मदरसों को मौडर्न बनाना न तो कोई नई खबर है और न ही कोई नई योजना, लेकिन केंद्र की वर्तमान सरकार ने जिस तरह मदरसों के छात्रों को स्किल डेवलपमैंट की ट्रेनिंग देने की शुरुआत की है, उसे आतंकवाद से मुकाबला करने के रूप में देखा जा रहा है.

वैसे तो स्किल डेवलपमैंट के लिए अभी कोई खास पहल नहीं हुई है, लेकिन पायलट प्रोजैक्ट के तौर पर स्किल डेवलपमैंट के लिए जिन मदरसों को चुना गया है, उन में इदारा शरिया, पटना, अंजुमन इसलामिया, मोतीहारी, इसलामिया अंजुमन, रफीकुल मुसलेमान, बेतिया और दारुल मदरसा, हुसैनी मसजिद, मुंबई हैं. इन मदरसों में तकरीबन 12 सौ छात्र और छात्राएं तालीम ले रहे हैं.

स्किल डेवलपमैंट योजना को गृह मंत्रालय और अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से चलाया जा रहा है. केंद्र सरकार का मानना है कि मदरसा छात्रों को मौडर्न सब्जैक्ट पढ़ाने के साथ अगर स्किल डेवलपमैंट से जोड़ा जाए, तो उन्हें कट्टरपंथ की ओर जाने से रोका जा सकता है. मदरसों में अंगरेजी पढ़ाने और कंप्यूटर सिखाने की योजनाएं पहले से चल रही हैं.

एक अंदाजे के मुताबिक, अकेले उत्तर प्रदेश में सरकार द्वारा मंजूरी पाए गए मदरसों की तादाद 5 हजार से ज्यादा है. इन में से 466 मदरसे सरकारी मदद पा रहे हैं यानी उन मदरसों में मौडर्न सब्जैक्ट के साथ कंप्यूटर सिखाने वाले टीचरों को तनख्वाह सरकार देती है. मदरसा छात्रों को स्किल डेवलपमैंट की ट्रेनिंग देने से रोजगार के और ज्यादा मौके हासिल हो सकेंगे.

स्किल डेवलपमैंट के लिए ‘नई मंजिल’ नामक योजना की शुरुआत करते समय केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने कहा था कि उन के मंत्रालय के पास 37 हजार करोड़ रुपए का बजट है. बाद में उन्होंने यह भी बताया कि इस योजना के लिए वर्ल्ड बैंक से 3 सौ करोड़ रुपए का लोन भी मंजूर कराया गया है. योजना के असरदार और मशहूर होने का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अल्पसंख्यक मंत्रालयों की योजनाओं से वर्ल्ड बैंक ने अफ्रीकी देशों को भी परिचित कराया है. वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के संयुक्त सचिव राजकुमार के मुताबिक, ‘नई मंजिल’ योजना से रोजगार की काबिलीयत और श्रम बाजार में अल्पसंख्यक नौजवानों के प्रदर्शन में सुधार में मदद मिलेगी. कर्ज की मीआद 25 साल होगी, जिसे 5 साल के लिए और बढ़ाया जा सकता है.

दरअसल, स्किल डेवलपमैंट योजना ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्किल इंडिया’ मुहिम का ही हिस्सा है, जो मदरसों के छात्रों और स्कूल के ड्रौपआउट बच्चों की माली जरूरतों और उन के अच्छे भविष्य को सामने रख कर बनाई गई है. मदरसों से पढ़ कर निकलने वाले छात्रों को सरकार से मान्यताप्राप्त न होने के नतीजे में ऊंची तालीम में दाखिला नहीं मिलता है और न ही उन्हें सरकारी नौकरी मिलती है. इस से उन के आगे बढ़ने का रास्ता बंद हो जाता है. इस योजना का मकसद उन्हें ब्रिज कोर्स की सुविधा द्वारा विभिन्न हुनरों की ट्रेनिंग दे कर रोजगार के मौके मुहैया कराना है और आगे बढ़ने के लिए मुख्यधारा में शामिल करना है. अल्पसंख्यक मंत्रालय स्किल डेवलपमैंट की ट्रेनिंग दे कर रोजगार हेतु कर्ज भी मुहैया कराएगा.

स्किल डेवलपमैंट के लिए सरकार ने तकरीबन 18 हजार पारंपरिक हुनरों को चुना, जिन में ताला बनाना, बरतन बनाना, कढ़ाई, जरदोजी, कैंची बनाना वगैरह शामिल हैं. एक साल में 40 हजार बच्चों को स्किल डेवलपमैंट की ट्रेनिंग देने की योजना है. जिस इलाके में जिस हुनर की जरूरत होगी, उसी हिसाब से वहां स्किल डेवलपमैंट की टे्रनिंग दी जाएगी. सरकार जहां इस योजना को अनूठा मान रही है, वहीं मदरसे के छात्र ब्रिज कोर्स और हुनरमंद बनाने की योजना से संतुष्ट नहीं हैं. यही वजह है कि अभी भी इस योजना को ले कर सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या सरकार द्वारा केंद्रीय मदरसा बोर्ड को बनाने में मिली नाकामी के बाद दूसरे रास्ते से मदरसों और वहां से निकलने वाले छात्रों की सोच बदलने की कोशिश है

ऐसे छात्रों का मानना है कि कान सीधा पकड़ा जाए या घुमा कर, दोनों हालात में कान पकड़ना ही तो कहलात है. एनआईओएस द्वारा ऊंची तालीम तक पहुंचाने के जिगजैग रास्ते के बजाय मदरसों की डिगरी को मान्यता क्यों नहीं दी जाती, जिस से वे देश की तमाम यूनिवर्सिटियों में सीधे दाखिला ले सकें  अभी सिर्फ अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी, जामिया मिल्लिया इसलामिया यूनिवर्सिटी, मौलाना आजाद नैशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद और लखनऊ यूनिवर्सिटी ने मदरसों की डिगरी को मंजूरी दी है, जिस की वजह से मदरसा छात्रों के लिए वहां ऊंची तालीम में दाखिला लेना मुनासिब हो सका है.

कांगे्रस की अगुआई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के राज में नैशनल इंस्टीट्यूट औफ ओपन स्कूलिंग ने मदरसा छात्रों के लिए 10वीं और 12वीं जमात में दाखिले का प्रस्ताव मंजूर किया था, लेकिन आज तक यह योजना जमीन पर नहीं उतरी है, जिस की वजह से तकरीबन 6 महीने से मदरसा छात्र इस का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं. बुनियादी सवाल यह है कि पहले शुरू की गई यह योजना अभी 4 मदरसों से आगे नहीं बढ़ सकी है, तो पूरे देश में इस के सैंटर खोलने की योजना कब पूरी होगी   दिसंबर, 2015 में गृह मंत्रालय द्वारा अल्पसंख्यक मंत्रालय से इस बाबत रिपोर्ट मांगे जाने के बाद यह सवाल उठ गया है कि क्या सरकार इस को बढ़ाने में गंभीर है  या फिर बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार से सबक लेते हुए केंद्र सरकार राजनीतिक फायदा न मिलता देख इसे ठंडे बस्ते में डाल देगी 

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