धारा सोसाइटी के फ्लैट को देख कर राधिका ने वहां शिफ्ट करने के लिए तुरंत हामी भर दी. अमन को भी वह मकान पसंद आ गया था. दिल्ली आने के बाद कई दिनों से वे मकान के लिए इधरउधर भटक रहे थे. कब तक होटल के कमरे में कैद हो कर रहते. बैंगलुरु में औफिस के पास ही अच्छा सा फर्निश्ड मकान किराए पर ले रखा था उन्होंने. दिल्ली में भी ऐसे ही मकान की तलाश में थे वे दोनों. अमन को यहां एक कंपनी में अच्छा पैकेज मिल गया था. राधिका ने उस के साथ आने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी थी. उस का विचार दिल्ली आ कर अपने लिए भी एक नई नौकरी की तलाश करना था. होटल में 15 दिन से ज्यादा हो गए थे. घर किराए पर ले कर अब वे होटल से बाहर आने को बेचैन थे. कई जगह मकान देख कर निराश होने के बाद इस फ्लैट को देख कर उन्हें तसल्ली हो गई. अमन को 2 बैडरूम के इस मकान का सलीके से लगा फर्नीचर और कमरों तथा बाथरूम की साजसज्जा आकर्षित कर रही थी, तो राधिका को मौडरेट किचन. पर इन सब से बढ़ कर जल्द ही नई नौकरी ढूंढ़ कर जौइन करने की इच्छुक राधिका को घर के साथ एक ‘सरवैंट क्वार्टर’ भी होना बेहद सुखद लग रहा था. यहां की सोसाइटी के सभी फ्लैट्स में यह व्यवस्था थी.
फ्लैट से सटा 1 कमरे का छोटा सा क्वार्टर, जिस में बाथरूम और रसोई भी. प्रवेशद्वार भी पूरी तरह अलग था सरवैंट क्वार्टर का. उन क्वार्टर्स में कामवालियां अपने परिवार सहित रही थीं. क्वार्टर के बदले में उन्हें उसी घर का काम कम पैसों में करना होता था. राधिका यह सोच कर बेहद खुश थी कि वह भी अपने फ्लैट के सरवैंट क्वार्टर में मेड को रख लेगी. फिर जौब लगने पर औफिस में निश्चिंत हो कर काम करने के साथसाथ औफिस से आते ही किचन में जुट जाने के झंझट से मुक्त हो जाएगी. जल्द ही वे उस फ्लैट में शिफ्ट हो गए. आसपड़ोस के लोग अच्छे थे. उन से पता लगा कि मेड रखने के लिए वहां के सिक्युरिटी गार्ड से संपर्क करना अच्छा होगा, क्योंकि उस के पास वे लोग अपना मोबाइल नंबर दे जाते हैं, जो सरवैंट क्वार्टर्स में रह कर घर के काम करने के इच्छुक होते हैं.
सिक्युरिटी गार्ड को मेड के लिए सूचित करते ही उन के यहां क्वार्टर लेने वालों का तांता लग गया. बाहर बस्ती में छोटे से कमरे के लिए भी इन लोगों को क्व5-6 हजार तक किराया देना पड़ता था और वह भी सुविधारहित मकान का. अत: साफसुथरी सोसाइटी में क्वार्टर और बदले में केवल एक ही घर का काम, इसलिए बहुत सी कामवालियां तैयार थीं आने को. राधिका की कई लोगों से बात हुई. पर उसे संतुष्टि नहीं हो पा रही थी. एक महिला उसे जंची भी, पर उस का अपना बच्चा ही 2 महीने का था. अत: राधिका को लग रहा था कि न जाने वह काम में पूरा ध्यान लगा पाएगी या नहीं?
