प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में 9 फरवरी, 2016 को जिस प्रकार राजनीति का घिनौना खेल खेला गया उस से शायद ही कोई छात्र आहत होने से बचा हो. मौका छात्रों के एक समूह द्वारा आयोजित अफजल गुरु की फांसी की तीसरी बरसी पर एक कार्यक्रम का था जिस का छात्रों ने प्रचार भी काफी किया था, लेकिन छात्रसंघ के संयुक्त सचिव सौरभ कुमार द्वारा पत्र लिख कर इसे रोकने की मांग की गई थी, जिस कारण इस प्रोग्राम पर रोक लगा दी गई, लेकिन छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने इसे सांस्कृतिक कार्यक्रम के रूप में आयोजित किया.
दरअसल, सौरभ कुमार एबीवीपी का सदस्य है, जो आरएसएस का एक छात्र संगठन है और भाजपा से जुड़ा है. ऐसे में जब इस कार्यक्रम का आयोजन हुआ तो इस में जम कर नारेबाजी की गई. नारेबाजी करने वाले कौन थे यह कोई नहीं जान पाया. इस का किसी को भी भान नहीं था कि मामला इस कदर गड़बड़ा जाएगा कि छात्रों को देशद्रोही तक करार दे दिया जाएगा और इस की एवज में उन छात्रों को भी परेशानी होगी जिन का दूरदूर तक इस से कोई वास्ता नहीं था. इस कार्यक्रम के दौरान शोरशराबे के बीच नारेबाजी किस ने की इस का साफ पता नहीं चल पाया, लेकिन छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को हिरासत में ले लिया गया और 15 फरवरी को उसे कोर्ट में पेश किया गया तथा उस पर देशद्रोह का आरोप लगा. इतना ही नहीं जब कन्हैया को 15 फरवरी को कोर्ट में पेश किया गया तो वहां कुछ कट्टरपंथियों, जिन में ओम प्रकाश शर्मा नामक एक वृद्ध भी था, द्वारा उसे पीटा गया. जाहिर है कि भगवाकरण की आड़ में यह खेल खेला गया. सचाई यह है कि कन्हैया छात्रसंघ का अध्यक्ष होने के साथसाथ अंधविश्वासी विचारधारा का कट्टर विरोधी भी है, जिसे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद कतई बरदाश्त नहीं करती, क्योंकि एबीवीपी आरएसएस का छात्र संगठन है. इस से साफ जाहिर है कि एबीवीपी की शह प्रदर्शनकारियों को रही होगी और कन्हैया की आवाज दबाने में उन्होंने कोई कोरकसर नहीं छोड़ी और उसे देशद्रोही बना दिया.
कौन नहीं है देशद्रोही
यहां एक तर्क यह दिया जा रहा है कि सरकार द्वारा जेएनयू को करोड़ों रुपए अनुदान में दिए जाते हैं जिस से वहां के छात्र पढ़ते हैं, ऐसे में वहां पढ़ने वाले छात्र जिस देश के पैसे से पढ़ रहे हैं उसी देश के खिलाफ नारे लगा रहे हैं, तो क्यों न जेएनयू के छात्र गुरुकुली छात्रों की तरह पंडों की सीख मान कर रहें, यह तर्क पूर्णतया गलत है. हमें यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि देश पुलिस पर कितना खर्च करता है, पर पुलिस न कानून बनाए रखती है न सुरक्षा देती है और ऊपर से हफ्ता वसूलती है सो अलग. तो क्या पुलिस को देशद्रोही न माना जाए? अरबों रुपए मंदिरों की सुरक्षा व शांति के लिए बरबाद किए जाते हैं पर मिलता क्या है? क्या इन मंदिरों को देशद्राही कह कर बंद करने की मांग नहीं उठनी चाहिए?
स्कूल प्रबंधक बड़ीबड़ी बिल्डिंग्स सरकार से अनुदान में जमीन ले कर खड़ी करते हैं और फिर मनमानी फीस वसूलते हैं बावजूद इस के छात्रों को कोचिंग के सहारे रहना पड़ता है, तो क्या यह देशद्रोह नहीं है?
सरकारी बाबू भ्रष्टाचार से जेबें भरते हैं. मोटी सैलरी लेने के बावजूद काम नहीं करते और सहूलतों व भत्तों के नाम पर, घूमने के नाम पर फर्जी बिल बना कर, यात्रा भत्ते दिखा कर देश का पैसा डकारते हैं तो क्या यह देशद्रोह नहीं?
