स्कूली पढ़ाई अवनि ने गर्ल्स स्कूल से की थी और आज वह पहली बार कालेज में कदम रखने जा रही थी, वह भी कोएड कालेज में. स्कूल के माहौल से कालेज का माहौल बिलकुल अलग होता है. नई बिल्डिंग, हरियाली से भरे कैंपस में नएनए चेहरे, सभीकुछ नया ही तो था उस के लिए. वह डरतेघबराते, सकुचाते हुए मेनगेट से अंदर दाखिल हुई और अपनी क्लास में जाने लगी. पर उसे अपनी क्लास तो मालूम ही नहीं थी. किस से पूछे, कैसे पूछे? इसी उधेड़बुन में उस ने एक चपरासी से पूछ ही लिया, बीकौम फर्स्ट ईयर की क्लास कहां है?

चपरासी ने सही तरीके से उसे समझाया, ‘‘सीधे जा कर 2 मंजिल ऊपर चढ़ना और दाएं से 7वां कमरा. 2/6 यानी सैकंड फ्लोर पर रूम नं. 6, स्टाफरूम है और उस पर नंबर नहीं है.’’ अवनि ने उसे थैंक्यू कहा तो वह मुसकराते हुए आगे बढ़ गया और अवनि सीधे जाने लगी. वह चपरासी के बताए अनुसार ही चली और रूम नं. 6 के सामने जा कर देखा, गेट के ऊपर लगी तख्ती पर लिखा था. ‘‘क्च.ष्शद्व.ढ्ढ4द्गड्डह्म्. घबराते हुए वह क्लासरूम में दाखिल हुई तो लड़केलड़कियों से कमरा लगभग  भरा हुआ था. अधिकतर लड़कियां रंगबिरंगे, चटक रंग के कपड़े पहने हुए थीं, पर अवनि के कपड़े सादे थे. वह एक साधारण परिवार से थी.

प्रोफैसर आए, उन्होंने सब फ्रैशर्स का स्वागत करते हुए अपना परिचय दिया. इस के बाद उन्होंने अटैंडैंस ली और सभी को अपनाअपना परिचय देने को कहा. अवनि की बारी आई तो उस ने घबराते हुए अपना परिचय दिया. सब का परिचय होतेहोते पूरा पीरियड खत्म हो गया.

अगला पीरियड 45 मिनट बाद था. वह क्लास से बाहर निकली और नीचे जाने लगी. कैंपस की एक बैंच पर बैठी ही थी कि एक लड़की उस के पास आई और बोली, ‘‘मैं यहां बैठ सकती हूं?’’

अवनि बोली, ‘‘हांहां, क्यों नहीं.’’

थोड़ी देर बाद वह लड़की बोली, ‘‘मेरा नाम सुधा है, तुम्हारी ही क्लास में हूं, और तुम्हारा नाम अवनि है न.’’

उस ने ‘‘हां’’ कहा. दोनों ने थोड़ी देर बातें की, फिर दोनों अगले लैक्चर के लिए क्लास में चली गईं. इस बार दोनों साथसाथ ही बैठीं.

घर पहुंच कर उस ने अपनी मां को सारी बातें बताईं, कुछ देर आराम करने के बाद उस ने मां के काम में हाथ बंटाया. खाना खाने के वह बाद अपने से 3 साल छोटी अपनी बहन से बातें करने लगी और फिर उसे पढ़ाने के बाद सुला दिया. फिर वह पढ़ने लगी और पढ़तेपढ़ते ही सो गई.

अवनि और सुधा अच्छी दोस्त बन गई थीं. दोनों साथ ही क्लास में बैठतीं. बाद में लंच भी साथ ही करतीं और फ्री पीरियड में गपशप भी करतीं. सुधा अमीर हो कर भी साधारण ही रहती थी.

सुधा का जन्मदिन आने वाला था, इस के लिए उस ने शौपिंग का प्लान बनाया और रविवार की शाम को अवनि को ले कर मार्केट गई. उस ने अपने लिए नई ड्रैस और अन्य सामान लिया और कुछ सामान की बुकिंग कर दी जिसे अगले दिन उस के घर पहुंचना था. उस ने अवनि के लिए भी एक नई ड्रैस खरीदी. कुछ और खरीदारी के बाद दोनों मार्केट से बाहर आ कर गाड़ी के पास पहुंचीं. सुधा ने उसे घर छोड़ने को कहा तो उस ने मना कर दिया कि वह बस से चली जाएगी.

अवनि बस से उतर कर अपने घर जा रही थी. सड़क किनारे कुछ बच्चे खेल रहे थे, तभी उसे एक कार हौर्न बजाती, लहराती हुई आती दिखी. कार वाले ने बच्चों को बचाने के चक्कर में तेजी से ब्रेक लगाया तब भी कार घिसटतेघिसटते अवनि के पैरों से टकराती हुई थोड़ी आगे जा कर रुकी. कार वाला, जो एक नौजवान था, जल्दी से उतर कर पीछे की ओर भागा और बच्चों को सकुशल देख उस ने राहत की सांस ली और वापस कार की तरफ मुड़ते हुए अवनि को सड़क किनारे एक पत्थर पर पैर पकड़े कराहते देखा.

वह उस के पास गया और कुछ कहता, इस के पहले ही अवनि उस पर बरस पड़ी, ‘‘कार चलानी नहीं आती तो चलाते क्यों हो, सड़क के किनारे चलने वाले तो जैसे तुम्हें दिखते ही नहीं, कम से कम बच्चों को तो देखते. दिखते भी कैसे? बड़े बाप के बेटे जो ठहरे.’’

कार वाले ने बड़ी नम्रता से कहा, ‘‘आई एम सौरी, मैं तो सड़क पर ही था, बच्चे खेलतेखेलते अचानक सड़क के बीच में आ गए. उन्हें बचाने के चक्कर में तेजी से ब्रैक लगाने के बावजूद आप को टक्कर लग गई. चलिए, मैं आप को अस्पताल ले चलता हूं.’’

अवनि का गुस्सा अब थोड़ा शांत हो गया, वह बोली, ‘‘नो थैंक्स. मेरा घर पास में ही है, मैं चली जाऊंगी.’’ यह कह कर वह उठी तो लड़खड़ा कर वापस बैठ गई. पैर में चोट लगी थी. शायद बड़ी खरोंच थी. खून बह रहा था. कार वाले ने फिर कहा, ‘‘मैं पहले आप को अस्पताल ले चलता हूं. मरहमपट्टी के बाद आप को, आप के घर छोड़ दूंगा, मेरा भरोसा कीजिए.’’ अवनि ने उसे मना नहीं किया और उस के साथ अस्पताल चली गई.

