घने कोहरे में
कोई मुसकरा कर गया
आहट सी कोई
स्तब्ध किए मुझे
मेरे मुंह को
निशब्द बना
रागिनी सी रजनी
यों यायावर बनी
गहन अंधियारे को चीरती
लौट गई
कहीं और सिमट गई
यों ही
उदित हो चला
उजियारे में वो
मुसकराता सा चेहरा
जो कोहरे से
अब कहीं दूर
हो चला था.
– मनोज शर्मा
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