कुछ समय पहले की बात है. कोलकाता के एक उपनगर चौथी कक्षा की एक बच्ची हर रोज पढ़ने जाता थी. बल्कि उसे जबरन भेजा जाता था. माता-पिता यही समझते थे कि दूसरे छोटे बच्चों की तरह उनकी बच्ची भी ट्यूशन पढ़ने जाने में आनाकानी करती है. मां उसे रोज बहला-फुसला कर ट्यूटर के घर छोड़ आया करती थी. अचानक एक दिन वह बच्च जख्मी हालत में रोते-रोते घर पहुंच जाती है. बच्ची ने बताया ट्यूटर ने उसके साथ गलत हरकत की. दरअसल, बच्ची को प्यार-दुलार करने के बहाने ट्यूटर अक्सर उसके बदन में इधर-उधर हाथ लगाने की कोशिश किया करता था. इसकी शिकायत बच्ची ने अपने माता-पिता से कई बार की थी. लेकिन घरवाले बच्ची का आशय समझ नहीं पाए थे.
मुंबई अंधेरी में एक स्कूल के प्रिंसिपल को छह साल के बच्चे का यौन शोषण करने के मामले पोकसो के तहत गिरफ्तार किया गया. बच्चे ने मां को बताया कि दोपहर को जब वह टौयलेट गया तो प्रिंसिपल ने उसके प्राइवेट पार्ट्स को हाथ लगाया.
मालदह में 13 साल की एक लड़की के साथ उसी के स्कूल के एक छात्रों के एक दल ने स्कूल परिसर में यौन उत्पीड़न की कोशिश की. लड़कों के दल में से एक छात्र लगभग हर रोज उसे फब्तियां कसता था. फिर एक दिन उसने लड़की को प्रेम निवेदन किया. जवाब में लड़की ने उसे बुरी तरह झिड़क दिया था. इससे नाराज लड़कों के दल ने छुट्टी के समय मौका देखकर लड़की को उसकी सहेली के साथ घेर लिया. पहले तो लड़की को थप्पड़ मारा और फिर सब उन दोनों के साथ छेड़खानी करने लगे.
दिल्ली रोहिणी के मैक्सफोर्ट स्कूल में आठ साल की एक लड़की के साथ शिक्षक ने स्कूल परिसर में छेड़खानी करने की कोशिश की. ऐसा एक बार नहीं दो बार हुआ. पहली बार लड़की ने अपनी खुद की आशंका को झिड़क दिया. लेकिन जब उसके साथ दोबारा ऐसा ही हुआ तो लड़की ने घरवालों को इसक शिकायत की. इसके बाद अभिभावकों ने स्कूल में प्रदर्शन किया.
एक अन्य घटना में मुंबई के प्रभादेवी स्कूल बधिर और शारीरिक रूप से विकलांग बच्चे के प्रभादेवी स्कूल में प्रिंसिपल और एक टीचर ने मिलकर एक बधिर बच्ची का यौन शोषण किया. बच्ची ने बताया कि स्कूल की और भी छह बच्चियों के साथ भी इस तरह की घटना घट चुकी है. बाद में पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार किया.
कोलकाता के जादवपुर इलाके में एक स्कूल में एक लड़के ने टौयलेट में एक लड़की के साथ बलात्कार की कोशिश की. लड़का स्कूल की दीवार फांद कर परिसर में घुस आया था. इसका घटना के बाद अभिभावकों ने जमकर हंगामा किया.
ये तो स्कूल में बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न की घटनाएं हैं. पिंकी विरानी ने अपनी किताब ‘बीटर चौकलेट: चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज इन इंडिया’ में एक सर्वे का जिक्र किया है, जो बताता है कि 90 फीसदी मामलों में पिता, भाई, चाचा, मामा जैसे परिजन और पारिवारिक मित्र, ड्राइवर, नौकर-चाकर, दरवान भी प्यार-दुलार के बहाने अक्सर बच्चों यौन उत्पीड़न करते हैं. सहूलियत भरी जिंदगी जीने के लिए माता-पिता दोनों सर्विस करते हैं. जाहिर है भाग-दौड़ की जिंदगी में बच्चे जल्द ही आया व पारिवारिक सदस्यों के हवाले कर दिए जाते हैं. ऐसे करीबी लोगों के के चेहरे के पीछे कोई मुखौटा है, बच्चे और माता-पिता समझ नहीं पाते हैं. माता-पिता के सामने दादा, ताऊ, काका, चाचा, मामा चौकलेट या टौफी देकर स्नेह जताते हों, लेकिन माता-पिता के पीठ पीछे या टैरेस या किसी सूनसान जगह में बच्चों को ले जाकर अपनी विकृत लालसा पूरा करते हैं.