मरहमपट्टी के बाद कार वाले ने उसे घर तक छोड़ा. अवनि को लड़खड़ाते हुए चलता देख उसे सहारा दे कर अंदर तक छोड़ा. तभी अवनि की मां भागती हुई आई. उसे संभाला और बिस्तर पर लिटाया. अवनि ने मां की घबराहट को देखते हुए सारा हाल बताया और कहा कि चोट गहरी नहीं है, थोड़ी खरोंच है, 2-3 दिनों में ठीक हो जाएगी. डाक्टर को दिखा दिया है.

अवनि ने कार वाले को थैंक्स कहते हुए बैठने का इशारा किया. वह बैठ गया. मां अंदर चली गई चायपानी लेने. कार वाले ने अपना परिचय दिया, ‘‘मैं कोई अमीर बाप का बेटा नहीं हूं, मेरा नाम दीपक है और यहीं पास में रहता हूं. यह कार मेरी नहीं है मेरे पड़ोसी की है. मैं पढ़ाई के साथसाथ शाम को एक मोटर गैराज में भी काम करता हूं. आज कालेज की छुट्टी होने के कारण सुबह से ही गैराज चला गया था. पड़ोसी की कार भी ठीक करनी थी, तो उन की कार ले गया था.’’ उस ने आगे बताया. ‘‘मैं अकेला ही हूं इस दुनिया में, दिनभर कालेज में पढ़ता हूं और शाम को 4 घंटे गैराज में काम करता हूं. गुजरबसर हो जाती है.

‘‘मैं एमकौम फर्स्ट ईयर में हूं और मेरे पास मोटरसाइकिल है, उसी से रोज कालेज जाता हूं.’’

मां चाय लाई तो उस ने मना करते हुए कहा, ‘‘थैंक्यू मुझे जाना है.’’ और अवनि को फिर से सौरी कहता हुआ वह बाहर आया और कार में बैठ कर चला गया.

2 दिन तक अवनि कालेज नहीं जा सकी, तीसरे दिन कालेज जाने के लिए तैयार हो रही थी कि एक बच्चे ने आ कर बताया, ‘‘कोई दीदी, आप को पूछ रही हैं.’’ बाहर आ कर देखा तो सुधा थी, 2 दिन कालेज में न देख कर वह मिलने घर ही आ गई. उस ने सुधा को मार्केट के बाद हुई घटना के बारे में बताया और दीपक के बारे में भी.

‘‘अरे, मैं तो उसे जानती हूं, बहुत सीधासादा, अच्छा लड़का है. कभीकभी थोड़ी बातचीत हो जाती है, नोट्स को ले कर,’’ सुधा ने एकदम से कहा. दोनों फिर कालेज के लिए रवाना हुईं.

शाम तक अवनि का पैरदर्द कम था, फिर भी वह थोड़ा लंगड़ाती हुई चल रही थी. रात को खाना खाया ही था कि डोरबैल बजी. अवनि ने दरवाजा खोला, देखा तो दरवाजे पर दीपक था. अवनि ने उस से अंदर आ कर बैठने को कहा. दीपक बैठते हुए बोला, ‘‘सौरी, 2 दिन से आप के हालचाल पूछने नहीं आ सका. कालेज और गैराज से समय नहीं मिला. काम ज्यादा था. आज काम कम था तो खत्म कर के सीधा यहीं आ गया.’’

‘‘इट्स ओके,’’ अवनि ने कहा, ‘‘नो प्रौब्लम, अब मैं ठीक हूं, थोड़ा दर्द है. 2-3 दिन में वह भी दूर हो जाएगा.’’

फिर बोली, ‘‘खाना खुद बनाते हो या होटल में खाते हो?’’

दीपक ने शरमाते हुए कहा, ‘‘मैं खुद बनाता हूं. अब जाऊंगा, बना कर खाऊंगा.’’

‘‘अब तुम्हें देर भी हो गई है तो आज यहीं से खाना खा कर जाओ. पर हां, सादी रोटी, दालचावल, सब्जी है. पकवान नहीं,’’ मुसकराहट के साथ अवनि ने कहा.

दीपक ने मना किया पर जब अवनि की मां ने कहा तो उस ने खाने के लिए हामी भर दी, साथ ही, एक शर्त रख दी. उस ने कहा, ‘‘मैं एक शर्त पर खाना खाऊंगा, तुम कल से मेरे साथ कालेज चलोगी.’’ अवनि ने भी हां कर दी. तभी दीपक ने कहा, ‘‘पर वापस तुम्हें बस से ही आना पड़ेगा, मुझे गैराज जो जाना होता है.’’ तीनों हंस दिए.

दीपक ने खाना खाया और फिर से थैंक्स कहा. अवनि ने दीपक की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो वह थोड़ी देर सोचता रहा. अवनि ने कहा, ‘‘कोई जल्दी नहीं है. आराम से सोच लो.’’ दीपक ने कहा, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. मेरे दोस्तों में कोई लड़की नहीं है, इसलिए मैं जरा घबरा रहा था.’’

फिर दीपक ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘डन’’ और अवनि से हाथ मिलाते हुए विदा ली.

अगले दिन सुबह कालेज समय से डेढ़ घंटे पहले ही दीपक, अवनि के घर आ गया. अवनि ने जल्दी आने का कारण पूछा तो वह बोला, ‘‘तुम रोज बस से जाती हो, तो मुझे लगा कि कहीं निकल न जाओ, इसलिए.’’

‘‘नहीं मैं 1 घंटा पहले ही निकलती हूं. बस से कालेज पहुंचने में 45 मिनट लगते हैं.’’ अवनि ने मुसकराते हुए उत्तर दिया. दोनों ने चाय पी और मोटरसाइकल से कालेज के लिए रवाना हुए.

यह सिलसिला यों ही चलता रहा. दीपक उसे कालेज के लिए लेने आया. अब वह उसे कालेज में फ्री समय में मिलने भी लगा. देखते ही देखते 3 वर्ष हो गए. अवनि और सुधा का बीकौम पूरा हो गया और दीपक ने एमकौम फाइनल कर लिया और वह सीए करने के साथसाथ एक प्राइवेट कंपनी में जौब भी करने लगा. नौकरी अच्छी थी और सैलेरी भी, पर काम का बोझ ज्यादा था.

