यह एक ऐसा शहर है जहां सैलानी पहाड़ों की सदाएं सुन सकते हैं, जहां वे प्रकृति का हिस्सा बन सकते हैं, बौद्ध मठों से स्वयं साक्षात्कार कर सकते हैं. सिक्किम की राजधानी गंगटोक भारत में पूर्व के प्रमुख पहाड़ी पर्यटन स्थलों में एक है. फूलों और पक्षियों की सर्वाधिक किस्में सिक्किम में ही पाई जाती हैं. आर्किड की विश्व भर में पाई जाने वाली लगभग 5 हजार प्रजातियों में से अकेले सिक्किम में 650 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं. सिक्किम के मूल निवासी लेपचा और भूटिया हैं लेकिन यहां बड़ी तादाद में नेपाली भी रहते हैं. ज्यादातर सिक्किमवासी बौद्ध और हिंदू धर्म मानते हैं. सिक्किम उन कुछेक राज्यों में शुमार है जहां अभी तक रेल मार्ग नहीं पहुंचा है. सिक्किम की राजधानी गंगटोक की खूबसूरती का अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि कुछ इतिहासकारों ने इस को संग्रहालय में रखने लायक शहर बताया है. यहां तीस्ता नदी की मौजें और कंचनजंघा की भव्य ऊंचाई आप को एक अलग अनुभूति से भर देगी.

दर्शनीय स्थल

गंगटोक शहर से 8 किलोमीटर दूर स्थित ताशी व्यू प्वाइंट से कंचनजंघा और सिनोलबू पर्वत शिखरों का मनोहारी रूप दिखाई पड़ता है. बर्फ से ढकी इन चोटियों का धूप में धीरेधीरे रंग बदलना भी एक अद्भुत समां बांधता है. सिक्किम के पूर्व राजाओं का राजमहल और महल के परिसर में बने बौद्ध मंदिर की खूबसूरती देख कर पर्यटक अचंभित रह जाते हैं.  गंगटोक शहर से 3 किलोमीटर दूर स्थित आर्किड सेंचुरी में आर्किड की सैकड़ों किस्में संरक्षित हैं. वसंत ऋतु में इस स्थान की शोभा निखरने लगती है. यदि पर्यटक अप्रैल से मई और दिसंबर से जनवरी के बीच इस स्थान का भ्रमण करें तो यहां पर खिले फूल भी देख सकते हैं.

तिब्बती भाषा, संस्कृति और बौद्ध धर्म के शोधार्थियों के लिए रिसर्च इंस्टीट्यूट आफ तिब्बतोलाजी एक अद्वितीय संस्थान है. इस की शोहरत विश्व भर में है. यहां संग्रहालय में दुर्लभ पांडुलिपियों, पुस्तकों, मूर्तियों, कलाकृतियों का अनूठा संग्रह है. विशेषकर थंका पेंटिंग का वृहदाकार रूप तो यहां के संग्रहालय की अनमोल धरोहर है. पालजोर स्टेडियम के पास स्थित एक्वेरियम में सिक्किम में पाई जाने वाली मछलियों की खासखास किस्में भी सैलानी देख सकते हैं.

गंगटोक की ऊपरी पहाडि़यों पर स्थित लगभग 3 किलोमीटर दूर सिनोल्चू पर्यटक आवास के करीब पड़ने वाला इंचे बौद्ध मठ नामग्याल विचारधारा से संबंधित है. इसे 1910 में दोबारा बनाया गया था. फंब्रोंग वन्यजीव अभयारण्य गंगटोक से 25 किलोमीटर दूर है. यहां रोडोड्रेडोन, ओक किंबू, फर्न, बांस आदि का घना जंगल तो है ही साथ ही यह दर्जनों पशुओं का आवास भी है. इस अभयारण्य में पक्षियों और तितलियों की अनेक प्रजातियां मौजूद हैं. गंगटोक से 24 किलोमीटर की दूरी पर रूमटेक मठ है. यह बौद्ध धर्म की कारबुत शाखा का मुख्यालय है. पूरे विश्व में रूमटेक मठ की 200 शाखाएं हैं. इस मठ का अपना एक विद्यालय है और रंगबिरंगे पक्षियों से सुसज्जित पक्षीशाला भी है. मठ में विश्व की अद्भुत धार्मिक कलाकृतियां भी संगृहीत हैं.

गंगटोक से 45 किलोमीटर दूर लगभग 12,120 फुट की ऊंचाई पर चांगु लेक है. जाड़ों में यह झील जम जाती है. चांगु लेक के किनारे दुर्लभ याक की सवारी पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है. गंगटोक से चांगु तक जाने के लिए जीप और टैक्सियां उपलब्ध हैं. चांगु झील से आगे बढ़ें तो भारतचीन सीमा पर नाथुला पास तक पहुंचा जा सकता है.  यह दर्रा अब यात्रियों के लिए खोला जा चुका है और इस रास्ते भारतचीनी व्यापारियों के आनेजाने के कारण गहमागहमी बढ़ गई है.

वायु मार्ग : गंगटोक से 125 किलोमीटर की दूरी पर बागडोगरा हवाई अड्डा है. दिल्ली, कोलकाता और गुवाहाटी से यहां आने के लिए नियमित उड़ानें उपलब्ध हैं. गंगटोक बागडोगरा से हेलीकाप्टर की सुविधा भी उपलब्ध है.

रेल मार्ग : गंगटोक का समीपवर्ती रेलवे स्टेशन न्यू जलपाईगुड़ी है.

सिलीगुड़ी, कलिंपोंग और गंगटोक से बस और प्राइवेट टैक्सी की नियमित सुविधा उपलब्ध है.

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