दस साल की उम्र से कविताएं व कहानी लिखती आ रही आलिया सेन शर्मा ने कई विज्ञापन फिल्में, म्यूजिक वीडियो बनाए हैं. अब बतौर निर्देशक पहली रोमांटिक व एडवेंचरस फीचर फिल्म ‘‘दिल जंगली’’ लेकर आ रही हैं, जो कि नौ मार्च को प्रदर्शित होगी. उनकी राय पर प्यार में या वैलेंटाइन डे पर उपहार देना जायज है..
आप किस तरह की कहानियां व कविताएं लिखना पसंद करती हैं?
– प्रेम कहानियां व रोमांटिक कविताएं काफी लिखी हैं. टीनएज में रोमांस से ही हम प्रभावित होते हैं, उसका प्रभाव मेरी कविताओं पर है.
आपके अनुसार रिश्ते जल्दी क्यों बदलने लगे हैं?
– उम्र के साथ इंसान की सोच व रिश्तों में परिपक्वता आती है. समाज में जिस तरह से बदलाव हो रहा है, उसके चलते रिश्तों में कई तरह की समस्याएं आती रहती हैं. ऐसा ही प्यार में होता है. प्यार में जरुरी नही है कि आपकी पार्टनर ही आपको मोटीवेट करे, कई बार आप या आपके आस पास का माहौल भी मोटीवेट करता है.
काफी डे वाला प्यार क्या है?
– पहले पीढ़ी का अंतराल माता पिता व बच्चों के बीच हुआ करता था. पर अब ऐसा नही है. अब तो दो भाइयों के बीच भी पीढ़ी का अंतराल होता है. हमारे आस पास का माहौल बहुत तेजी से बदल रहा है, उसका प्रभाव इंसान की सोच व भावनाओं पर भी पड़ता है. अब हर इंसान खुद के लिए जीने लगा है. हर इंसान के पास सिर्फ प्यार व रोमांस ही नहीं हर बात के लिए कई औप्शन हो गए हैं. इंसान के पास समय नहीं है. जब आप अपनी प्रेमिका को उसके अनुसार समय नहीं दे पाते हैं, तो उसके पास दूसरे विकल्प होते हैं, जो कि प्रेम के रिश्ते में दूरी बढ़ा देते हैं.
आपको नही लगता कि हर युवा रिश्ते व रोमांस की बजाय करियर पर ज्यादा जोर दे रहा है?
– कुछ हद तक इसका कारण हम सभी माता पिता व आपकी परवरिश ही होती है. हर माता पिता अपने बच्चों को उसके बचपन से ही सिखाते हैं कि आपको पढ़लिखकर डाक्टर, इंजीनियर या कुछ और बनना है. एक करियर में आगे बढ़ना है, धन कमाना है, तो यह बात युवा होने पर भी उसके दिमाग में रहती है. टीनएजर में हर युवा को लगता है कि चार पांच कैमरे उस पर नजर रख रहे हैं. इसलिए वह अजीबोगरीब दौड़ का हिस्सा बन जाता है, उसे खुद नहीं पता होता कि वह कहां दौड़ रहा है.
मेरा मानना है कि टीनएज उम्र में जो रिश्ता विकसित होता है, वह कई बार थपेड़े खाकर मजबूत भी होता रहता है. पर उस वक्त उसके सामने कई तरह के विकल्प भी खुले होते हैं.
करियर ओएिंटेड सोच का रिश्तों पर किस तरह का असर पड़ता है?
– मैं अपनी बात करना चाहूंगी. मैं खुद तो बहुत महत्वाकांक्षी हूं, पर अपनी अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए परिवार, दोस्त, अपने बच्चे आदि के लिए भी समय निकालना सीखा है. यह बहुत जरूरी है. जबकि मुझे मेरे परिवार व पति का पूरा सहयोग मिलता है.
आपके लिए रोमांस की फिलौसफी क्या है?
– रोमांस व प्यार दो अलग चीजें हैं. प्यार एक युनिवर्सल अहसास है. पर युवावस्था में प्यार के कई शेड्स होते हैं. हर युवक व युवती के लिए टीन एज में अलग अलग तरह का प्यार होता है. रोमांस हमेशा आपके पार्टनर के साथ होना चहिए, रोमांस के लिए कोई बहानेबाजी नहीं होनी चाहिए. रोमांस में पार्टनर के लिए फूल, चौकलेट वगैरह सब कुछ जायज है.
वैलेंटाइन डे से कितना सहमत हैं?
– सिर्फ वैलेंटाइन डे के दिन ही अपने प्यार का जश्न नहीं मनाना चाहिए. हमें हर दिन अपने पार्टनर को अहसास दिलाते रहना चाहिए कि वह हमारी जिंदगी में बहुत खास है.
वैलेंटाइन के बाजारवाद को आप किस तरह से देखती हैं?
– मेरी राय में वैलेंटाइन डे चार पांच साल में बाजारवाद का शिकार नहीं हुआ है. जब मैं टीनएज की उम्र में थी, तब भी मुझे अपने प्रेमी को उपहार देना पड़ता था. हां! जब कोई सामने से आपसे कुछ मांगे, तब वह उपहार नहीं बल्कि मटेरियालिस्टिक रिश्ता हो जाता है.
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