अवनि ने कई बार उस से कहा, ‘‘कोई दूसरी जौब देख लो, यहां काम ज्यादा है तो.’’

दीपक हर बार मुसकराते हुए कहता, ‘‘काम तो दूसरी जगह भी रहेगा, काम तो काम है. समय पर तो पूरा करना ही पड़ेगा. सैलरी भी ठीक है. गैराज के जैसे रोज काला तो नहीं होना पड़ता, धूलधुएं में तो नहीं रहना पड़ता.’’ उस का यह उत्तर सुन कर अवनि चुप हो जाती और फिर उस ने भी कहना छोड़ दिया.

अवनि और दीपक की दोस्ती गहराती जा रही थी. दोनों एकदूसरे से मन की बात कहते और लड़तेझगड़ते भी. घूमनेफिरने के साथसाथ पढ़ाई भी जारी थी और दीपक की जौब भी.

एक दिन अचानक सड़क दुर्घटना में अवनि के पिता की मृत्यु हो गई. अवनि पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. उस की और छोटी बहन की पूरी जिम्मेदारी उस के कंधों पर आ गई. वह तो जैसे इस बोझ से टूट ही गई थी. रिश्तेदार और आसपड़ोस के लोग तो आए और सांत्वना दे कर, हाथ जोड़ कर चले गए, पर दीपक ने उसे संभाला. उस ने अवनि को ढांढ़स बंधाया और उसे इस मुसीबत के समय हौसला रखने व अपनी, मां और छोटी बहन के प्रति जिम्मेदारी से घबरा कर भागने की नहीं, बल्कि इस मुसीबत से लड़ने की शक्ति दी.

दीपक ने कहा, ‘‘देखो, अगर इस दुखद घड़ी को दूर करना है तो इस से डरने की नहीं, लड़ने की जरूरत है. मां और छोटी बहन का अब तुम ही तो सहारा हो. अगर तुम इस तरह हिम्मत हार जाओगी तो इन को कौन संभालेगा और फिर मैं भी तो हूं तुम्हारे साथ. इस परिस्थिति में तुम को ही हिम्मत दिखानी है और अपने पिता की अपूर्ण जिम्मेदारियों को उठा कर घर को संभालना है. दृढ़शक्ति से उठो और आगे बढ़ती चलो और सब को बता दो कि तुम साधारण लड़की नहीं, तुम में अब भी वही हिम्मत, जोश और साहस है जो पिता की मृत्यु से पहले था.’’

अवनि पर दीपक की बातों का असर हुआ. उस ने मां और छोटी बहन की तरफ देखा और कहा, ‘‘दीपक, तुम ने ठीक ही कहा. मैं हिम्मत नहीं हारूंगी. इस विपरीत परिस्थिति के बोझ से अपने कंधे टूटने नहीं दूंगी, बल्कि पूरी ताकत से यह बोझ उठाऊंगी. मैं अब जौब कर के घर को चलाऊंगी और बहन को अच्छे से पढ़ा कर उस की शादी करवाऊंगी. दीपक ने मुसकराते हुए उस के  कंधे को थपथपाया और वहां से चला गया. अगले 2 दिनों तक वह अवनि के यहां नहीं आया.

2 दिन बाद दीपक आया. उस ने बताया कि वह 2 दिन अपने औफिस से समय निकाल कर दोपहरशाम को अवनि के लिए जौब ढूंढ़ रहा था. इस में उसे सफलता भी मिली. उस ने बताया, ‘‘एक कंपनी में क्लर्क की पोस्ट खाली है, कल तुम यहां अपना रिज्यूमे ले कर चली जाना, तुम्हारा इंटरव्यू होगा. हो सकता है यह जौब तुम्हें ही मिल जाए. वहां का मैनेजर हमारे औफिस में आता रहता है, उस ने बताया कि उन्होंने इस पोस्ट के लिए अभी तक विज्ञापन नहीं दिया है. तुम कल सुबह 10 बजे चली जाना.’’

अगले दिन अवनि ठीक समय पर इंटरव्यू के लिए पहुंच गई. उस ने सोचा, ‘अगर नौकरी नहीं मिली तो…’ थोड़ी देर बाद वह इंटरव्यू के लिए अंदर गई और आधे घंटे बाद बाहर निकली तो घबराई हुई थी. परिणाम के लिए उसे शाम को बुलाया गया तो उस ने घर वापस जाने के बजाय वहीं रुकना बेहतर समझा. शाम को उसे बताया गया कि वह सिलैक्ट हो गई और कल से ही औफिस जौइन कर सकती है. उस की आंखों से आंसू आ गए, ये खुशी के आंसू थे.

अवनि घर पहुंची. उस ने अपने पिता की फोटो को हाथ जोड़े और मां को गले लगाते हुए कहा, ‘‘मुझे नौकरी मिल गई. अब हमें कोई परेशानी नहीं होगी. मैं खूब मेहनत करूंगी और छोटी को पढ़ाऊंगी भी.’’

थोड़ी देर बाद दीपक आया. उस ने देखा अवनि बहुत खुश है तो वह समझ गया कि उसे नौकरी मिल गई. अवनि ने कहा, ‘‘थैंक्स दीपक, तुम्हारे कारण ही मुझे नौकरी मिल सकी.’’

‘‘नहीं यह तुम्हारी योग्यता और समझदारी के आधार पर मिली है, अब खूब मेहनत करो और आगे बढ़ो,’’ दीपक ने कहा.

अवनि की सालभर की नौकरी होने पर उसे बढ़े हुए इन्क्रीमैंट की जानकारी देते हुए उस के मैनेजर ने कहा, ‘‘मेरा ट्रांसफर हो गया है, कल से तुम नए मैनेजर के साथ ऐसी ही लगन व मेहनत से काम करना.’’

अगले दिन नए मैनेजर बाकी स्टाफ से पहले औफिस आ गए और फाइल देखने लगे. बाद में उन्होंने स्टेनो से एक लैटर टाइप करवाया और उस पर साइन करने के बाद आगे की कार्यवाही के लिए अवनि के पास भेज दिया. अवनि ने लैटर डिस्पैच करते हुए जब लैटर पढ़ा तो वह चौंक गई. लैटर में लिखी रकम के टोटल में फर्क आ रहा था जिस से कंपनी को 50 हजार रुपए का नुकसान हो सकता था.

