पौधे को खींचा जाए तो नीचे से पूरा पौधा टूट जाता है. यही इस की पहचान है.

अगोला चोटीबेधक

इस कीट का पतंगा सफेद रंग का होता है. इस के पतंगे रात में हमला करते हैं और दिन में छिपे रहते हैं. मादा पतंगा नीचे की तरफ अंडे देती है. अंडे पीले या बादामी बालों से ढके रहते हैं. एक मादा पूरे जीवन में करीब 500 अंडे देती है. अंडा फूटने के बाद सूंड़ी पहले पत्ती में मोटे सिरे पर छेद कर के उसे खाती है, जिस से पौधे की बढ़वार रुक जाती है. फिर सूंड़ी अगोला झुंड के बीच हमला करती है. अगोला के बीच में मृत गोभ यानी डेड हर्ट बन जाता है. मृत गोभ को तोड़ा जाए तो उस से बदबू आती है. जुलाई के महीने में तीसरी पीढ़ी द्वारा हमला होने पर पौध की बढ़वार रुक जाती है और बराबर से छोटीछोटी शाखाएं निकलती हैं, जिन्हें ‘बंची टाप’ कहते हैं. ‘बंची टाप’ तीसरीचौथी पीढ़ी में पाई जाती हैं, जिन की वजह से पौधों की बढ़वार रुक जाती है और पैदावार कम मिलती है. इस कीट का हमला मार्च से शुरू हो कर नवंबर तक रहता है. इस की तीसरी पीढ़ी सब से अधिक नुकसान पहुंचाती है.

तनाबेधक

इस प्रजाति का वयस्क कीड़ा भूरे रंग का होता है. मादा कीट पहलीदूसरी और तीसरी पत्ती की निचली सतह में रात के समय अंडे देती?है. जून में बारिश इस के लिए फायदेमंद होती है. जून के आखिरी हफ्ते से मादा कीट अंडे देना शुरू कर देती है. करीब 6-7 दिनों में अंडे फूटने लगते हैं. इस कीड़े की सूंड़ी जमीन की सतह के सहारे से गन्ने के पौधे में छेद कर के तने के अंदर मुलायम तंतुओं को खाते हुए नीचे से ऊपर तक सुरंग बनाती है, जिस की वजह से बीच की कलिकाएं सूख जाती हैं और ‘डेड हर्ट’ बन जाता है, जो कि खींचने से आसानी से निकल आता है.

फसल पर इस कीट की मौजूदगी पौधों के छेदों और ‘डेड हर्ट’ की बदबू से मालूम पड़ जाती है. इस का ज्यादा प्रकोप होने पर काफी ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है.

प्ररोहबेधक

यह कीड़ा मार्च से नवंबर तक सक्रिय रहता है. यह पतंगा रात में ज्यादा सक्रिय रहता है. इस की मादा सफेद अंडे गुच्छों में देती है. 6-9 दिनों में अंडे फूटते हैं. 3-4 हफ्ते में सूंड़ी पूरी तरह विकसित हो कर तने के अंदर प्यूपा बनाती है. साल में इस की 4-5 पीढि़यां पाई जाती हैं. इस की सूंड़ी पौधे के निचले भाग पर तने में छेद करती है. इस के हमले से पत्तियों को नुकसान पहुंचता है, जिस से पूरा पौधा सूख जाता है.

पोरीबेधक

इस की मादा रात में अंडे देती है और लगातार 7-8 दिनों तक अंडे देती रहती है. यह पत्तियों के जोड़ व गहरी शिराओं में अंडे देती है. 6-7 दिनों में अंडे फूटते हैं. इस का प्यूपा अधिकतर आधी सूखी पत्तियों पर रेशम के धागों द्वारा बनाए गए कोकून में पाया जाता है. यह कीड़ा अगस्त के पहले हफ्ते में दिखाई देता है. इस से सब से ज्यादा नुकसान सितंबर के आखिर में होता है. जिस पौधे पर हमला होता है, उस की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. सूंड़ी के घुसने की जगह के ऊपर कीटमल भी पाया जाता है. सूंड़ी छाल को काट कर एक पोरी से दूसरी पोरी में घुस जाती है. सूंड़ी के शिकार हुए पौधों की पत्तियां व आधे भाग की कोमल पोरियां पीली पड़ कर सूख जाती?हैं.