कितने घोटालों में नेता लिप्त हैं और बावजूद इस के साफ बच जाते हैं, क्या वे देशद्रोही नहीं हैं?
व्यापारी करोड़ों रुपए का टैक्स नहीं देते क्या वे देशद्रोही नहीं हैं? 1 लाख करोड़ रुपए बैंकों का उधार ले कर लोग डकार गए, उन्हें भी क्या देशद्रोही ही कहा जाए. सड़क पर टैंट लगा कर जागरण करने वाले क्या देशद्रोही नहीं हैं? जो काला धन लाने से रोक लेते हैं, क्या वे देशद्रोही नहीं हैं?
वामपंथी बनाम कट्टरपंथी
दरअसल, वामपंथी या अंधविश्वास विरोधी होना ही जेएनयू की विशेषता है. वह यही खुले विचार देता है और पुरातनपंथी दलदल से निकलने का रास्ता सुझाता है, जो कट्टरपंथियों को नहीं सुहाता. जैसा कि ऊपर बताया गया है कि सौरभ कुमार एबीवीपी का सदस्य भी है और एबीवीपी आरएसएस का छात्र संगठन, तो जाहिर है उसे वामपंथी कभी नहीं भाएंगे. साथ ही वामपंथी विचारधारा आगे बढ़ने से अंधविश्वास की अपनी भगवा दुकानदारी खत्म होती नजर आई और उन्होंने इसे कुचलने की कोशिश की. क्या कट्टरपंथी नहीं हैं असली देशद्रोही?
अपनी वामपंथी विचारधारा के चलते जेएनयू में महिसासुर दिवस मनाने, योगगुरु रामदेव के विरोध के कारण यह संस्थान हिंदुत्व व पुरातनवाद के विरोधी के रूप में चर्चित हो गया है, जिस कारण धर्मावलंबियों को अपनी नैया डूबती नजर आई और यही कारण रहा कि वे नई सोच, नई क्रांति, नए विचारों को आगे नहीं बढ़ने देना चाहते और खाप पंचायतों की तरह तुगलकी फरमान सुनाते हुए युवा विचारों के खिलाफ खड़े हो जाते हैं.
फर्जी वीडियो टेप का बड़ा खेल
बिना जांचेपरखे कन्हैया की फर्जी वीडियो क्लिपिंग सोशल मीडिया पर व न्यूज चैनल्स पर वायरल कर देना और फिर उसी के आधार पर कन्हैया और उस के साथियों को देशद्रोही करार देना कहां की अक्लमंदी है.
लेकिन हुआ ऐसा ही. बिना जांचे और तह तक पहुंचे ही कन्हैया को जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया गया, लेकिन जब दिल्ली सरकार ने जिलाधिकारी जांच में वायरल हुई वीडियो की फोरैंसिक जांच करवाई, तब कहानी कुछ और ही सामने आई, जिस से इस बात की पुष्टि हुई कि वीडियो के साथ छेड़छाड़ की गई थी. इसी आधार पर कन्हैया को क्लीनचिट भी मिली. पहले ही इस ओर सतर्कता क्यों नहीं बरती गई. क्यों कन्हैया को जेल में डालने की नौबत आई?
इस पूरे प्रकरण से तो ऐसा लग रहा है कि असल में देशद्रोही नारे लगाने वालों को राजनीतिक दल विशेष की शह मिली हुई थी और अशांति फैला कर वे अपना उल्लू सीधा करना चाहते थे.
कन्हैया की जीभ के 5 लाख, गोली मारने के 11 लाख रुपए
जहां देशभर में यही गूंज है कि कन्हैया ने देशद्रोह के नारे लगाए इसलिए उसे किसी भी कीमत पर बरदाश्त नहीं किया जाना चाहिए, जबकि इस बात का कोई सुबूत नहीं कि कन्हैया ने ऐसा कोई घिनौना कृत्य किया हो कि सब उस के खून के प्यासे हो जाएं.
इस से ज्यादा शर्मनाक घटना तो अभी हाल में हुई, जब बदायूं भारतीय जनता युवा मोरचा के जिलाध्यक्ष कुलदीप वार्ष्णेय द्वारा कन्हैया की जीभ काट कर लाने वाले को 5 लाख रुपए देने की घोषणा की गई. इस बात से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि ऐसे बयान देने से देश में यह आग और फैलेगी. आप ही सोचिए दोष युवा सोच में है या ऐसे नेताओं में, ऐसे में कोन है देशद्रोही?