‘‘इतने लोग आ चुके हैं अब तक, पर कोई भी ढंग का नहीं… पता नहीं दिल्ली में उसे मनपसंद बाई मिल पाएगी या नहीं’ सोच कर निराश हुई राधिका रसोई में घुसी ही थी कि एक बार फिर डोरबैल बज उठी. कुछ उत्सुक, कुछ परेशान सी राधिका ने दरवाजा खोला. सामने एक अधेड़ उम्र की स्त्री, लंबी सी चोटी आगे किए. साफसुथरी सूती साड़ी पहने खड़ी हुई दिखाई दी. राधिका की ओर देख कर उस ने मुसकराते हुए नमस्ते की.
राधिका उस स्त्री से कुछ पूछती उस से पहले ही वह बोल उठी, ‘‘मैडम हम बिमला हैं. हमें बहुत जरूरत है कमरे की. हमारा आदमी तो इस दुनिया में नहीं. बस 2 लड़कियां हैं. दोनों की शादी हो चुकी है. हम पास ही किराए के कमरे में रहते हैं. अभी तक हम कई घरों का काम करते आए हैं, पर अब घूमघूम कर काम नहीं होता हम से. एक घर में रहेंगे और वहीं का काम करेंगे… काम को ले कर कोई शिकायत नहीं होगी हम से. हम खूब काम करते हैं.’’ राधिका को वह तौरतरीके से सरल स्वभाव की लगी. पूरी तरह आश्वस्त होने से पहले उस ने अपने मन में उठ रही शंका को शांत करने के उद्देश्य से पूछ लिया, ‘‘एक बात बताओ, तुम तो जानती हो न कि सरवैंट क्वार्टर तुम्हें मिलेगा तो उस के बदले काम के पैसे कम मिलेंगे. फिर रोज का अपना खर्चा कैसे चलाओगी तुम?’’
‘‘आप उस की चिंता न करो मैडम… हमें तो एक भी पैसा नहीं चाहिए. आप कमरा दे दो बस. हमारे गांव से हर 6 महीने बाद अनाज आता है. फिर हमारे दोनों दामाद भी बहुत अच्छे हैं, रुपयोंपैसों से वे भी मदद करते रहते हैं हमारी.’’ राधिका को बिमला काम पर रखने के लिए अनुकूल लगी. ‘सारा दिन अकेली ही होगी बिमला… अपने घर का ज्यादा काम तो होगा नहीं उसे…इसलिए मेरा घर ठीक से देख लेगी,’ सोच कर प्रसन्न होती हुई राधिका ने क्वार्टर की चाबी बिमला को थमा दी.
2 दिन बाद बिमला अपना सामान ले कर आ गई और राधिका से काम समझ कर सब काम ठीक से करने लगी. राधिका के 15 दिन बहुत चैन से बीते. इसी बीच वह 2 कंपनियों में इंटरव्यू भी दे आई. पर कुछ दिनों बाद ही बिमला की कुछ बातें उसे खटकने लगीं.
गांव से अनाज आने की बात कहने वाली बिमला ने लगभग रोज राधिका से कुछ न कुछ मांगना शुरू कर दिया. धीरेधीरे उस की हिम्मत बढ़ने लगी और वह अपनेआप ही डब्बे में से आटा, चावल, दाल और फ्रिज में से दूध और सब्जियां निकाल लेती.
एक दिन राधिका से रहा नहीं गया. उस ने विरोध किया तो बिमला तपाक से बोली, ‘‘हम कोई चोरी थोड़े ही कर रहे हैं. आप के सामने ही तो निकाला है. अब यहां काम कर रहे हैं और गांव से कोई सामान देने नहीं आया तो यहीं से लेंगे और कहां जाएंगे?’’ राधिका को गुस्सा तो बहुत आया पर वह चुप हो गई.