गुरदासपुरबेधक

यह गन्ने को बहुत नुकसान पहुंचाने वाला कीड़ा है. यह सब से ज्यादा नुकसान जुलाईअगस्त में पहुंचाता है. मादा कीट शाम को गन्ने की पत्तियों की निचली सतह पर झुंडों में अंडे देती है शुरू में अंडे का रंग पीला या सफेद होता है, जो बाद में भूरे रंग का हो जाता है. अंडे से निकली सूंडि़यां दूसरी या तीसरी पोरी में झुंड में ऊपर से नीचे की ओर घुसती हैं. करीब 1 हफ्ते बाद ये सूंडि़यां अंदर के मुलायम भाग को खाते हुए लगातार बढ़ती रहती हैं. शुरू में गन्ने की निचली पत्तियां ही सूखती हैं और कुछ दिनों बाद पूरी मध्य कलिका ही सूख कर ‘डेड हर्ट’ बनाती है, जो जरा सा खींचने से निकल जाता है. जिस पौधे पर अगोलाबेधक कीट का हमला होता है, उस पौधे पर इस कीट का हमला भी होता है. लेकिन जिन पौधों पर इस का पहले हमला हो चुका हो, उन पर अगोलाबेधक कीट का हमला नहीं होता है.

बेधक कीटों की रोकथाम

* गरमी के दिनों में 2-3 बार गहरी जुताई करनी चाहिए.

* ट्राइकोकार्ड (ट्राइकोकार्ड कीलोनिस/जेपोनिकम) अंड परजीवी के 75000-1,00,000 प्यूपे प्रति हेक्टेयर की दर से 10 दिनों के अंतराल में छोड़ने चाहिए.

* कोटेशिया फलेवीपस (गिडार पारजीवी) के वयस्क को 2000 प्यूपा प्रति हेक्टेयर की दर से 30 दिनों के अंतराल पर छोड़ना चाहिए.

* जरूरत पड़ने पर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी की 4-5 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के 30-40 दिनों बाद सिंचाई से पहले इस्तेमाल करें.

* शूट बोरर के लिए ग्रन्यूलोसीस वाइरस का छिड़काव करना चाहिए.

* गन्ने में बोरर कीटों के लिए कोराजन का 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए.

* बीटी 1.0 किलोग्राम मात्रा को 900-1000 लीटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिनों के अंतर पर 3 बार छिड़काव करें.

* प्रकाश प्रपंच व फिरोमोन ट्रैप (5-6 फिरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से) का इंतजाम करें.

* नीम उत्पादित कीट रोग विष जैसे एनकेई या नीम कोल्ड की 5 फीसदी मात्रा का इस्तेमाल करें.

* अधिक असर होने पर फिपरोनिल 5 एससी (रिजंट) या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर, क्विनालफास 25 ईसी की 2 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर, इंडोसल्फान 35 ईसी की 2 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर, सायपरमेथ्रिन 10 ईसी की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से 20 दिनों के अंतर पर 2-4 बार छिड़कें.

पाइरिला या फड़का

वयस्क कीड़ा भूरे रंग के पंख और नुकीली चोंच वाली गन्ने की सूखी पत्तियों जैसा होता है. इस की मादा गरमियों में पत्तियों की निचली सतह और सर्दियों में पत्तियों के अन्य हिस्सों पर अंडे देती है. अंडे गुच्छों में सफेद, रोएंदार बालों से ढके रहते हैं. 8-10 दिनों में इस से अर्भक (निम्फ) निकलते हैं. शुरू में इन का रंग मटमैला सफेद होता है. अर्भक काल 4-6 हफ्ते का होता है. पाइरिला को किसान फड़के के नाम से भी जानते हैं. ऐसा देखा गया है कि इस कीट का प्रकोप 1 साल छोड़ कर तीसरे साल अधिक होता है. मादा कीट के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों का रस चूसते हैं, जिस से पत्तियां पीली व कमजोर पड़ जाती हैं. इस कीट द्वारा पत्तियों पर एक तरह का चिपचिपा पदार्थ छोड़ा जाता है, जिस पर काले रंग की फफूंद उग जाती है. इस फफूंद से पत्तियों की प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है, जिस से गन्ने की बढ़वार रुक जाती है और पैदावार में कमी आती है. पाइरिला का हमला अप्रैल महीने से शुरू होता है और जुलाई से नवंबर तक अधिक होता है. वातावरण में नमी बदलने पर इस का असर बढ़ जाता है.