वह फौरन उठी और मैनेजर के रूम में गई. नेमप्लेट पर लिखा था-नीरज राठौर. वह दरवाजा नौक कर बोली, ‘‘मैं अंदर आ सकती हूं?’’

अंदर से आवाज आई, ‘‘कृपया आइए.’’ गेट खोल कर वह अंदर गई तो देखा मैनेजर की कुरसी पर एक नौजवान बैठा हुआ है और कुछ फाइलें उस के सामने फैली हुई हैं.

उस ने वह लैटर उन की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘सर, मैं मिस अवनि चौधरी, यहां की क्लर्क. आप ने अभी जो लैटर टाइप करवाया है उस में रकम के टोटल में 50 हजार रुपए का फर्क है. आप कहें तो मैं इस की फाइल चैक कर लूं. मैनेजर ने देखा तो उसे अवनि की बात सही लगी. उस ने फाइल देते हुए कहा, ‘‘तुम सही कहती हो, फर्क है, तुम ने गलती पकड़ी है, इस से कंपनी को 50 हजार रुपए का नुकसान हो सकता था. मुझे खुशी है कि तुम जैसी मेहनती और ईमानदार लड़की इस कंपनी में काम करती है.’’ अवनि ने थैंक्यू कहा और फाइल ले कर बाहर निकल आई.

कई दिनों तक नीरज ने अवनि और उस के काम पर नजर रखी. उसे अवनि की सादगी, व्यवहार और काम करने का तरीका काफी पसंद आया (शायद अवनि भी). अब वह औफिस के हर मामले में उस की सलाह लेने लगा. एकदो बार तो उस ने पर्सनल मामले में भी उस से पूछ लिया. नीरज और अवनि को साथसाथ काम करते हुए कई महीने हो गए. नीरज अवनि को चाहने भी लगा था, शायद अवनि भी नीरज को. लेकिन दोनों एकदूसरे से मन की बात कह नहीं पा रहे थे. दीपक को अवनि की बातों से इस का अंदाजा हो गया था.

दीपक ने अवनि की मां को नीरज के बारे में बताया. मां ने कहा, ‘‘तुम अवनि को अच्छी तरह जानते हो. उस की पसंदनापसंद भी समझते हो. तुम ही बात करना उस से. लेकिन पहले नीरज के बारे में जानकारी हासिल कर लो कि कैसा लड़का है, उस का परिवार, व्यवहार आदि.’’ दीपक ने मां को आश्वासन दिया कि वे चिंता न करें, वह सब देख लेगा.

एक दिन रविवार की दोपहर नीरज अवनि के घर पहुंच गया और बोला, ‘‘यहां से गुजर रहा था तो सोचा तुम से और तुम्हारी मां से भी मिलता चलूं.’’ अवनि ने नीरज को अपनी मां व छोटी बहन से मिलवाया. फिर हंसती हुई बोली, ‘‘ये है मेरा बैस्ट फ्रैंड दीपक.’’

‘‘अच्छा तो ये हैं दीपक, आप के बारे में अवनि से कई बार सुन चुका हूं,’’ नीरज ने कहा.

सब ने आपस में कुछ देर बातें कीं. तभी दीपक ने मां से धीरे से कहा, ‘‘शादी की बात करने का अच्छा मौका है.’’ मां जैसे ही नीरज से कुछ कहने को हुईं, एकदम से नीरज ने अपनी और अपने परिवार की जानकारी देने के बाद कहा, ‘‘मुझे अवनि पसंद है और मैं उस से शादी करना चाहता हूं. शायद अवनि भी यही चाहती है. उस ने शर्म के मारे आप से बात नहीं की होगी. क्या आप हमारी शादी के लिए आशीर्वाद देंगी?’’ एक ही सांस में नीरज ने इतना सब कह दिया और फिर पानी पी कर चुप हो गया.

मां और दीपक की तो मनमांगी मुराद पूरी हो गई. उन्होंने अवनि की तरफ देखा तो वह शरमाती हुई अंदर चली गई. मां ने ‘हां’ कहा और जल्दी ही दोनों की शादी कराने की बात कही.

कुछ दिनों से अवनि खुश भी थी और थोड़ी चिंता में भी रहती. नीरज ने उस से पूछा तो उस ने अपने मन की बात कही, ‘‘मेरी शादी के बाद मां और छोटी का क्या होगा. कैसे होगा?’’

‘‘इस में चिंता की क्या बात है? हम सब साथ ही रहेंगे, एक ही घर में,’’ नीरज ने कहा. यह सुनते ही अवनि की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा, उसे दोहरी खुशी हुई.

शादी की तारीख तय हुई लेकिन इधर कुछ दिनों से दीपक का कुछ अतापता नहीं था. अवनि ने उस के औफिस जा कर पता किया तो मालूम हुआ कि उस की तबीयत खराब होने के कारण वह छुट्टी पर है. वह उस के घर गई तो वहां भी ताला लगा हुआ था. अवनि की चिंता बढ़ गई. दीपक का फोन तो पहले से ही स्विच औफ था. अवनि वापस अपने घर आई और दीपक की चिंता में बिना कुछ खाएपिए ही सो गई.

अगले दिन सुबह एक औटो घर के सामने रुका. उस ने देखा कि दीपक उस में से सामान निकाल रहा है. सामान रखा भी नहीं था कि अवनि ने उस पर सवालों की बौछार कर दी. दीपक चुपचाप सुनता रहा. अवनि जब चुप हुई तो उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी बात खत्म हो गई हो तो मैं कुछ बोलूं?’’ अवनि चुप जरूर हो गई थी पर अभी भी गुस्से में थी. दीपक फिर बोला, ‘‘तुम्हारी शादी के लिए अपनी तरफ से तुम को देने के लिए और घर के लिए छोटामोटा सामान, कपड़े वगैरह लेने इंदौर गया था. तुम को बता कर जाता तो तुम मना करतीं, औफिस से छुट्टी नहीं मिलती तो वहां पर भी तबीयत खराब होने का बहाना बनाया.’’ यह सुन कर अवनि का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ. उस ने सामान की तरफ देखा. उस पर इंदौर का पता लिखा हुआ था. फिर भी वह थोड़े गुस्से में बोली, ‘‘क्या जरूरत थी ये सब लाने की. चलो, ठीक है लाए, तो वहां से क्यों, यहां भी तो सब मिलता है.’’