कुछ दिन और बीते. फिर बिमला की मांगें बढ़ने लगीं. कभी उसे आने वाले मेहमानों के सामने बिछाने के लिए नई चादर चाहिए होती तो कभी शादी में जाने के लिए साड़ी. इतना ही नहीं राधिका पर वह रोब भी गांठने लगी. प्रतिदिन किसी न किसी बात पर वह राधिका को पुराने रीतिरिवाजों का महत्त्व समझाने लगती. कभी वह उसे मांग में सिंदूर न भरने के लिए टोकती तो कभी किसी त्योहार पर पूजापाठ न करने पर. राधिका काम के विषय में कुछ कहती तो वह अनसुना कर देती. धीरेधीरे किसी न किसी बहाने वह पैसे भी मांगने लगी. मना करने पर उस की त्योरियां चढ़ जातीं. राधिका समझ नहीं पा रही थी कि क्या किया जाए? उस दिन राधिका ने फेसपैक लगाया हुआ था और नहाने के लिए बाथरूम में घुस ही रही थी कि डोरबैल बज उठी. बिमला के पास रसोई में जा कर राधिका ने उसे दरवाजा खोल कर देखने को कहा. बिमला ने तुरंत हाथ में ली हुई कटोरी जोर से सिंक में फेंकी और हाथ धो कर दनदनाती हुई दरवाजा खोलने चल दी.
राधिका को उस का व्यवहार बहुत खटक रहा था. थोड़ी देर बाद बिमला हाथ में एक पैकेट लिए आई और राधिका को थमाते हुए बोली, ‘‘लो, जल्दी पकड़ो मैडमजी… हमें भी काम खत्म करना है…सारा दिन यहीं लगा देंगे क्या?’’ राधिका को बुरा तो बहुत लगा पर गुस्से को पीते हुए उस ने पैकेट खोल कर अपनी नई चप्पलें निकालीं, जो औनलाइन मंगवाई थीं.
चप्पलें देखते ही बिमला बोली, ‘‘लो, शू रैक तो पहले ही भरा पड़ा है. एक और मंगवा ली आप ने. फालतू खर्च. पैसा तो आप लोगों के पास बहुत है पर गरीब जरा सा कुछ ले ले तो जान निकल जाती है.’’ राधिका का गुस्सा अब 7वें आसमान पर था. बिमला के बदलते व्यवहार से पहले ही परेशान राधिका ने उसे तुरंत काम छोड़ने और क्वार्टर खाली करने का आदेश सुना दिया.
बिमला गुस्सा दिखाते हुए बोली, ‘‘आज ही कमरा खाली कर हम अपनी लड़की के पास चले जाएंगे… रखना किसी और को… पता लग जाएगा आप को और फिर दनदनाती हुई घर से निकाल कर सरवैंट क्वार्टर में घुस गई. कुछ देर बाद ही उस ने अपनी बेटी और दामाद को बुला कर सामान समेटा और 2 घंटे के भीतर कमरा खाली कर दिया.
राधिका का गुस्से और परेशानी से बुरा हाल था. किसी तरह उस ने अधूरा काम निबटाया और आराम करने लेट गई. थकान के कारण जल्द ही उस की आंख लग गई. शाम को डोरबैल की आवाज से ही नींद टूटी. दरवाजा खोला तो बाहर एक लजाती हुई 23-24 वर्षीय युवती खड़ी थी. देखने से वह नवविवाहिता लग रही थी. उस की कमसिन मुसकराहट देख कर राधिका अपनी सारी परेशानी भूल गई. उस के पास ही युवक भी खड़ा था, जो उस का पति जान पड़ता था.
‘‘मेम साहब, मेरा नाम सीमा है, ये सतीश… मेरे… हम कमरे के लिए आए हैं.’’ सीमा का वाक्य पूरा होते ही सतीश ने नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़ दिए.
‘‘ओके. पर तुम्हें कैसे पता लगा कि मुझे काम पर रखना है किसी को? आज ही तो गई है मेरी मेड. अभी तो कमरे को ले कर मैं ने किसी से कुछ कहा ही नहीं,’’ राधिका ने दोनों को अंदर बुलाते हुए कहा. दोनों अंदर आ कर दीवार से सट कर खड़े हो गए.