एक ओर देशद्रोही कन्हैया को गोली मारने वाले को 11 लाख रुपए देने वाले पोस्टर भी लगाए गए जो पूर्वांचल सेना के अध्यक्ष की ओर से लगे. पुलिस की नाक के नीचे किए गए ये कृत्य, भले ही बाद में एफआईआर दर्ज कर आदर्श शर्मा को गिरफ्तार किया गया हो पर असल सवाल यह है कि देशद्रोह के नाम से कन्हैया को बदनाम करने वाले देशद्रोही कौन हैं?
जेएनयू के छात्र अपने खुले विचारों के कारण जाने जाते रहे हैं, निर्भया कांड हो या किसान आत्महत्या, यूजीसी फैलोशिप या अन्य कोई सामाजिक मुद्दा रहा हो, जेएनयू ने सदा अपनी सहभागिता प्रदर्शित की है फिर वे अब ऐसा कृत्य क्यों करेंगे कि उन्हें देशद्रोही कहा जाए?
बहरहाल, कन्हैया को 2 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट से कुछ शर्तों पर 6 महीने की बेल मिल गई है. तिहाड़ जेल से आने के बाद जेएनयू में खुशी का माहौल दिखा और कन्हैया कुमार ने 3 मार्च को करीब 50 मिनट का भाषण दिया और साफ किया कि उस का रोल मौडल अफजल गुरु नहीं बल्कि रोहित वेमुला है.
कन्हैया का सुबूतों के अभाव में बेल पर छूटने से साफ जाहिर है कि वह देशद्रोही नहीं बल्कि देशद्रोही वे कट्टरपंथी हैं जो युवाओं की, नए विचारों, नई सोच और क्रांति की आवाज दबाने में लगे हैं. जाहिर है कट्टरपंथी भगवाकरण के आगे न सोचते हैं न चाहते हैं. इसीलिए उन्हें नई सोच और विचारों के पर कतरने से भी गुरेज नहीं. असली देशद्रोही तो उन्हें मानना चाहिए जो भगवाकरण की आड़ में फलफूल रहे हैं और अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते हुए रोहित वेमुला का केस हो या कन्हैया का, को राजनीतिक रंग देते हुए, नई पीढ़ी को देशद्रोही करार दे रहे हैं.
कन्हैया को देशद्रोही बनाने का सिलसिलेवार घटनाक्रम
9 फरवरी, 2016 : जेएनयू में वामपंथी स्टूडैंट्स के एक ग्रुप ने अफजल गुरु और जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के कोफाउंडर मकबूल भट्ट की याद में एक प्रोग्राम रखा, जिसे सांस्कृतिक कार्यक्रम का नाम दिया गया. इसी कार्यक्रम में जेएनयू के साबरमती होस्टल के सामने शाम को कुछ लोगों ने देशविरोधी नारे लगाए फिर एबीवीपी व वामपंथी छात्रों में झड़प हुई.
10 फरवरी, 2016 : नारेबाजी की वीडियो क्लिपिंग सामने आई.
12 फरवरी, 2016 : पुलिस ने नारेबाजी करने व देशद्रोह के आरोप में कन्हैया कुमार को गिरफ्तार किया. फिर कन्हैया को पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया जहां से उसे 3 दिन के रिमांड पर भेजा गया.
15 फरवरी, 2016 : कन्हैया को फिर कोर्ट में पेश किया गया और 2 दिन के रिमांड पर भेजा गया. इसी दौरान वकीलों ने कोर्ट में नारेबाजी कर रहे छात्रों को पीटा.
भाजपा एमएलए ओम प्रकाश शर्मा पर भी कन्हैया को पीटने का आरोप लगा.
17 फरवरी, 2016 : दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने कन्हैया को 2 मार्च तक न्यायिक हिरासत में भेजा.
18 फरवरी, 2016 : कन्हैया ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की.
19 फरवरी, 2016 : कन्हैया को सुप्रीम कोर्ट के बजाय हाईकोर्ट में जाने की सलाह दी गई.
2 मार्च, 2016 : हाईकोर्ट ने कन्हैया को कुछ शर्तों पर 6 महीने की अंतरिम जमानत दी.
3 मार्च, 2016 : कन्हैया ने तिहाड़ से आने के बाद जेएनयू में 50 मिनट का भाषण दिया.
4 मार्च, 2016 : कन्हैया ने स्पष्ट किया कि वह अफजल गुरु को नहीं रोहित वेमुला को अपना आदर्श मानता है.
– पारुल भटनागर