थोड़ी बहसबाजी के बाद सब नौर्मल हो गया और सब सामान देखने लगे. दीपक लगभग 50-60 हजार रुपए का सामान लाया था. दीपक ने एक बैग नहीं खोला, अवनि के पूछने पर उस ने कहा, ‘‘औफिस की कुछ स्टेशनरी है.’’ अवनि ने उस से ‘थैक्यू माई बैस्ट फ्रैंड, कहा.

निश्चित दिन शादी हुई. सब खुश थे. दीपक, सुधा और छोटी सब ने मिल कर खूब डांस और धमाल किया. शादी का समारोह सादगीपूर्ण हुआ. अवनि की विदाई हुई. शादी के कुछ दिन बाद अवनि ने मां और छोटी को अपने पास बुला लिया. दीपक कुछ दिन तो अवनि से बराबर मिलता रहा लेकिन बाद में उस का मिलनाजुलना कम हो गया.

समय के साथसाथ छोटी भी बड़ी हो गई. उस की भी शादी हो गई और बाद में मां अपनी बीमारी व अपने पति की याद में रहरह कर चल बसीं. दीपक भी अब कम आता, 2-3 महीने में एक बार. उस को देख कर लगता कि काफी बीमार और कमजोर है. पूछने पर कहता, ‘‘काम ज्यादा है, खानेपीने का समय नहीं मिलता. टाइमटेबल बिगड़ गया है. अब ध्यान रखूंगा.’’ ऐसा आश्वासन देता और चला जाता.

एक बार 3 महीने से ज्यादा समय हो गया दीपक से मिले, तो अवनि एक दिन सुबहसुबह ही उस के घर पहुंच गई. पर वहां ताला लगा देख कर उस के औफिस भी गई. औफिस में जा कर पता चला कि वह तो कई महीने से औफिस आया ही नहीं. उस की तबीयत बहुत खराब थी. इंदौर जाने को कह गया है इलाज के लिए. यह सुनते ही अवनि के पैरों तले जमीन खिसक गई. फिर थोड़ा संभलती हुई बोली, ‘‘मुझे वहां उस अस्पताल का पता और फोन नंबर मिल सकता है.’’ औफिस वालों ने उसे अस्पताल का पता और फोन नंबर दे दिया.

अवनि जैसेतैसे घर पहुंची. नीरज औफिस जा चुके थे लेकिन अवनि ने उन्हें फोन लगा कर फौरन घर बुलाया और सारी बात बताई. नीरज को भी झटका लगा कि दीपक ने कभी बताया क्यों नहीं? दोनों ने फौरन इंदौर जाने का फैसला किया.

कुछ देर बार दोनों अपनी छोटी सी बच्ची के साथ अपनी गाड़ी से इंदौर के लिए रवाना हुए. अवनि रास्तेभर यही सोचती रही कि दीपक ने ऐसा क्यों किया, कभी कुछ बताया क्यों नहीं, क्या हुआ होगा उसे?

साढ़े 4 घंटे के सफर के बाद वह उस अस्पताल के सामने खड़ी थी जहां दीपक भरती था. अंदर जाते समय उस के पैर कांप रहे थे. रिसैप्शन पर पहुंच कर नीरज ने दीपक का नाम बता कर उस का वार्ड पूछा तो जवाब मिला ‘‘सैकंड फ्लोर, आईसीयू वार्ड, बैड नंबर 6.’’ ऊपर वार्ड के सामने जा कर नीरज बोले, ‘‘तुम थोड़ी देर यहीं बैठो, मैं देख कर आता हूं. फिर तुम जाना. छोटे बच्चों को अंदर ले जाना मना है.’’ अवनि ने कुछ नहीं कहा, सिर्फ हां में सिर हिला दिया.

नीरज अंदर गए. बैड नंबर 6 के पास जा कर रुके तो देखा, दीपक को औक्सीजन मास्क लगा था. साथ ही खून और एक अन्य  दवाई की बोतल भी लगी थी. वह बेहोश था. थोड़ी देर रुकने के बाद वह बाहर आए और बच्ची को लेते हुए अवनि से कहा, ‘‘अब तुम जाओ, और देखो, उस से कुछ बोलना नहीं, वह बेहोश है. बस, चुपचाप देख कर चली आना. फिर डाक्टर से मिलने चलेंगे.’’

अवनि ने इस बार कुछ नहीं बोला. फिर डरतीडरती अंदर गई. बैड नंबर 6 के पास रुकी. दीपक को देखा, उस की ऐसी हालत देख कर वह एकदम से चक्कर खाने लगी. पास खड़ी नर्स ने उसे पकड़ा और बाहर ले आई. बाहर आते ही वह रोने लगी. नीरज उसे चुप कराते हुए बोले, ‘‘चलो, डाक्टर से मिलते हैं.’’

डाक्टर के पास गए तो उन्होंने बताया, ‘‘कुछ सालों से दीपक के फेफड़ों में संक्रमण है जो उसे गैराज में काम करते हुए धूल व धुएं के कारण हो गया था. पहले भी उस का इलाज यहां होता रहा और उसे भरती होने के लिए कहा गया. पर उस ने कहा था, ‘मेरे ऊपर कुछ महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी है और मेरी दोस्त की शादी भी है.’ यह कह कर उस ने सभी जरूरी दवाइयां ली और चला गया. फिर बाद में आया ही नहीं. अभी जब वह यहां आया तो उस की स्थिति बेहद गंभीर थी. अभी भी कुछ कहा नहीं जा सकता.’’

अवनि ने नीरज को देखा फिर डाक्टर से कहा, ‘‘उस के इलाज में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए, डाक्टर साहब.’’

‘‘देखिए, हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं. सबकुछ हमारे हाथ में नहीं है. और मैं आप को यह भी बता दूं कि उस का इलाज लंबा है पर 90 फीसदी चांसेज हैं कि वह ठीक हो जाए. पर कुछ हमारी भी मजबूरियां हैं.’’ डाक्टर ने कहा.

अवनि ने पूछा, ‘‘कैसी मजबूरी?’’ तो डाक्टर ने थोड़ा सकुचाते हुए कहा, ‘‘कुछ दवाइयां हैं जो यहां नहीं मिलतीं, उन्हें और्डर दे कर मुंबई या फिर चैन्नई से मंगवाना पड़ता है और कंपनी को कुछ ऐडवांस भी देना पड़ता है. दीपक ने जो रकम यहां जमा की थी वह सब खत्म हो गई. उस के औफिस से भी एक बार 50 हजार रुपए का चैक आया था. वह भी दवाई और अस्पताल के चार्ज में लग गया. उसे बाहर तो नहीं कर सकते, पर कुछ ही दिनों में हम उसे जनरल वार्ड में शिफ्ट करने वाले हैं.’’