‘‘मेम साहब, वे मेरी बूआजी हैं, जो आप के यहां काम करती थीं. आज वे गुस्से में कुछ ज्यादा बोल गई थीं, अब पछता रही हैं. आप तो दोबारा उन्हें रखेंगी नहीं, इसलिए मुझे भेजा है उन्होंने,’’ बिना किसी लागलपेट के सीमा ने सब सच बोल दिया. ‘‘अच्छा, बिमला ने भेजा है तुम्हें… चलो ठीक है… काम कर तो पाओगी न सब?’’ राधिका उस की साफगोई से खुश हो कर उसे सरवैंट क्वार्टर में रखने का निर्णय कर चुकी थी.
‘‘मेम साहब, अपनी जेठानी के पास रह रही हूं आजकल. वे भी इसी कालोनी के एक सरवैंट क्वार्टर में रहती है… आप को सच्ची बताऊं तो काम तो सारा वहां भी मैं ही कर रही हूं… काम की परेशानी नहीं है मुझे बस सोने
में बहुत दिक्कत हो रही है वहां हमें. कमरा एक है और जेठजेठानी, उन के 2 बच्चे और ऊपर से 2 जने हम. 1 महीना बीत गया वहीं सब के साथ सोतेसोते…’’
दोनों को प्यार के कुछ पल साथसाथ बिताने को तरसते देख कर राधिका को उन पर ही प्यार आ गया. दोनों की ओर देख मुसकराते हुए राधिका ने क्वार्टर की चाबी सीमा को थमा दी. वे दोनों एक फोल्डिंग पलंग और कुछ कपड़ों के साथ रात को क्वार्टर में आ गए. अगले दिन सतीश सुबहसुबह अपने काम पर चला गया और सीमा राधिका के पास आ गई. आते ही गुनगुनाते हुए उस ने काम करना शुरू कर दिया. बीचबीच में वह राधिका से बातें भी करने लगती थी.
सीमा के व्यवहार और काम से आश्वस्त राधिका लैपटौप ले कर नौकरी की नई संभावनाओं की खोज में लगी रहती. सीमा और राधिका को एकदूसरे का साथ बहुत अच्छा लग रहा था.
रविवार को सीमा अकसर आधे दिन की छुट्टी ले कर सतीश के साथ घूमने, फिल्म देखने या किसी रिश्तेदार से मिलने चली जाती थी. उस दिन वह खूब मेकअप करती. जब वह तैयार होती तो उसे देख कर कोई कह नहीं सकता था कि वह बाई है. तरहतरह के शेड्स की लिपस्टिक, मसकारा, स्टोन की बिंदियां… बहुत कुछ था उस के पास. ब्लाउज भी अच्छीअच्छी डिजाइन के पहनती थी वह… उस का इतना खर्च देख कर राधिका कभीकभी अचरज में पड़ जाती थी.
सीमा इस विषय में कभी बात करती तो वह कहती, ‘‘अभी नईनई शादी हुई है. खर्चा है ही क्या हमारा… थोड़ा सजसंवर लेते हैं तो हमारे इन को भी अच्छा लगता है. यही सारा सामान खरीदने की जिद करते हैं.’’ सीमा को घर का सारा काम सौंप कर राधिका पूरी तरह निश्चिंत थी. अब जल्द ही वह नई जौब पा लेना चाहती थी.
उस दिन नौकरी की साइट्स देखतेदखते वह बोर हो गई तो औनलाइन शौपिंग की साइट पर चली गई. ‘कोई चीज पसंद आए इस से पहले ही क्रैडिटकार्ड ले आती हूं’, सोचती हुई राधिका ड्राइंगरूम की ओर चल दी, जहां टेबल पर कल से उस का पर्स रखा था. ड्राइंगरूम में पहुंचते ही वह सन्न रह गई. सोफे पर बैठी सीमा उस के पर्स की छानबीन में लगी थी. उस की पीठ राधिका की ओर थी, इसलिए वह राधिका को देख नहीं पाई. जब
तक राधिका वहां पहुंचती, सीमा ने कुछ निकाल कर अपने ब्लाउज में रख लिया. राधिका दबे पांव वहां पहुंची और सीमा को पीछे से पकड़ लिया. इस प्रकार रंगे हाथों पकड़े जाने से सीमा हड़बड़ा गई.
