सामाजिक सराकारों से युक्त फिल्में बनाने वाले फिल्मकार के रूप में पहचान रखने वाले फिल्मकार प्रकाश झा इस बार लगभग 12 साल पहले प्रदर्शित फिल्म ‘‘गंगाजल’’ का सिक्वअल ‘‘जय गंगाजल’’ लेकर आए हैं. यह एक अलग बात है कि वह इसे सिक्वअल फिल्म नहीं मानते हैं. ‘गंगाजल’में पुलिस अफसर की मुख्य भूमिका में अजय देवगन थे और अब ‘‘जय गंगाजल’’ में पुलिस अफसर की मुख्य भूमिका में प्रियंका चोपड़ा हैं. जबकि डीएसपी बीएन सिंह की भूमिका में खुद प्रकाश झा है.

फिल्म की कहानी में कोई नयापन नहीं है. पुलिस, राजनेता और अपराध के गठजोड़ पर कई फिल्में बन चुकी हैं. ‘गंगाजल’ में भी इसी तरह की बातें थी. ‘जय गंगाजल’ में प्रकाशस झा ने भुखमरी व कर्ज से दबे किसानों की आत्महत्या के मुद्दे को बहुत सतही स्तर पर उठाते हुए जमीन के मालिकाना हक के मुद्दे के साथ भू माफिया की गुंडागर्दी के साथ अपराध को मिलने वाले पुलिस विभाग के आश्रय के साथ राजनेता और पुलिस की जो सांठ गांठ चलती है, उसके चित्रण के साथ समाज में आ रहे बदलाव को भी इंगित किया है. फिल्म में इस तरफ भी इशारा किया गया है कि बुराई का अंत करने के लिए भीड़तंत्र के कदम को सही नहीं ठहराया जा सकता.

‘‘जय गंगाजल’’ की कहानी शुरू होती है बांकेपुर जिले के डीएसपी बी एन सिंह के घर से. डीएसपी बी एन सिंह का घर एक आलीशान बंगला है. जहां तिजोरी में रकम व जेवर भरे हुए हैं. पता चलता है कि बीएनसिंह नौकरी पुलिस विभाग में कर रहे हैं, पर वह सेवा कर रहे है भू माफिया तथा स्थानीय विधायक बबलू पांडे (मानव कौल) और उनके छोटे भाई डब्लू पांडे (निनाद कामत ) की. बबलू पांडे का दाहिना हाथ है मुन्ना मर्दानी (मुरली शर्मा). बी एन सिंह एक मामले में विधायक बबलू पांडे को गिरफ्तार करने पहुंचता है और कहता है कि चिंता न करे, उसने जज से भी बात कर ली है. दो मिनट में उन्हे अदालत से जमानत मिल जाएगी. फिर बबलू पांडे व उनके भाई डब्लू पांडे, डीएसपी बीएनसिंह की मदद से बलवा बाजार समिति की जमीन हथियाने में कामयाब हो जाते हैं. पर इस पर एसपी खुश नहीं है. एसपी अपने आफिस में बुलाकर बीएन सिंह को डांट पिलाने के बाद उसका तबादला दूसरी जगह करते हैं. पर ऐन वक्त पर बीएन सिंह के कहने पर विधायक बबलू पांडे मंत्री चौधरी से बात करके एसपी का तबादला कर देते हैं.

अब इस जिले की एसपी बनकर आभा माथुर (प्रियंका चोपड़ा) आती हैं. आभा माथुर के पिता के देहांत के बाद आभा की मां को नौकरी दिलाकर मंत्री चौधरी ने एहसान किया था. मंत्री चैधरी, आभा माथुर को याद दिलाने से नहीं चूकते कि उन्ही की वजह से पांच साल बाद उन्हे जिले का एसपी बनाया गया है. वह चाहते हैं कि सामंता ग्रुप को जमीन मिल जाए, जिससे बिजली/ का प्लांट शुरू हो सके. कुछ किसान अपनी जमीन नही देना चाहते. डब्लू पांडे का गिरोह मिलकर किसानों की जमीन हासिल करने के लिए हर हथकंडे अपना रहा है, जिसमें बीएन सिंह भी उनका साथ दे रहा है. डब्लू पांडे के आतंक से तंग आकर कुछ किसान आत्महत्या कर लेते हैं. मामला उच्च स्तर पर चर्चा का विषय बन जाता है. आभा माथुर कर्मठ व ईमानदार पुलिस अफसर है. वह खुद मामले की जांच करना शुरू कर देती हैं. आभा माथुर की मुस्तैदी व गतिविधियों से बबलू पांडे नाखुश होकर चाहते हैं कि आभा माथुर का तबादला हो जाए, पर तभी चुनाव घोषित हो जाने की वजह से तबादला नहीं हो पाता.