यूनिसेफ, सेव द चिल्ड्रन, केंद्रीय समाज कल्याण मंत्रालय और स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से समय-समय पर जितनी भी सर्वे हुए हैं, उनका लब्बोलुआव यही है कि समाज के हर स्तर पर पांच से लेकर 18 साल के बच्चों का शारीरिक शोषण हो रहा है. प्रयास नामक स्वयंसेवी संस्था ने 13 राज्यों में कराए गए सर्वेक्षण में समाज के हर तबके के 18 साल के 12500 बच्चों से बातचीत का नतीजा भी यही कहता है कि प्रति तीन में से दो का कभी-न-कभी यौन शोषण हुआ है. वहीं 18 से 24 साल के 2324 लड़के-लड़कियों माना कि इसमें बहुतों के साथ उम्र के विभिन्न पड़ाव पर यौन शोषण हुआ है. पूरे सर्वे में पाया गया कि 99 प्रतिशत बच्चे ‘साइलेंट विक्टिम’ बनते हैं. 70 प्रतिशत बच्चे चाहे लड़का हो या लड़की यौन उत्पीड़न की बात छिपा लेते हैं. किसको नहीं बताते या किसी को पता नहीं चल पाता है. कई बार बच्चे इतने छोटे होते हैं कि या तो समझ नहीं पाते हैं, या बता नहीं पाते हैं. 20 प्रतिशत मामले में बच्चों की शिकायत करने पर भी माता-पिता मामले को पचा जाते हैं या छिपा लेते हैं. समाज में बदनामी से डर कर आरोपी पर कोई कार्रवाई नहीं करते हैं.
मुंबई की भी एक अन्य स्वयंसेवी संस्था ने देश के 500 शहरों में शिक्षित और संभ्रांत मध्यवर्गीय परिवार की महिलाओं पर सर्वे किया. जिन महिलाओं से इस बारे में बात की गयी उनमें से 450 महिलाएं ‘हाईवे’ फिल्म की वीरा त्रिपाठी पायी गयीं, जिसका चाचा उसका यौन शोषण किया करता था और उसकी मां उसकी शिकायत को दबा देती थी. अक्सर ये महिलाएं बचपन में कभी-न-कभी, किसी-न-किसी उम्र में एक बार या एक से अधिक कई बार यौन उत्पीड़न की शिकार हो चुकी थीं. इनमें 40 प्रतिशत महिलाएं करीबी रिश्तेदारों द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकार हुई थीं. 70 प्रतिशत का यौन शोषण पारिवारिक मित्रों या दूर के उम्रदराज रिश्तेदारों ने किया था. आजकल तो लड़कों का भी यौन उत्पीड़न आम है. एक सर्वे में 150 लड़कों से इस मुद्दे पर बात हुई, इनमें से 15 प्रतिशत लड़के बचपन में पिता, ताऊ, काका और पड़ोसी द्वारा लांक्षित होते थे.
मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट कहता है कि पूरे देश में हर 23 मिनट में एक बच्चे का अपहरण होता है. अपहृत बच्चों में ज्यादातर का किसी-न-किसी रूप में यौन शोषण होता है. कुछ मामलों में तो अपहरण का मकसद यौन उत्पीड़न और विकृत यौन लालसा की प्राप्ति होता है. केवल और केवल फिरौती के लिए भी अपहरण होता है, लेकिन उन बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न होता है. अपहृत बच्चे खाड़ी के देशों में भी भेज दिए जाते हैं.
गंभीरता से लें बच्चों की बातों को
कोलकाता के नेशनल इंस्टीट्यूट औफ विहेवियरल साइंस की मनोचिकित्सक श्रीलेखा विश्वास का कहना है कि भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में पिडोफिल नामक मानसिक विकार वाले लोगों की बड़ी जमात सक्रिय है. बड़े पैमाने पर बच्चों का कभी पारिवारिक सदस्यों, कभी पारिवारिक मित्रों, कभी सगे-संबंधियों तो कभी ड्राइवरों, रसोइयों, दरवानों और नौकर-चाकरों जैसे परिवार के अन्य परिचितों द्वारा सेक्सुअल शोषण होता है. श्रीलेखा का कहना है कि समाज में बच्चे आमतौर पर ‘वल्नरबल’ यानि अरक्षित होते हैं. कि हमारे आसपास मुखौटाधारी रिश्तेदार व मित्र होते हैं. माना ऐसे लोगों से की पहचान मुश्किल है और इन लोगों से बच्चों को दूर रखना भी एक चुनौती भरा काम है. लेकिन माता-पिता इतना तो कर सकते हैं कि बच्चों को हमेशा अपनी निगरानी में रखें. निगरानी का इंतजाम करें. और जब कभी बच्चा ऐसा कुछ बताने की कोशिश करे तो उसे गंभीरता से लेते हुए उसकी बात को तरजीह दें. अनसुना न करे. न ही वहम बता कर टाल दें.
बच्चों को बनाएं जागरूक
वे यह भी कहती हैं कि बच्चों में थोड़ी समझदारी आने के साथ या फिर उनके परिचितों का दायरा बढ़ने के साथ उन्हें यह समझना जरूरी है कि छिपा कर किया गया कोई भी काम गलत होता है. अगर कोई उनके साथ कुछ इस तरह पेश आए जो उनके मन को अच्छा न लगे. कोई कुछ ऐसा काम करने को कहे जो जो करने से उनके मन का साथ न हो, या हिचक मन में आए तो यह बात वे माता-पिता को जरूर बताएं. उन्हें यह भी बताएं कि अगर कोई प्यार-दुलार करते हुए उनके गुप्तांग या बदन के किसी हिस्से को हाथ लगाएं तो तुरंत माता-पिता को बताना चाहिए. बच्चों को जागरूक बनाने का दायित्व माता-पिता का है, क्योंकि बच्चे ‘साइलेंट विक्टिम’ बनेंगे. बच्चों के उम्र के हिसाब से खुलेतौर पर या सहज रूप से बातचीत के जरिए बच्चों को सचेत करना जरूरी है.