‘‘मेम साहब, मुझे माफ कर दो… मैं कभी चोरी नहीं करती… आज तबीयत ठीक नही थी… डाक्टर को दिखाना था, इसलिए ये पैसे… अब कभी ऐसा नही करूंगी,’’ सीमा क्व5 सौ का नोट अपने ब्लाउज से निकाल कर राधिका को देती हुई बोली. ‘‘बीमार हो तुम? फिर बताया क्यों नहीं मुझे… सुबह से तो खूब खुश लग रही थी… उफ, अब मेरी समझ आ रहा है कि मेरे शैंपू और कंडीशनर्स इतनी जल्दी क्यों खत्म होने लगे थे? मेरी कुछ लिपस्टिक्स कुछ दिनों से क्यों नहीं मिल रहीं और काम के बीच में बहाने बना कर कुछ देर के लिए तुम क्वार्टर में क्यों चली जाती थी. मैं अब कुछ नहीं सुनूंगी, तुम बस अभी मेरे घर से चली जाओ,’’ राधिका गुस्से से आगबबूला हो रही थी, वह सोच नहीं पा रही थी कि इस गुनाह के लिए सीमा की शिकायत पुलिस में करनी चाहिए या नहीं.
शाम को अमन के आने पर राधिका ने देखा कि सरवैंट क्वार्टर का दरवाजा खुला है. सीमा और सतीश वहां से चुपचाप अपना सामान ले कर गायब हो चुके थे. सीमा की कलई खुल जाने से राधिका खुश तो थी पर फिर वही मेड की समस्या मुंह बाए खड़ी थी. ‘इस बार जल्दबाजी नहीं करूंगी. सोच-समझ कर फैसला लूंगी,’ सोचते हुए उस ने सिक्युरिटी गार्ड को फोन कर क्वार्टर के लिए इच्छुक लोगों को भेजते रहने को कहा.
रविवार के दिन राधिका को न अमन के औफिस जाने की चिंता होती और न खुद के कहीं इंटरव्यू के लिए जाने की. उस दिन भी रविवार था. सुबह की चाय पीते हुए वह अमन से गप्पें मार रही थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. ‘‘अरे, सुबह के 8 बजे कौन आ गया?’’ नाक चढ़ा कर राधिका अमन को देखते हुए बोली.
‘‘देखता हूं मैं,’’ कह कर अमन दरवाजा खोलने चल दिया. ‘शायद कोई सरवैंट क्वार्टर की बात करने आया होगा.’ सोच कर राधिका भी अमन के पीछेपीछे हो ली.
अमन ने दरवाजा खोला. सामने 65-70 वर्षीय वृद्ध दंपती खड़े थे. साथ ही छोटे से कद की गौरवर्णीय 21-22 वर्षीय युवती भी थी. अमन को देखते ही वृद्ध ने हाथ जोड़ करुण स्वर में कहा, ‘‘साहब, मैं रिटायर्ड सरकारी चपरासी हूं. हम लोग बहुत सालों से बसंत रोड पर एक परिवार के साथ उन के सरवैंट क्वार्टर में रहे हैं. भाग्यश्री उन के घर का सारा काम करती है. इसी महीने उन साहब का यहां से ट्रांसफर हो गया, इसलिए घर खाली करना है. मेरी पैंशन से खानापीना तो हो जाता है, पर हम किराए पर कमरा नहीं ले सकते. मकान का किराया बहुत ज्यादा है आजकल… और फिर जवान लड़की का साथ… आप तो सब समझते ही होंगे. बहुत जरूरत है हमें सरवैंट क्वार्टर की.’’ ‘‘भाग्यश्री बेटी है तुम्हारी?’’ लड़की और दंपती के बीच उम्र के अंतराल को देख कर राधिका संदेह में थी.
