जाटों का हरियाणा में आरक्षण के लिए संघर्ष कुछ ज्यादा ही उग्र और हिंसक हो गया. जाट आमतौर पर एक संपन्न जाति माने जाते रहे हैं और पुलिस व सुरक्षा क्षेत्रों में नौकरियों पर भी बने हुए हैं. उन को भूमि सुधारों के कारण दिल्ली, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में खूब पैसा मिला है और राजनीति में उन का दबदबा रहा है. अचानक उन का पटेलों और कापुओं की तरह ऊंचे स्थान से उतर कर आरक्षण की मांग करना कुछ आश्चर्य की बात लग रही है.
गुजरात के हार्दिक पटेल को झूठे मामले में फंसा कर पटेल विद्रोह को फिलहाल दबा दिया गया है, पर दिल्ली के चारों ओर फैले जाटों के साथ यह संभव नहीं है, क्योंकि मूलत: जाट युवा लड़नेमरने से डरने वाले नहीं हैं. जाटों, पटेलों, कापुओं, गुर्जरों आदि के ये विद्रोह असल में समाजवादी पार्टियों के ढीलेपन के बाद तेज हुए हैं. पहले इन सब जातियों ने सोचा था कि समाजवाद के नारे के कारण वे ब्राह्मणबनियों के समकक्ष पहुंच जाएंगे और समाज में उन के पास पैसे के अलावा प्रतिष्ठा भी होगी, पर जैसेजैसे कमंडल की राजनीति फलीफूली ही नहीं, उस का व्यापारों, नौकरियों, शिक्षा संस्थाओं पर असर भी दिखने लगा, इन असवर्ण जातियों में छटपटाहट शुरू हो गई.
पौराणिक युग से ले कर प्राचीन काल, मध्य काल और आधुनिक काल तक इन्हें इस्तेमाल भर किया जाता रहा है. फौज और पुलिस में मरने वाले इन जातियों के लोग होते, खेतों पर ये काम करते, कारखानों में मजदूरी ये करते, ड्राइवरी का काम ये करते, पर जब सत्ता या पैसे की बात आती, तो इन्हें ठेंगा दिखा दिया जाता.
पिछड़े वर्ग के आयोगों ने आमतौर पर जाटों वगैरह को संपन्न जाति माना, पर शिक्षा में पिछड़े होने के कारण और सदियों से ग्रामीण वातावरण में रहने के कारण जाट, गुर्जर, पटेल आदि ब्राह्मणों और बनियों का सरकारी परीक्षाओं में मुकाबला नहीं कर पाते. पिछड़ी जातियों ने अपने पैसे के बल पर राजनीति में जगह बना ली, छोटे व्यापारों पर कब्जा कर लिया, दलितों और अतिपिछड़ों को दबा डाला, पर फिर भी हीनता की भावना उग्र होती गई.
अब जो विद्रोह हो रहा है, वह ऊंची सवर्ण जातियों के मध्य व उच्च वर्ग की एक बार फिर बढ़ती पहचान और दबदबे के कारण है. आज असली ताकत या तो अरबपतियों के हाथों में है या बहुत ही सक्षम योग्य प्रशासकों के हाथों में है और दोनों ही ज्यादातर सवर्ण हैं. आरक्षण पाने वाले तो यहां पहुंचने लगे हैं, पर उन से बेहतर सामाजिक स्थिति वाले और गिनती में प्रभावशाली, एक बार दिल्ली के आसपास राज किए जाटोंगुर्जरों को अधर में लटकना पड़ रहा है. आज उन का विद्रोह इस छटपटाहट का नतीजा है.
यह मामला तो ठंडा हो जाएगा, पर चिनगारियां सुलगती रहेंगी. आरक्षण इस समस्या का हल नहीं है, सिर्फ बैंड एड है.