दीपक की ऐसी स्थिति के बारे में सुन कर अवनि अपना रोना रोक नहीं सकी और बाहर आ गई. नीरज ने डाक्टर से कहा, ‘‘अब आप रुपयों की चिंता न करें और जो दवाइयां बाहर से मंगवानी हों, फौरन मंगवाए और दीपक का इलाज करें.’’ यह कहते हुए नीरज ने अपने बैग से चैकबुक निकाली और 1 लाख रुपए का चैक बना कर डाक्टर को दे दिया. डाक्टर ने चैक लेते हुए कहा, ‘‘आप निश्चिंत रहिए. मैं आज ही ईमेल कर दवाइयां का और्डर दे देता हूं और कल ड्राफ्ट से ऐडवांस भी भेज दूंगा. कल रात तक फ्लाइट से दवाइयां भी आ जाएंगी, फिर हम उस का बेहतर इलाज कर पाएंगे. उम्मीद रखिए. 1-2 महीने में वह बिलकुल ठीक हो जाएगा.’’

नीरज डाक्टर के रूम से बाहर आए तो देखा कि बच्ची सो गई थी. नीरज ने अवनि के कंधे पर हाथ रखा तो उन्हें देख कर उस की आंखों में आंसू आ गए और वह हाथ जोड़ कर उम्मीदभरी नजरों से नीरज को देखने लगी.

नीरज सब समझ गए. उस ने अवनि के हाथों को पकड़ा और उसे गले लगाते हुए कहा, ‘‘मैं सब समझता हूं, तुम दीपक की चिंता मत करो. हम उस का अच्छे से अच्छा इलाज करवाएंगे.’’ यह कहते हुए उस ने अभी अंदर डाक्टर से हुई बात सविस्तार बता दी. अवनि ने थैंक्यू कहा और रोने लगी. नीरज ने कहा, ‘‘दीपक तुम्हारा दोस्त है तो मेरा भी दोस्त हुआ. तुम यों हाथ जोड़ कर और थैंक्यू बोल कर मुझे शर्मिंदा मत करो.’’

थोड़ी देर बाद सुहानी सो कर उठी और रोने लगी तो नीरज उसे खिलाते हुए बाहर निकल गए. अवनि ने थोड़ी देर बाद कुछ सोचते हुए सिर हिलाया. वह अब समझ गई थी कि क्यों दीपक इतने दिनों तक गायब था, वह इतना कमजोर क्यों हो गया और शादी की खरीदारी के लिए अकेले ही इंदौर क्यों आया, खरीदारी  तो एक बहाना था अपनी बीमारी के बारे में उसे बताने से बचने का, और उस ने बैग क्यों नहीं दिखाया, उस में जरूर दवाइयां, डाक्टर के परचे और बिल रहे होंगे.

कुछ ही देर में नीरज और सुहानी आए और अवनि के पास बैठ गए. दोनों ने फिर अपना सामान गाड़ी में रखा और पास के होटल में रूम ले कर आराम करने लगे. अवनि और नीरज ने सुहानी को खाना खिलाया और खुद भी जैसेतैसे थोड़ा खाना खाया और फिर नीरज और सुहानी सो गए, पर अवनि को नींद नहीं आ रही थी. उसे रहरह कर दीपक की बातें याद आतीं. उस के साथ घूमना, पढ़ना, काम करना और हंसीमजाक के साथसाथ छोटीछोटी बातों पर लड़नाझगड़ना वगैरह. यही सोचतेसोचते वह भी सो गई.

अगले दिन सुबह दोनों फिर अस्पताल गए. डाक्टर ने बताया, ‘‘दीपक को होश नहीं आया, हमारी दी हुई दवाइयां असर नहीं कर रही हैं, शायद मुंबई से आई दवाइयां असर कर जाएं. दवाइयां रात तक ही आएंगी, तभी कुछ कर सकते हैं.’’ डाक्टर के ऐसा कहते ही अवनि दीपक के पास बैठ गई. एक घंटे बाद नीरज ने अवनि से कहा, ‘‘यहां बैठने से कोई फायदा नहीं. होटल चलते हैं. कुछ खा कर आराम करो. रात में फिर आएंगे.’’ फिर दोनों होटल चल गए.

रात को 8 बजे दोनों फिर अस्पताल पहुंचे और सीधे डाक्टर के पास गए और दवाइयों के बारे में पूछताछ की. डाक्टर ने बताया, ‘‘दवाइयां शहर में आ चुकी हैं. लगभग एक घंटे में एयरपोर्ट से अस्पताल पहुंच जाएंगी.’’

दोनों दवाइयों के इंतजार में बैठ गए. अवनि को यह एक घंटा बहुत ज्यादा लगने लगा. जैसे ही दवाइयां डाक्टर के पास पहुंचीं, उन्होंने उसी नर्स को बुलाया जिस पर दीपक की देखरेख का जिम्मा था. उन्होंने नर्स को दवाइयां से संबंधित कुछ समझाया और थोड़ी सावधानी बरतने की सलाह दे कर दवाइयों के साथ उसे दीपक के कमरे में भेजा. डाक्टर ने नीरज और अवनि से कहा, ‘‘आप बाहर बैठिए, हम उस का इलाज शुरू करते हैं, आप चिंता न करें, सब ठीक होगा.’’

करीब 2 घंटे बाद डाक्टर और नर्स दीपक के रूम से बाहर आए तो नीरज और अवनि बाहर ही खड़े थे. डाक्टर ने कहा, ‘‘दवाई दे दी हैं, अगले 8 घंटे में उस का असर दिखना शुरू हो जाएगा, नहीं तो…’’ यह कह कर डाक्टर चले गए. अवनि को तो यह सुनते ही चक्कर आने लगे, दोनों वहीं बैठ गए सुबह के इंतजार में. बीचबीच में डाक्टर आते और दीपक को चैक कर के चले जाते. नीरज बच्ची को ले कर होटल चले गए, पर अवनि वहीं बैठी रही.