‘‘मैडम न पूछो… यह भाग्यश्री नहीं, अभाग्यश्री है. पोती है हमारी. इस के पैदा होते ही इस की मां चल बसी थी. फिर कुछ साल बाद हमारा बेटा भी बीमार हो कर…’’ वृद्ध का गला रुंध गया. ‘‘अरे, आप दोनों ने अपना नाम तो बताया ही नहीं?’’ बात बदलने के इरादे से राधिका बोली.
‘‘जी मैं बनवारी और यह शारदा,’’ अपनी पत्नी की ओर इशारा करते हुए वह बोला. उन के विषय में थोड़ाबहुत और जान कर राधिका भीतर चली गई. अमन भी उस के पीछेपीछे अंदर आ गया. दोनों को ही बनवारी परिवार को कमरा देना कुछ गलत नहीं लगा. अमन बनवारी को चाबी देते हुए जल्दी आने को कहा.
रात को ही वे सामान के साथ कमरे में आ गए. कई दिन काम का बोझ उठातेउठाते राधिका भी थक गई थी, इसलिए बनवारी परिवार के आते ही उस ने भी चैन की सांस ली. भाग्यश्री के रूप में उसे एक अच्छी मेड मिलने की पूरी आशा थी.
अगले दिन सुबह बनवारी और शारदा उन के घर आ गए और काम करना शुरू कर दिया. भाग्यश्री के न आने का कारण पूछने पर बनवारी ने कहा कि उसे बुखार आ रहा है. काम निबटतेनिबटते दोपहर हो गई. बनवारी दंपती थक कर चूर दिख रहे थे. अगले दिन भी वे दोनों ही काम करने आए. इसी तरह 15 दिन बीत गए. राधिका को इतने वृद्ध लोगों से काम करवा कर ग्लानि हो रही थी. इस के अतिरिक्त काम सफाई से भी नहीं हो पा रहा था.
‘कहीं ऐसा तो नहीं कि भाग्यश्री कहीं और काम करने जा रही हो और उस के बहाने इन लोगों ने मेरा सरवैंट क्वार्टर ले लिया हो?’ राधिका के मन में संदेह उत्पन्न हो रहा था. ‘इस तरह कब तक चलता रहेगा? क्या सच में बीमार है भाग्यश्री’ सोच कर एक दिन राधिका ने सरवैंट क्वार्टर का दरवाजा खटखटा दिया. बनवारी
व शारदा उस समय राधिका के घर के काम में व्यस्त थे. दस्तक होते ही भाग्यश्री दरवाजा आधा खोल कर प्रश्न भरी निगाहों से राधिका की ओर देखने लगी.
‘‘तुम तो भलीचंगी हो, काम पर क्यों नहीं आती?’’ राधिका ने जानना चाहा.
‘‘वह… ऐसा है… मेरे… मुझे…’’ भाग्यश्री की जबान लड़खड़ा गई. राधिका और कुछ बोले बिना वापस चल दी. वह अभी मुड़ी ही थी कि एक 30-35 वर्षीय व्यक्ति क्वार्टर से निकल कर लिफ्ट की ओर भागा. यह दृश्य देख कर राधिका आश्चर्यचकित रह गई. भाग्यश्री की पहेली सुलझने के स्थान पर और उलझ रही थी. परेशान सी राधिका ने इस पहेली को सुलझाने का फैसला कर लिया.
अब प्रतिदिन बनवारी और शारदा के काम पर आते ही वह घर के बाहर जा कर सरवैंट क्वार्टर के आसपास मंडराती रहती. उस ने पाया कि लगभग प्रत्येक दिन ही उस कमरे में कोई पुरुष आता है. आश्चर्य की बात यह थी कि वह कोई एक पुरुष नहीं था.