उधर एक दिन आभा माथुर, बीएन सिंह से कह देती हैं कि वह उनकी असलित जानती हैं. आभा, बीएन सिंह से कहती है कि वह याद रखे कि यह राजनेता अपने फायदे के लिए उसका उपयोग कर रहे हैं, जिस दिन उनका फायदा तुमसे नहीं होगा, तुम्हे लात मार निकाल देंगे. फिर बीएनसिंह व बबलू पांडे के बीच दूरियां बढ़ने लगती हैं. बीएन सिंह की ही वजह से डब्लू पांडे मारे जाते हैं और भीड़ उन्हे पेड़ पर लटका कर आत्महत्या की बात फैला देती है. अब बबलू पांडे दूसरे डीएसपी प्रभूनारायण से हाथ मिलाकर बीएन सिंह को पूरी तरह से खत्म करने का काम शुरू करता है. बीएन सिंह की पिटाई भी करता है. अब बी एन सिंह अपने घर के अंदर छिपायी गयी बबलू पांडे व मंत्री चोधरी के अपराधों की तीस फाइलें एसपी आभा माथुर को सौंप देता है. मुन्ना मर्दानी भी मारा जाता है.

अंत में एस पी आभा माथुर व बबलू पांडे के बीच हाथापायी होती है. फिर वह उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज देती है. मीडिया के सामने आकर आभा  माथुर कहती है कि चुनाव में अपनी बिगड़ती स्थिति से घबराकर बबलू आत्महत्या करने जा रहे थे, पर आत्महत्या करने से रोका. अब कानून अपना काम करेगा.

दो घंटे उन्तालिस मिनट की फिल्म ‘‘जय गंगाजल’’ कुछ वास्तविक घटनाक्रमों को लेकर एक कमर्शियल फिल्म है. इंटरवल से पहले फिल्म एक साथ नारी सशक्तिकरण, भुखमरी, जमीन का हक, भ्रष्टाचार, जैसे कई मुद्दों के साथ घिसटती हुई चलती है. इंटरवल के बाद के कई सीन कई पुरानी फिल्मों की याद दिलाते हैं.

लेखक निर्देशक प्रकाष झा ने अपनी हर फिल्म की तरह इस फिल्म में भी किसी भी समस्या का कोई अंत नहीं दिखाया. इस फिल्म में पहली बार प्रकाश झा ने अभिनय किया है, पर यदि वह लेखन व निर्देशन पर ही ज्यादा केंद्रित रखते, तो शायद फिल्म ज्यादा बेहतर बन जाती. पर यह एक ऐसी तेज गति से चलने वाली मुंबईया मसालायुक्त फिल्म है, जिसे दर्शक एक बार देखना चाहेगा.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो प्रियंका चोपड़ा ने काफी बेहतरीन अभिनय किया है. इस फिल्म में उनकी ‘क्वांटिको’ के लिए की गयी ट्रेनिंग भी काफी काम आयी है. प्रियंका चोपड़ा ने एक्शन सीन भी काफी अच्छे ढंग अंजाम दिए हैं. भ्रष्ट विधायक/राजनेता बबलू पांडे के किरदार में मानव कौल ने काफी सटीक अभिनय किया है. उनके चमचा मुन्ना मर्दानी के किरदार में मुरली शर्मा ने भी ठीकठाक काम किया है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...