कहे हुए शब्द सहेजे जाते हैं

मन की संदूक में

कभीकभी रत्न जैसे

जड़ जाते हैं हृदय पर

कई बार मील का पत्थर

बन जाते हैं कहे हुए शब्द

शब्द अगर यों ही उगले जाते रहे तो

शब्दों की गरिमा कम हो जाएगी

वे चिंतन का पर्याय कहलाते हैं

जो दिनचर्या को दमका दिया करते हैं.

                        – पूनम पांडे

 

 

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