सुबह करीब 7 बजे दीपक को देखने डाक्टर आए और करीब आधे घंटे बाद बाहर आ कर अवनि से बोले, ‘‘दवाइयों ने थोड़ा असर करना शुरू कर दिया है, अभी हालत ठीक हैं, पर पूरी तरह से नहीं कहा सकता कि कितने दिन और लगेंगे. आप लोग चाहें तो वापस जा सकते हैं. उस की हालत खतरे से बाहर है. और हां, आप उस के पास कुछ देर बैठ सकते हैं.’’ अवनि अंदर गई तो देखा वही नर्स दीपक को औक्सीजन मास्क, इंजैक्शन लगा रही थी. उस की आंखों से लगता था कि वह भी रातभर नहीं सोई. अवनि के पूछने पर उस ने भी ‘हां’ ही कहा.

फिर अवनि और नर्स आपस में धीरेधीरे बातें करने लगीं. अवनि ने नर्स से कहा, ‘‘तुम जा कर थोड़ा आराम कर लो, मैं यहीं बैठती हूं.’’ नर्स ने एकदम से कहा, ‘‘नहीं, मैं इन्हें ऐसी हालत में छोड़ कर नहीं जाऊंगी.’’ फिर थोड़ा रुक कर बोली, ‘‘मतलब, नहीं जा सकती, यह मेरी ड्यूटी है.’’

अवनि ने आश्चर्य से नर्स को देखा तो वह फिर अपने काम में लग गई. थोड़ी ही देर में नीरज, सुहानी को बाहर छोड़ कर अंदर आए तो अवनि ने डाक्टर द्वारा कही गई बात नीरज को बता दी तो वे मुसकराकर बोले, ‘‘अब दीपक जल्दी ही ठीक हो जाएगा.’’

दोपहर को डाक्टर आए. दीपक को चैक करने के बाद बोले, ‘‘रात तक होश आ जाएगा.’’ वे इतना कह कर चले गए. अवनि आज खुश थी. रात 8 बजे दोनों फिर अस्पताल गए. नर्स अभी भी वहीं थी. अवनि ने पूछा तो वह बोली, ‘‘मैं घर नहीं जाऊंगी, जब तक ये होश में नहीं आ जाते.’’ अवनि सोचने लगी, ऐसी नर्स तो पहली बार देखी जो मरीज की सेवा करने के कारण घर न जाए. उस ने नर्स को देखा तो नर्स ने सिर नीचे कर लिया.

अवनि कुछ पूछने ही वाली थी कि दीपक के कराहने की आवाज आई और उस के हाथों की उंगलियां हिलने लगीं. नर्स भागते हुए डाक्टर को बुलाने गई और अवनि ने दीपक का हाथ पकड़ लिया. डाक्टर आए, उन्होंने अवनि और नीरज को बाहर जाने को कहा और दीपक को चैक करने लगे. थोड़ी देर बाद नर्स बाहर आई और बोली, ‘‘आप लोग अंदर आ सकते हैं.’’ अंदर आ कर देखा तो दीपक की आंखें खुली थीं और वह सब को देख रहा था. उस ने अवनि को देख कर हाथ उठाने की कोशिश की पर वह फिर धीरे से हाथ नीचे करता हुआ फिर बेहोश हो गया.

डाक्टर सब को बाहर लाए और बोले, ‘‘अब दीपक जल्दी ठीक हो जाएगा, सुबह तक उसे पूरी तरह होश आ जाएगा.’’ अवनि और नीरज फिर होटल आ गए.

सुबह 8 बजे दोनों अस्पताल पहुंचे. अंदर जाने से पहले नीरज ने अवनि से कहा, ‘‘देखो, दीपक को होश आने के बाद उस से ज्यादा बात नहीं करना और न ही पूछताछ, गुस्सा तो बिलकुल नहीं. उस के पूरी तरह ठीक होने के बाद फिर तुम जानो और वो, मैं फिर बीच में नहीं बोलूंगा.’’

अवनि ने ‘‘हां’’ कहा और दोनों मुसकराते हुए रूम में गए तो देखा दीपक को होश आ चुका था. नर्स ने कहा, ‘‘ये अभी बोलने की स्थिति में नहीं हैं और डाक्टर भी चैक कर के जा चुके हैं.’’ अवनि वहीं बैठ गई. उस ने नर्स को देखा, वह खुश थी, उस के चेहरे पर थकान का नामोनिशान नहीं था.

अवनि ने नर्स से कहा, ‘‘अब तो आप घर जा सकती हो, अब तो इन्हें होश भी आ गया.’’ अवनि ने ‘इन्हें’ शब्द पर जोर दे कर कहा तो नर्स भी मुसकरा कर बोली, ‘‘हां, बस, आप एक घंटे बाद इन्हें ये 2 गोलियां और फिर एक घंटे बाद यह सीरप दे दीजिएगा और प्लीज, इन से ज्यादा बात नहीं करना. इन्हें तकलीफ होगी. गोली और सीरप लेने के बाद इन्हें नींद आ जाएगी. तब तक मैं भी जाऊंगी,’’ कहती हुई नर्स चली गई.

अवनि दीपक को देखने लगी. दीपक कुछ कहना चाह रहा था, उस के होंठ हिले तो अवनि ने उसे इशारे से चुप रहने को कहा. समय पर अवनि ने उसे दवा दी और फिर वह सो गया. शाम होने से पहले नर्स भी आ गई. उस ने आते ही दीपक को चैक किया, फिर रिपोर्ट लिखी. डाक्टर ने भी चैक किया. करीब 2 हफ्ते तक अवनि ने दीपक की खूब सेवा की और समय पर उसे दवाइयां व खाना देती रही. जल्दी ही दीपक थोड़ा ठीक हुआ और कुछकुछ बोलने की स्थिति में भी आ गया. अवनि और नीरज को उस ने अपनी इस स्थिति के बारे में अभी भी कुछ नहीं बताया और न ही अवनि ने कुछ पूछा. बस, साधारण बातें ही कीं.

रात को नीरज ने अवनि से कहा, ‘‘अब दीपक ठीक हो रहा है. कुछ दिनों में पूरी तरह ठीक हो जाएगा. अब हमें वापस घर चलना चाहिए. सुहानी के स्कूल से भी फोन आया था. उस के एग्जाम शुरू होने वाले हैं. एग्जाम के बाद हम फिर आ जाएंगे. बीचबीच में उस से फोन पर बात करते रहना.’’ अवनि का जाने का मन तो नहीं था पर बच्ची के एग्जाम के कारण उस ने हां कह दी. फिर अब दीपक भी अच्छा हो ही रहा था.