अलगअलग आयु के पुरुषों को उस ने वहां आतेजाते देखा. राधिका का दिल बैठा जा रहा था. उसे डर था कि कहीं देहव्यापार जैसा घृणित कार्य तो नहीं हो रहा यहां? जब अमन से उस ने इस विषय में चर्चा की तो दोनों ने बनवारी परिवार का परदाफाश करने का निश्चय किया. अगले दिन अमन ने औफिस से छुट्टी ले ली थी. उस ने सरवैंट क्वार्टर में किसी को घुसता देख उसी समय बनवारी से क्वार्टर में चलने को कहा. बहाना बना दिया कि वहां एक छोटी से अलमारी रखवानी है. सुनते ही बनवारी टालमटोल करने लगा. यह देख अमन ने बनवारी को डांटना शुरू कर दिया.
राधिका ने शारदा से भाग्यश्री के अब तक काम पर न आने की असली वजह जाननी चाही. अमन के गुस्से से भरे चेहरे को देख कर बनवारी फूटफूट कर रोने लगा. शारदा हाथ जोड़ते हुए बनवारी से बोली, ‘‘इन दोनों को सच बता दो… हम से अब सहा नहीं जाता.’’
बनवारी ने अपनेआप को संभालते हुए बोलना शुरू किया, ‘‘साहब… भाग्यश्री की शादी हो चुकी है. हमारा दामाद बहुत बुरा आदमी है. खूब शराब पीने की आदत है उसे. जब शादी की थी तब चाय की दुकान थी उस की छोटी सी. शादी के बाद उस ने हमारी लड़की की सोने की अंगूठी, चेन, झुमके सब कुछ बेच दिया. फिर जब दुकान भी बिक गई तो भाग्यश्री से गलत काम करवाने लगा. हम अपनी लड़की को वापस घर ले आए. फिर भी उस ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा. वहां भी लोगों को भेजता रहता… आप ने जब कमरा देने को हां कह दी तो हम तुरंत वहां से भाग निकले, पर उस ने पता लगा लिया और यहां भी… बनवारी फिर रोने लगा. ‘‘तुम ने पुलिस में शिकायत क्यों नहीं की?’’ अमन ने परेशान हो कर पूछा.
‘‘हमें उस ने धमकी दी थी कि पुलिस के पास जाएंगे तो वह हमारी लड़की को मरवा देगा,’’ शारदा ने भयभीत होते हुए बताया. ‘‘अरे, वह अकेला इन सब को डराता रहा और ये उस की हर बात मानते रहे, अमन राधिका की ओर देखते हुए बोला.’’
‘‘साहब, हमारा भाग्यश्री के अलावा कोई नहीं है… बहुत प्यार करते हैं हम दोनों इसे… उस पापी आदमी ने हमारा जीवन नर्क बना दिया है, बनवारी ने करुण स्वर में कहा.’’ ‘‘हम अभी पुलिस में शिकायत करने चलेंगे,’’ बनवारी को आश्वस्त कर अमन पुलिस स्टेशन जाने की तैयारी करने लगा.
अमन बनवारी परिवार को साथ ले कर थाने पहुंच गया. अगले ही दिन सूचना मिली कि भाग्यश्री के पति को गिरफ्तार कर लिया गया है. बनवारी परिवार ने यह समाचार सुन कर चैन की सांस ली. उन को मानो नया जीवन मिल गया हो.
भाग्यश्री तो पिंजरे से आजाद हुई चिडि़या की तरह चहकने लगी थी अब. वह समझ गई थी कि थोड़ी सी हिम्मत जुटाने से ही उस के जीवन में बहार आई है. राधिका से उस ने वादा कि अब कभी वह भाग्य के भरोसे रह कर, स्याह डर के साए में नहीं जीएगी. अमन और राधिका ने उस का निडर रोशनी की जगमग से परिचय जो करवा दिया था.