रोकथाम

* पत्तियों को निम्फ निकलने से पहले अंडों सहित तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए और कम हमले वाली फसल से परजीवी वाली पत्तियां तोड़ कर अधिक पायरिला प्रभावित खेतों में लगाएं.

* प्रकाश ट्रैप अपनाएं. रात में खेत में बिजली के बल्ब, पैट्रोमैक्स या लालटेन जलाएं और उन के नीचे मिट्टी का तेल या इंडोसल्फान दवा पानी में घोल कर किसी परात या टब में रख दें.

* कीटनाशक दवाओं का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल न करें. इपीरिकेनिया, टैट्टासिटकस, लेडीबर्ड बीटल, चींटी व मकड़ी और पाइरिला के अंडों के कुदरती दुश्मनों की हिफाजत करनी चाहिए.

* इपीरिकेनिया मेलैलरेन्यूका परजीवी को ज्यादा परजीवी वाले खेतों से निकाल कर कम परजीवी वाले खेतों में लगाना चाहिए. इस के 100-120 अंडे समूह या 200-250 ककून को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छोड़ना चाहिए. वातावरण में नमी वाली स्थिति में ही इस को खेत में छोड़ना चाहिए.

* बरसात के बाद निम्फ परजीवी इपीरिकेनिया मेलैलरेन्यूका और टैटास्टिकस पायरिली सक्रिय रहता है. इसलिए इस समय कीटनाशी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

* मेटाराइजियम एनाआइसोप्ली की 10×2 बीजाणु प्रति मिलीलीटर की 1 किलोग्राम मात्रा का प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए.

सफेद मक्खी

इस का वयस्क कीड़ा बहुत छोटा यानी करीब 2.5 मिलीमीटर लंबा और 1 मिलीमीटर मोटा पीले रंग का होता है. इस की वयस्क व शिशु (बच्चा) दोनों अवस्थाएं नुकसान पहुंचाती हैं. मादा कीट गन्ने की पत्तियों की निचली सतह पर बीच की शिरा के पास सीधी लाइनों में अंडे देती है. हर अंडा .03 मिलीमीटर लंबा और पीले रंग का होता है. गरमियों में लगभग 7 दिनों और जाड़ों में लगभग 13-14 दिनों में अंडे फूटते हैं और बच्चे निकलते हैं.

आमतौर पर अधिकतर इस का हमला जुलाई से ले कर नवंबर तक होता है. बच्चे व वयस्क दोनों ही गन्ने की पत्तियों का रस चूसते हैं, जिस से पत्तियों पर घाव बन जाते हैं और उन पर कवक का हमला हो जाता है. इस  हमले से गन्ने में श्वेत मक्खी सूक्रोज की मात्रा कम हो जाती है और चीनी की मात्रा में 30 फीसदी की कमी हो जाती है. इस का हमला होने पर करीब 50 फीसदी फसल खत्म हो जाती है.

रोकथाम

* इस कीट का हमला होने पर पेड़ी की फसल नहीं लेनी चाहिए.

* नाइट्रोजन की संतुलित मात्रा का प्रयोग करना चाहिए.

* कुदरती दुश्मन परजीवी अजोटस डेहेनसिस, अमिटस अलुरोबी, इक्सटीमेकोरस डेहेनसिस व इंकरसिया प्रजातियों का इस्तेमाल करना चाहिए.

* अगस्त व सितंबर के महीनों में पत्तियों की जांच कर के कीड़े लगी पत्तियों को इकट्ठा कर के नष्ट कर दें.

* इस कीट का अधिक हमला होने पर कीटनाशी रसायन क्लोरोपायरीफास 20 फीसदी ईसी 1.5 लीटर, इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल, मोनोक्रोटोफास 36 ईसी शील चूर्ण 1.5 लीटर मात्रा को 1000 से 1200 लीटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

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