अगले दिन नीरज डाक्टर के पास गए. उन्हें अपने जाने के बारे में बता कर फिर कुछ रुपयों का चैक दिया और दीपक के रूम में गए. अवनि और नीरज ने दीपक से कहा, ‘‘अपना ध्यान रखना, बच्ची की परीक्षा नहीं होती तो हम नहीं जाते.’’ दीपक ने बच्ची को देखने की इच्छा जाहिर की तो बोले, ‘‘बाहर खेल रही है, उसे अंदर नहीं लाते और वैसे भी यहां छोटे बच्चों का आना मना है.’’ फिर दोनों ने दीपक से ‘अपना ध्यान रखना’ कहते हुए विदा ली और अवनि ने नर्स की ओर देख कर कहा, ‘‘इन का अच्छे से ध्यान रखोगी, यह हमें पूरा विश्वास है. इन्हें अकेला मत छोड़ना कभी.’’ नर्स ने शरमाते हुए हां में सिर हिला दिया.

करीब 20 दिन तक सुहानी के एग्जाम चले, फिर रिजल्ट के कुछ दिनों बाद उस की धमाचौकड़ी, फिर स्कूल रीओपन, उस की ड्रैस, किताबें आदि की खरीदारी, पढ़ाई, इस सब के कारण होने वाली थकान के बावजूद भी अवनि 2-3 दिन में दीपक से बात कर लेती थी. इस सब में वक्त कैसे गुजर गया, पता ही नहीं चला.

‘‘मम्मी, मम्मी उठो, कोई अंकलआंटी आए हैं, बाहर आप का इंतजार कर रहे हैं. उठो, उठो,’’ अवनि का हाथ जोरजोर से हिलाते हुए सुहानी ने उसे उठा दिया. ‘‘कौन आया है, क्यों चिल्ला रही हो… अच्छा जाओ, तुम खेलो. मैं देखती हूं,’’ कहती हुई वह बाहर आई तो उस के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. सामने खड़े हुए व्यक्ति को देखते ही हंसते हुए जोर से चिल्लाई, ‘‘दीपक, तुम यहां? कैसे हो? कब आए? बताया भी नहीं? फोन तो करते?’’ अपने वही पुराने अंदाज में सवालों की बौछार करते हुए उस की आंखों से आंसू निकल आए. फिर थोड़ा संभल कर बोली, ‘‘ये कौन है? अच्छा, ये तो…’’

‘‘दीपक की ज्योति है,’’ यह आवाज सुन कर वह चौंकी और दरवाजे की तरफ देखा तो वहां नीरज खड़े थे. उन्होंने कहा, ‘‘जी हां, यह है दीपक की ज्योति, वही… हौस्पिटल वाली नर्स. इन का चक्कर कई महीनों से चल रहा था, पर हमें कुछ बताया नहीं. इस शहर में आ गए, फिर भी खबर नहीं दी. वह तो मुझे बसस्टैंड पर टैक्सी में बैठते हुए दिख गए.’’

‘‘फिर आप ने मुझे फोन क्यों नहीं किया,’’ अवनि ने पूछा.

‘‘इन्होंने मना कर दिया, पूछो इन से,’’ नीरज बोले, ‘‘अरे भाई, कुछ बोलते क्यों नहीं, चुप क्यों खड़े हो, बोलो.’’

‘‘क्या बोलूं, कैसे बोलूं, मुझे बोलने का मौका तो दो, तुम दोनों ही बोले जा रहे हो,’’ दीपक ने कहा तो दोनों ने हंसते हुए कहा, ‘‘सौरी, बैठो और बताओ.’’

‘‘मैं तुम दोनों को सरप्राइज देना चाहता था,’’ फिर अवनि की तरफ देख कर बोला, ‘‘मुझे अचानक सामने देख कर तुम्हारी खुशी और अपने प्रति प्यार को देखना चाहता था… और मैं ने देख भी लिया कि तुम मुझे कितना प्यार करती हो. मैं बहुत खुश हूं कि तुम मेरी दोस्त हो और नीरज भी,’’ दीपक ने कहा, ‘‘मुझे ज्योति और डाक्टर ने सब बता दिया. तुम लोगों ने मेरे लिए क्याक्या किया और कितनी परेशानी उठाई. मैं तुम लोगों का हमेशा एहसानमंद रहूंगा.’’

‘‘दोस्ती में एहसान शब्द नहीं होता. यह मेरा फर्ज था. तुम ने भी तो मेरे लिए क्याकुछ नहीं किया. यहां तक कि अपनी सेहत खराब होने के बाद भी मेरे साथ रहे. मेरी मदद की और खुद तकलीफ उठाई,’’ अवनि ने कहा.

इस तरह गिलेशिकवे, शिकायतगुस्सा, हंसीमजाक में रात हो गई. ‘‘क्या तुम दोनों ने शादी कर ली?’’ अवनि ने पूछा.

‘‘नहीं, तुम को बिना बताए और बिना बुलाए तो शादी होती ही नहीं,’’ दीपक ने कहा. अवनि ने ज्योति को छेड़ते हुए कहा, ‘‘क्यों ज्योति, ‘इन्हें’ बहुत प्यार करती हो न. इन से शादी करने का इरादा है?’’ ज्योति ने ‘हां’ में सिर हिलाया. अवनि ने फिर कहा,’’ इन्होंने तुम्हारे घर वालों की रजामंदी भी ली होगी.’’ इस बार ज्योति शरमाते हुए ‘हां’ बोल कर वहां से थोड़ा आगे चली गई.

‘‘ज्योति ने भी तुम्हारा खूब ध्यान रखा. बहुत सेवा की है उस ने तुम्हारी. कितने दिनों तक वहीं रही. घर भी नहीं जाती थी. बहुत अच्छी लड़की है. अब तो तुम दोनों की शादी बहुत धूमधाम से करेंगे,’’ अवनि ने कहा तो नीरज ने भी अवनि की बात से सहमति जताई.

2 महीने बाद दीपकज्योति की शादी धूमधाम से हुई. दीपक ने अपना औफिस फिर से जौइन कर लिया और ज्योति ने भी शादी के कुछ दिनों बाद एक अस्पताल में नर्स की नौकरी कर ली. सब का मिलनाजुलना बदस्तूर जारी था और सब जिंदगी आराम से जी रहे थे.

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